आत्मा और मन में होते हैं यह खास भेद आपको पता होना चाहिए ।

‌‌‌बहुत से लोग मन और आत्मा के अंदर उलझ जाते हैं। उन्हें नहीं पता कि मन और आत्मा मे क्या अंतर होता है। मन और आत्मा मे भेद क्या है ? आत्मा और मन में क्या फर्क है? मन के बारे मे तो हम काफी अच्छी तरह से जानते हैं क्योंकि सारे काम मन से ही होते हैं। लेकिन आत्मा के बारे मे कुछ नहीं जाते हैं। बस लोगों से सुना ‌‌‌है कि एक आत्मा होती है और वह शरीर से रूपहली डोरी के माध्यम से जुड़ी होती है। और जब वह शरीर से अलग हो जाती है तो हम मर जाते हैं।कम से कम हम जैसे लोग तो आत्मा के दर्शन नहीं करते हैं। खास कर जो योगी होते हैं वे आत्मा को देख सकते हैं अनुभव कर सकते हैं।

‌‌‌इनके अलावा कुछ लोग जिन्होंने भूत प्रेत देखें होंगे वे लोग भी आत्मा का अनुभव करते हैं।भूत प्रेत के पास कोई भौतिक शरीर नहीं होता है। उनके पास बस आत्मा होती है। ‌‌‌और वे उसी आत्मा और मन की वजह से लोगों को परेशान करने मे सक्षम होते हैं।

यदि आप चेतना के बारे मे जानते हैं तो इसी चेतना को आत्मा कहा जाता है। वैज्ञानिकों ने आत्मा को चेतना शब्द दिया है। भले ही आप उसे चेतना कहो या कुछ और लेकिन वह होती हमेशा है। आपको अनेक ऐसे प्रमाण मिल जाएंगे जिनसे यह ‌‌‌साबित हो चुका है कि चेतना होती है।वैज्ञानिक भी चेतना को साबित कर चुके हैं।

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‌‌‌आत्मा और मन मे भेद हर एक आत्मा से एक अलग मन जुड़ा होता है

 आत्मा और मन में क्या फर्क है

क्या आपने कभी सोचा है कि आपको यह क्यूं लगता है कि आप दूसरे से अलग हैं? दरसअल आत्मा सभी की समान होती है। लेकिन मन अलग अलग होता है। क्योंकि मन की सूचना अलग अलग होती है। ‌‌‌आत्मा से आत्मा मे कोई भेद नहीं होता है। लेकिन मन से मन मे भेद होता है। मन ही वह कारण है जिसकी वजह से हमे यह लगता है कि हम अलग हैं लेकिन यह सिर्फ एक भ्रम है क्योंकि मन भौतिकता को देख रहा है।

‌‌‌आत्मा कभी बुरी और अच्छी नहीं होती है

भगवान क्रष्ण ने कहा कि आत्मा सदैव बुराई से दूर रहती है। उसे हम ना अच्छी ही कह सकते हैं ना बुरी क्योंकि उसका इससे कोई लेना देना नहीं होता है। जितनी भी बुराई और अच्छाई सिर्फ मन मे होती है। जिस दिन आप मन को निकाल कर फेंके देंगे आप आत्मस्वरूप हो ‌‌‌जाएंगे। ‌‌‌मन के अंदर बुराई प्रक्रति के कारण आती है।आत्मा निगुण है और अवयक्त है।

‌‌‌पुर्न्जन्म का कारण मन है आत्मा नहीं

‌‌‌बहुत सी जगहों पर आपको यह लिखा हुआ मिलेगा कि भगवान की भक्ति करो यह करो वो करो कोई कहेगा सतनाम लेलो मुक्त हो जाओगे लेकिन इनकी कोई जरूरी नहीं है। जिस दिन आप अपने मन से मुक्त हो गए उस दिन आप मुक्त ही हैं। ‌‌‌लेकिन यह इतना आसान नहीं है पर असंभव नहीं है। आपका मन मरने के बाद भी आपकी आत्मा के साथ रहता है।यदि आपने जीवन काल मे ही अपने मन से किनारा कर लिया तो वह आपको पुर्न्जन्म के लिए विवश नहीं कर सकेगा । ‌‌‌सच बात तो यह है कि मरने के बाद आपकी आत्मा के पास सिर्फ डेटा होता है उसको प्रोसेस करने वाला प्रोसेसर बहुत ही कम जोर होता है। उसके बाद आप अपनी धारणाओं को बदल नहीं पाते हैं।

‌‌‌आत्मा ब्रहमांड की परम चेतना का अंश है

बहुत से लोग आपको दुनिया के अंदर यह कहते हुए मिलेंगे कि वही परमात्मा हैं , पिछले दिनों एक बाबा पकड़े गए जो खुद को परमात्मा बता रहे थे । पर सच तो यह है कि परमात्मा कभी पैदा नहीं हो सकते हैं। ‌‌‌सारे ब्रहमांड के अंदर एक अद्रश्य ताकत फैली हुई है।वैज्ञानिक भी इस बात को मान चुके हैं। वही अद्रश्य ताकत परमचेतना है। और हम उसके ही एक छोटे से अंश हैं। वो जो परमचेतना है वही भगवान है। ‌‌‌लेकिन मन उस परमचेतना का हिस्सा नहीं है।

‌‌‌भूत प्रेत का कारण मन है आत्मा नहीं

आप भी जानते हैं कि इस संसार मे दो प्रकार की ताकते मुख्य रूप से होती हैं। ‌‌‌एक देविय ताकते जिनको हम देवता कहते हैं और दूसरा जिनको हम तमोगुणी आत्मा या भूत प्रेत कहते हैं।यह नहीं सोचें की भूत प्रेतों मे ताकत नहीं होती है। ‌‌‌भूत प्रेतों मे देवताओं से भी अधिक ताकत हो सकती है।जब किसी इंसान का मन बुरा होता है। उसके मन मे गलत विचार होते हैं । वह मरने के बाद भूत बन जाता है।क्योंकि गलत विचार गलत करवाते हैं और जिनके मन मे अच्छे विचार होते हैं वह मरने के बाद देवता बन जाता है। ‌‌‌यह सब मन का खेल है। लेकिन आत्मा दोनों की समान ही होती है।क्योंकि दोनो ही परमात्मा के अंश होते हैं।

‌‌‌मन का अंत हो सकता है लेकिन आत्मा का नहीं

‌‌‌मन का अंत हो सकता है लेकिन आत्मा का नहीं

मन एक विचार होता है और उसका अंत संभव है। शायद इंसान जब सही मायने मे नष्ट हो जाता है या उसका मोक्ष हो जाता है तो मन जैसा कुछ नहीं रहता है।जब उसे इस बात का बोध नहीं रहता है कि मैं हूं तो उसका मन खत्म हो चुका होता है। लेकिन आत्मा अजर अमर है। वह ‌‌‌उत्पति का आधार है। उसे नष्ट नहीं किया जा सकता है।

‌‌‌आत्मा एक चैतन्य शक्ति है मन कोई चैतन्य नहीं है

आत्मा ही वह चीज है जिसकी वजह से शरीर के अंदर चैतना आती है।यदि आत्मा से शरीर को निकाल दिया जाए तो फिर शरीर कुछ भी अनुभव नहीं कर सकता है। लेकिन मन एक चैतना शक्ति नहीं है। मन सूचनाओं का भंडार है।

‌‌‌आत्मा एक अभौतिक सता है

दोस्तों आत्मा एक अभौतिक है। जिस तरह से शरीर भौतिक है।और हमारे आस पास की चीजें भौतिक हैं लेकिन आत्मा का कोई आकर नहीं होता है। जब हम कहते हैं कि ‌‌‌ईश्वर निर्गुण है और निराकार है तो हम उस आत्मा की ही बात कर रहे होते हैं। क्योंकि आत्मा ईश्वर का अंश है।‌‌‌यदि हम बात करें मन की तो मन आत्मा के साथ जुड़ा होता है। वह आत्मा के लिए अनिवार्य नहीं होता है। मन आत्मा को बताता है कि वह खुद है या नहीं है।

‌‌‌ मन और आत्मा मे अंतर ‌‌‌मन पर भौतिक जगत का प्रभाव पड़ता है आत्मा पर नहीं

mind and soul

आज भी बहुत सारे ऐसे इंसान होते हैं जो मन की वजह से संचालित होते हैं।उनके पास आत्मबल नहीं है। आत्मा को शरीर और मन ,बुद्वि पर शासन करना चाहिए लेकिन आज उल्टा हो रहा है। एक आत्माज्ञानी इंसान के शरीर पर उसकी आत्मा का शासन होता है।

‌‌‌जब अर्जुन को क्रष्ण कहते हैं कि हे अर्जुन आत्मा मे कभी कोई दोष पैदा नहीं होता है। दोष तो मन मे पैदा होता है।भौतिक जगत आत्मा को प्रभावित नहीं कर सकता लेकिन वह मन को प्रभावित कर सकता है।

‌‌‌एक तरह से सूचनाओं का संग्रह मन है लेकिन आत्मा सूचनाओं का संग्रह नहीं है

आपके दिमाग के अंदर बहुत सारी सूचनाएं होती हैं।मरने के बाद हमारा चेतन मन काम नहीं करेगा । बस अवचेतन मन काम करेगा । हमारे पास जो पहले से सूचना होंगी हम वैसा ही करने लग जाएंगे । ‌‌‌यदि कोई प्रेत बन गया है तो वह अपने अवचेतन मन की सूचनाओं के अनुसार अपनी वासनाओं की पूर्ति करने की कोशिश करेगा । उसके पास कोई चेतन मन नहीं होगा तो वह नहीं समझ पाएगा कि कौन गलत है ? ‌‌‌और आत्मा कोई सूचनाओं का संग्रह नहीं है।

‌‌‌आत्मा का जन्म नहीं होता है

आपको पता ही होगा कि आत्मा का जन्म नहीं होता है। लेकिन मन का तो हर बार जन्म होता है। इंसान जब जन्म लेता है तो उसकी पुरानी स्म्रति खत्म हो जाती हैं और उसके बाद उसके अंदर नई स्म्रति आ जाती हैं।लेकिन आत्मा हमेशा वैसी की वैसी ही रहती है।

‌‌‌इंसान के माय मे फंसने का कारण मन है

आप आज देखते होंगे कि बहुत से लोग धन के लिए लड़ रहे हैं कोई स्त्री के लिए लड़ रहा है कोई धर्म के लिए लड़ रहा है। कोई भगवान के लिए लड़ रहा है। सच मे इन सबका कारण मन ही है।कुछ लोग जिनमे विवेक नहीं होता है उनको यही लगता है कि ईश्वर ‌‌‌सिर्फ अमुख व्यक्ति है दूसरे सब झूठे हैं लेकिन सच तो यह है कि ईश्वर का अंश हम सब के अंदर है बस उसे जाग्रत करने की आवश्यकता ही है।

‌‌‌आज से 15000 साल पहले भगवान शिव ने कहा था कि इंसान को यदि अपने अस्ति्व के पार जाना है तो अंदर की ओर मूड़ना होगा बाहर कुछ नहीं है। लेकिन अफसोस की लोग आज भी दूसरे लोगों मे भगवान की तलास कर रहे हैं। ‌‌‌यह सारी माया का कारण मन ही है। आपकी आत्मा को इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा ।

मन और आत्मा मे अंतर सब दुखों का कारण मन है आत्मा नहीं

दोस्तों आपके जीवन के अंदर जितने भी दुख आते हैं उनका आधार मन ही होता है।यदि आपको धन नहीं मिला या आपको किसी ने गाली दी या आपको किसी ने घर से निकाल दिया । इन सबका कारण मन ही है। ‌‌‌तभी तो कहा जाता है कि अपने मन को जीत लो आप कभी दुखी नहीं हो सकते । आपकी आत्मा भी मन की वजह से काफी परेशान है। मतलब उसे भी बार बार जन्म लेना पड़ता है।

‌‌‌मन और आत्मा मे और भी बहुत सारे अंतर हैं लेकिन क्योंकि हम इन सब चीजों को आज भी ठीक से जानते नहीं है।विज्ञान सिर्फ इतना मानता है कि चेतना होती है। लेकिन कैसी होती है ? क्यूं होती है ? क्या कारण है इसका शरीर मे आने का ? इसका किसी के पास कोई जवाब नहीं है।

‌‌‌मन और आत्मा मे अंतर समझ गए होंगे । यदि आपकी कोई राय हो तो आप नीचे कमेंट करके हमें बता सकते हैं।

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  1. dinesh neer

    बहुत ही उपयोगी और ज्ञानवर्धक जानकारी दी दी है आपने। धन्यवाद

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arif khan

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