रक्षाबंधन का इतिहास और इसका महत्व

क्ष्रावण मास के पूर्णीमा के दिन यह पर्व मनाया जाता है। जिसका अपना महत्व है। यह पर्व भाई बहनों का पर्व है। जिसमे बहन अपने भाई को राखी बांदकर मिठाई खिलाती है। और बदले मे भाई भी उसे कुछ उपहार देता है।

‌‌‌और उसकी रक्षा का वचन देता है। कहा जाता है कि रक्षाबंधन भाई बहिन के अटूट प्रेम का त्यौहार है।

‌‌‌जैसा की आप जानते होंगे रक्षाबंधन का केवल वर्तमान मे ही अधिक महत्व नहीं है। वरन इसका पौराणों के अंदर भी उल्लेख मिलता है। हांलाकि इस बात का पता नहीं है कि रक्षाबंधन कब से मनाना शूरू हुआ था । लेकिन रक्षाबंधन से जुड़ी अनेक कहानियां इतिहास मे लिखी हैं।

‌‌‌रक्षाबंधन का महत्व

  • यह त्यौहार भाई बहन के प्यार का प्रतीक है। ,
  • बहन द्वारा भाई की कलाई पर बांधी जानी वाली राखी उसके विजय का प्रतीक है। या कहें कि वह एक रक्षाकवच है। जो की भाई को हर मुश्बितों से बचाती है। ऐसा माना जाता है।
  • भाई अपनी बहन को उसकी रक्षा का वचन दिया जाता है।
  • ‌‌‌यह परस्पर एक दूसरे ‌‌‌के बीच सहयोग की भावना जगाता है।
  • ‌‌‌यह धागा आपसी विश्वास को दर्शाता है।

‌‌‌देवों और दानवों मे युद्व

भविष्य पुराण के अनुसार जब देवों और दानवों के अंदर युद्व चल रहा था । तब देवताओं का पक्ष कमजोर पड़ गया था । और भागवान इंद्र भागकर ब्रहस्पति के पास गए । वहां पर बैठी इंद्र की पत्नी इंद्राणी सब कुछ सुन रही थी। तब उसने एक धागा । मंत्रों से बनाकर अपने पति की कलाई पर  ‌‌‌बांध दिया । तब इंद असुरों को हरा पाये । तब से लोगों का विश्वास है कि इंद्र इस लडाई मे उस धागे कि ताकत से विजय हुए थे । तब से यह रक्षा बंधन मनाने की प्रथा चली आ रही है।
नोट .. कहानी तो पूरी हुई लेकिन मुझे लगता है। यह कहानी सही नहीं है। क्योंकि इस कहानी के अनुसार देवराज इंद्र की पत्नी   ‌‌‌अपने पति की कलाई पर धागा बांधती है किंतु रक्षा बंधन मे भाई की कलाई पर बहन धागा बांधती है। शयद यह कहानी सटीक नहीं बैठती है। आइए दूसरी इतिहास मे प्रचलित कहानी सुनते हैं।

‌‌‌राजा बली की कहानी

इस कहानी के अनुसार राजा बली ने 100 यज्ञ पूरे करने के बाद जब स्वर्ग का राज्य छीनने का प्रयास किया तो भगवान ने वामन का अवतार लेकर राजा बली के पा भिक्षा मांगने पहुंचे । गूरू के मना करने के बाद भी बली ने तीन पैर भूमी दान करदी । भगवान ने तीन पैर मे आकाश पाताल और धरती नापकर राजा  ‌‌‌बली को रसताल मे भेज दिया । कहा जाता है कि जब बली रसताल के अंदर चला गया तो । अपनी भक्ति के बल पर भगवान को रात दिन अपने सामने खड़े रहने का वचन लेलिया । जब भगवान घर नहीं लोटे तो लक्ष्मी परेशान होगयी । और वे नारदजी के पास गयी । नारदजी ने उनको एक उपाय बताया ।
‌‌‌तब लक्ष्मी ने बली को राखी बांधकर अपना भाई बना लिया और भगवान को घर लेकर आगयी। तब से ही रक्षाबंधन मनाया जाता है।

‌‌‌महाभारत के किस्से

‌‌‌महाभारत के अंदर भी रक्षाबंधन के कई किस्से मिलते हैं। कहा जाता है की जब युघिष्टर ने भगवान क्रष्ण से पूछा कि सारी समस्याओं का हल क्या है तो उन्होंने उसे रेशमी धागा कलाई पर बंधवाने की सलाह दी । द्रौपदी द्वारा क्रष्ण को और कुंति द्वारा अभिमन्यू को राखी बांधने के उल्लेख मिलते हैं
‌‌‌महाभारत के अंदर ही क्रष्ण और द्रोपदी का एक और उल्लेख मिलता है। जिसके अनुसार जब भगवान ने सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का वध किया था । तब उनके हाथ मे चोट लग गयी थी । तब द्रोपदी ने अपनी साड़ी चीर का भगवान की कलाई मे बांधी थी। ‌‌‌तब क्रष्ण ने इसका बदला द्रोपदी के चिरहरण के वक्त उसकी साड़ी को बढ़ाकर चुकाया था।
हांलाकि यह कहानी रक्षाबंधन पर काफी सटिक बैठती है। आइए अब जानते हैं इतिहास के अंदर रक्षा बंधन से जुडे किस्सों के बारे मे ।
‌‌‌राजपूत जब लड़ाई पर जाते थे । तब महिलाएं उनके माथे पर कुमकुम का तिलक और हाथ मे रेशमी धागा बांधती जोकि विजय का प्रतीक माना जाता है। इसी के साथ एक और कहानी जुड़ी हुई है। जब मेवाड की महारानी कर्मावती को जब बाहदुर साह जफर के द्वारा मेवाड पर आक्रमण करने की पूर्व सूचना मिली तो उसने हुमायूं को    ‌‌‌राखी भेजी । तब हुमायू ने राखी की लाज रखते हुए । मेवाड की तरफ से युद्व लड़ा था।
 

‌‌‌रक्षाबंधन पर बनी हैं कई फिल्मे

 

रक्षाबंधन जैसे पर्व पर कई सारी फिल्मे भी बन चुकी हैं। साठ के दशक मे यह विषय काफी प्रिय रहा था। इसपर 1949 मे व 1962 मे फिल्मे बन चुकी हैं। जिनकों भीमसिंह ने बनाया था। ‌‌‌अन फिल्मों मे रक्षाबंध से जुडे गई गाने भी हैं

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arif khan

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