‌‌‌शीघ्र पुत्र प्राप्ति के लिए 28 मंत्र और प्रयोग के बारे मे जानकारी

पुत्र प्राप्ति के लिए मंत्र putra prapti ke liye mantra ‌‌‌दोस्तों आपको पता होना चाहिए कि पुत्र की कामना हर कोई करता है। भले ही कुछ लोग यह कहते फिर रहे हों कि पुत्र और पुत्री एक समान होती है और आजकल तो लड़कियों को भी नौकरी मिलती है। लेकिन रियल धरातल पर आपको यह कहीं पर भी एक समान नहीं दिखाई देते हैं । कारण यह है कि पुत्री पैदा करने से कुछ नहीं ‌‌‌ होता है। सरकार तक उसको सुरक्षा देने मे असक्षम साबित हुई है। आप इस बात को समझ सकते हैं। भारत के अंदर आए दिन रेप होते हैं। और मैं आपको एक रियल घटना बताता हूं । कुछ सालों पहले हम लोग किसी कंपनी के अंदर काम करते थे तो वहीं पास मे ही दूसरी कंपनी मे कोई महिला काम करती थी ।

‌‌‌रात को महिला 10 बजे निकली तो कुछ लड़के उसके पीछे हो गए । और अंधेरा इलाका था और महिला अकेली थी तो वह पूरी तरह से डर गई । और उसके बाद वह किसी तरह से खुद को बचाने मे कामयाब हुई आप इस बात को समझ सकते हैं। और हकीकत यह है कि आज भी एक महिला रात के अंदर अकेली घर से बाहर जाएगी तो उसको उठा लिया जाएगा।

 putra prapti ke liye mantra

‌‌‌यही सब कारण है कि लोग पुत्र की चाह रखते हैं। आप कितनी भी कोशिश करें बेटा बेटी एक समान नहीं हो सकते हैं। इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए । और आप इस बात को समझ सकते हैं।

‌‌‌लेकिन इसका यह कतई मतलब नहीं है कि पुत्र के चक्कर मे हम किसी पुत्री की हत्या करदें । यदि कोई पहली संतान पुत्री हुई है तो आपको दूसरी संतान करने पर विचार करना चाहिए । आप इस बात को समझ सकते हैं। ऐसी स्थिति के अंदर किसी मादा की हत्या तो कम से कम नहीं ही होगी । आप इस बात को समझ सकते हैं। और ‌‌‌इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए । पहले चीन के अंदर एक शिशु का कानून  चलता था लेकिन बाद मे चीनी सरकार ने देखा कि यदि एक पहली संतान पुत्र होती है तो उसके बाद लोग उसकी हत्या कर देते हैं। जिसके चलते वहां की सरकार को भी कानून बदलना पड़ा । आज भारत का हाल आप देख सकते हैं। लड़कों की संख्या काफी ‌‌‌ अधिक हो चुकी हैं। और लड़कियों की संख्या काफी कम हो चुकी है। ऐसी स्थिति के अंदर लड़कों की शादी होने का काफी कठिन होता जा रहा है आप इस बात को अच्छी तरह से समझ सकते हैं। और इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए ।

‌‌‌वैसे तो समाज के अंदर आमतौर पर माता पिता को पुत्रों पर ही निर्भर रहना पड़ता है। ऐसी स्थिति के अंदर हर किसी को पुत्र की ही चाह होती है। इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए । और यदि पुत्र नहीं होता है तो माता पिता को बूढ़ापे के अंदर काफी अधिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है । आप इस बात को ‌‌‌ अच्छी तरह से समझ सकते हैं। और यही आपके लिए सबसे अधिक सही होगा ।

पुत्र प्राप्ति के लिए मंत्र के बारे मे हम इस लेख के अंदर आपको बताने वाले हैं। यदि आपको यह लेख पसंद आता है तो आप हमें कमेंट करके बता सकते हैं तो आइए जानते हैं पुत्र प्राप्ति मंत्र के बारे मे विस्तार से ।

‌‌‌आपको बतादें कि मंत्र उस ध्वनी को कहा जाता है जोकि किसी खास प्रकार की शक्ति को प्रकट करने के लिए जाना जाता है। आमतौर पर हम सभी लोगों की मानसिकता ही ऐसी हो चुकी है कि पुत्र होना चाहिए । यदि घर के अंदर सब कुछ है धन दौलत मगर यदि एक पुत्र नहीं है तो उसके बाद यह माना जाता है कि ‌‌‌कुछ भी नहीं है। ऐसा नहीं है कि पुत्र अपने माता पिता के लिए कुछ कर नहीं सकती है। वह भी नौकरी कर सकती है और अच्छा पैसा कमा सकती है। लेकिन वह माता पिता के वंश को आगे नहीं बढ़ा सकती है इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए ।वैसे यदि एक अच्छा पुत्र है तो वह कुल का नाम रोशन करता है लेकिन यदि एक ‌‌‌अच्छा पुत्र नहीं है तो वह कुल का नाम रोशन नहीं खराब करता है ।इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए और आप इस बात को अच्छी तरह से समझ सकते हैं। तो आइए जानते हैं पुत्र प्राप्ति के मंत्र और प्रयोग विधि के बारे मे विस्तार से ।

Table of Contents

1.पुत्र प्राप्ति के लिए मंत्र putra prapti ke liye mantra

मन्त्र — ॐ क्लीं देवकी सुत गोविन्दं वासुदेव जगत्पतेः । देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः क्लीं ॐ ॥

‌‌‌सबसे पहले उपर दिये गए मंत्र को ताम्रपत्र पर लिखना होगा और उसके बाद पति और पत्नी दोनों को 90 दिन तक सवा लाख जाप इस मंत्र का करना होगा । और यदि आप इनको याद रख सकते हैं तो ठीक है लेकिन यदि आप इनको याद नहीं रख सकते हैं तो फिर आपको इसको कहीं पर लिखते जाना है।

‌‌‌30 दिनों तक जाप करना है। पुरुष अपने अण्डर- गारमेन्टस एवं धोती-कुर्ता पीला या केशरिया पहनकर बैठे तथा स्त्री भीतरी वस्त्र एवं ब्लाउज तथा साड़ी पीली पहने । स्त्रियों के लिए ऋतुकाल अवधि में जप एवं यन्त्र पूजन निषेद्ध है ।और यदि पत्नी का पिरियड चल रहा है तो मंत्र का जाप पुरूष अकेले को ही करना होगा ।

‌‌‌इसके अलावा जप के दौरान दोपहर को भोजन के रूप मे आप कोई भी पीली वस्तु का सेवन कर सकते हैं। जिसके अंदर बेसन के लडडू या फिर पीली चीजों का सेवन कर सकते हैं।

इसके अलावा मंत्र का जाप करते समय आपको रोजाना एक एक केला का दान करना होगा ।

‌‌‌उसके बाद जब यह जप पूर्ण हो जाता है तो उसके बाद आपको किसी जानकार को बुलाना है और उसके बाद आपको हवन करना होगा । हवन करने के बाद आपको खीर प्रसाद के रूप मे लेना होगा । इस प्रयोग को करने के बाद अपने बिस्तर और दूसरे मकानों के अंदर गोमूत्र का छिड़काव करलें । अपने बेडरूम के अंदर भगवान कृष्ण का फोटो ‌‌‌ आपको लगा लेना है और दोनों को अपने अपने धर्म का पालन करना है। ऐसा करने का फायदा यह होगा कि पुत्र ही पैदा होगा ।  यह एक अच्छा उपाय है जिसको आप कर सकते हैं और इससे आपको काफी अधिक फायदा देखने को मिलेगा । इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए । और आप इस बात को समझ सकते हैं।

‌‌‌2.पुत्र प्राप्ति के लिए मानस का सिद्ध मंत्र

दोस्तों यदि आप पुत्र प्राप्त करना चाहते हैं तो नीचे दिये गए मंत्र का भी प्रयोग कर सकते हैं। यह भी आपके लिए काफी अधिक फायदेमंद हो सकता है। इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए । और आप इस बात को समझ सकते हैं। यही आपके लिए सबसे अधिक सही होगा ।

प्रेम मगन कौसल्या निसि दिन जात जान सुत सनेह बस माता बालचरित कर गान रामचरित मानस ( बालकाण्ड दो. २००)

‌‌‌इस मंत्र का इस प्रकार से अर्थ है कि प्रेम मग्न कौशिल्या रात और दिन बिताना नहीं जानती थी और अपने पुत्र के बाल रूप का वर्णन करती रहती थी।

‌‌‌सबसे पहले आपको यह सोमवार को रात को 10 से 12 बजे के बीच प्रयोग करना है और इस मंत्र की 108 आहूती देकर इसको सिद्ध कर लेना है उसके बाद आपको इसको अधिक से अधिक जाप करना होगा । इससे पुत्र प्राप्ति की संभावना काफी अधिक हो जाएगी । इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए । और आप इस बात को अच्छी तरह से समझ ‌‌‌ सकते हैं। इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए । और यही आपके लिए सबसे अधिक सही होगा ।

‌‌‌3.भगवान श्री राम की स्तुत गाना पुत्र प्राप्ति का मंत्र

दोस्तों यदि आप पुत्र प्राप्त करना चाहते हैं तो आपको भगवान राम की स्तुती आपको गाना चाहिए । और रामनवमी के दिन आपको यह प्रयोग आरम्भ करना चाहिए । और जितना हो सके आपको गाना चाहिए । जिससे कि आपको पुत्र प्राप्त होने के योग बनते चले ‌‌‌ जाएंगे । यह एक अच्छा उपाय है जिसको आप कर सकते हैं और यह आपके लिए काफी अधिक फायदा कर सकता है। इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए ।

दोहा – सुर समूह बिनती करि पहुँचे निजनिज धाम | जग निवास प्रभु प्रगटे अखिल लोक बिश्राम ॥

देवता समुह के अंदर विनती करने के बाद अपने अपने लोक मे जा पहुंचे समस्त प्राणियों का कल्याण करने वाले भगवान प्रकट हुए ।

प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी ।

हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप बिचारी ॥

लोचन अभिरामा तनु घनस्यामा निज आयुध भुजचारी ।

भूषन बनमाला नयन बिसाला सोभा सिंधु खरारी ॥

‌‌‌दीनों पर दया करने वाले कौशिल्याजी के हितकार प्रभु प्रकट हुए और मुनियों के मन को हरने वाले प्रभु के बारे मे अदभुत विचार करके माता हर्ष से भर गई ।नेत्रों को आनन्द देने वाले मेघ के समान शरीर था । और चार भुजाओं के अंदर आभूषण और वनमाला धारण किये हुए थे ।इस प्रकार से शोभना और खर राक्षस को ‌‌‌ मारने वाले प्रभु प्रकट हुए ।

पुत्र प्राप्ति के लिए मंत्र

कह दुइ कर जोरी अस्तुति तोरी केहि बिधि करौं अनंता ।

 माया गुन ग्यानातीत अमाना बेद पुरान भनंता ॥

करुना सुख सागर सब गुन आगर जेहि गावहिं श्रुति संता ।

सो मम हित लागी जन अनुरागी भयउ प्रगट श्रीकंता ॥

‌‌‌उसके बाद दोनों हाथों को जोड़कर माता कहने लगी । हे अनन्त मैं किस प्रकार से तुम्हारी सतुती करूं ?वेद पुराण के अंदर आपको माया गुण और ज्ञान से परे बताया गया है।जिसका समुद्र आदि सब गुणों का धाम कहकर गान करते हैं।वही भक्तों को प्रेम करने वाले लक्ष्मी पति प्रकट हुए हैं।

ब्रह्मांड निकाया निर्मित माया रोम रोम प्रति बेद कहै ।

मम उर सो बासी यह उपहासी सुनत धीर मति थिर न रहै ॥

उपजा जब ग्याना प्रभु मुसकाना चरित बहुत बिधि कीन्ह चहै । कहि कथा सुहाई मातु बुझाई जेहि प्रकार सुत प्रेम लहै ॥

‌‌‌वेद कहते हैं कि तुम्हारे प्रत्येक रोम के अंदर माया के रचे हुए अनेक ब्रह्रमांड हैं ।और तुम मेरे गर्भ के अंदर रहे । यह बात सुनकर ज्ञान पुरूष की बुद्धि स्थिर नहीं रहती है।उसके बाद जब माता को ज्ञान हुआ तो प्रभु ने उनको एक पूर्व जन्म की एक सुंदर कथा सुनाई ।

माता पुनि बोली सो मति डोली तजहु तात यह रूपा ।

कीजै सिसुलीला अति प्रियसीला यह सुख परम अनूपा ॥

 सुनि बचन सुजाना रोदन ठाना होइ बालक सुरभूपा ।

 यह चरित जे गावहिं हरिपद पावहिं ते न परहिं भवकूपा ॥

‌‌‌उसके बाद माता की बुद्धि बदल गयी और वह बोली .. हे ताता अपना यह प्रिय रूप छोड़कर अत्यंत प्रिय लिला करों मेरे लिए ।उसके बाद देवताओं के भगवान ने बालक का रूप लेकर रोना शूरू कर दिया ।उसके बाद तुलसी दास कहते हैं कि जो इस का गान करते हैं वे हरि पद को पाते हैं और फिर से संसार के कूच नहीं करते हैं।

बिप्र धेनु सुर संत हित लीन्ह मनुज अवतार ।

 निज इच्छा निर्मित तनु माया गुन गो पार ॥

‌‌‌ब्राह्रमण गो और देवताओं व संतों के लिए भगवान ने मनुष्य का अवतार लिया ।और उनका जो दिव्य शरीर है वह अपनी इच्छा से ही बना है वह सब माया मोह और बंधनों से परे हैं। इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए । और आप इस बात को अच्छी तरह से समझ सकते हैं।

‌‌‌इसको रात को 10 बजे के बाद हवन करते हुए 11 बार गौ घृत, खीरान, मिष्ठान्न से आहुति देने पर यह स्तुति सिद्ध हो जाती है। और पति पत्नी को रोजाना खाना खाने से पहले एक बार पाठ करें और उसके बाद जो हवन की भूभूत दी है उसको पीते जाएं । पानी के अंदर डालकर पी सकते हैं।और गर्भधान तक दोनो पति पत्नी को पीनी है। ‌‌‌और जब गर्भ ठहर जाता है तो उसके बाद सिर्फ पत्नी को ही पीना है । इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए । और आप इस बात को अच्छी तरह से समझ सकते है। आपको इसके बारे मे पता होना चाहिए । यही आपके लिए सबसे सही होगा ।

‌‌‌4.पुत्र प्राप्ति के लिए मंत्र श्री राम की स्तुती

दोस्तों भगवान श्री राम की स्तुती करने से भी पुत्र प्राप्त किया जा सकता है। यहां पर हम इसके बारे मे विस्तार से बता रहे हैं। और इसके अलावा यह भी बताने का प्रयास कर रहे हैं कि आपको इसका प्रयोग किस प्रकार से करना है ।

छन्द – जय जय सुरनायक जन सुखदायक प्रनतपाल भगवंता । गो द्विज हितकारी जय असुरारी सिंधु सुता प्रियकंता ॥ पालन सुर धरनी अद्भुत करनी मरमं न जानइ कोई । जो सहज कृपाला दीनदयाला करउ अनुग्रह सोइ ॥

‌‌‌देवताओं की स्वामी सेवकों को सुख देने वाले शरणागत की रक्षा करने वाले ।भगवान आपकी जय हो जय हो । ब्राह्रमणों का हित करने वाले असुरों का विनाश करने वाले ।श्री लक्ष्मी जी के प्रिय स्वामी आपकी सदा जय हो ।प्रथ्वी का पालन करने वाले आपकी लीला अदभुत है ।इसका भेद कोई भी नहीं जानता है।

जय जय अबिनासी सब घट बासी ब्यापक परमानंदा ।

अबिगत गोतीतं चरित पुनीतं माया रहित मुकुंदा ॥

जेहि लागि बिरागी अति अनुरागी बिगत मोह मुनि बृंदा ।

 निसि बासर ध्यावहिं गुन गन गावहि जयति सच्चिदानंदा ॥

‌‌‌हे अविनाशी सबके हृदय मे निवास करने वाले माया मोह से परे चरित्र से पवित्र हे मोक्ष दाता सदा ही आपकी जय हो ।मुक्त और मोह से सर्वाथा ही छूट हुए लोग अत्यंत प्रेमी बनकर दिन रात जिनका ध्यान करते हैं। उनके गुणों का गान करते हैं उनकी सदा ही जय हो ।

जेहिं सृष्टि उपाई त्रिबिध बनाई संग सहाय न दूजा । सो करउ अघारी चिंत हमारी जानिअ भगति न पूजा ॥ जो भव भय भंजन मुनि मन रंजन गंजन बिपति बरूथा । मन बच क्रम बानी छाड़ि सयानी सरन सकल सुरजूथा ॥

‌‌‌जिसने बिना किसी सहायक के विष्णु और शिव वह ब्रह्रमा का रूप धारण किया इस सृष्टि को पैदा किया ।वे तीनों प्रकार की सृष्टि को उत्पन्न करने वाले और पापों का नाश करने वाले भगवान हमारी सुधि लें ।हम न भक्ति जानते हैं न हम पूजा जानते हैं। मुनियों को आनन्द देने वाले और इस संसार की विपति ‌‌‌ को नष्ट करने वाले सब देवता भी मन कर्म और वचन से चतुराई आदि को छोड़कर भगवान की शरण मे आएं ।

सारद श्रुति सेषा रिषय असेषा जा कहुँ कोउ नहिं जाना । जेहि दीन पिआरे बेद पुकारे द्रवउ सो श्री भगवाना ॥ भव बारिधि मंदर सब बिधि सुंदर गुनमंदिर सुख पुंजा । मुनि सिद्ध सकलसुर परम भयातुर नमत नाथ पद कंजा ॥

‌‌‌सरस्वती ,वेद सम्पूर्ण श्रषि जिनको नहीं जानते हैं। जो दीन से प्रिय हैं । ऐसा वेद पुकार कर कहते हैं।वे श्री भगवान हम पर दया करें । सम्पूर्ण गुणों से युक्त  और आपके चरणों के अंदर सम्पूर्ण देवता भय से चरण कमलों के अंदर सदा ही नमस्कार करते हैं।

जानि सभय सुर भूमि सुनि बचन समेत सनेह ।

गगन गिरा गंभीर भइ हरनि सोक संदेह ॥

‌‌‌देवताओं को भयभीत जानकर स्नेह युक्त वचन सुनकर एक आकाशवाणी हुई ।हे मुनि और देवताओं डरों मत तुम्हारे लिए मैं राजा दशरथ के लिए जन्म लूंगा ।

‌‌‌इस प्रकार से यह देवताओं की स्तुति है आप इसको कर सकते हैं। और आपको चाहिए कि आप इसको रोजाना करें । सबसे पहले आप इसको नहा धो लें और उसके बाद करते जाएं । रोजाना जब आप इसको करेंगे तो आपकी गोद  सुनी हो ही नहीं सकती है। यह यह विष्णु के सहस्रनाम के तुल्य है। इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए ।

‌‌‌5.पुत्र प्रप्ति के लिए मंत्र

नन्दादि गोकुल त्राता दाता दारिद्रय भञ्जनः । सर्वमंगल दाता च सर्वकाम प्रदायकः ॥

‌‌‌उपर हमने आपको एक मंत्र दिया है। यह मंत्र आप किसी कमल गट्टे की माला लें और उसके बाद कल्पवृक्ष के नीचे 10 हजार बार जाप करें । दोस्तों माना जाता है कि यदि आप किसी कल्पवृक्ष के नीचे बैठकर मंत्र का जाप करते हैं तो उस मंत्र की शक्ति 10 गुना अधिक हो जाती है इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए ।

‌‌‌मंत्र का जाप करने के बाद उस वृक्ष की 108 बार परिक्रमां करें । और उसके बाद उस वृक्ष से मांगे कि हे वृक्ष देवता मैं आपकी शरण के अंदर आया हूं । मुझे पुत्र रत्न प्रदान करने की कृपा करें । ताकि मैं समाज के अंदर सिर उठाकर जी सकूं । और जब मुझे पुत्र हो जाएगा तो हम अपने पुत्र के बाल आपको अर्पण करेंगे।

‌‌‌इस तरह से आप कल्पवृक्ष से प्रार्थना कर सकते हैं। इसका फायदा यह होगा कि आपकी कामना फलित हो जाएगी । यह एक अच्छा उपाय है जिसको आप कर सकते हैं। इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए । और आप इस बात को अच्छी तरह से समझ सकते हैं।

‌‌‌6.गोपाल के सहस्रनाम का पाठ करना putra prapti ke liye gopal mantra

दोस्तों ऐसा माना जाता है कि यदि आप गोपाल के सहस्रनाम का पाठ करते हैं तो इससे पुत्र प्राप्त होता है। आप इसको इंटरनेट पर देख सकते हैं। यदि आपको यह इंटरनेट पर नहीं मिलते हैं तो उसके बाद आप इनको पुस्तक के अंदर देख सकते हैं। यदि आप उस पुस्तक को भी अपने घर पर लाकर ‌‌‌ पूजा करते हैं तो इस तरह के घर के अंदर पुत्र प्राप्त होता है और उसके बाद जिस घर के अंदर गोपाल के सहस्रनाम का पाठ होता है वहां पर भूत प्रेत वेताल आदि पहुंचते ही नष्ट हो जाते हैं। और घर के अंदर सुख शांति बनी रहती है। इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए । और आप इस बात को अच्छी तरह से समझ सकते हैं।

‌‌‌7.पुत्र प्राप्त करने के लिए मंत्र putra prapti ke liye krishna mantra

दोस्तों यदि आप पुत्र को प्राप्त करना चाहते हैं तो सबसे पहले इस प्रयोग को आपको श्री कृष्ण जन्माष्ठमी के दिन जाप करना होगा । सबसे पहले स्नान आदि करें और उसके बाद आपको पूरे दिन ही एक ही मंत्र का तब तक जाप करना होगा जब तक कि रात के 12 ना बज जाएं । यह मंत्र‌‌‌ एक ही दिन के अंदर सिद्ध हो जाता है। इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए । और आप इस बात को अच्छी तरह से समझ सकते हैं।उसके बाद एक बार जब मंत्र सिद्ध हो जाता है तो सबसे पहले पत्नी के कान के अंदर इस मंत्र को 108 बार बोले । और उसके बाद संबंध बनाएं । माना जाता है कि ऐसा करने से पुत्र की प्राप्ति ‌‌‌ हो जाती है इसके अंदर किसी तरह का संदेह नहीं करना चाहिए । यदि यह मंत्र आपने ठीक तरह से सिद्ध कर लिया तो उसके बाद यह काम अवश्य ही करता है आप इस बात को अच्छी तरह से समझ सकते हैं।

‌‌‌8.सर्वबाधा हरण मंत्र से पुत्र प्राप्त करना

दोस्तों यदि आपको पुत्र नहीं हो रहा है तो यह मंत्र भी काफी उपयोगी हो सकता है। इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए और आप इस बात को अच्छी तरह से समझ सकते हैं। यही आपके लिए सही होगा ।

मन्त्र – सर्वबाधा विनिर्मुक्तो धनधान्य सुतान्वितः । मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशयः ॥

‌‌‌दुर्गा शप्तशति कें अंदर देवी ने कहा  है कि जो इंसान शरत्काल के अंदर मेरी भक्ति करेगा उनको सभी प्रकार की कमामनाएं पूर्ण हो जाएंगी । इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए । उपर दिये गए मंत्र का आपको एक ही दिन के अंदर एक लाख बार जाप करना होगा । बस उसके बाद आपकी कामना पूर्ण हो जाएगी । आप इस बात ‌‌‌ को अच्छी तरह से समझ सकते हैं। और आप यदि सक्षम हैं तो इस प्रयोग को कर सकते हैं।

‌‌‌9.हवन से पुत्र प्रप्ति के उपाय

दोस्तों ऐसा माना जाता है कि शरत्काल मे अश्वनी मांस की रात्री के अंदर मां दुर्गा की पूजा होती है। मार्कण्डेय पुराण में वर्णित मूल दुर्गा सप्तशती पाठ अध्याय एक -तेरह के द्वारा नवचण्डी, शतचण्डी, सहस्रचण्डी, लक्षचण्डी हवन प्रयो – आश्विन मास की नवरात्रि में करें  तो ‌‌‌ इसकी वजह से पुत्र प्राप्त होता है। यदि आप एक हजार कमल पुष्पों का हवन करवा देते हैं तो इसकी वजह से भी पुत्र प्राप्त होता है। इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए कई लोग यह प्रयोग कर चुके हैं और उनको पुत्र प्राप्त हुआ है।

‌‌‌10.श्री सूक्तम का पाठ करना

दोस्तों यदि आप श्री सूक्तम का पाठ करते हैं तो इसकी वजह से भी आपको पुत्र प्राप्त हो सकता है इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए । और आप इस बात को समझ सकते हैं।

‌‌‌जब आप इसका पाठ करेंगे तो आपको दूध मावा और मिश्री से हवन करना होगा । जिससे कि काफी अधिक फायदा देखने को मिलेगा । इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए । और आप इस बात को समझ सकते हैं।यदि आप इसका पाठ करते हैं तो आपको न केवल पुत्र प्राप्त होगा वरन आपके यहां पर धन की भी किसी तरह से कमी नहीं होगी ।

‌‌‌इसके अलावा आप माता लक्ष्मी का व्रत भी कर सकते हैं। यह भी आपके लिए काफी अधिक फायदेमंद हो सकता है इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए । और आप इस बात को अच्छी तरह से समझ सकते हैं।

ॐ हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्ण रजतस्रजाम्। चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जात वेदो म आवह ॥ तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् । यस्यां हिरण्यं विन्देयं गाभश्वं पुरुषानहम्॥ अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनादप्रमोदिनीम् । श्रियं देवीमुप ह्वये श्रीर्मा देवी जुषताम् ॥

सह । गन्ध कां सोस्मितां हिरण्य प्राकारामार्द्रा ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम् । पद्मस्थितां पद्मवर्णां तामिहोप ह्वये श्रियम ॥ चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम् । तां पद्मिनीमीं शरणं प्रपद्ये अलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे ॥ आदित्यवर्णे तपसोऽधि जातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽथबिल्वः । तस्य फलानि तपसानुदन्तु या अन्तरा याश्च बाह्या अलक्ष्मीः ॥ उपैतु मां देवसखः कीर्तिश्च मणिना प्रादुर्भूतोऽस्मि राष्ट्रेऽस्मिन् कीर्तिमृद्धिं ददातु मे॥ क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठाम लक्ष्मीं नाशयाम्यहम् । अभूतिमसमृद्धिं च सर्वां निर्णुद मे गृहात ॥ द्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम् । ईश्वरीं सर्वभूतानां तामिहोपह्वये श्रियम् ॥ काममाकूतिं शीमहि । पशूनां रूप मन्तस्य मयि श्रीः श्रयतां यशः ॥ कर्दमेन भूता मयि सम्भव कर्दम । श्रियं वासय मे कुले मातरं पद्म मालिनीम् । आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वस में गृहे । नि च देवी मातरं श्रियं वासय मे कुले ॥ आर्द्रा पुष्करिणीं पुष्टिं पिङ्गलां पद्ममालिनीम् । चन्द्रां हिरण्यमयीं लक्ष्मी जातवेदो म आवह ॥ आर्द्रा यः करिणीं यष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम् । सूर्यां हिरण्यमयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह ॥

म आ यः तां वह जातवेदो लक्ष्मी मनपगामिनीम् । यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्वान् विन्देयं पुरुषानहम् ॥ शुचिः प्रयतो भूत्वा जुहुयादाज्यमन्वहम्। सूक्तं पञ्चदशर्चं च श्री कामः सततं जपेत् ॥ पद्मानने पद्मविपद्मपत्रे पद्मप्रिये पद्मदलायताक्षि । विश्वप्रिये विष्णुमनो ऽनुकूले त्वत्पादपद्मं मयि सनिधत्सव ॥

॥ पुत्र पौत्र तन्मे भजसि पद्माक्षि येन सौख्यं लभाम्यहम् ॥ अश्वदायि गोदायि धनदायि धनं धान्यं हस्त्यश्वाश्वतरी रथम् ॥ प्रजानां भवसि माता आयुष्मन्तं करोतु मे ॥ धनमग्निर्धनं वायुर्धनं सूर्यो धनं वसुः । धनमिन्द्रो बृहस्पतिर्वरुणो धनमश्विना ॥ वैनतेय सोमं पिब सोमं पिबतु वृत्रहा । सोमं धनस्य सोमिनो मह्यं ददातु सोमिनः ॥ न क्रोधो न च मात्सर्यं न लोभो ना शुभा मतिः । भवन्ति कृत पुण्यानां भक्त्यां श्रीसूक्त जापिनाम् ॥ सरसिजनिलये सरोजहस्ते धवलतरांशुक गन्धमाल्य शोभे । भगवति हरि वल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवन भूति करि प्रसीद मह्यम् ॥ विष्णुपत्नीं क्षमां देवीं माधवीं माधवप्रियाम् । लक्ष्मीं प्रिय सखीं भूमिं नमाम्यच्युत वल्लभाम्॥ महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णुपल्यै च धीमहि । तन्नो लक्ष्मी: प्रचोदयात्ः ॥ आनन्दः कर्दमः श्रीदश्चिक्लीत इति विश्रुताः । पद्मानने पद्मऊरू पद्माक्षि पद्म सम्भवे महा धने । धनं मे जुषतां देवि सर्व कामांश्च देहि मे । ऋषयः श्रियः पुत्राश्च ऋणरोगादि दारिद्रय श्रीर्देवीर्देवता मताः ॥ पापक्षुदपमृत्यवः । भय शोक मनस्तापा नश्यन्तु मम सर्वदा ॥

श्री वर्चस्वमायुष्य मारोग्यमाविधच्छोभमानं महीयते । धनं धान्यं पशुं बहुपुत्रलाभं शत संवत्सरं दीर्घमायुः । ॥

‌‌‌11.गणपति स्त्रोत का पाठ करना putra prapti ke liye ganesh mantra

दोस्तों यदि हम गणपति स्त्रोंत की बात करें तो यह भी पुत्र देने वाला माना जाता है इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए । यदि आपको कोई पुत्र नहीं है तो फिर आपको गणपति स्त्रोत का पाठ करना चाहिए । यह आपके लिए काफी अधिक फायदेमंद हो सकता है।

नमोऽस्तु गणनाथय सिद्धि बुद्धि युताय च । गुरूदराय गुरवे गोप्त्रे गुह्या सिताय ते। विश्व मूलाय भव्याय विश्व सृष्टि कराय ते । नमो नमस्ते सत्याय सत्य पूर्णाय शुण्डिने ॥ एक दन्ताय शुद्धाय सुमुखाय नमो नमः । प्रपन्न प्रणतार्तिविनाशिने  जनपालाय

। सर्वप्रदाय देवाय पुत्र वृद्धि प्रदाय च ॥गोप्याय गोपिता शेषभुवनाय चिदात्मने ॥शरणं भव देवेश संतति सुदृढां कुरू ।

भविष्यन्ति च ये पुत्रा मत्कुले गणनायक ॥ ते सर्वे तव पूजार्थे निरताः स्युर्वरो मतः । पुत्रप्रदमिदं स्तोत्रं सर्वसिद्धि सर्वसिद्धि प्रदायकम् ॥

‌‌‌सिद्धि बुद्धि सहित गणनाथ को नमस्कार करते हैं।जोकि पुत्र और बुद्धि को प्रदान करने वाले हैं। और देवताओं को सब कुछ देने वाले हैं।भारी पेट वाले लंबोदर जिनका स्वरूप तत्व गोपनिय है और समस्त भुवनों के रक्षक होते हैं।चिदात्मा आप गणपति को नमस्कार करते हैं।जो विश्व के मूल कारण कल्याण और ‌‌‌सत्यरूप और शुंडाकरी हैं आप गणेश को बारम्बार नमस्कार है।जिनके दांत और सुंदर मुख हैं वे अपने भगतों के कष्ट को हरने वाले हैं। इसके बारेमे आपको पता होना चाहिए ।आप मेरे लिए शरण दाता हो ।हे गणनायक मेरे कुल के अंदर पुत्र का जन्म हो और वे सदा आपकी पूजा के लिए तत्पर हो ।

‌‌‌और इसकी प्रयोग विधि बहुत ही सरल है। आपको सुबह नहा धो लेना है और उसके बाद गणेशजी की प्रतिमा के सामने कम से कम एक बार स्त्रोत का पाठ करना है।

‌‌‌12.पुत्र प्राप्ति के लिए बीज मंत्र

दोस्तों यदि आपके यहां पर पुत्र नहीं हो रहा है तो आप इस बीज मंत्र का प्रयोग कर सकते हैं यह आपके लिए काफी अधिक फायदेमंद हो सकता है। इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए । और आप इस बात को समझ सकते हैं।

‌‌‌आपको बतादें कि भगवान गणेश को विध्वन हरता माना जाता है अब आपके पास पुत्र नहीं है तो यह भी एक तरह से विध्वन है तो आप यह प्रयोग कर सकते हैं। इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए । और आप इस बात को समझ सकते हैं।

‌‌‌सबसे पहले गणेश चतुर्थी के दिन मंत्र का सवालाख जाप करें और उसके बाद 11 छोटे छोटे बच्चों को कुछ भी उनकी पसंद के अनुसार बांट दें । बस आपको यही करना है आपका काम हो जाएगा।  इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए । और आप इस बात को समझ सकते हैं।

पुत्र प्राप्ति हेतु गणपति बीज मन्त्र ॐ गं गणपतये नमः ।”

‌‌‌13.पुत्र प्राप्त करने के लिए गणपति मंत्र

वक्रतुण्ड महाकाय कोटि सूर्य समप्रभाः ।

निर्विघ्न कुरु मे देव सर्व कार्येषु सर्वदाः ॥

‌‌‌दोस्तों भगवान गणेश को विध्वन हर्ता के रूप मे माना जाता है तो आपको भगवान गणेश से यह प्रार्थना करनी है कि वे उनको पुत्र प्रदान कर उनके विध्वन को हरें ।उपर दिये गए मंत्र को 90 दिन के अंदर सवालाख बार जाप करना होता है। और उसके बाद दशांस हवन करवाना है ।उसके बाद 13 बच्चों को भोजन करवाएं । इसके ‌‌‌अंदर उनको मिठाई बांटनी चाहिए । जिससे कि मंत्र सिद्ध हो जाता है और आपको पुत्र प्राप्त होता है। इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए । और आप इस बात को समझ सकते हैं। इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए । और आप इस बात को समझ सकते हैं। और यही आपके लिए सबसे अधिक सही होगा ।

‌‌‌14.पुत्र प्राप्त करने के लिए हनुमान मंत्र

– कवन सो काज कठिन जग माहीं । जो नहिं होई तात तुम्ह पाही ॥

दोस्तों यदि आपके ईष्ट देव हनुमानजी हैं तो फिर आपके लिए यह मंत्र काफी अधिक उपयोगी हो जाता है। इसके बारे मे हम आपको यहां पर बताने वाले हैं। और इसकी मदद से आप पुत्र को प्राप्त कर सकते हैं तो आइए जानते हैं। इसके बारे मे ।

‌‌‌सबसे पहले पुत्र कामना रखने वाले पिता को सबसे पहले एक चोला चढ़ाना चाहिए और उसके बाद नीचे दिये गए मंत्र का 10 हजार बार जाप करना चाहिए । और फिर इस मंत्र को हनुमानजी के समक्ष रोजाना आपको जपते रहना चाहिए । यह आपके लिए काफी अधिक फायदेमंद होगा । इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए । और यही आपके ‌‌‌ लिए सबसे अधिक सही होगा । आप इस बात को समझ सकते हैं।

‌‌‌उसके बाद आपको हनुमानजी को प्रार्थना करनी है निवेदन करना है। इस चराचर जगत के अंदर आपके सिवाय कोई भी नहीं है। आप पर्वत को उठाकर लक्ष्मण के लिए प्रणा बचाने के लिए लेकर आ सकते हैं।विशाल समुद्र को लांघकर सीता का पता लगा सकते हैं।विशाल सूर्य को अपने मुंह के अंदर ले सकते हैं। और लंका को जला सकते । ‌‌‌आपके लिए मेरा कार्य बहुत ही छोटा है हे हनुमाजी आप मुझे पुत्र प्रदान करने की कृपा करें । यह आपके लिए बहुत ही आसान है।

कवन सो काज कठिन जग माहीं । जो नहिं होई तात तुम्ह पाहीं ॥

‌‌‌15,रूद्राभिषेक से पुत्र प्राप्ति प्रयोग

दोस्तों यदि आप भगवान शिव के भगत हैं और उसके बाद भी आपको पुत्र नहीं हो रहा है तो फिर आपको रूद्राभिषेक करना चाहिए । यह आपके लिए कई तरह से फायदेमंद होता है। इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए । और आप इस बात को समझ सकते हैं।

‌‌‌आपको बतादें कि रूद्राभिषेक कोई भी पंडित करवा सकता है। यदि आप किसी पंडित को जानते हैं तो इसके बारे मे आपको पता करना चाहिए । और वह जो निर्देश देता है आपको उसका पालन करना चाहिए ।

सहस्रधारा अभिषेक करना बहुत ही सरल होता है। इसके लिए आपको सबसे पहले एक तांबे का घड़ा बनाना है और उसके नीचे 1101 छिद्र को करना है और उसके बाद उसको शिवलिंग पर रख देना है। फिर इसके अंदर आपको पानी डालते रहना है । ज्ञानी पंडित मंत्रों का जाप करते रहेंगे । इस तरह से आपका काम होता रहेगा ।‌‌‌और जो शिवजी पर जल चढ़ रहा है उसको आपको एकत्रित करते रहना है।इस प्रकार पुत्र प्राप्ति हेतु भगवान शिवजी का एक बार सहस्र धारा अभिषेक कर लें। ऐसा करने से दम्पत्ति प्रारब्ध के समस्त पापों, दुःखों, आपदाओं तथा परेशानियों से मुक्त होकर पुत्र रत्न प्राप्त करने का हकदार अपने आप ही हो जाएंगे ।

‌‌‌और आपको बतादें कि रूद्राभिषेक के लिए आपको शिवमंदिर की तलास करनी होगी । और आपको पता ही है कि गांव गांव के अंदर आपको आसानी से शिवमंदिर मिल जाएंगे । आप वहां पर जा सकते हैं और उसके बाद पूजा कर सकते हैं। आपको बतादें कि रूद्राभिषेक किसी भी वजह से आप कर सकते हैं। इसकी मदद से सारे काम होते हैं। ‌‌‌आप इस बात को अच्छी तरह से समझ सकते हैं। इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए । और आपके लिए यही सही होगा ।

‌‌‌16.पुरूष सूक्तम प्रयोग करना

दोस्तों आपको बतादें कि यदि आप पुत्र प्राप्त करना चाहते हैं तो इसके लिए पुरूष सूक्तम आपके लिए काफी उपयोगी हो सकता है। इसके लिए सबसे पहले भगवान कृष्ण की छोटी सी चांदी की मूर्ति बनाएं और उसके बाद 11 बार पंचाअमृत के द्धारा अभिषेक करें और फिर दोनों पति और पत्नी ‌‌‌ उस प्रसाद को ग्रहण कर लेना चाहिए । यह एक तरह से अच्छा उपाय है ।इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए ।

सहस्रशीर्षा पुरुष सहस्राक्षः सहस्रपात् । स भूमि सर्वत स्मृत्वाऽत्यतिष्ठ दशाङ्गुलम् ॥

‌‌‌इस समस्त दुनिया के अंदर परमात्मा के  हजारों सिर, हजारों आँखें और सहस्रों पैर हैं । इनके अनन्त सिर और इंद्रियों से मिलकर नाभि से दश अंगुल नीचे हर्ट से जुड़ता है। इसकी मदद से जीव का संचालन होता है।

पुरुष एवेद सर्व यद्भूतं यच्च भाव्यम् । उतामृतत्व स्येशानो यदन्नेनाति रोहति ॥

इस समस्त संसार के अंदर जो कुछ भी हो रहा है या जो होने वाला है या जो हो चुका है वह सब उस विराट पुरूष का ही अवयव है। प्रत्येक जीव देहधारी होकर उसी अंश रूप मे रहते हैं और परमात्मा ही जीव रूप मे कर्म बंधन के अंदर फंस कर ‌‌‌जन्म मरण के चक्र को धारण करता है इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए । और आप इस बात को अच्छी तरह से समझ सकते हैं।

एतावानस्य महिमातो ज्यायांश्च पूरुषः । पादोऽस्य विश्वा भूतानि त्रिपादस्या मृतं दिवि ॥

दृश्य जगत का चौथा दृश्य तत्व सीधे इस मानव से जुड़ा नहीं है, लेकिन विभूति शब्द का अर्थ है “पूर्ण महिमा।” भूतकाल और भविष्यकाल के विषय में यह जगत् सर्वथा दृष्टिगोचर होता है। अपने तीन चरणों ऋग्यजुः, साम या भूर्भुवः स्वः से प्रत्यक्ष रूप से यह अमृतरूपी परमात्मा प्रकट होता है।

त्रिपादूर्ध्व उदैत्पुरुषः पादोऽस्येहा भवत् पुनः । ततो विष्वङ् व्यक्रामत्सा शनानशने अभि॥

भूर्भुवः स्ववः  से परे इस संसार से परे रहने वाला वह पुरूष अज्ञान रूप से अलग इस संसार मे निर्विकार रहकर ब्रह्मरूप है। और उसकी माया से ही यह संसार बनता है और लीन होता रहता है।वह पुरूष अनेक रूपों वाला और अनेक रूप से द्रष्टिगोचर होता है। आप इस बात को समझ सकते हैं।

ततो विराडजायत विराजो अधि पूरुषः । स जातो अत्यरिच्यत पश्चाद् भूमि मथो पुरः ॥

‌‌‌वह अपनी माया से विराट् ब्रह्माण्ड  को बनाकर उसी रूप मे हो गया । उसने अपनी माया से देह को बनाया और देहा भिमानी हो गया ।और उसके बाद उसने पुष्ट उत्पन्न करने वाले संसार को बनाया ।

तस्माद्य ज्ञात्सर्वहुत: सम्भृत पृषदाज्यम् । पशूंस्तांश्चक्रे वायत्या नारण्या ग्राम्याश्च ये ॥

उसके बाद उस पुरुषात्मा ने यज्ञ द्वारा दही मिश्रित घी पैदा किया और उसके बाद इंद्रयी को बनाया गया और फिर देवताओं को बनाया गया । और पशुओं को पैदा किया इस प्रकार से इस संसार का विस्तार किया गया ।

हुआ तस्माद्य ज्ञात्सर्वहुत ऋचः सामानि जिज्ञरे । छन्दा सि जज्ञिरे तस्माद्य जुस्तस्माद जायत ॥

उस सर्वहुत नाम यज्ञ के पश्चात् ‘ऋग्वेद’ और ‘सामवेद ‘ प्रकट हु

उसी के साथ उस यज्ञ से विभिन्न प्रकार के गायत्री आदि छन्द उत्पन्न किये ।

प्रकट हुआ तस्मा दश्वा अजायन्त ये के चोभयादतः । गावो ह जज्ञिरे तस्मात्तस्माज्जाता अजावयः ॥

उसी पुरूष यज्ञ से अश्व पैदा हुए और दांत वाले जीव भी उसी से पैदा हुए । उसके बाद भेड बकरियां भी उसी से पैदा हुई आप इस बात को समझ सकते हैं।

तं यज्ञं बर्हिषि प्रौक्षन् पुरुषं जातमग्रतः तेन देवा अयजन्त साध्या ऋषयश्च ये ॥

सबसे पहले यज्ञ से उत्पन्न पुरूष यज्ञ यूप से बंधा हुआ पशु के समान ही था।सृष्टि से पहले उत्पन्न हुए प्रजापति, साध्य देवता एवं मन्त्र द्रष्टा ऋषियों ने प्रौक्षणादि संस्कारों से कालानुसार मानस यज्ञ सम्पन्न किया ।

यत्पुरुषंव्ययधुः कतिधा व्यकल्पयन्। मुखं किमस्यासीत् किं बाहू किमुरू पादा उच्येते ॥

उस समय प्राणस्वरूप देवता तथा साध्यगण विराट् पुरुष को स्वसंकल्प से प्रकट होते देखकर प्रसन्न हुए और उसका वर्णन करने लगे । जैसे पेट क्या था ? भुजा क्या थी और पैर क्या थे ।

ब्राह्मणोऽस्य मुखमासीद् बाहू राजन्यः कृतः । उरू तदस्य यदवैश्यः पद्भ्या शुद्रो अजायत ॥

और आपको बतादें कि उस विराट पुरूष का मुख ब्राहमण हुआ मऔर हाथ क्षत्रिय हुए, जंघा और पेट वैश्य हुआ तथा पैर शूद्र हुए  । इस तरह से यह चारों साधन हो गए ।

चन्द्रमा मनसो जातश्चक्षोः सूर्यो अजायतः ।

श्रोत्राद्वायुश्च प्राणश्च मुखादग्निरजायत॥

उस विराट पुरूष के मन चंद्रमा कान वायु और मुख आग आंख सूर्य हुई।और आग से देवता प्रकट हुए ।

नाभ्यां आसीदन्तरिक्ष शीष्ण द्यौः समवर्तत ।

पद्भ्यां भूमिर्दिशः श्रोत्रात्तथा लोकां अकल्पयन्॥

‌‌‌उसके बाद विराट पुरूष के नाभि से आकाश , सिर से स्वर्ग और कानों से दिशाएं और पैरों से धरती आदि प्रकट हुए आप इस बात को समझ सकते हैं और इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए । और यही आपके लिए सही होगा ।

यत्पुरुषेण हविषा देवा यज्ञ मतन्वत । वसन्तो ऽस्यासीदाज्यं ग्रीष्म इध्मः शरद्धवि ॥

सृष्टि काल में जब सबसे पहले देवताओं का शरीर उत्पन्न हुआ, तब उस परमात्मा ने बाह्य द्रव्यों के अभाव में मानसिक यज्ञ की कामना करके पुरुषाख्य हवि द्वारा उस मानसिक यज्ञ में हवन किया।

सप्तास्यासन् परिधर्यास्त्रः सप्त समिधः कृताः । देवा यद्यज्ञं तन्वाना अब्धनन् पुरुषं पशुम् ॥

उस मानसिक यज्ञ वेदी के गायत्री आदि सातों छन्द परिधि के रूप में

थे । ऐष्टिक आवहनीय की तीन, उत्तर वेदी की तीन तथा आदित्य आदि मिलकर २१ समिधा, सात परिधियाँ और सप्त सागर आदि सभी रूप थे । इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए ।

यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन् । तेह नाकं महिमानः सचन्त यत्र पूर्वे साध्याः सन्ति देवा ॥

और उसके बाद देवताओं ने प्राण स्वरूप उस पुरूष को यज्ञ आदि से प्रसन्न किया और उसके बाद वे साक्षत धर्म स्वरूप हैं इसलिए साधक स्वर्ग प्राप्त करने के लिए यज्ञ करें ।

अदभ्यः सम्मृतः पृथिव्यै रसाच्च विश्वकर्मण: समवर्तमाग्रे । तस्य त्वष्टा विदधद्रूपमेति तन्मर्त्यस्य देवत्व माजानमग्रे ॥

रस को धारण किए हुए सूर्य उदय होता है । वह रस जगन्निर्माणेच्छा पूर्वक काल का सर्वप्रथम ‘प्रेमरस’ कहलाया । काल के प्रसन्न होने से फल देने वाला कर्म देव भी पैदा हो गया । वही कर्म देव सृष्टि के आदि के अंदर पैदा हुआ था। मानव सृष्टि से पूर्व ही सूर्य देवता उत्पन्न थे। कर्मदेव से जानदेव श्रेष्ठ हैं

वेदाहमेतं पुरुषं महान्तमादित्य वर्णं तमसः परस्तात् । तमेव विदित्वाति मृत्युमेति नान्यः पन्था विद्यतेऽय नाय ॥

मैं उस आदित्य स्वरूप को अच्छी तरह जानता हूँ जो अनुपम, अद्वितीय और अन्धकार तथा अज्ञानादि से परे होता है। इस तरह से यह जानकर मौत को भी जीत लिया गया है।‌‌‌इसके अलावा मुक्त होने का कोई दूसरा मार्ग नहीं है आप इस बात को अच्छी तरह से समझ सकते हैं।

प्रजापतिश्चरति गर्भे अन्तरजाय मानो बहुधा विजायते । तस्य योनिं परिपश्यन्ति धीरा तस्मिन् हतस्क्षुर्भुवनानि विश्वा ॥

‌‌‌आपको बतादें कि वह विराट परमात्मा समस्त जीवों के अंदर और बाहर रहता है। इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए ।और धीर पुरूष परमात्मा को नहीं जानते हैं और देखते हैं कि मैं कौन हूं और यह जानते ही हैं कि मैं ही ब्रह्रम हूं । और इस प्रकार के पुरूष के अंदर समस्त विश्व व्याप्त है।

यो देवेभ्य आतपति यो देवानां पुरोहितः । पूर्वो यो देवोभ्यो जातो नमो रुचाय ब्राह्मये ॥

जो देवताओं के अग्रणी होकर पुरोहित के समान कल्याणकारी है, जो सबसे पहले अग्नि रूप में द्रव्य ग्रहण करते हैं तथा जो देवताओं से पहले उत्पन्न हुए । सुंदर सूर्य देव को मैं प्रणाम करता हूं ।

रूच बाह्य जनयन्तो देवाअग्रे तदब्रुवन । यस्त्वैवं ब्राह्मणो विद्यां चस्य देवा असन् वशेः ॥

म श्रीश्च ते लक्ष्मीश्च पतन्या वहोरात्रे पार्श्वे नक्षत्राणि रूप मश्विनौ व्यात्तम् । इष्णन्नि षाणामुं म इषाण सर्वलोकं इषाण ॥

हे सूर्यदेव, जो ब्राह्मण उपरोक्त विधि से आपको प्रकाशमय जानता है और प्रतिदिन आपकी पूजा करता है, वह संसार में सबके द्वारा पूजित होता है क्योंकि उस दिव्य पुरुष के ज्ञान से ब्रह्मादि देवता भी उस साधक की मनोकामना पूरी करते हैं। हे आदि देव आप तेज रूवरूप हैं लक्ष्मी आपकी पत्नी है। रात और दिन दोनों ही ‌‌‌ आपके पास हैं। और नक्षत्र मंडल आपके सामने नहीं चमकते हैं।और आपकी इच्छा से ही सभी इच्छाएं पूरी होती है।

पुरुष सूक्तं मन्त्र से दूध, दही, शक्कर, शहद एवं घी पंचामृत से भगवान् श्रीकृष्ण का अभिषेक करें। अभिषेक में 11 बार पुरुष सूक्तं के उक्त श्लोकों का उच्चारण करते जायें। और उसके बाद  पंचामृत  को चढ़ाया जाए और पुत्र की कामना की जाए तो पुत्र पैदा होगा । यदि आपको यह तरीका सरल लगता है तो आप प्रयोग कर सकते ‌‌‌ हैं।

‌‌‌17.विष्णु के सहस्रनाम का जाप करना

दोस्तों यदि आपको पुत्र चाहिए तो आपको विष्णु के सहस्रनाम का रोजाना जाप करना चाहिए । और इससे अभिमंत्रित जल को पीना चाहिए । ऐसा माना जाता है कि ऐसा करने से पुत्र ही पैदा होता है। यदि आप पुत्र चाहते हैं तो यह आपके लिए काफी अच्छा उपाय हो सकता है इसके बारे ‌‌‌ मे आपको पता होना चाहिए । और आप इस बात को समझ सकते हैं। और यही आपके लिए सबसे अधिक सही होगा ।

‌‌‌18.ब्रह्रस्पति के उपाय

दोस्तों आमतौर पर कुछ लोगों की कुंडली देखने से यह पता चलता है कि उनकी कुंडली के अंदर ब्रह्रस्पति काफी निर्बल होता है। इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए । या फिर वह पाप ग्रह की द्रष्टि के अंदर होता है। इसकी वजह से पुत्र पैदा नहीं हो पाता है। ऐसी स्थिति के अंदर आपको ‌‌‌चाहिए की ब्रह्रस्पति ग्रह से जुड़े मंत्र का जाप करें । ऐसा करने का फायदा यह होगा कि यह ग्रह मजबूत हो जाएगा । और आपको पुत्र  प्राप्त होगा । यह एक अच्छा उपाय है जिसको आप कर सकते हैं। और इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए । आप इस बात को समझ सकते हैं। और यही आपके लिए सबसे अधिक सही होगा ।‌‌‌आपको नीचे दिये गए मंत्र से किसी एक मंत्र का जाप हर ब्रस्पतिवार को करना चाहिए।  इससे आपको काफी अधिक फायदा होगा और आप इस बात को समझ सकते हैं। और यही आपके लिए सबसे अधिक सही होगा ।

क. बृहस्पति वैदिक मन्त्र

ॐ यद्वीदयच्छवस ऋत प्रजातत दस्मासु द्रविणं धेहि चित्रम् ॥ ख. बृहस्पति गायत्री मन्त्र

यदर्योऽअर्हाद्युमद्विभातिक्रतुमज्जनेषु ।

ॐ आंगिरसाय विद्महे दिव्य देहाय धीमहि तन्नो जीवः प्रचोदयात्

बृहस्पति एकाक्षरी बीजमन्त्र

ॐ बृं बृहस्पतये नमः ।

बृहस्पति तांत्रिक मन्त्र

ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरवे नमः ।

बृहस्पति नमस्कार मन्त्र

ॐ देवानां च ऋषीणां च गुरुं काञ्चन सन्निभम् । बुद्धिभूतं त्रिलोकेशं तं गुरुं प्रणमाम्यहम् ॥

‌‌‌19.बृहस्पति कवच का पाठ करना

दोस्तों यदि आप पुत्र को प्राप्त करना चाहते हैं तो फिर आपको बृहस्पति कवच का पाठ करना चाहिए । यह आपके लिए काफी अधिक फायदेमंद होता है। इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए और आप इस बात को अच्छी तरह से समझ सकते हैं।

अस्य श्री बृहस्पति कवच स्तोत्रं मंत्रस्य ईश्वर ऋषि; अनुष्टुप् छन्दः बृहस्पतिर्देवता, गं बीजं, श्री शक्ति; क्लीं कीलकं, बृहस्पति प्रीत्यर्थं जपे विनियोगः ॥

ॐ अभीष्ट फलदं देवं सर्वज्ञं सुर पूजितम् । अक्षमालाधरं शांतं प्रणमामि बृहस्पतिम्॥ बृहस्पतिः शिरः पातु ललाटे पातु मे गुरुः । सुरगरुः पातु नेत्रे मेऽभीष्टदायकः ॥ जिह्वां पातु पातु सुराचार्यो नासां मे वेदपारगः । मुखं मे पातु सर्वज्ञो कंठं मे देवता गुरुः ॥ भुजा वांगिरसः पातु करो पातु शुभप्रदः । स्तनौ मे पातु वागीशः कुक्षि में शुभलक्षणः ॥ नाभिं देवगुरुः पातु मध्यं पातु सुखप्रदः । कटिं पातु जगद्वंद्य ऊरू मे पातु वाक्पतिः ॥ जान जंघे सुराचार्यो पादौ विश्वात्मकस्तथा । अन्यानि यानि चांगानि रक्षेन्मे सर्वतो गुरु ॥ इत्येतत्कवचं दिव्यं त्रिसंध्यं यः सर्वान्कामानवाप्नोति सर्वत्र विजयी पठेन्नरः । भवेत्॥

‌‌‌20.पुत्र प्राप्त करने के लिए गुरू के 108 नाम

दोस्तों यदि आप पुत्र प्राप्त करना चाहते हैं तो फिर आपको गुरू के 108 नामों का जाप करना चाहिए । यह आपके लिए काफी अधिक फायदेमंद होता है। आप इस बात को समझ सकते हैं। और यही आपके लिए सबसे अधिक सही होगा ।

  • १७. ॐ जेत्रे नमः
  • १८. ॐ अव्ययाय नमः
  • १९. ॐ गुरुणां गुरवे नमः
  • २०. ॐ गुणवतां श्रेष्ठाय नमः
  • २१. ॐ गुणिने नमः
  • २२. ॐ गोपति प्रियाय नमः
  • २३. ॐ गोचराय नमः
  • २४. ॐ गोरत्रे नमः
  • १. ॐ अनन्ताय नमः
  • २. ॐ जयावहाय नमः
  • ३. ॐ आङ्गिरसाय नमः
  • ४. ॐ विविक्ताय नमः
  • ५. ॐ अध्वराभक्ताय नमः
  • ६. ॐ वाचस्पतये नमः
  • ७. ॐ वरिष्ठाय नमः
  • ८. ॐ वश्याय नमः
  • ९. ॐ श्रीमते नमः
  • १०. ॐ वशिने नमः
  • ११. ॐ अध्वर कृत्पराय नमः
  • १२. ॐ चित्त शुद्धिकराय नमः
  • १३. ॐ वाग्विचक्षणाय नमः
  • १४. ॐ जीवाय नमः
  • १५. ॐ जयक्षय नमः
  • १६.. ॐ जयन्ताय नमः
  • २५. ॐ गुणाकराय नमः
  • २६. ॐ गुरवे नमः
  • २७. ॐ चैत्राय नमः
  • २८. ॐ बृहद्रथाय नमः
  • २९. ॐ चित्रशिखण्डिजाय नमः
  • ३०. ॐ बृहद्भानवे नमः
  • ३१. ॐ बृहस्पते नमः
  • ३२. ॐ अभीष्टदाय नमः
  • ६६. ॐ पुष्प रागमणि मण्डिताय नमः
  • ३३. ॐ सुराचायाय नमः
  • ६१. ॐ हेमाङ्गदाय नमः
  • ३४. ॐ सुराराध्याय नमः
  • ६२. ॐ हेमवपुषे नमः
  • ३५. ॐ सुरकार्य कृतोद्यमाय नमः
  • ६३. ॐ हेमभूषण भूषिताय नमः
  • ३६. ॐ गीर्वाणपोषकाय
  • नमः ६४. ॐ पुष्पनाथाय नमः
  • ३७. ॐ धन्याय नमः
  • ६५. ॐ पुष्परागमणि मण्डन प्रियाय नमः
  • ३८. ॐ गीष्पतये नमः
  • ३९. ॐ गिरीशाय नमः
  • ६७. ॐ अङ्गिरः कुलभूषणाय नमः
  • ४०. ॐ अनघाय नमः
  • ६८. ॐ काशपुष्प समानाभाय नमः
  • ४१. ॐ धीवराय नमः
  • ६९. ॐ असमान बलाय नमः
  • ४२. ॐ धिषणाय नमः
  • ७०. ॐ ऋक्षराशिभार्ग प्रचारवते नमः
  • ४३. ॐ दिव्य भूषणाय नमः
  • ७१. ॐ सदानन्दाय नमः
  • ४४. ॐ देव पूजिताय नमः
  • ७२. ॐ सत्यसंधाय नमः
  • ४५. ॐ धनुर्धराय नमः
  • ७३. ॐ सत्यसंकल्पमानसाय नमः
  • ४६. ॐ दैत्यहन्त्रे नमः
  • ७४. ॐ ब्राह्मणेशाय नमः
  • ४७. ॐ दयासाराय नमः
  • ७५. ॐ सामनाधिकनिर्भुक्ताय नमः
  • ४८. ॐ दयाकराय नमः
  • ७६. ॐ सर्वदातुष्टाय नमः
  • ४९. ॐ दारिद्रय नाशनाय नमः
  • ५०. ॐ धन्याय नमः
  • ५१. ॐ देवाय नमः
  • ५२. ॐ धनुर्मीनाधिपाय नमः
  • ५३. ॐ दक्षिणायनसंभवाय नमः
  • ५४. ॐ धनुर्बाणधरायय नमः
  • ५५. ॐ हरये नमः
  • ५६. ॐ धीमते नमः
  • ५७. ॐ अङ्गिरोवर्षसंजाताय नमः
  • ५८. ॐ सिन्धु देशाधिपाय नमः
  • ५९. ॐ स्वर्णकायाय नमः
  • ६०. ॐ चतुर्भुजाय नमः
  • ७७. ॐ लोकत्रय गुरवे नमः
  • ७८. ॐ सुरासुरगन्धर्ववन्दिताय नमः
  • ७९. ॐ दयावते नमः
  • ८०. ॐ इन्द्राद्यमरसंघाय नमः
  • ८१. ॐ सत्त्व गुणसंपद्विभावसवे नमः
  • ८२. ॐ भूसुराभीष्टदाय नमः
  • ८३. ॐ भूरियशसे नमः
  • ८४. ॐ पुण्यविवर्धनाय नमः
  • ८५. ॐ धर्मरूपाय नमः
  • ८६. ॐ धनाध्यक्षाय नमः
  • ८७. ॐ धर्मपालनाय नमः
  • ८८. ॐ सर्ववेदार्थतत्त्वज्ञाय नमः
  • ८९. ॐ सर्वापद्विनिवारकाय नमः
  • ९०. ॐ सर्वपापप्रशमनाय नमः
  • ९१. ॐ स्वमतानुगताभराय नमः
  • ९२. ॐ ऋग्वेदपारगाय नमः
  • ९३. ॐ सर्वागमज्ञाय नमः
  • ९४. ॐ सर्वज्ञाय नमः
  • ९५. ॐ सर्व वेदान्तविदे नमः
  • ९६. ॐ ब्रह्म पुत्राय नमः
  • ९७. ॐ ब्रह्मविद्या विशारदाय नमः
  • ९८. ॐ सर्वलोकवंशवदाय नमः
  • ९९. ॐ सर्वतो विभवे नमः
  • १००. ॐ सर्व शुभलक्षणाय नमः
  • १०१. ॐ सत्यभाषगाय नमः
  • १०२. ॐ सर्वेशाय नमः
  • १०३. ॐ सर्वाभीष्टदायकाय नमः
  • १०४. ॐ देवानां नमः
  • १०५. ॐ ऋषीणां नमः
  • १०६. ॐ बुद्धिभूतं नमः
  • १०७. ॐ त्रिलोकेशं नमः
  • १०८. ॐ पुत्रदाताय नमः

‌‌‌21.पुत्र प्राप्त करने के लिए आम का प्रयोग

‌‌‌यदि आप नीचे दिये गए मंत्र को आम के पेड़ पर बैठ कर जाप करते हैं । आपको सवालाख बार जाप करना है। ऐसा करने से आपको पुत्र प्राप्त होगा । आप इस बात को समझ सकते हैं। यदि आपके यहां पर कोई आम का पेड़ नहीं है तो आम की लकड़ी के पटटे पर बैठकर आप इस मंत्र का जाप कर सकते हैं। ऐसा करने से ‌‌‌ आपको पुत्र ही प्राप्त होगा । यह एक अच्छा उपाय है जिसका प्रयोग आप कर सकते हैं। इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए । और आप इस बात को समझ सकते हैं।

” ॐ ह्रां ह्रीं हूं पुत्रं कुरू कुरू स्वाहा । “

‌‌‌22.खीर से पुत्र प्राप्त करना

दोस्तों आपको बतादें कि यह मंत्र भी काफी उपयोगी होता है और आप इसका प्रयोग कर सकते हैं। इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए ।नवरात्री के दिन राम की उपासना करते हुए 108 बार नीचे दिये गए मंत्र का जाप करें । और उसके बाद विजय दशमी के दिन आपको गंगा स्नान करके 11 बार मंत्र ‌‌‌ का जाप करें और कोढ़ियों को गन्ने के रस से बनी खीर को खिलाएं । ऐसा करने से आपको पुत्र  प्राप्त होगा । आप इस बात को अच्छी तरह से समझ सकते हैं। और यही आपके लिए सबसे अधिक सही होगा ।

मंगल मूरति मारुति नंदन । सकल अमंगल मूल निकंदन ॥ कवन सो काज कठिन जग माहीं। जो नहिं होय तात तुम्ह पाही ॥ कहइ रीछपति सुनु हनुमाना । का चुप साधि रहेउ बलवाना ॥ पवन तनय बल पवन समाना । बुद्धि बिवेक बिग्यान निधांना ॥ कोमल चित कृपालु रघुराई । कपि केहि हेतु धरि निठुराई ॥ जो प्रसन्न मोपर मुनिराई । पुत्र देहु बल में अधिकाई ॥ जबहि पवनसुत यह सुधिपाई । चले हृदय सुमिर रघुराई ॥ राम कीन्ह चहहि सोई होई । करै अन्यथा अस नहिं कोई॥

पुरबहु मैं अभिलाष तुम्हारा । सत्य – सत्य प्रण सत्य हमारा ॥ जेहि विधि प्रभु प्रसन्न मन होई । करुणासागर कीजै सोई ॥ चरण कमल बन्दउँ तिनकेरे । पुरबहु सकल मनोरथ मेरे ॥ देखि प्रीति सुनि बचन अमोले । एवमस्तु करुणानिधि बोले ॥ दशरथ पुत्र जन्म सुनि काना । मानहुँ ब्रह्मानन्द समाना ॥ जाकर नाम सुनत शुभ होई । मोरे गृह आवो प्रभु सोई॥ प्रभु की कृपा भयहु सब काजू । जन्म हमार सुफल भा आजू ॥

‌‌‌23.मासिक धर्म की पीड़ा को कम करने का मंत्र

दोस्तों यदि किसी स्त्री को अधिक मासिक धर्म की पीड़ा हो रही है तो आपको दिये गए मंत्र से पान को 11 बार अभिमंत्रित करना होगा और उसके बाद उस स्त्री को इसको खिलादेना होगा जिसको पीड़ा हो रही है। बस उसके बाद आपका काम हो जाएगा । आप इस बात को समझ सकते ‌‌‌ हैं। और यह एक अच्छा उपाय है। यदि किसी महिला को मासिक धर्म की अधिक पीड़ा होती है तो यह उपाय एक तरह से अच्छा है।

‘आदेश श्री रामचन्द्र, सिद्ध गुरु को तोडू गांठ, औगाँठा लो तोड़ दूँ लाय, तोड़ देऊँ सरित परित देकर पाय, यह देखकर हनुमन्त दौड़कर आय, (अमुकी) की देह शान्त हो जाय पीरा दे भगाये। श्री गुरु नरसिंह की दुहाई आदेश आदेश आदेश ॥”

‌‌‌24.गर्भपात को रोकने के लिए मंत्र

‌‌‌नीचे दिये गए मंत्र की मदद से किसी लाल धागे को 11 बार मंत्रित करें और उसके बाद किसी गर्भवति स्त्री की कमर के अंदर आपको बांध देना होगा । इससे पहले धागे को धूप दीप करके ही आपको बांधना होगा । इससे आपको काफी अधिक फायदा होगा । आप इस बात को समझ सकते हैं।

ॐ नमः आदेश गुरु को ।

ॐ नमः आदेश अंग में बाँधि राख । नृसिंह यती भोसते बाँधि राख । श्री गोरखनाथ काँखते बाँधि राख । हपूलिका राजा सुण्डों से बाँधि राख । दृढ़ासन देवी यह मन पवन काया को राखा ।

थमे गर्भ ओ बाँधे घाव ।

थामै माता पार्वती यह गंडो बाँधू ईश्वर यती।

जब लग डाँडो कट पर रहे।

तब लग गर्भ काया में रहे।

फुरो मन्त्र ईश्वरो वाचा ।

‌‌‌25.गर्भ की सुरक्षा के लिए मंत्र का प्रयोग

दोस्तों यदि आपकी गर्भ की सुरक्षा नहीं हो रही है तो फिर आपको यह मंत्र प्रयोग करना चाहिए । यह आपके लिए काफी अधिक फायदेमंद होता है आप इस बात को समझ सकते हैं।इसके लिए काले धागे या फिर काले सूत को मंत्र से 31 बार मंत्रित करके कमर के अंदर बांध देना होगा। ‌‌‌बस उसके बाद आपको करना यह है कि गर्भ नहीं गिरेगा  यह एक अच्छा उपाय है जिसका प्रयोग आप कर सकते हैं। इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए । और आप इस बात को समझ सकते हैं। और यही आपके लिए सबसे अधिक अच्छा होगा ।

गभ ॐ नमो गंगा डाकरे गोरख बलाय ।

धीपर गोरख यती पूजा जाये ।

जयद्रथ पुत्र ईश्वर की माया ।

‌‌‌26.गर्भ रक्षा के लिए मंत्र

गर्भ रक्षा के लिए मंत्र

दोस्तों यदि किसी स्त्री का गर्भ बार बार गिर जाता है तो आप यह प्रयोग कर सकते हैं। इसके लिए आपको चाहिए कि आप मंत्र से धागे को अभिमंत्रित करने के बाद नो बार धूप दीप दें और स्त्री के कमर के अंदर आपको बांध देना है। ऐसा करने से गर्भ की रक्षा होती है आप इस बात को समझ ‌‌‌ सकते हैं और यही आपके लिए सबसे अधिक सही होगा । इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए ।

ओं नमो आदेश गुरु का हनुमन्त वीर ।

बाँध बाँध हनुमन्ता वीर मास एक बाँधू । ।

मास दोइ बाँधू, मास तीन बाँधू ।

गम्भीर धूजे धरती बँधावे धीर । मास सात बाँधू, मास आठ बाँधू, मास नौ बाँधू ।

मास चार बाँधू, मास पाँच बाँधू, मास छः बाँधू ।

‘अमुकी’ गर्भ गिरे नहीं।

ठाँह को ठाँह रहे, ठाँह का ठाँह न रहे ।

मेरा बाँधा बंध छटे तो ईश्वर महादेव गोरखनाथ । जती हनुमन्त वीर लाजें मेरी भक्ति गुरु की शक्ति ।

फुरो मन्त्र ईश्वरो वाचा ।

‌‌‌27.मासिक धर्म के कष्ट निवारण के लिए

यदि किसी स्त्री को मासिक धर्म की वजह से काफी अधिक कष्ट हो रहा है तो यह प्रयोग करना चाहिए।  इसके लिए मंत्र का जाप मूल नक्षत्र के अंदर रात को 12 बजे करें और कागज पर लिखकर ताबीज बनाकर बांधें फायदा होगा ।

अथ – कृत्वां नी कृत्वा नी हीं – किम-हीं-किम । हीं – भीं- किम-हीं-किम गुरु गोरखनाथ की दुहाई ॥

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arif khan

‌‌‌हैलो फ्रेंड मेरा नाम arif khan है और मुझे लिखना सबसे अधिक पसंद है। इस ब्लॉग पर मैं अपने विचार शैयर करता हूं । यदि आपको यह ब्लॉग अच्छा लगता है तो कमेंट करें और अपने फ्रेंड के साथ शैयर करें ।‌‌‌मैंने आज से लगभग 10 साल पहले लिखना शूरू किया था। अब रोजाना लिखता रहता हूं । ‌‌‌असल मे मैं अधिकतर जनरल विषयों पर लिखना पसंद करता हूं। और अधिकतर न्यूज और सामान्य विषयों के बारे मे लिखता हूं ।