manovigyan ki pratham prayogshala कहां है

‌‌‌इस लेख के अंदर हम बात करने वाले हैं कि manovigyan ki pratham prayogshala के बारे मे दोस्तों क्या आपको पता है manovigyan ki pratham prayogshala कहां पर है? और इसको किसने स्थापित किया था। इन सब चीजों के बारे मे हम विस्तार से चर्चा करेंगे । ‌‌‌यदि हम इस सिल सिले के अंदर बात करें तो मनोविज्ञान का इतिहास कोई अधिक पुराना नहीं है।मिस्र ,चीन , और भारत की प्राचीन सम्भ्यताएं मनोविज्ञान के दार्शिनिक रूप का अध्ययन करती थी।प्राचीन मिस्र के अंदर अवसाद और उसके प्रकारों के बारे मे उल्लेख मिलता है।प्लेटो अरस्तू ने दुनिया को मन  ‌‌‌के बारे मे बताया था।हिप्पोक्रेटस ने कहा कि मानसिक विकारों के अंदर कई शारीरिक कारण भी मौजूद थे । द येलो एम्परर्स क्लासिक ऑफ़ इंटरनल मेडिसिन के नाम से जाना जाने वाला पाठ प्राचीन समय के अंदर मस्तिष्क ज्ञान के बारे मे बताता है।

‌‌‌वैसे प्राचीन काल के अंदर मनोविज्ञान के बारे मे कई सबूत मिलते हैं। लेकिन मनोविज्ञान उस समय तक अलग विषय नहीं बन पाया था। इस वजह से अलग से manovigyan ki pratham prayogshala की स्थापना करने का कोई सवाल ही पैदा नहीं होता था। लेकिन उस समय भी मनोविज्ञान विभिन्न रूपों के अंदर प्रयोग किया जाता ‌‌‌जैसे दर्शनशास्त्र के अंदर मनोविज्ञान का प्रयोग ,इसके अलावा समाज शास्त्र के अंदर भी मनोविज्ञान का काफी प्रयोग किया जाता था।

manovigyan ki pratham prayogshala kaha par hai

‌‌‌दोस्तों बाद मे जर्मन चिकित्सक और मनोवैज्ञानिक (फोटो में बैठा) विल्हेम वुंड्ट दुनिया की पहली प्रयोगात्मक मनोविज्ञान प्रयोगशाला बनाने का काम किया था।लैब की स्थापना 1879 में जर्मनी के लीपज़िग विश्वविद्यालय में की गई थी। वुंडट ने मनोविज्ञान की प्रयोगशाला को बनाकर मनोविज्ञान को एक नई दिशा प्रदान ‌‌‌की थी।वुंडट ने जो मनोविज्ञान के इतिहास के अंदर महत्वपूर्ण भूमिका निभाई इसकी वजह से इनको मनोविज्ञान के पिता भी कहा जाता है।मनोविज्ञान की प्रयोगशाला निर्माण के बाद उन्होंने अपने कई छात्रों पर अपनी छाप को छोड़ा । इसके अलावा उन्होंने इस प्रयोगशाला के अंदर छात्रों को प्रशिक्षित करने ‌‌‌का काम भी किया ।

manovigyan ki pratham prayogshala

‌‌‌आपको बतादें की प्रयोगात्मक मनोविज्ञान की शूरूआत गुस्ताव फ़ेचनर ने 1830 के दशक में लीपज़िग में साइकोफिज़िक्स अनुसंधान का संचालन से शूरू की थी। हीडलबर्ग में, हरमन वॉन हेल्महोल्त्ज़ ने संवेदी धारणा पर समानांतर शोध किया भी किया था। उसके बाद बुडंट ने मानसिक प्रकियाओं को तोड़ने वाले कारकों का अध्यनन किया था।पॉल फ्लेशिग और एमिल क्रैपेलिन ने जल्द ही लीपज़िग में एक और प्रभावशाली मनोविज्ञान प्रयोगशाला भी बनाई ।

‌‌‌वुंड की manovigyan ki pratham prayogshala की स्थापना ने ना केवल दुनिया भर के वैज्ञानिकों को प्रेरित किया वरन मनोविज्ञान के विकास के अंदर यह सबसे बड़ा वरदान साबित हुआ । और इसी प्रेररण से जर्मनी, डेनमार्क, ऑस्ट्रिया, इंग्लैंड और संयुक्त राज्य अमेरिका के वैज्ञानिकों ने भी ‌‌‌मनोविज्ञान की प्रयोगशाला की स्थापना की ।

स्टैनले हॉल नामक एक मनोवैज्ञानिक था जो कभी वुंड का शिष्य रह चुका था। उसने मैरीलैंड में जॉन्स हॉपकिंस विश्वविद्यालय में एक मनोविज्ञान प्रयोगशाला का गठन किया, जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण बन गई। और उसने युजिरो मोटरा नामक एक दूसरे मनोवैज्ञानिक को प्रशिक्षित किया ।जिसने बाद मे प्रयोगात्मक ‌‌‌मनोविज्ञान के विकास मे योगदान दिया था।

वुंड्ट के सहायक, ह्यूगो मुंस्टरबर्ग ने हार्वर्ड में मनोविज्ञान को पढ़ाया था। और वहीं पर नरेंद्र नाथ सैन गुप्ता ने शिक्षा प्राप्त की और कलकता विश्वविधयालय के अंदर मनोविज्ञान विभाग और प्रयोगशाला की स्थापना की थी।

वुंडट के छात्र वाल्टर डिल स्कॉट , लाइटनर विटमर और जेम्स मैककिन कैटेल ने बच्चों के मानसिक परीक्षण के सिद्वांतों पर काम किया और मनोविज्ञान के क्षेत्र को आगे बढ़ाया ।

वुंड्ट के एक अन्य छात्र, एडवर्ड ट्रिचनर ने कॉर्नेल विश्वविद्यालय  के अंदर मनोविज्ञान के संरचनावादी सिद्वांत का प्रतिपादन किया ।इसके लिए उसने आत्म निरिक्षण विधि का प्रयोग किया था।

1890 में, जेम्स ने एक प्रभावशाली पुस्तक, द प्रिंसिपल्स ऑफ साइकोलॉजी लिखी । जिसके अंदर संरचनावाद के बारे मे बताया गया था।डेवी ने सामाजिक मुददों के साथ मनोविज्ञान को एकिक्रत किया ।

ब्यूनस आयर्स विश्वविद्यालय में होरासियो जी पिनेरो ने मनोविज्ञान के जैविक आधार पर अधिक जोर दिया गया ।रूस ने भी मनोविज्ञान के जैविक आधार पर जोर दिया था।

वोल्फगैंग कोहलर , मैक्स वर्थाइमर और कर्ट कोफ़्का ने जेस्टाल्ट मनोविज्ञान स्कूल की स्थापना की थी।19 वीं शताब्दी के जर्मन मनोवैज्ञानिक हरमन एबिंगहॉस ने  बर्लिन विश्वविद्यालय में सीखने और भूलने के मॉडल विकसित किये थे ।

रूसी-सोवियत भौतिक विज्ञानी पावलोव ने तो कुत्तों की मदद से सीखने की एक पक्रिया की खेाज की थी।

‌‌‌इस तरीके से manovigyan ki pratham prayogshala की स्थापना के बाद मनोविज्ञान के युग के अंदर तेजी से क्रांति आ गई और उसके अंदर वैज्ञानिकों की रूचि भी बढ़ी जिसकी वजह से आगे चलकर मनोविज्ञान के नए नए सिद्वांत सामने आए।

manovigyan ki pratham prayogshala वाले वुंट कौन थे ?

विल्हेम मैक्सिमिलियन वुंड्ट शरीर विज्ञानी , दार्शनिक और प्रोफेसर थे ।वुंट पहले व्यक्ति थे ,जिन्होंने खुद को मनोवैज्ञानिक कहा था और प्रयोगात्मक मनोविज्ञान की शूरूआत की थी।मनोवैज्ञानिक अनुसंधान के लिए उन्होंने फिलॉसोफिशे स्टडीयन 1881 नामक एक पत्रिका भी निकाली थी। ऑल-टाइम एमिनेंस ने सन 1991 के अंदर अमेरिकी मनोवैज्ञानिक की पोपुलरटी के अंदर वुंट को प्रथम स्थान दिया था। इस सूची के अंदर कुल 29 वैज्ञानिकों को शामिल किया गया था।

वुंट कौन थे

वुंडट का जन्म नेकराऊ , बाडेन में 16 अगस्त 1832 को इुआ था। उनके  माता-पिता मैक्सिमिलियन वुंड  से हुआ था ।उनकी पत्नी मैरी फ्रेडरिक, अर्नोल्ड (1797-1868)। वुंडट के दादा जी  फ्रेडरिक पीटर वुंड्ट थे  (1742-1805),  जो भूगोल के प्रोफेसर के रूप मे कार्य करते थे । ‌‌‌वुंट की उम्र जब 4 साल की थी तो उनका परिवार हेइडेलसिम के अंदर जाकर बस गया था। ‌‌‌वुंट का परिवार एक स्थिर आर्थिक स्थिति वाला परिवार था।

वुंडट ने 1851 से 1856 तक यूनिवर्सिटी ऑफ टूबिंगन में , हीडलबर्ग विश्वविद्यालय में और बर्लिन विश्वविद्यालय में स्टडी का काम किया था।हीडलबर्ग विश्वविद्यालय के कर्मचारियों से जुड़ने से पहले वे एक भौतिक विज्ञानी प्रोफेसर के सहायक के रूप मे काम कर चुके थे । वुंड्ट ने 1874 के अंदर वुंट ने प्रयोगात्मक मनोविज्ञान पर काम किया और इस पर पुस्तक लिखी । यह पहली पुस्तक थी जो प्रयोगात्मक मनोविज्ञान पर लिखी गई थी।

संयुक्त राज्य अमेरिका में पहली प्रयोगात्मक मनोविज्ञान प्रयोगशाला

‌‌‌वुंट के ही एक छात्र जिनका नाम स्टेनली हॉल ने जॉन हॉपकिंस विश्वविद्यालय में संयुक्त राज्य अमेरिका में पहली प्रयोगात्मक मनोविज्ञान प्रयोगशाला की स्थापना सन 1883 ई के अंदर की थी।इसने अमेरिका के अंदर मनोविज्ञान के क्षेत्र और उसके विकास को करने मे काफी मदद की थी। स्टेनली हॉल के मनोवेज्ञानिक ‌‌‌ने अपनी प्रयोगशाला की स्थापना करके अमेरिका के दूसरे मनोवैज्ञानिकों को इस बारे मे सोचने को मजबूर कर दिया था।

संयुक्त राज्य अमेरिका में पहली प्रयोगात्मक मनोविज्ञान प्रयोगशाला

‌‌‌आपको यह जानकर आश्चर्य हो सकता है कि वुंट के द्वारा स्थापित की गई मनोवैज्ञानिक प्रयोशाला इतिहासिक द्रष्टि से पहली मनोवैज्ञानिक प्रयोगशाला नहीं थी। आपको बतादें कि की 1875 ई के अंदर वुंट ने अपनी मनोवैज्ञानिक प्रयोगशाला को स्थापित किया था। और इससे 4 साल पहले ही  विलियम्स जेम्स ने हार्वर्ड विश्वविद्यालय में एक मनोविज्ञान प्रयोगशाला का गठन ‌‌‌कर चुके थे । ‌‌‌जेम्स की मनोवैज्ञानिक प्रयोगशाला को दुनिया की पहली मनोवैज्ञानिक प्रयोगशाला का क्ष्रेय इस वजह से नहीं दिया जाता है। क्योंकि उनकी यह प्रयोगशाला मूल अनुसंधान के बजाय शिक्षण के लिए प्रयोग की गई थी।

वुंडट ने ही दुनिया की पहली मनोवैज्ञानिक प्रयोगशाला बनाई थी और इसके अंदर उसने वैज्ञानिक परीक्षण किये थे । इस वजह से इसी को दुनिया की पहली मनोवेज्ञानिक प्रयोगशाला के नाम से जाना जाता है।मनोविज्ञान लैब को इस वजह से भी महत्वपूर्ण माना जा सकता है क्योंकि इस समय मनोविज्ञान एक अपने प्रारम्भिक ‌‌‌दौर के अंदर था और मनोविज्ञान की प्रयोगशाला की स्थापना ने मनोविज्ञान को नए आयाम दिये ।

‌‌‌वुंट ने मानव व्यवहार के अध्ययन को करने के लिए वैज्ञानिक दष्टिकोण अपनाया था।उन्होंने मनोविज्ञान को दर्शन और विज्ञान से अलग करने का प्रयास किया और मनोविज्ञान के खुद के नियम और सिद्वांतों पर काम किया । ‌‌‌इसके अलावा उन्होंने दूसरे मनोवैज्ञानिकों को प्रशिक्षित किया । जिसकी वजह से  संयुक्त राज्य अमेरिका के बाहर अन्य प्रयोगशालाएं दिखाई देने लगीं, जिनमें रूस, चीन, फ्रांस और कनाडा में भी यह प्रयोगशालाएं खुल गई।

bharat mein manovigyan ki pratham prayogshala

नरेंद्र नाथ सेन गुप्ता भारतिए मनोवैज्ञानिक , दार्शनिक और प्रोफेसर थें । जिन्होंने bharat mein manovigyan ki pratham prayogshala की स्थापना की थी।सेन गुप्ता ने सन 1923 ई के अंदर  भारतीय विज्ञान कांग्रेस एसोसिएशन के मनोवैज्ञानिक विभाग की स्थापना मे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। सेन गुप्ता इंडियन साइकोलॉजिकल एसोसिएशन के संस्थापक थे । इसके अलावा वे  भारत में पहली आधिकारिक मनोविज्ञान पत्रिका, इंडियन जर्नल ऑफ़ साइकोलॉजी के संस्थापक संपादक का काम भी करते थे ।सेन गुप्ता का जन्म भारत के फरीदपुर में 1889 में तूरिनी चरण के अंदर हुआ था। और उन्होंने बंगाल कॉलेज के अंदर शिक्षा ‌‌‌प्राप्त की थी।

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सेन गुप्ता ने 1910 से 1913 तक हार्वर्ड कॉलेज में पढ़ाई की थी। वे कभी वुंट के छात्र रह चुके थे ।अपनी स्नातक की शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने हार्वर्ड में ग्रेजुएट स्कूल ऑफ आर्ट्स एंड साइंसेस सन 1914 के अंदर उन्होंने इसको पूरा कर लिया था।1915 ई ई के अंदर हार्वर्ड विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र में डॉक्टरेट की उपाधि ‌‌‌प्राप्त करली थी।

‌‌‌अगस्त सन 1915 ई के अंदर सेन वापस भारत आ गए और कलकत्ता विश्वविधयालय के अंदर व्याख्याता पद पर नियुक्त हुए ।इसी वर्ष के दौरान सेन को मनोवैज्ञानिक विभाग का प्रमुख बनाया गया था।सन 1916 ई के अंदर उन्होंने कमला सेन से शादी करली थी।

कलकत्ता विश्वविद्यालय के अंदर मनोविज्ञान का अनुसंधान मुख्य रूप से ध्यान और मनोचिकित्सा पर केंद्रित था।‌‌‌सन 1924 ई के अंदर इंडियन साइकोलॉजिकल एसोसिएशन की स्थापना मे सेन ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।1925 में इंडियन जर्नल ऑफ़ साइकोलॉजी के संस्थापक बन गए थे ।प्रयोगात्मक मनोविज्ञान के प्रचार मे उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इसके अलावा उन्होंने मनोविज्ञान के सामाजिक , जातिय, ‌‌‌शिक्षा और अपराधिक आदि पहलूओं पर भी चर्चा की ।

‌‌‌सेन एक अच्छे लेखक भी रहे और उन्होंने कई किताबों का प्रकाशन भी किया था। इन किताबों के नाम कुछ इस प्रकार से हैं।

  • सामाजिक मनोविज्ञान का परिचय (1928)
  • मानसिक विकास और क्षय (1940)
  • मानसिक लक्षणों में आनुवंशिकता (1942)

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विल्हेम वुंट प्रयोगशाला, जर्मनी के लिपजिग विश्वविद्यालय में स्थित, दुनिया की पहली प्रयोगात्मक मनोविज्ञान प्रयोगशाला है।
कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, बर्कले में मनोविज्ञान विभाग, संयुक्त राज्य अमेरिका की सबसे बड़ी मनोविज्ञान की प्रयोगशाला मे से एक है।

मसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में मनोविज्ञान विभाग, संयुक्त राज्य अमेरिका के अंदर स्थित एक प्रयोग शाला है।
लंदन विश्वविद्यालय में मनोविज्ञान विभाग, यूनाइटेड किंगडम की सबसे बड़ी मनोविज्ञान प्रयोगशालाओं में से एक है।

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arif khan

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