‌‌‌‌‌गरूड़ पुराण के अध्याय 4 के बारे मे जानकारी  garud puran adhyay 4

‌‌‌ garud puran adhyay 4 गरूड़ पुराण के अध्याय 4 के बारे मे हम आपको बताने वाले हैं तो आइए जानते हैं इसके बारे मे विस्तार से

कैर्गच्छन्ति महामार्गे वैतरण्यां पतन्ति कैः। कैः पापैर्नरके यान्ति तन्मे कथय केशव॥

गरुडजीने कहा–हे केशव! किन पापों के कारण मनुष्य यमलोक के महामार्ग मे जाते हैं और किन पापों के कारण मनुष्य वैतरणी नदी मे गिरते हैं और किन पापों की वजह से मनुष्य नर्क के अंदर जाते हैं इसके बारे मे बताएं

श्रीभगवानुवाच सदैवाकर्मनिरताः शुभकर्मपराङ्मुखाः । नरकान्नरकं यान्ति दुःखाहुुःरख्रं भयाद्भयम्‌॥

धर्मराजपुरे यान्ति त्रिभिद्वारैस्तु धार्मिकाः । पापास्तु दक्षिणद्वारमार्गेणैव व्रजन्ति तत्‌॥

श्रीभगवान्‌ बोले सदा  पाप कर्म मे लगे प्राणी और शुभ कर्म से विमुख प्राणाली । एक दुख से दूसरे दुख को और एक भय से दूसरे भय को प्राप्त होते हैं।

धार्मिक जन धर्मराजपुर में तीन दिशाओंमें स्थित द्वारों से जाते हैं और पापी पुरुष दक्षिण-द्वारके मार्ग से ही वहां पर आते हैं इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए । और आप इस बात को समझ  सकते हैं।

अस्मिन्नेव महादुःखे मार्गे वैतरणी नदी। तत्र ये पापिनो यान्ति तानहं कथयामि ते॥

 ब्रह्मघ्नाश्च सुरापाश्च गोघ्ना वा बालघातकाः । स्त्रीघाती गर्भपाती च ये च प्रच्छन्नपापिनः॥

ये हरन्ति गुरोर्द्र॑व्यं देवद्रव्यं द्विजस्य वा।स्त्रीद्रव्यहारिणो ये च बालद्रव्यहराश्च ये॥

ये ऋणां न प्रयच्छन्ति ये वै न्यासापहारकाः। विश्वासघातका ये च सविषान्नेन मारकाः॥

दोषग्राही गुणाश्लाधी गुणवत्सु समत्सराः। नीचानुरागिणो मूढाः सत्सङ्गतिपराङ्मुखाः॥

तीर्थसज्जनसत्कर्मगुरुदेवविनिन्दकाः । पुराणवेदमीमांसान्यायवेदान्तदूषकाः ॥

हर्षिता दुःखितं दृष्ट्वा हर्षिते दुःखदायकाः । दुष्टवाक्यस्य वक्तारो दुष्टचित्ताश्च ये सदा॥

‌‌‌और इस दक्षिण मार्ग के अंदर वैतरणी  नदी है। इस ओर जो जो महापानी पुरूष जाते हैं उनके बारे मे मैं तुम्हें बताता हूं ।

गरूड़ पुराण के अध्याय 4

ब्राह्मणों की हत्या करने वाले , सुरापान करने वाले गोघाती बालहत्यारे और स्त्री की हत्या करने वाले ,गर्भपात करने वाले गुप्त रूप से पाप करने वाले ,गुरू का धन हरण करने वाले ,स्त्रीद्रव्यहारी, बालद्रव्यहारी हैं।

जो ऋण लेकर उसे न लौटानेवाले ,विश्वासघात करने वाले ,धरोहरका का अपहरण करने वाले विषदेकर मार डालने वाले ,दूसरों के देाषों को ग्रहण करने वाले ,गुणों की प्रसंसा ना करने वाले ,गुणवानों से ईर्ष्या रखने वाले ,नीचों की संगति करने वाले ,

‌‌‌मूढ और अच्छी संगति से दूर रहने वाले ।

जो तीर्थो, सज्जनों, सत्क्मो, गुरुजनों और देवताओं की निंदा करने वाले ,पुराण, वेद, मीमांसा, न्याय और वेदान्त को दूषित करने वाले , दुखी इंसान को देखकर प्रसन्न होने वाले ।बुरा बोलने वाले और दूषित चित वाले ।

न शृण्वन्ति हितं वाक्यं शास्त्रवार्ता कदापि न । आत्मसम्भाविताः स्तब्धा मूढाः पण्डितमानिनः ॥

एते चान्ये च बहवः पापिष्ठा धर्मवर्जिताः। गच्छन्ति यममार्गे हि रोदमाना दिवानिशम्‌॥

यमदूतैस्ताड्यमाना यान्ति वैतरणीं प्रति। तस्यां पतन्ति ये पापास्तानहं कथयामि ते॥

‌‌‌जो हितकर वाक्य और शास्त्री वचन को कभी नहीं सुनने वाले ,अपने आपको सर्वश्रेष्ठ समझने वाले ,घमंडी और मूर्ख और अपने आप को विद्धान समझने वाले और मूर्ख इंसान रात दिन रोते हुए यममार्ग के अंदर चलते हैं।

‌‌‌और इनको यमदूतों के द्धारा काफी अधिक पीटा जाता है और यम मार्ग के अंदर खूब रोते और चिखते रहते हैं।

मातरं येऽवमन्यन्ते पितरं गुरुमेव च । आचार्य चापि पूज्यं च तस्यां मञ्जन्ति ते नराः॥

पतिव्रतां साधुशीलां कुलीनां विनयान्विताम्‌ । स्त्रियं त्यजन्ति ये द्वेषाद्वैतरण्यां पतन्ति ते॥

सतां गुणसहस्त्रेषु दोषानारोपयन्ति ये । तेष्ववज्ञां च कुर्वन्ति वैतरण्यां पतन्ति ते॥

जो माता, पिता, गुरु, आचार्य तथा पूज्यजनों को अपमानित करते हैं और वे वैतरणी नदी के अंदर डूब जाते हैं।जो पुरुष पतिव्रता, सच्चरित्र, उत्तम कुलमें उत्पन्न, विनयसे युक्त स्त्री को छोड़ देते हैं वे वैतरणी नदी के अंदर पड़ते हैं। ‌‌‌जो सत्पुरूषों के अंदर दोषारोपण करते हैं वे भी वैतरणी नदी के अंदर पड़ते हैं।

ब्राह्मणाय प्रतिश्रुत्य यथार्थ न ददाति यः । आहूय नास्ति यो ब्र्यात्तयोर्वासश्च सन्ततम्‌॥  स्वयं दत्ताऽपहर्ता च दानं दत्त्वाऽनुतापकः। परवृत्तिहरश्चैव दाने दत्ते निवारकः॥  यज्ञविध्वंसकश्चैव कथाभङ्गकरश्च यः क्षेत्रसीमाहरश्चैव यश्च गोचरकर्षकः॥  ब्राह्मणो रसविक्रेता यदि स्याद्‌ वृषलीपतिः । वेदोक्तयज्ञादन्यत्र स्वात्मार्थं पशुमारकः॥ ब्रह्मकर्मपरिभ्रष्टो मांसभोक्ता च मद्यपः। उच्छुङ्कलस्वभावो यः शास्त्राध्ययनवर्जितः॥  वेदाक्षरं पठेच्छूद्रः कापिलं यः पयः पिबेत्‌ । धारयेद्‌ ब्रह्मासूत्रं च भवेद्वा ब्राह्मणीपतिः॥  राजभार्याऽभिलाषी च परदारापहारकः। कन्यायां कामुकश्चैव सतीनां दूषकश्च यः॥

ब्राह्मण को वचन देकर सही तरह से दान नहीं करता है। और जो बुलाकर किसी व्यक्ति के बारे मे ऐसा कहता है कि नहीं है ,वे सदा वैतरणी नदी के अंदर निवास करते हैं इसके अलावा दान देकर पश्चाताप करने वाला , दान देने से रोकने वाला , और यज्ञ का विध्वंश करने वाला ,कथा भंग करने वाला , गौचर भूमी को जोतने वाला,

ब्राहमण होकर रसक्रिया करने वाला ,शुद्र स्त्री का ब्राहमण पति ,वेद प्रतिपादित यज्ञके अतिरिक्त अपने लिये  पशुओं की हत्या करने वाला ।ब्रह्मकर्मसे च्युत , और मांस खाने वाला ,च्छुंखल स्वभाववाला, शास्त्रके अध्ययनसे रहित (ब्राहमण) ,वेद पढ्नेवाला शूद्र, कपिलाका दूध पीनेवाला शूद्र, यज्ञोपवीत धारण करनेवाला शुद्र, ब्रामणीका पति बननेवाला शूद्र, राजमहिषीके साथ व्यभिचार करनेवाला ‌‌‌और कन्या के साथ कामाचार की इच्छा रखने वाला ,सतीत्व को नष्ट करने वाला । यह सभी वैतरणी नदी के अंदर गिरते हैं। इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए । और आप इस बात को समझ सकते हैं।

एते चाऽन्ये च बहवो निषिद्धाचरणोत्सुकाः। विहितत्यागिनो मूढा वैतरण्यां पतन्ति ते॥

सर्व॑ मार्गमतिक्रम्य यान्ति पापा यमालये। पुनर्यमाज्ञचयाऽऽगत्य दूतास्तस्यां क्षिपन्ति तान्‌॥

या वै धुरन्धरा सर्वधौरेयाणां खगाधिप। अतस्तस्यां प्रक्षिपन्ति वैतरण्यां च पापिनः॥

‌‌‌इस प्रकार से सभी तरह के निषेध कर्म करने वाले और शास़्त्रवीहीन कर्म करने वाले सभी मनुष्य मरने के बाद वैतरणी नदी के अंदर गिरते हैं। इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए । और आप इस बात को अच्छी तरह से समझ सकते हैं।

‌‌‌उसके बाद सभी मार्गों को पार करने के बाद पापी यमके पास पहुंचते हैं और वहां से उनको फिर से वैतरणी नदी के अंदर फेंक दिया जाता है। हे खग वैतरणी नदी बहुत अधिक कष्ट देने वाली होती है इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए । और आप इस बात को समझ सकते हैं।

कृष्णा गौर्यदि नो दत्ता नोर्ध्वदेहक्रियाकृताः। तस्यां भुक्त्वा महद्दुःखं यान्ति वृक्षं तटोद्भवम् 

कूटसाक्ष्यप्रदातारः कूटधर्मपरायणाः छलेनार्जनसंसक्ताश्चौर्यवृत्त्या जीविनः॥ 

छेदयन्त्यतिवृक्षांश्च वनारामविभञ्जकाः। व्रतं तीर्थं परित्यज्य विधवाशीलनाशकाः॥ 

‌‌‌जिसने अपने जीवन काल के अंदर काली गाय का दान नहीं किया है।मृत्युके पश्चात्‌ जिसके उद्देश्ये बान्धवों द्वारा कृष्णा गौ नहीं दी गयी। और सही तरह से दैहिक क्रिया को नहीं किया गया ।वे वैतरणीमें महान्‌ दुःख भोग करके वैतरणी तटस्थित शाल्मली-वृक्षमें जाते हैं।

‌‌‌झूठी गवाही देने वाले धर्म के पालन का ढोंग करने वाले विधा के शील को नष्ट करने वाले ,छल से धन का अर्जन करने वाले और चोरी करने वाले ,अत्यधिक वृक्षोंको काटनेवाले, वन और वाटिकाको नष्ट करनेवाले और व्रत आदि का परित्याग करने वाले विधवा के शील को नष्ट करने वाले वैतरणी नदी के अंदर गिरते हैं।

भर्तारं दूषयेन्नारी परं मनसि धारयेत्‌ । इत्याद्याः शाल्मलीवृक्षे भुञ्जन्ते बहुताडनम्‌॥

ताडनात्‌ पतितान्‌ दूताः क्षिपन्ति नरकेघु तान्‌। पतन्ति तेषु ये पापास्तानहं कथयामि ते॥

नास्तिका भिन्नमर्यादा: कदर्या विषयात्मकाः। दाम्भिकाश्च कृतघ्नाश्च ते वै नरकगामिनः॥

कूपानां च तडागानां वापीनां देवसदानाम्‌। प्रजागृहाणां भेत्तारस्ते वै नरकगामिनः॥

‌‌‌ऐसी स्त्री जोकि अपने पति को दोष मे बताकर किसी पर स्त्री पर आषक्त हो जाती है इसी तरह के अन्य लोग शाल्मली-वृक्षद्वारा काफी अधिक प्रताड़ित किये जाते हैं।‌‌‌और पीटने से पापी लोग नीचे गिर जाते हैं और उसके बाद वे नरक के अंदर गिर जाते हैं इनके बारे मे मैं तुमको बतलाने वाला हूं ।

वेदकी निन्दा करनेवाले ,मर्यादा का उल्लघंन करने वाले , और कंजूस और दम्भी तथा कृतघ्न मनुष्य निश्चय ही नरकोंमें गिरते हैं । इसके अलावा जो तालाब , बावड़ी कुआं आदि को नष्ट करते हैं वे निश्चय ही नर्क मे गिरते हैं इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए ।

विसृज्याश्नन्ति ये दाराञ्छिशून्‌ भृत्यांस्तथा गुरून्‌। उत्सृज्य पितुदेवेज्यां ते वै नरकगामिनः॥

शंकुभिः सेतुभिः काष्ठैः पाषाणैः कण्टकैस्तथा। ये मार्गमुपरुन्धन्ति ते वै नरकगामिनः॥

स्त्रियों, छोटे बच्चों, नौकरों तथा श्रेष्ठजनोंको छोड़कर ‌‌‌जो पितरों की पूजा नहीं करते हैं जो देवताओं की पूजा नहीं करते हैं वे नर्क मे जाने वाले होते हैं।इसके अलावा जो मार्ग को किसी भी तरह से रोकने का प्रयास करते हैं वे नर्क के अंदर जाते हैं। इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए । और आप इस बात को समझ सकते हैं।

शिवं शिवां हरिं सूर्य॑ गणेशं सद्गुरुं बुधम्‌ । न पूजयन्ति ये मन्दास्ते वै नरकगामिनः॥

आरोप्य दासीं शयने विप्रो गच्छेदधोगतिम्‌। प्रजामुत्पाद्य शूद्रायां ब्राह्मण्यादेव हीयते॥

न नमस्कारयोग्यो हि स कदापि द्विजोऽधमः। तं पूजयन्ति ये मूढास्ते वै नरकगामिनः॥

ब्राह्मणानां च कलहं गोयुद्धं कलहप्रियाः । न वर्जन्त्यनुमोदन्ते ते वै नरकगामिनः॥

अनन्यशरणस्त्रीणां ऋतुकालव्यतिक्रमम्‌ । ये प्रकुर्वन्ति विद्वेषात्ते वै नरकगामिनः॥

येऽपि गच्छन्ति कामान्धा नरा नारीं रजस्वलाम्‌ । पर्वस्वप्सु दिवा श्राद्धे ते वै नरकगामिनः॥

जो मन्द पुरुष भगवान्‌ शिव, भगवती शक्ति, नारायण, सूर्य, गणेश, सद्गुरु और विद्वान्‌ आदि की पूजा नहीं करते हैं वे नर्क मे जाते हैं।इसके अलावा दासियों को अपनी शया पर बुलाने वाले ,शाद्रामें संतान उत्पन्न करनेसे वह ब्राहमणत्वसे ही च्युत हो जाता है । इसके अलावा नीच ब्राहमण को नमस्कार करने वाले ,जो मूर्ख ऐसे ब्राह्मणकी पूजा करते हैं, वे नरकगामी होते हैं

‌‌‌इसके अलावा कलह से प्रसन्न होने वाले और जो गाऔं की लड़ाई नहीं रूकवाते हैं या फिर इस तरह की लड़ाई का समर्थन करते हैं वे नर्क के अंदर जाते हैं।

जिसका कोई दूसरा शरण नहीं है, ऐसी पतिपरायणा स्त्रीक ऋतुकालकी द्वेषबश उपेक्षा करनेवाले निश्चित ही नरकगामी होते हैं॥  जो कामान्ध पुरुष रजस्वला स्त्रीसे गमन करते हैं अथवा पर्वके दिनों (अमावास्या, पूर्णिमा आदि)-में, जलमें, दिनमें तथा श्राद्धके दिन कामुक होकर स्त्रीसंग करते हैं, वे नरकगामी होते हैं॥

ये शारीरं मलं वह्नौ प्रक्षिपन्ति जलेऽपि च । आरामे पथि गोष्ठे वा ते वै नरकगामिनः॥  शस्त्राणां ये च कर्तारः शराणां धनुषां तथा । विक्रेतारश्च ये तेषां ते वै नरकगामिनः॥  चर्मविक्रयिणो वैश्याः केशविक्रेयकाः स्त्रियः । विषविक्रयिणः सर्वे ते वै नरकगामिनः॥

जो अपने शरीर के मल को आग, जल, उपवन, मार्ग अथवा गोशाला में फेंकते हैं वे नर्क मे जाने वाले होते हैं। इसके अलावा बाण और धनूष को बनाने वाले नर्क मे जाते हैं। इसके अलावा चमड़ा बेचने वाले वैश्य और योनी का विक्रय करने वाली स्त्री आदि नर्क मे जाते हैं।

अनाथं नाऽनुकम्पन्ति ये सतां द्वेषकारकाः। विनाऽपराधं दण्डन्ति ते वै नरकगामिनः॥ 

आशया समनुप्राप्तान्ब्राह्मणानर्थिनो गृहे। भोजयन्ति पाकेऽपि ते वै नरकगामिनः॥ 

सर्वभूतेष्वविश्वस्तास्तथा तेषु विनिर्दयाः। सर्वभूतेषु जिह्या ये ते वै नरकगामिनः॥ 

नियमान्समुपादाय ये पश्चादजितेन्द्रियाः। विग्लापयन्ति तान्भूयस्ते वै नरकगामिनः॥ 

‌‌‌जो अनाथों पर कृपा नहीं करते हैं।और अच्छे पुरूषों से द्धेष करते हैं।बिना अपराध के दंड देते हैं।घर पर आए हुए ब्रह्रामण को दान नहीं देते हैं।जो सभी प्राणियों पर दया नहीं करते हैं उनके साथ कुटिलता का व्यवहार करते हैं।जो अजितेन्द्रिय पुरुष नियमोंको स्वीकार करके बादमें उन्हें त्याग देते हैं,बे नरकगामी होते हैं

अध्यात्मविद्यादातारं नैव मन्यन्ति ये गुरुम्‌। तथा पुराणवक्तारं ते वै नरकगामिनः॥

मित्रद्रोहकरा ये च प्रीतिच्छेदकराशच ये। आशाच्छेदकरा ये च ते वै नरकगामिनः॥

विवाहं देवयात्रां च तीर्थसार्थान्विलुम्पति। स वसेन्नरके घोरे तस्मान्नावर्तनं पुनः॥

‌‌‌जो अध्यात्मविद्या  प्राप्त करने वाले गुरूओं को नहीं मानते हैं जो पुराणवक्ताको  को नहीं मानते हैं जोकि मित्र से गलत करते हैं।और जो दूसरों की आशाओं को नष्ट करने का काम करते हैं।वे सब नर्क मे जाते हैं विवाह को भंग करने वाला ,देवताओं को काम मे बाधा पैदा करने वाले ,और तीर्थयात्री को लूटने वाले सदा‌‌‌ही नर्कों मे वास करते हैं इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए । और आप इस बात को अच्छी तरह से समझ सकते हैं। और यही आपके लिए सही होगा ।

अग्निं दद्यान्महापापी गृहे ग्रामे तथा वने। स नीतो यमदूतैश्च वहिनकुण्डेषु पच्यते॥

अग्निना दग्धगात्रोऽसौ यदा छायां प्रयाचते। नीयते च तदा दूतैरसिपत्रवनान्तरे॥

खड्गतीक्ष्णैशच तत्पत्रैर्ात्रच्छेदो यदा भवेत्‌। तदोचुः शीतलच्छाये सुखनिद्रां कुरुष्व भो॥

‌‌‌जो महापापी घर और जंगल के अंदर आग को लगाते हैं इस तरह के पापी लोगों को यमदूत लेकर जाते हैं और उसके बाद उनको आग के कुंड के अंदर पकाने का काम करते हैं। और जब वह पापी छाया की याचना करते हैं तो उसके बाद उनको असिपत्र वन मे लेकर जाते हैं और वहां पर तीक्ष्ण पत्तों से उसके शरीर के अंग कट जाते हैं और ‌‌‌उसके बाद यमदूत उसको कहते हैं जा पापी अब शीतल छाया के अंदर सो ।

पानीयं पातुमिच्छन्वै तृषार्तो यदि याचते। पानार्थं तैलमत्युष्णं तदा दूतैः प्रदीयते॥

पीयतां भुज्यतां पानमन्नमूचुस्तदेति ते। पीतमात्रेण तेनैव दग्धान्त्रा निपतन्ति ते॥

कथञ्चित्पुनरुत्थाय प्रलपन्ति सुदीनवत्‌। विवशा उच्छ्वसन्तश्च ते वक्तुमपि नाशकन्‌॥  

‌‌‌जब वह प्यास से व्याकूल होकर कुछ पीने की इच्छा करता है तो उसके बाद उसको खौलता हुआ तेल पीने के लिए दिया जाता है। उसके बाद यमके दूत उसको कहते हैं कि ले पापी जल को पी और अन्न को खा ।‌‌‌उसके बाद उस उष्ण तेल को पीने के बाद पापी की आंते जल जाती हैं और वह मरे हुए के समान नीचे गिर जाता है।फिर वह वहां पर दीन के समान प्रलाप करता है। विवश होकर ऊर्ध्व श्वास लेते हुए वे कुछ कहनेमें भी समर्थ नहीं होते॥

  इत्येवं बहुशस्ताक्ष्यं यातनाः पापिनां स्मृताः । किमेतैर्विस्तरात्प्रोक्तैः सर्वशास्त्रेषु भाषितैः॥ एवं वै क्लिश्यमानास्ते नरा नार्यः सहस्त्रशः । पच्यन्ते नरके घोरे यावदाभूतसम्प्लवम्‌॥ तस्याक्षयं फलं भुक्त्वा तत्रैवोत्पद्यते पुनः। यमाज्ञया महीं प्राप्य भवन्ति स्थावरादयः॥

हे तार्क्ष्य! इसक प्रकार से पापियों की बहुत सारी यातनाओं के बारे मे बताया गया है। इनका वर्णन शास्त्रों के अंदर मिलता है।इस प्रकार से हजारों नर और नारियां पाप के फलों को नरक के अंदर भोगते हैं और उसके बाद फिर से धरती पर जन्म लेते हैं। जंहा पर उनको नीच योनियों के अंदर जन्म लेना पड़ता है।

  वृक्षगुल्मलतावल्लीगिरयश्च तृणानि च। स्थावरा इति विख्याता महामोहतमावृताः॥ कीटाश्च पशवश्चैव पक्षिणश्च जलेचराः। चतुरशीतिलक्षेषु कथिता देवयोनयः॥

वृक्ष, गुल्म, लता, वल्ली, गिरि (पर्वत) तथा तृण आदि ये स्थावर योनियाँ कही गयी हैं; ये अत्यन्त मोहसे आवृत हैं॥ कीट, पशु-पक्षी, जलचर तथा देव-इन योनियोंको मिलाकर चौरासी लाख योनियाँ कही गयी हैं ॥

एताः सर्वाः परिभ्रम्य ततो यान्ति मनुष्यताम्‌। मानुषेऽपि श्वपाकेषु जायन्ते नरकागताः। तत्रापि पापचिह्नैस्ते भवन्ति बहुदुःखिताः ॥ गलत्कुष्ठाशच जन्मान्धा महारोगसमाकुलाः। भवन्त्येवं नरा नार्यः पापचिहनोपलक्षिताः॥ इति गरुडपुराणे सारोद्धारे नरकप्रदपापचिहननिरूपणं नाम चतुर्थोऽध्यायः ॥

‌‌‌इस तरह से इन सभी योनियों के अंदर घूमते हुए जीवों को मनुष्य योनी को प्राप्त होता है। और आपको बतादें कि जो नर्क से आए हुए होते हैं उनको अनेक तरह के पाप के चिन्ह होते हैं जैसे कि कोई कुष्ठ रोगी होता है। कोई जन्म से अंधा होता है। किसी को सुनाई नहीं देता है।

‌‌‌इस प्रकार से पुरूष और स्त्री के अंदर पाप के चिन्ह काफी आसानी से देखे जा सकते हैं। इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए । और आप इस बात को समझ  सकते हैं।

Leave a Reply

arif khan

‌‌‌हैलो फ्रेंड मेरा नाम arif khan है और मुझे लिखना सबसे अधिक पसंद है। इस ब्लॉग पर मैं अपने विचार शैयर करता हूं । यदि आपको यह ब्लॉग अच्छा लगता है तो कमेंट करें और अपने फ्रेंड के साथ शैयर करें ।‌‌‌मैंने आज से लगभग 10 साल पहले लिखना शूरू किया था। अब रोजाना लिखता रहता हूं । ‌‌‌असल मे मैं अधिकतर जनरल विषयों पर लिखना पसंद करता हूं। और अधिकतर न्यूज और सामान्य विषयों के बारे मे लिखता हूं ।