सूर्य की उत्पति कैसे हुई ? सुरज के बारे मे रोचक तथ्य

‌‌‌‌‌‌सूर्य की उत्पति कैसे हुई, surya ki utpatti kaise hui , surya devta ki utpatti kaise hui  सूय के बारे मे हम सभी अच्छी तरह से जानते ही हैं।सूर्य हमारे सौरमंडल के अंदर स्थित है। यदि सूर्य को वहां से हटा दिया जाए तो कुछ ही क्षणों के अंदर हम सभी समाप्त हो जाएंगे । और दिन और रात होना बंद हो जाएंगे । और बिना सूर्य के प्रकाश के पेड़पौधे भी मर जाएंगे । इसी तरह से कहा जा सकता है कि ‌‌‌सूर्य जीवन का बहुत ही बड़ा आधार है।इस धरती पर जो कुछ भी जीवन है वह सूर्य की वजह से संभव है। सूर्य पृथ्वी की तुलना मे एक बड़ा तारा है जोकि जल रहा है।

सूर्य अथवा सूरज सौरमंडल के केन्द्र में स्थित एक तारा जिसके चारों तरफ पृथ्वी और सौरमंडल के अन्य अवयव घूमते हैं।‌‌‌सूर्य का व्यास 13 lakh 90 हजार किलोमिटर है जोकि धरती से 109 गुना बड़ा है। इसका द्रव्यमानपृथ्वी के लगभग 330,000 गुना है; यह सौर मंडल के कुल द्रव्यमान का लगभग 99.86% है। सूर्य का 73 प्रतिशत हाइड्रोजन से बना है। बाकि सब हिलियम और दूसरी गैसें हैं।

सूर्य की उत्पति कैसे हुई ? सुरज के बारे मे रोचक तथ्य

सूर्य का कोर हर सेकंड लगभग 600 मिलियन टन हाइड्रोजन को हीलियम में फ्यूज करता है, जिसके परिणामस्वरूप हर सेकंड 4 मिलियन टन पदार्थ ऊर्जा में परिवर्तित होता है। यह ऊर्जा, जिसे कोर से बाहर निकलने में 10,000 से 170,000 साल लग सकते हैं।

हाइड्रोजन संलयन से सूर्य के अंदर से उर्जा निकलती है लेकिन एक समय ऐसा आयेगा जब इसके अंदर हाइड्रोजन संलयन होना बंद हो जाएगा तो यह प्रकाश देना बंद हो जाएगा और धीरे धीरे ठंडा हो जाएगा हालांकि इसके अंदर अभी भी 5 अरब साल का समय लग जाएगा ।

पृथ्वी पर सूर्य के विशाल प्रभाव को प्रागैतिहासिक काल से ही मान्यता दी गई है । यही वजह है कि कुछ संस्कृतियों के अंदर सूर्य को देवता के रूप मे पूजा जाता है। क्योंकि सूर्य भी एक जीवन दायनी शक्ति है।

‌‌‌सूर्य की उत्पति कैसे हुई surya ki utpatti kaise hui

सूर्य लगभग 4.6 अरब साल पहले एक विशाल आणविक बादल के एक हिस्से के ढहने से बना था जिसमें ज्यादातर हाइड्रोजन और हीलियम शामिल थे और जिसने शायद कई अन्य सितारों को जन्म दिया।परिणाम 4.567 अरब साल पहले की सबसे पुरानी सौर प्रणाली सामग्री की रेडियोमेट्रिक तिथि के अनुरूप है।प्राचीन उल्का पिंड़ों के अध्ययन से यह पता चलता है। कि जिस स्थान पर सूर्य का निर्माण हुआ था उस स्थान पर एक से अधिक सुपरनोवा पास मे होंगे ।

‌‌‌जिससे कि आणविक बादल के भीतर संकुचित करके गति दी गई होगी ।जैसे ही यह अलग हुआ तो घूमने लगा और उसके बाद गर्म होने लगा ।अधिकांश द्रव्यमान केंद्र में केंद्रित हो गया, जबकि बाकी एक डिस्क में चपटा हो गया जो कि ग्रह और अन्य सौर मंडल के पिंड बन जाएंगे।‌‌‌इसके कोर पर   गुरुत्वाकर्षण और दबाव ने बहुत अधिक गर्मी उत्पन्न की क्योंकि यह आसपास की डिस्क से अधिक पदार्थ जमा करता है, अंततः परमाणु संलयन को ट्रिगर कर दिया ।

सूर्य का निर्माण एक या अधिक पास के सुपरनोवा से शॉकवेव्स द्वारा ट्रिगर किया गया हो सकता है। यह बस वैज्ञानिकों का अनुमान है। सही सही इसके बारे मे कोई भी नहीं जानता है।

लगभग 4.6 अरब साल पहले जब सौर मंडल पहली बार बना था तो सूर्य गैस और धूल से घिरा हुआ होगा ।यह धूल के छल्ले आज भी सूर्य के आस पास देखने को मिलते हैं जोकि सूर्य का चक्कर लगाते हैं।

‌‌‌यदि हम सूर्य की उत्पति को सरल शब्दों मे समझें तो सूर्य लगभग 4.6 अरब साल पहले गैस और धूल के एक विशाल, घूमते हुए बादल में बना था । इस तरह के बादल को आमतौर पर निहारिका कहा जाता है।

गुरुत्वाकर्षण की वजह से यह ढह गई और उसके बाद वह एक डिस्क के अंदर चपटी हो गई।नेबुला की अधिकांश सामग्री हमारे सूर्य को बनाने के लिए केंद्र की ओर खींची गई थी, जो हमारे सौर मंडल के द्रव्यमान का 99.8% है। और शेष सामग्री से हमारे ग्रह वैगरह बन गए जोकि अब सूर्य की परिक्रमा करते हैं।

‌‌‌वैज्ञानिकों का अनुमान है कि सूर्य धीरे धीरे मर रहा है। और एक समय ऐसा आयेगा की यह पूरी तरह से मर जाएगा और उसके बाद बुद और शुक्र ग्रह से भी बड़ा हो जाएगा और प्रथ्वी को भी घेर लेगा ।

सामान्य की विशेषताएँ

  • सूर्य पृथवी के आकाश मे सबसे चमकीला पिंड माना गया है।अगले सबसे चमकीले तारे सीरियस की तुलना में लगभग 13 अरब गुना अधिक चमकीला है।
  • करीब नब्बे लाखवें भाग के अनुमानित चपटेपन के साथ, यह करीब-करीब गोलाकार है।
  •  सूर्य प्लाज्मा का बना हैं और ठोस नहीं है, यह अपने ध्रुवों पर की अपेक्षा अपनी भूमध्य रेखा पर ज्यादा तेजी से घूमता है।
  • विद्युत चुम्बकीय विकिरण को सूर्य नहीं रोक पाता है इनकी मदद से सूर्य की अंदर की परतों का अध्ययन किया जाता है।
  • सूर्य के बाहरी हिस्सों में गैसों का घनत्व उसके केंद्र से बढ़ती दूरी के साथ तेजी से गिरता है।और सूर्य की उपरी परतें काली हैं जिनकों आंखों से देखा जा सकता है।
  • एक पूर्ण सूर्यग्रहण के दौरान, तथापि, जब प्रभामंडल को चंद्रमा द्वारा छिपा लिया गया, इसके चारों ओर सूर्य के कोरोना का आसानी से देखा जा सकता है।
अवलोकन डेटा

पृथ्वी से औसत दूरी
1  ए.यू. ≈1.496 × 10 8  किमी 
8 मिनट 19 सेकेंड हल्की गति से
दृश्य चमक ( वी )−26.74 
निरपेक्ष परिमाण4.83 
वर्णक्रमीय वर्गीकरणजी2वी 
धात्विकताजेड = 0.0122 
कोणीय आकार31.6-32.7 मिनट चाप 
0.5 डिग्री
कक्षीय विशेषताएं
मिल्की वे कोर
से औसत दूरी
मैं 2.7 × 10 17  किमी
≈29,000  प्रकाश वर्ष
गांगेय काल(2.25–2.50) × 10 8 वर्ष
वेगमैं 220 किमी / s (आकाशगंगा के केंद्र के चारों ओर कक्षा)
≈ 20 किमी / s (तारकीय पड़ोस अन्य तारों की औसत वेग के सापेक्ष)
≈ 370 किमी/सेकंड ( कॉस्मिक माइक्रोवेव बैकग्राउंड के सापेक्ष )
भौतिक विशेषताएं
भूमध्यरेखीय त्रिज्या695,700  किमी,
696,342 किमी 
109  × पृथ्वी त्रिज्या 
भूमध्यरेखीय परिधि4.379 × 10 6  किमी 
109 × पृथ्वी 
सपाट9 × 10 −6
सतह क्षेत्र6.09 x 10 12  किमी 2
12,000 × पृथ्वी 
आयतन1.41 x 10 18  किमी 
1,300,000 × पृथ्वी
द्रव्यमान1.9885 × 10 30  किग्रा 
333,000  पृथ्वी 
औसत घनत्व1.408 ग्राम/सेमी 
0.255 × पृथ्वी 
केंद्र घनत्व (मॉडलिंग)162.2 ग्राम/सेमी 
12.4 × पृथ्वी
भूमध्यरेखीय सतह गुरुत्वाकर्षण274 मीटर/सेकंड 
28 × पृथ्वी 
जड़ता कारक का क्षण0.070  (अनुमान)
पलायन वेग
(
सतह से)
617.7 किमी/सेकंड 
55 × पृथ्वी 
तापमानकेंद्र (मॉडल): 1.57 × 10 7  के 
प्रकाशमंडल (प्रभावी):5,772  के 
कोरोना : 5 × 10 6  के
चमक (एल सोल )3.828 × 10 26  डब्ल्यू 
≈ 3.75 × 10 28  एल एम
≈ 98 एलएम/डब्ल्यू प्रभावकारिता
रंग (बीवी)0.63
माध्य चमक  (I sol )2.009 × 10 7  W·m −2 ·sr −1
उम्र4.6 अरब वर्ष (4.6 × 10 9  वर्ष ) 
रोटेशन विशेषताओं
तिरछापन7.25 ° 
(करने के लिए क्रांतिवृत्त )
67.23 °
(करने के लिए गांगेय विमान )

उत्तरी ध्रुव का 
दायां उदगम 
286.13 ° 19 घंटे 4 मिनट 30 सेकंड


उत्तरी ध्रुव की 
गिरावट
+63.87°
63° 52′ उत्तर
नाक्षत्र घूर्णन अवधि
(भूमध्य रेखा पर)
25.05 घ 
(16° अक्षांश पर)25.38 घ 
25 घ 9 घंटे 7 मिनट 12 सेकेंड
(ध्रुवों पर)34.4 डी 
घूर्णन वेग
(
भूमध्य रेखा पर)
7,189 × 10 3  किमी/घंटा 

‌‌‌सूर्य के अंदर संयोजन

दोस्तों जैसा कि आपको पता ही होगा कि सूर्य के अंदर नाभिकिय संयोजन की वजह से ही हमे उर्जा निरंतर मिलती रहती है।सूर्य मुख्य रूप से रासायनिक तत्वों हाइड्रोजन और हीलियम से बना है । इस समय सूर्य के जीवन में, वे क्रमशः फोटोस्फियर में सूर्य के द्रव्यमान का 74.9% और 23.8% हिस्सा रखते हैं।सूर्य में हाइड्रोजन और अधिकांश हीलियम का निर्माण ब्रह्मांड मे पहले से ही मौजूद बिग बैंग न्यूक्लियोसिंथेसिस की वजह से हो गया होगा ।पिछले 4.6 अरब वर्षों में, हीलियम की मात्रा और सूर्य के भीतर उसका स्थान बदल रहा है।कोर के भीतर संलयन की वजह से उसका अनुपात 24 से 60 फीसदी हो गया है।

कुछ हीलियम और भारी तत्व गुरुत्वाकर्षण के कारण प्रकाशमंडल से सूर्य के केंद्र की ओर बस गए हैं । और उसके बाद सूर्य गर्मी को विकिरण के माध्यम से बाहर निकालता है।‌‌‌धीरे धीरे हिलियम का आंतरिक कोर बनना शूरू हो जाता है जिससे कि फयूज नहीं किया जा सकता है।र्तमान में सूर्य का कोर गर्म या इतना घना नहीं है कि हीलियम को फ्यूज कर सके । और अगले वर्षों तक सूय के अंदर इसी तरह से हीलियम कोर मे जमा होता रहेगा और उसके बाद सूर्य एक विशाल लाल तारे के अंदर बदल जाएगा ।

  • कोर सूर्य की एक ऐसी जगह होती है जहां पर तापमान और दबाव परमाणु संलय के लिए होते हैं जिससे कि हाइड्रोजन हिलियम के अंदर फयूज हो जाता है।‌‌‌यह संलयन प्रक्रिया निरंतर जारी रहती है और हाइड्रोजन हिलियम मे बदलते चले जाते हैं।
  • सूर्य की सतह के अधिक निकट तक संवहन नहीं हो सकता है। इसलिए, त्रिज्या के लगभग 20-25% और त्रिज्या के 70% के बीच, एक विकिरण क्षेत्र होता है । जिससे विकिरण के माध्यम से उर्जा का स्थानान्तरण होता है।
  • संवहन क्षेत्र सूर्य का एक ऐसा क्षेत्र होता है जोकि ठंडा होता है। हालांकि सूर्य एक गैसिय सिस्टम है इसकी कोई सतह नहीं है।

कक्षा और घूर्णन

सूर्य मिल्की वे आकाशगंगा में एक सर्पिल भुजा में स्थित है जिसे ओरियन स्पर कहा जाता है। सूर्य हमारे सौर मंडल को लेकर आकाश गंगा के केंद्र की परिक्रमा करता है।हमारा सौर मंडल 450,000 मील प्रति घंटे (720,000 किलोमीटर प्रति घंटे) के औसत वेग से आगे बढ़ रहा है।इस तरह से सूर्य को आकाश गंगा के ‌‌‌ चोरों और घूमने मे 230 मिलियन वर्ष लग जाते हैं।चूंकि सूर्य ठोस नहीं है, इसलिए अलग-अलग हिस्से अलग-अलग दरों पर घूमते हैं। भूमध्य रेखा पर, सूर्य हर 25 पृथ्वी दिनों में एक बार घूमता है।

‌‌‌सूर्य की सतह

बहुत से लोगों को यह लगता है कि सूर्य के आस पास पृथ्वी और दूसरे ग्रहों की तरह चट्टानी सतह होती है लेकिन यह पूरी तरह से गलत है। सूर्य के पास कोई भी चट्टानी सतह नहीं है। सूर्य के जिस भाग को सतह कहा जाता है ‌‌‌वह भाग एक प्रकाशमंडल होता है।यही वह परत होती है जोकि दिखाई देने वाली रोशनी का उर्त्सजन करती है। और यही वह परत होती है जिसको कि हम धरती से आसानी से देख सकते हैं।

‌‌‌लेकिन आपको इस बात का ध्यान रखना है कि आप कभी भी नंगी आंखों से सूर्य को ना देखें नहीं तो आपकी आंखे खराब हो सकती हैं। वास्तव में प्रकाशमंडल सौर वायुमंडल की पहली परत है। यह लगभग 250 मील मोटा है। और यह कार्बन को बनाने के लिए काफी गर्म होता है।

‌‌‌सूर्य बन जाएगा एक लाल दानव तारा

‌‌‌सूर्य बन जाएगा एक लाल दानव तारा

दोस्तों जैसा कि हमने आपको उपर कई जगहों पर यह बताया है कि सूर्य के अंदर तेजी से हीलियम बन रही है। और भविष्य मे ऐसा ही चलता रहेगा उसके बाद जब उसके पास हाइड्रोजन समाप्त हो जाएगी तो वह एक लाल दानव तारे के रूप मे बन जाएगा । सूर्य का तकरीबन 5.4 अरब साल में एक लाल दानव बनने का पूर्वानुमान है।  सूर्य संभवतः पृथ्वी समेत सौरमंडल के आंतरिक ग्रहों की वर्तमान कक्षाओं को निगल जाने जितना बड़ा हो जाएगा।

‌‌‌और इससे पहले की सूर्य लाल दानव तारा बनता है उसकी चमक काफी अधिक हो जाएगी और शुक्र का जितना तापमान है पृथ्वी का तापमान भी उतना ही अधिक हो जाएगा ।

करीब आधे अरब वर्षों उपरांत आकार में धीरे धीरे दोगुना जाएगा। उसके बाद यह, आज की तुलना में दो सौ गुना बड़ा तथा दसियों हजार गुना बड़ा हो जाएगा ।

‌‌‌उस समय तक शायद धरती पर इसानी जीवन बचेगा ही नहीं । तो आप यह ना सोचें की इस स्थिति मे इंसानों के साथ क्या होगा ? हां यह एक अलग बात है कि कुछ इंसान इतनी प्रोग्रेस कर जाएं कि वे किसी दूसरे जगह पर शरण लेलें ।

‌‌‌लेकिन इतना तय है कि प्रथ्वी को एक ना एक दिन नष्ट होना ही है। हो सकता है मानव आपस मे लड़कर  ही सूर्य से पहले ही धरती को बरबाद करदें । इस बारे मे कोई कुछ नहीं कह सकता है।

‌‌‌चीन का नकली सूर्य

आपने यदि सुना हो तो आपको पता होगा कि एक नकली सूर्य बनाने का दावा चीन ने भी किया था। रिपोर्ट के अनुसार चीन के द्धारा तैयार किया गया यह नकली सूरज असली सूर्य से 10 गुना अधिक ताकतवर था। ‌‌‌और यह 100 सैकिंड तक पमान 16 करोड़ डिग्री सेल्सियस  तक ताप दे सकता था। हालांकि अभी इसी प्रोजेक्ट पर काम भी चला लेकिन इस तरह के सूर्य को बनाने की दिशा मे अधिक सफलता नहीं मिल पाती  है।

‌‌‌इस सूर्य को एक रिएक्टर के अंदर बनाया गया था और इसके अंदर संलयन की मदद ली गई थी। लेकिन कुछ भी हो इस तरह के प्रोजेक्ट अधिक सफल नहीं हो पाते हैं क्योंकि संसाधन मौजूद नहीं हैं।

चीन ने इस प्रोजेक्ट की शुरुआत वर्ष 2006 में की थी। चीन ने कृत्रिम सूरज को एचएल-2एम (HL-2M) नाम दिया है।और इस सूरज के बारे मे यह कहा गया है कि इसका प्रकाश असली सूर्य के जैसा ही होगा और इसके नियंत्रण की व्यवस्था भी की गई है।

कुल लागत 22.5 बिलियन डॉलर है आपको बतादें कि दुनिया के कई वैज्ञानिक सूरज को निर्माण करने मे जूटे हैं लेकिन गर्म प्लाजमा को एक साथ रखना बहुत ही कठिन समस्या है।

‌‌‌पौराणिक कथाओं मे सूर्य की उत्पति

‌‌‌पौराणिक कथाओं मे सूर्य की उत्पति

दोस्तों अनेक धर्मों के अंदर सूर्य को देवता माना जाता है और उसकी पूजा की जाती है। क्योंकि सूर्य के बिना जीवन संभव नहीं है। सूर्य एक जीवन दायनी शक्ति है। इसलिए वह देवता कहलाता है।पौराणिक कथाओं मे सूर्य की उत्पति के बारे मे उल्लेख आता है। हम यहां पर आपको कुछ पौराणिक कथाओं के बारे मे बताने वाले हैं ।जिनके अंदर सूर्य की उत्पति का उल्लेख है। हालांकि इन कथाओं का बोध किसी को पता नहीं है।

‌‌‌ऐसा माना जाता है कि जब धरती का आरम्भ हुआ तो ब्रह्रमा जी के मुख से ओम शब्द निकला ।और इसी से सूर्य बना लेकिन यह काफी सूक्ष्म था।  भू: भुव और स्व के इसके अंदर मिलने के बाद ही सूर्य की उत्पति हुई और सूर्य अपने ज्वलंत रूप मे आया ।

‌‌‌इसका मतलब यह है कि सूर्य की उत्पति ओम शब्द से हुई। बहुत से लोगों को यह लग सकता है कि सूर्य की उत्पति ओम से कैसे हुई ? तो उनके लिए यह बतादें कि ओम एक शब्द है और यह एक कंपन है जो हर जगह गूंज रहा है। बहुत बार आत्मा को ओम से जोड़कर देखा जाता है। आप जो कुछ देख रहे हैं वह एक कंपन ही तो है।‌‌‌ इस बात को वैज्ञानिक सिद्ध कर चुके हैं। ऐसा माना जाता है कि ओम से पहले कुछ नहीं था। तो इसी से सूर्य की उत्पति हुई ।

‌‌‌इसी तरह से एक अन्य कथा भी आती है। जिसके अंदर सूर्य पुत्र के उत्पन्न होने के बारे मे संकेत मिलता है।ब्रह्मा जी ने अपने दाएं अंगूठे से दक्ष और बाएं अंगूठे से उनकी पत्नी को को पैदा किया था।उसके बाद राजा दक्ष की 13 कन्याएं हुई थी।

सप्त ऋषि में एक कश्यप ऋषि उत्पन्न हुए। और कश्यप और आदिति से पैदा होने वाले पुत्र देवता कहलाएं और उसी तरीके से कश्यप की दूसरी पत्नी से जो पुत्र पैदा हुए वे दानव कहलाए ।और देवता और दानव तो आज भी लड़ते रहते हैं । आप इनको देख सकते हैं।

‌‌‌और एक बार देवता और दानवों के अंदर भयंकर युद्ध हुआ । जिसके अंदर देवताओं को अपनी जानबचाकर वहां से भागना पड़ा जिससे देवताओं की माता आदिति काफी दुखी रहने लगी और उन्होंने सूर्य देव की उपासना करना शूरू कर दिया ।

‌‌‌और उनकी उपासना से सूर्य देव काफी प्रसन्न हुए और उनके गर्भ मे वे जन्म लेंगें। और उसके बाद उनका गर्भ ठहर गया । लेकिन उसके बाद भी वे उपवास रखती थी क्योंकि जानती थी कि उनके गर्भ मे सूर्य देव का अंश है कुछ नहीं होगा ।उसके बाद उनको एक पुत्र मर्तण्ड पैदा हुआ ।

‌‌‌सूर्य देवता की व्रत कथा

‌‌‌सूर्य देवता की व्रत कथा

हमारे यहां पर सूर्य देवता को पूजा जाता है। और रविवार को सूर्य  का वार माना जाता है। खास कर हिंदु महिलाएं रविवार को वृत करती हैं। यदि आपने यह वृत किया है तो आप इसके बारे मे काफी अच्छी तरह से जानती ही होगी ।‌‌‌वृत करने के बाद इसके अंदर एक कहानी भी होती है। जिसके बारे मे हम आपको यहां पर बता रहे हैं।

‌‌‌

‌‌‌प्राचीन काल की बात है। एक गांव के अंदर एक बुढ़ी माई रहा करती थी । वह हर रविवार सूर्य देव का व्रत रखती थी। व्रत वाले दिन वह सुबह जल्दी उठती थी और उसके बाद नहा धोकर आंगन पर गोबर की चोकी लगाती थी । यह सब आंगन को पवित्र करने के लिए था। और उसके बाद सूर्य देव की पूजा करती थी।‌‌‌वह हर बार जब अपना व्रत खोलती थी तो पहले सूर्य देवता को भोग देती थी उसके बाद ही खुद खाना खाती थी। उसकी इस पूजा से सूर्य देवता काफी प्रसन्न थे ।

‌‌‌भगवान सूर्य की क्रपा से उसके पास सब कुछ था वह धन से तो पूरी तरह से भरी हुई थी।

उसकी एक पड़ोसन भी थी जो कि उस बुढ़िया के ठाक को देखकर उससे जलती थी।‌‌‌तो बुढ़िया के पास गाय नहीं थी तो आंगन लिपने के लिए वह गोबर अपनी पड़ोसन के यहां से लेकर आती थी । पड़ोसन ने अपनी गाय को एक रात अलग जगह पर बांध दिया तो बुढ़िया को गोबर नहीं मिला तो वह आंगन को पवित्र नहीं कर पाई तो ऐसी ही सूर्य देव को भोग लगाये बिना सो गई।

‌‌‌अगले दिन जब बुढ़िया सोकर उठी तो उन्होंने देखा कि उनके यहां पर एक गाय बंधी है और उसके एक बछड़ा भी है। उधर पड़ोसन ने जब बुढ़िया के घर सुंदर गाय देखी तो वह जलने लगी और उस गाय के सोने के गोबर को पड़ोसन ने अपनी गाय के पास रख दिया । कुछ इसी तरह से चलता रहा । एक दिन सूर्य देव को पड़ोसन की चालाकी ‌‌‌ का पता चल गया तो उन्होंने बहुत तेज आंधी चला दी जिससे कि बुढ़िया ने अपनी गाय को अंदर बांध दिया ।उसके अगले दिन जब बुढ़िया ने सोने का गोबर देखा तो वह हैरान रह गई ।

‌‌‌उसके बाद तो बुढ़िया गाय को सदैव अंदर ही बांधने लगी । कुछ ही दिनों के अंदर बुढ़िया और अधिक धनवान हो गई । उसकी पड़ोसन से यह सब देखा नहीं गया तो उसने एक साजिश रची और अपने पति को राजा के पास भेजा और पति ने राजा को सोने का गोबर करने  वाली गाय के बारे मे बताया ।

‌‌‌यह बात सुनकर राजा बहुत अधिक खुश हुआ और राजा ने अपने कुछ सैनिक बुढ़िया के यहां पर उस गाय को लाने के लिए भेजे । बुढ़िया ने सैनिकों से गाय को ना ले जाने के बारे मे कहा लेकिन उसकी नहीं चली ।

‌‌‌उसके बाद राजा ने गाय को सोने के गोबर के चक्कर मे अपने राजमहल मे बांधा और सुबह उठकर देखा तो गाय ने सारे राजमहल को गोबर से भर दिया । जिससे राजा को बहुत बुरा लगा और राजा ने उस पड़ोसी को बुलाया और उसे झूठ बोलने की सजा दी ।‌‌‌और उसके बाद राजा ने वापस उस गाय को उस बुढ़िया को सौंप देने का आदेश दिया । इस प्रकार से जो सूर्य देव का व्रत करता है उन पर सूर्य देव की क्रपा बनी रहती है।

‌‌‌खैर दोस्तों आपको यह बतादें कि व्रत कथा अलग अलग क्षेत्र के अंदर अलग अलग तरह से प्रचलित होती है। कुछ जगह पर दूसरी व्रत कथाओं का प्रचलन भी होता है। लेकिन सभी का मकसद एक ही होता है।

‌‌‌यदि आप किसी भी तरह का व्रत रखते हैं तो यह आपके लिए कई तरीकों से काफी फायदेमंद हो सकता है। अब विज्ञान भी यह मान चुका है कि व्रत रखना आपके लिए काफी फायदे मंद है। यह आपके शरीर के कार्यप्रणाली को आराम देता है।

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arif khan

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