आशंका और भय में‌‌‌ होते हैं यह अंतर जान लिजिए

आशंका और भय में अंतर –  भय और आशंका दोनों अलग अलग शब्द हैं और दोनो ही एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। भय शब्द हमारे मन के उपर अधिक प्रभाव पैदा करने मे सक्षम होता है। जबकि आशंका एक स्थिति को व्यक्त करती है जो किसी चीज के होने या ना होने के बारे मे होती है।

‌‌‌जैसे आपको शेर से डर लगना एक प्रकार का भय है लेकिन शेर होने का संदेह की आशंका है। ‌‌‌भय और आशंका मे अंतर जानने से पहले आइए हम जान लेते हैं कि इनकी परिभाषा के बारे मे ताकि हमे पता चल सके की भय किसे कहते हैं और आशंका किसी कहते हैं। वैसे आपको बतादें कि भय और आशंका को किसी एक परिभाषा के अंदर बांधना काफी कठिन होता है।

आशंका और भय में अंतर

‌‌‌लेकिन फिर भी हम आपको इसे समझने के लिए एक उचित परिभाषा दे रहे हैं।

‌‌‌ मन मे पैदा होने वाला डर ही भय होता है।

‌‌‌मतलब कि किसी चीज को आप देखकर डर जाते हैं तो यह भय है या आप किसी चीज को सोच कर डर जाते हैं या आप अचानक से डर जाते हैं तो यह भय ही है। ‌‌‌जैसे एक इंसान जंगल से गुजर रहा है। अचानक से वह शेर को देखकता है और उसके बाद उसे डर लगता है और वह भाग कर पेड़ पर चढ़ जाता है।यह सब कुछ भय की वजह से हो रहा है।

‌‌‌लेकिन आशंका इन सब चीजों से अलग होती है। जैसे

‌‌‌किंतु परन्तु की स्थिति लेकिन एक पलड़ा भारी महसूस होना ही आशंका है।

‌‌‌स्पष्ट अर्थ के अंदर कहें तो किसी भी कार्य के अंदर किंतु परन्तु की स्थिति होना लेकिन उसके परिणाम के बारे मे कुछ निश्चित होना ही आशंका होती है। जैसे कि आप जंगल से गुजर रहे हैं आपने शेर नहीं देखा लेकिन आपको यह लग रहा है कि यहां पर शेर हो सकता है। आपको इस तरह से लगना आपकी आशंका हो सकती है।

‌‌‌जैसे आप ने अभी परीक्षा दी लेकिन आपको लग रहा है कि आप इसके अंदर पास हो जाएंगे लेकिन आपके पास इसका कोई सबूत नहीं है और पूरा विश्वास भी आपको नहीं है। दोस्तों आशंका के अंदर आत्मविश्वास नहीं होता है। ‌‌‌यदि आपके अंदर पूरा आत्मविश्वास है तो फिर आपमे आशंका पैदा ही नहीं हो सकती है। यह तो तब पैदा होती है जब आपके अंदर विश्वास कम होगा  यही तो किंतु परन्तु की स्थिति है।

‌‌‌मुझे लगता है कि अब आप आशंका और भय की परिभाषा को अच्छी तरह से समझ गए होंगे तो आइए जान लेते हैं इन दोनों के अंदर बुनियादी अंदर क्या है?

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‌‌‌ आशंका और भय में अंतर अपूर्ण विश्वास आशंका पैदा करता है लेकिन भय ‌‌‌पूर्ण और अपूर्ण विश्वास के साथ मे पैदा हो सकता है

‌‌‌दोस्तों आशंका कभी भी पूर्ण विश्वास या अविश्वास की स्थिति मे पैदा हो ही नहीं सकती है। यदि आप किसी चीज पर विश्वास नहीं करते हैं मतलब उसके होने पर विश्वास नहीं करते हैं तो कैसी आशंका और यदि आप उसके पूर्ण होने पर विश्वास करते हैं तो कैसी आशंका ? ‌‌‌लेकिन जब आप उसके ना तो होने पर और ना ही ना होने पर पूरी तरह से विश्वास कर पाते हैं तो ऐसी स्थिति मे आशंका पैदा हो सकती है।

‌‌‌जैसे किसी ने आपको बोला कि जंगल मे शेर रहता है आपने इस पर विश्वास ही नहीं किया तो आपको शेर होने की आशंका कैसे पैदा हो सकती है। और यदि आपने इस पर विश्वास कर लिया तो आपको शेर ना होने की आशंका कैसे पैदा हो सकती है। लेकिन जब ‌‌‌आप ना तो यह विश्वास कर पाते हैं कि शेर नहीं है और ना ही यह विश्वास कर पाते हैं कि शेर है । किंतु आपको यह लगता है कि वह हो सकता है तो यही आशंका है।

‌‌‌और बात करें भय कि तो भय ऐसी स्थिति के अंदर पैदा हो ही नहीं सकता जब आपको भय पैदा करने वाले तत्व पर अविश्वास हो । जैसे कोई भूत पर विश्वास ही नहीं करता है तो उसमे तब तक भूत से भय पैदा नहीं किया जा सकता है जब तक कि उसमे विश्वास पैदा ना हो जाए । ‌‌‌लेकिन जब उसे लगता है कि भूत हो सकते हैं तो उसके अंदर भूत से भय पैदा किया जा सकता है जो एक अपूर्ण विश्वास की स्थिति है।

‌‌‌भय इंसान को अपनी सीमाओं मे रहने के लिए विवश कर सकता है लेकिन आशंका ऐसा नहीं कर सकती

‌‌‌जैसे आपको किसी चीज से भय है तो आप उस चीज के पास जाने से या उसके साथ काम करने से डरने लग जाओगे । जैसे किसी को चोरी करने से डर लगता है तो वह चोरी नहीं करेगा । क्योंकि चोरी का भय उसे उसकी सीमा याद दिलाता है। ‌‌‌जबकि आशंका चोरी करने से रोकने का काम नहीं करती है। वह आपको यह बता सकती है कि आपको चोरी करने से बुरे परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं । एक तरह से यह एक भविष्य के बारे मे निर्देश देने का काम करती है।

‌‌‌ आशंका और भय में अंतर डर सदैव नगेटिव प्रभाव पैदा करता है लेकिन आशंका खुद का कोई प्रभाव नहीं होता है

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यदि अचानक आपके सामने एक शेर आ जाए तो आपके दिल की धड़कन बढ़ जाएगी और आप बहुत अधिक डर जाएंगे । आपके घर मे चोरी हो जाए तो आप डर जाएंगे । किसी एक्सीडेंट को देखकर आप डर सकते हैं। मतलब कि भय ‌‌‌आपके उपर सदैव नगेटिव प्रभाव ही डालता है।लेकिन आशंका का खुद का कोई प्रभाव नहीं होता है।

‌‌‌हम यह नहीं कह सकते हैं कि अमुख आशंका नगेटिव है हालांकि उसका परिणाम नगेटिव हो सकता है। आशंका भय को पैदा कर सकती है। आशंका पॉजिटिव या कोई दूसरा प्रभाव पैदा कर सकती है। लेकिन उसका खुद का कोई अलग से प्रभाव नहीं होता है।

‌‌‌आशंका का स्थाइत्व कम होता है लेकिन भय का स्थाइत्व अधिक होता है

‌‌‌आज भी आपके दिमाग मे भूतों के प्रति डर भरा पड़ा है। आप चोरी करने से डरते हैं आप भगवान को भला बुरा कहने मे डरते हैं। मतलब कि आपके दिमाग मे भय बहुत ही अधिक मात्रा मे मौजूद रहते हैं। लेकिन क्या आप आशंका को अपने दिमाग के अंदर इतनी अधिक मात्रा के अंदर रख पाते है? ‌‌‌आशंका का स्थाइत्व समय कम होता है।

‌‌‌भय जीवन के लिए अनिवार्य है लेकिन आशंका जरूरी नहीं है

‌‌‌आप उस स्थिति की कल्पना करो जब सारी दुनिया के अंदर भय समाप्त हो जाए । आप सोच सकते हैं कि भय समाप्त हो जाने के बाद पूरी दुनियां मे उथल पुथल मच जाएगी । चाइना भारत पर हमला कर देगा । पाकिस्तान भी भारत पर हमला करदेगा । ‌‌‌एक महिला अपने पति से डरना बंद करदेगी ।

 किसी प्रकार का रिश्ता ही नहीं रह पाएगा । और लोग चोरी करने लग जाएंगे । लेकिन यदि दुनिया के अंदर आशंका खत्म हो जाए तो क्या होगा ? ‌‌‌यदि आशंका खत्म हो जाएगी तो कुछ भी नहीं होगा । यह जीवन के लिए अनिवार्य नहीं है।

‌‌‌भय आशंका की तुलना मे अधिक व्यापक है

‌‌‌भय और आशंका मे अंतर यह भी है कि भय आशंका की तुलना मे बहुत अधिक व्यापक होता है। आप किसी भी काम के उपर नजर डालें आपको उसके अंदर किसी ना किसी तरह का भय मिल ही जाएगा । मतलब हर काम के साथ भय तो जुड़ा हुआ ही रहता है।

‌‌‌लेकिन क्या आपको पता है कि हर काम के साथ आशंका जुड़ी हुई रहती है? नहीं हर काम के साथ आशंका जुड़ी नहीं होती है। आशंका को मनुष्य का दिमाग कुछ समय के लिए पैदा करता है। और वह अधिक स्थाई भी नहीं होती है। ‌‌‌तो आप समझ गए होंगे कि आशंका का क्षेत्र व्यापक नहीं है।

‌‌‌भय एक परिणाम है और आशंका एक संकेत है

दोस्तों भय एक परिणाम है लेकिन आशंका एक संकेत है। जैसे आप जंगल मे गए और आपके सामने एक शेर आ गया । इस का परिणाम क्या होगा यह सोच कर आपको डर लग रहा है। इसी तरह से आपने चोरी करली इसका परिणाम क्या होगा यह सोच कर आप डर रहे हैं। ‌‌‌आपने किसी को मार दिया इसका परिणाम आपको डरा रहा है। लेकिन आशंका एक परिणाम नहीं है आशंका एक संकेत होता है।

‌‌‌आशंका का मतलब है ऐसा हो सकता है। आशंका कभी भी यह नहीं कहती है कि ऐसा ही है। मतलब आशंका आपको बता रही है।

‌‌‌आशंका एक अपरिणाम की स्थिति है लेकिन भय तो परिणाम की स्थिति है

आशंका आपको तब होती है जब आपके सामने सत्य नहीं आता है। या आपके सामने कोई भी रिजेल्ट नहीं आता है। ‌‌‌जैसे चुनाव हुए और आपको यह लग रहा है कि बिजेपी जितेगी तो यह अपरिणाम ही होगा लेकिन बिजेपी हार जाएगी यह एक परिणाम का ही तो डर है। यदि बिजेपी जीत जाती है तो आपका डर समाप्त हो जाएगा ।

‌‌‌आपको डर किसी काम के रिजेल्ट से लगता है। लेकिन आशंका कभी भी किसी काम के रिजेल्ट से ही हो यह आवश्यक नहीं होता है। ‌‌‌वैसे मानसिक स्थितियां बहुत अधिक जटिल होती हैं। यदि कोई इंसान अपरिणाम मानता है तो परिणाम आने के बाद भी उसके लिए वह परिणाम नहीं होगा जैसे यदि किसी को लगता है कि बच्चा घुस देकर पास हुआ है तो यह उसके लिए तो अपरिणाम ही हो गया ।

‌‌‌आशंका का अर्थ यह हो सकता है लेकिन भय का अर्थ अलग है

दोस्तों जब हम किसी चीज के प्रति आशंकित होते हैं तो इसका मतलब यह होता है कि ऐसा हो सकता है।जैसे आपको यह लग रहा है कि अमुख व्यक्ति चुनाव के अंदर हार जाएगा तो यह हो सकता है को बताता है। लेकिन भय किसी परिणाम के बाद नुकासन का डर होता है।‌‌‌वह हो सकता है के बारे मे कुछ नहीं बताता है।

‌‌‌भय का मनोवैज्ञानिक स्वरूप काफी जटिल है लेकिन आशंका का सरल होता है

‌‌‌यदि आप भय को समझने के लिए बैठ जाओगे तो आपको इसको समझना कोई आसान काम नहीं होगा ।क्योंकि भय हमारे जीवन के अंदर बहुत अधिक गहराई के साथ जुड़ा हुआ होता है। लेकिन यदि आप आशंका के मनोविज्ञान को समझना चाहोगे तो यह बहुत सरल होगा । क्योंकि हर इंसान के अंदर आशंका मिलती भी नहीं है।

‌‌‌भय का शारीरिक प्रभाव होता है लेकिन आशंका का कोई खास शारीरिक प्रभाव नहीं होता

‌‌‌यदि आपको किसी से भय लग रहा है तो इसका काफी शारीरिक प्रभाव होगा जैसे कि आपकी हर्ट रेट बढ़ जाना पसीना भी आ सकता है। लेकिन यदि आपके पास एक आशंका है तो इसका कोई शारीरिक प्रभाव नहीं होता है। यह बस आपके दिमाग की एक प्रक्रिया कही जा सकती है।

‌‌‌सबसे बड़ा भय मौत का होता है लेकिन आशंका कोई बड़ी छोटी नहीं होती है

‌‌‌यदि भय की बात करें तो हर इंसान को अपनी मौत का भय लगता है। और सबसे बड़ा भय मौत का ही माना गया है।जिस इंसान को मौत भी भयभीत नहीं कर सकती है। उसे कोई भी भयभीत नहीं कर सकता है।

‌‌‌इसके विपरित आशंका के बारे मे कोई बड़ा छोटा नहीं कहा जा सकता है।

‌‌‌भय अनुभव को व्यक्त करता है लेकिन आशंका अनुमान को बताती है

दोस्तों भय किसी अनुमान को नहीं बताता है। आपको भय तब लगता है ,जब आप किसी तरह का अनुभव करते हैं भले ही वह अनुभव मानसिक ही क्यों ना हो । जैसे आप जंगल मे शेर को देखते हैं तो दिमाग मे यह अनुभव करते हैं कि यह मुझे नुकसान पहुंचा सकता है।‌‌‌लेकिन आशंका आपको एक अनुमान के बारे मे बताती है। कि इस जंगल मे शेर हो सकता है।

‌‌‌आशंका आपको सचेत कर सकती है लेकिन भय आपको रोकता है

दोस्तों आशंका और भय के अंदर अंतर यह भी है कि आशंका आपको सचेत कर सकती है। जैसे कि आप जंगल मे से गुजरने वाले हैं और आपको यह लग रहा है कि इसमे शेर रहता है।‌‌‌तो आपकी आशंका आपको सचेत कर रही है।‌‌‌और यदि आपके अंदर इस आशंका की वजह से भय उत्पन्न हो जाता है तो आपको यह उस मार्ग पर जाने से रोकने की कोशिश कर रहा है जहां पर शेर रहता है।

‌‌‌ आशंका और भय में अंतर आशंका ना तो सत्य की स्थिति है और ना असत्य की जबकि भय हर स्थिति मे हो सकता है।

‌‌‌आंशका तब होती है जब सत्य और असत्य दोनो ही नहीं होते हैं। जैसे कि कोई इंसान चुनाव हार गया है तो उसके हारने या जितने की आशंका नहीं होगी । लेकिन जब वह ना तो हारता है और ना ही जितता है तो आशंका होती है जो मात्र अद्र्व सत्य है।

‌‌‌जबकि बात करें डर की तो डर हारने पर  या जितने पर निर्भर नहीं करता है। वह तो आशंका स्थिति मे भी पैदा हो सकता है।

‌‌‌आशंका और भय मे अंतर लेख आपको कैसा लगा नीचे कमेंट करके बताएं ।

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arif khan

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