महाभारत के 5 सबसे शक्तिशाली योद्धा जो महाभारत को रोक सकते थे

महाभारत के 5 सबसे शक्तिशाली योद्धा – दोस्तों आप महाभारत के बारे मे जानते ही होंगे ।और आपको यह भी पता होगा की महाभारत का युद्व बहुत बड़ा था । जिसके अंदर लगभग 1 अरब लोगों की मौत हो गई थी। लेकिन  महाभारत के 5 सबसे शक्तिशाली योद्धा भी थे और उनके पास वास्तव मे अदभुत पॉवर थी। सबसे बड़ी बात तो यह रही कि कौरव लोग क्रष्ण के छल के चलते ‌‌‌अपने पॉवर का सही सही उपयोग कर ही नहीं पाये । यदि क्रष्ण ने इस युद्व के अंदर छल नहीं किया होता तो अधर्म की धर्म पर विजय हो जाती । ‌‌‌लेकिन क्रष्ण ने अपनी माया से बस पांडवों को चकनाचूर कर दिया था। और अधर्म पर धर्म को विजय किया था।

‌‌‌यदि एक नजर से हम इस युद्व को देखें तो यह हमे एक प्रेरणा देता है। और हमेशा से देता रहेगा । आज महाभारत के युद्व और रामायण ने यह साबित किया है कि जो लोग गलत कर्म करते हैं उनको भगवान सजा देता है। ‌‌‌बहुत से लोग सिर्फ धर्म के डर से कुछ बुरा करने से बच रहे हैं। यदि धर्म इस बात की ईजाजत देदेता । या महाभारत के युद्व के अंदर कौरव जीत जाते तो सब लोग अधर्मी हो जाते और सब और आहाकार बन जाता ।

‌‌‌एक तरह से महाभारत का युद्व इस बात की शिक्षा देता है कि दुष्ट लोगों का नाश होना बेहद जरूरी है और जो लोग दुष्ट कार्य के अंदर  किसी का साथ देते हैं वो भी पापी होते हैं। महाभारत के 5 सबसे शक्तिशाली योद्धा मे से कुछ वीर होते हुए भी पापियों का साथ दिया और इसी वजह से उनका अंत हो गया । ‌‌‌जैसा कि आप जानते ही होंगे कि महाभारत होना का जो प्रमुख कारण था वो कौरवों का अपने भाइयों के प्रति खराब और घटिया रैवया था। क्रष्ण के युद्व को टालने के अनेक प्रयास किये थे । किंतु दुष्ट कौरवों को मरना ही अच्छा लगता था। बस इसी वजह से मारे गए।

‌‌‌भले ही कौरव इस युद्व के अंदर हार गए थे लेकिन कौरवों के अंदर ऐसे ऐसे धनुर्धर थे जो एक बाण के अंदर सब कुछ समाप्त कर सकते थे । और वे बहुत ही अधिक पॉवर फुल थे । हमे उनके गुणों को नहीं भूलना चाहिए और उनसे भी कुछ सीखना चाहिए । ‌‌‌तो अब बात को ज्यादा ना घूमाते हए आइए जानते हैं महाभारत के 5 सबसे शक्तिशाली योद्धा  के बारे मे ।

‌‌‌ महाभारत के 5 सबसे शक्तिशाली योद्धा  अर्जुन

महाभारत के 5 सबसे शक्तिशाली योद्धा  अर्जुन

अर्जुन महाभारत के एक चरित्र का नाम है।वे पांडू के पुत्र थे और पीछले जन्म के अंदर नारा नामक एक संत थे जो भगवान विष्णु के सेवक थे । वे पांडू के पुत्र थे और पांडव पुत्र के अंदर वे तीसरे नम्बर पर आते थे ।‌‌‌अलग अलग समय पर उन्होंने द्रोपदी , चित्रगंधा , उलूपी और सुबुद्रा से विवाह किया था।‌‌‌पांडू की मौत के बाद जब कुंती अपने बेटों के साथ हस्तीनापुर के अंदर रहती थी तो वहीं पर अपने चचेरे भाइयों के साथ उन्होंने भीष्म पितामाह के के द्वारा , धर्म ,विज्ञान और कला के अंदर शिक्षा ग्रहण की थी।

‌‌‌वैसे अर्जुन ताकतवर होने के साथ साथ काफी बड़े विद्वान भी थे । जब सब तरीके से युद्व को टालने मे विफल रहे तो अर्जुन यह सोच सोच कर काफी परेशान हो रहे थे कि अब वे अपने परिवार और भीष्म जैसे दोस्तों के खिलाफ कैसे लड़ेंगे ।‌‌‌लेकिन उसके बाद अर्जुन को क्रष्ण ने समझाया और कहा कि आपको धर्म की रक्षा के लिए युद्व करना होगा । यदि आप युद्व नहीं करेंगे तो अधर्म की धर्म पर विजय हो जाएगी और ऐसा करने से आगे आने वाली पीढी के अंदर बुरा संदेश जाएगा ।‌‌‌कुरूक्षेत्र के अंदर अर्जुन ने बहुत बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और भगवान हनुमान अर्जुन के रथ के ध्वज पर रूके थे ।

  • ‌‌‌महाभारत के दस वें दिन अर्जुन ने भीष्म को मार डाला था। यह उसकी विरता का ही परिणाम था। कुछ कथाओं के अंदर यह कहा गया है कि शिखंडी ही भीष्म थे ।
  • भगतदत्त की मृत्यु : युद्ध के 12 वें दिन, अर्जुन ने भगदत्त को मार दिया।
  • त्रिगर्तों की हत्या : युद्ध के 17 वें दिन, अर्जुन ने सभी त्रिगर्तों को मार डाला गया था।
  • ‌‌‌युद्व के 13 वें दिन अर्जुन ने अभिमन्यू की मौत के लिए जयद्रथ को जिम्मेदार माना और कसम खाई कि सूर्यास्त से पहले ही वह जयद्रथ को मार डालेगा नहीं तो खुद अग्नी के अंदर कूद कर मर जाएगा । उसके बाद कौरवों ने जयद्रथ को छुपा दिया ।अंत में अर्जुन ने कर्ण और अश्वत्थामा सहित जयद्रथ के सभी रक्षक को पराजित किया और जयद्रथ का सिर काट दिया था। जयद्रथ को वरदान प्राप्त था कि जो भी उसके सर को जमीन पर गिरायगा उसके लिए उसका अपना सिर होगा । इस वजह से अर्जुन ने एक विशेषरण निति का प्रयोग किया था।
  • ‌‌‌कर्ण और अर्जुन के बीच बाद मे भंयकर युद्व हुआ और अंत में, अर्जुन ने 17 वें दिन अंजलीकास्त्र का उपयोग करके कर्ण को मार दिया।
  • ब्राह्मण पुत्रों की रक्षा भी अर्जुन ने ही की थी। द्वारका के अंदर एक ब्राहमण का पुत्र उत्पन्न होते ही मर जाया करता था। एक बार वह रोते बिलकते द्वारका आया और बोला की कोई उसकी मदद करे । उसके बाद अर्जुन ने कसम खाई कि अबकी बार यदि वह आपके पुत्र की रक्षा नहीं कर सकेगा तो खुद चिता पर जल जाएगा । ‌‌‌उसके बाद जब ब्रहमण के घर पूत्र पैदा हुआ तो अर्जुन को सूचना दी गई ।अर्जुन वहां पहुंचकर पुत्र को इस प्रकार से तीरों से ढक दिया कि उसके अंदर चिंटी भी नहीं जा सकती थी। लेकिन बालक अद्रश्य हो गया। उसके बाद ब्राह्रामण अर्जुन को कोसने लगा ।

‌‌‌कई लोंकों के अंदर अर्जुन ने उस पुत्र को खोजा लेकिन नहीं मिला उसके बाद अन्त में द्वारका आकर वे चित्ता बनाकर जलने को तैयार हो गये।लेकिन उसके बाद भगवान ने अर्जुन को रोका और बोले की यह देखने के लिए ही मैंने यह पुत्र मंगवाया था। उसके बाद अर्जुन के पुत्र को ब्राह्मण  को सौंप दिया । ‌‌‌इन सभी वीरता के कार्यों की वजह से अर्जुन महाभारत के 5 सबसे शक्तिशाली योद्धा मे से एक थे ।

श्रीकृष्ण की मौत होने के बाद अर्जुन ने द्वारका के नागरिकों को, कृष्ण की 16,100 पत्नियों सहित, इंद्रप्रस्थ ले गए।कलियुग की शूरूआत होने और व्यास जी के आदेश के बाद सब पांडव सेवा निव्रत हो गए और अर्जुन ने अपने हथियार पानी के अंदर फेंक दिये थे ।‌‌‌द्रोपदी सहदेव और नुकुल के बाद चौथा अर्जुन था जिसकी मौत हो गई थी। ‌‌‌इस प्रकार से महाभारत के 5 सबसे शक्तिशाली योद्धा मे से अर्जुन का प्राणांत हो गया था।

दानवीर कर्ण

दानवीर कर्ण

कर्ण भी महाभारत के 5 सबसे शक्तिशाली योद्धा मे से एक थे । और कर्ण अर्जुन से भी अधिक ताकतवर थे । भले ही कर्ण ने गलत लोगों का साथ दिया ।लेकिन कर्ण सच मुच महान था। उसने अपने भाई , भीम ,नकुल , सदेव को बुरी तरीके से हराया था । लेकिन उसने प्रतिज्ञा की थी कि वह अर्जुन को छोड़कर किसी को ‌‌‌नहीं मारेगा । ‌‌‌और उसने अपनी प्रतिज्ञा को अच्छे से निभाया भी । ‌‌‌कर्ण कुंती का पुत्र था

और उसको पाला दुर्याधन ने था। वह चाहता तो अंत समय के अंदर पांडवों मे मिल सकता था। लेकिन उसने जहां का नमक खाया था। उन्हीं की रक्षा के लिए शहीद हो गया । सच मायेने मे कर्ण अर्जुन से अधिक महान था। श्रीकृष्ण जब दुर्योधन के साथ शांति की वार्ता करने मे असफल होते हैं तो वे कर्ण के पास जाते हैं और उसे उसका गुप्त भेद बताते हैं और अपनी ओर मिलाने की कोशिश करते हैं। लेकिन कर्ण महान होने की वजह से यह कहकर मना कर देता है कि वह ऐसा नहीं कर सकता है। वह दुर्योधन का सच्चा सेवक है उसने बहुत एहसान किये ‌‌‌हैं और एहसानों का बदला इस तरीके से कभी भी नहीं चुकाया जा सकता । हालांकि क्रष्ण ने कर्ण को राजा बनने का लालच भी दिया लेकिन कर्ण ने साफ इनकार कर दिया था।

‌‌‌कर्ण कुंती का पुत्र था। जब दुर्वासा ऋषि कुंती के पिता के घर आए तो कुंती ने उनकी सेवा की थी। और कुंती की सेवा भाव से प्रसन्न होकर कहा था कि वह किसी भी देवता का अहवान करके पुत्र पैदा कर सकेगी। उसके बाद एक दिन इस वरदान का प्रयोग करने की सोची । ‌‌‌और कुंती ने सूर्य देव का आहवान किया ।उसके बाद कुंती को एक पुत्र पैदा हुआ जो कुंडल और कवच लेकर पैदा हुआ था। लेकिन कुंती उस समय कुंवारी थी और इस वजह से लोक लाज के डर से कर्ण को बक्से के अंदर बंद करके पानी मे बहादिया था।

‌‌‌कर्ण के अंगराज बनने के बाद उसने यह घोषणा करदी थी कि जब वह दिन के समय सूर्य देव की पूजा करेगा जो जो कोई उसे उस वक्त कुछ भी मांगे गा तो वह खाली हाथ कभी नहीं जाएगा । और इस बात का फायदा पांडवों ने उठाया । ‌‌‌

एक बार जब कर्ण सूर्य देव की पूजा कर रहा था तो उसके पास इंद्र भेष बदलकर पहुंचा और उसके कवच और कुंडल मांग लिये ।यह एक तरह से इंद्र की चाल थी क्योंकि इंद्र नहीं चाहता था कि उसका पुत्र अर्जुन कर्ण के हाथों मारा जाए । और इंद्र को पता भी था कि कवच और कुंडल के रहते कर्ण का वध करना नामुमकिन होगा । ‌‌‌कर्ण अपने वचनों का पूरा पक्का था। तभी तो उसने साधु के भेष मे आइए इंद्र को कवच और कुंडल का दान कर दिया था।

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‌‌‌सच बात तो यह है कि यदि कर्ण चाहता तो सब पांडवों का अंत कर सकता था। लेकिन वह अनेक वचनों और शाप की वजह से बंधा हुआ था । कुंती ने भी युद्व के अंदर कर्ण को अपनी तरफ मिलाने की कोशिश की थी। लेकिन उसने इसके लिए इनकार कर दिया था। ‌‌‌इस संबंध मे कर्ण ने कहा कि अब बहुत देर हो चुकी है और अब वह अपने मित्र दूर्योधन के लिए काम करेगा । उसके बाद कुंती ने यह भी वचन उससे लेलिया कि वह नागाशास्त्र का केवल एक बार ही प्रयोग करेगा । ‌‌‌इसके अलावा धरती माता का भी कर्ण को शाप लगा हुआ था। इसी वजह से वह युद्व के अंदर बार बार रथ को बदल रहा था। उसके बाद भी उसके रथ का पहिया रेत के अंदर फंस रहा था।

‌‌‌कर्ण की महानता के संकेत युद्व समाप्ति के बाद भी मिलते हैं। जब कर्ण की मौत हो जाती है तो क्रष्ण अपने रथ से उतरकर नीचे आते हैं और उसके बाद अचानक से रथ से विस्फोट हो जाता है। उसके बाद अर्जुन घबराकर पूछता है। तब क्रष्ण कहते हैं कि यह कर्ण के घातक अस्त्रों का असर है। रथ अब तक मेरी शक्ति ‌‌‌से बचा हुआ था। इससे एक बाद सिद्व हो जाती है कि कर्ण अमर वीर था। और क्रष्ण की वजह से ही वह मारा गया था। वरना पांडव उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकते थे । ‌‌‌इस तरह से हम कहसकते हैं कि महाभारत के 5 सबसे शक्तिशाली योद्धा  मे से कर्ण बहुत अधिक ताकतवर था।

भीष्म

भीष्म

‌‌‌वैसे भीष्म भी महाभारत के 5 सबसे शक्तिशाली योद्धा   के अंदर आते हैं। उनके पास भी अनेक ताकते थी। भीष्म का चरित्र महाभारत के युद्व के अंदर कुछ खास नहीं रहा था। भीष्म ने अपने जीवन के अंदर अनेक अनैतिक कार्यों मे साथ दिया था। भीष्म उस समय सभा के अंदर मौजूद थे । जब दूर्योधन द्रोपदी का चिरहरण कर रहा था। और उसके बाद भी भीष्म ने कुछ नहीं कहा । ‌‌‌अपने अंत समय मे भीष्म जब मौत की शैश्या पर पड़े थे तो उन्होंने द्रोपदी से माफी भी मांगी थी । और कहा कि वे इस वजह से दुर्योधन का विरोध नहीं कर सके क्योंकि उन्होंने उनका नमक खाया था। और अब अर्जुन के बाणों से सब बुरे कर्मों का फल मिल चुका है।

‌‌‌भीष्म गंगा और शांतुन के पुत्र थे ।उनका मूल नाम देवव्रत था।उन्होंने आजीवन ब्रह्मचर्य की प्रतिज्ञा लेकर मौत को भी अपने वश मे कर रखा था। महाभारत के अनुसार हर तरह की शस्त्र विद्या के ज्ञानी भीष्म को उनके गुरू परशुराम के द्वारा ही हराया जा सकता था। लेकिन दोनों के बीच होने वाले युद्व को भगवान शिव के द्वारा रोक दिया गया ।

‌‌‌भीष्म को उनकी प्रतिज्ञा के लिए सबसे अधिक जाना जाता है। जिसके कारण राजा बनने की बजाया जीवन पर हस्तिनापुर के रक्षा के रूप मे एक भूमिका निभाई थी।महाभारत का  युद्व होने से बचाने के लिए भीष्म ने भी अनेक प्रयास किये थे । और उसके बाद जब युद्व शूरू हुआ तो भीष्म ने सेनापति की भूमिका निभाई ‌‌‌और कौरवों की तरफ से युद्व किया था । भीष्म ने अर्जुन के उपर हथियार चलाना नहीं चाहते थे । लेकिन अंत समय मे उनको अर्जुन पर हथियार चलाना पड़ा । बाद मे अर्जुन के बाणों ने ही भीष्म को घायल कर दिया था ‌‌‌भीष्म को इच्छा मौत का वरदान प्राप्त था। और इसी का फायदा पांडवों ने भी उठाया था। पांडव जानते थे कि भीष्म के सामने युद्व करना अपनी मौत को दावत देना है। और इस इसके अलावा वे यह भी जानते थे कि भीष्म को किसी भी तरीके से मारा नहीं जा सकता है। ‌‌‌जब तक की वे खुद अपनी मौत को ना चुन लें । इसके अलावा भीष्म की एक और प्रतिज्ञा थी कि वह किसी भी नपुंसक के सामने हथियार नहीं उठाएंगे । इसी वजह से शिखंडी को पांडवों ने आगे कर दिया था। और उसके बाद भीष्म ने जैसे ही हथियार डाले अर्जुन ने इसका लाभ उठाया और भीष्म को बाणों से छली कर दिया । ‌‌‌वैसे यह अर्जुन ने छल से ही किया था। यदि अर्जुन खुद भीष्म के सामने लड़ता तो वह भीष्म को कभी भी नहीं हरा पाता था।। ‌‌‌भले ही भीष्म ने गलत कार्य कियें हों लेकिन महाभारत के 5 सबसे शक्तिशाली योद्धा    के अंदर उनका नाम अवश्य ही आता है। फर्क अब इतना है कि भीष्म को गलत लोगों का साथ देने की सजा भगवान के द्वारा मिली थी।

‌‌‌माना जाता है कि महाभारत के अंदर सबसे ज्यादा उम्र के व्यक्ति भीष्म ही थे । और उनकी उम्र 150 वर्ष थी। उन्होंने योग विधा के द्वारा अपनी उम्र को बढ़ा लिया था। सबसे बड़े होने की वजह से उनको राजनिति का अच्छा ज्ञान भी था।‌‌‌ज्यादा उम्र के होने और ज्ञानी होने की वजह से वेदव्यास ने भीष्म की उन सभी बातों का उल्लेख किया है जो कि भीष्म ने राजनिति के बारे मे कही थी।‌‌‌आपको बतादें की भीष्म मौत की शैया पर पूरे 58 दिन तक रहे और उसके बाद उन्होंने सब लोगों को उपदेश भी दिया ।सूर्य के उतरायण होने के बाद ही उन्होंने सब लोगों से कहा कि वे अब अपना शरीर त्यागना चाहते हैं। उसके बाद युधिष्ठर और बाकी लोगों ने मिलकर भीष्म की चिता सजाई और उनको चंदन की लकड़ियों के ‌‌‌अंदर जलाया गया था।

कृष्ण

कृष्ण

कृष्ण महाभारत के 5 सबसे शक्तिशाली योद्धा मे प्रथम स्थान रखते हैं। भले ही कृष्ण ने महाभारत के अंदर कोई हथियार नहीं उठाया हो ।लेकिन उनकी बुद्वि और चातुर्य से ही कौरवों का विनास हो पाया था। तो आप समझ सकते हैं कि यदि कृष्ण खुद हथियार उठाते तो क्या होता ? लेकिन कृष्ण का चरित्र महाभारत के श्रीकृष्ण भगवान विष्णु के 8वें अवतार और हिन्दू धर्म के ईश्वर माने जाते हैं।

श्रीकृष्ण  वासुदेव और देवकी की आठवीं संतान थे ।मथुरा के कारावास के अंदर उनका जन्म हुआ था और गोकुल के अंदर उनका लालन पालन हुआ था। ‌‌‌श्रीकृष्ण ने पग पग पर धर्म का साथ दिया । यदि श्रीकृष्ण  धर्म का साथ नहीं देते तो अधर्म की विजय अवश्य ही हो जाती और श्रीकृष्ण जैसे वीर के बिना पांडवों का जीत पाना भी नामुमकिन था। जब द्रोपदी को कौरवों ने जुए के अंदर जीत लिया था तो दुष्ट दुर्योधन ने

‌‌‌ने भरी सभा के अंदर द्रोपदी का चीर हरण का आदेश दिया ।उसके बाद द्रोपदी ने भगवान का स्मरण किया तो उन्होंने द्रोपदी की सारी का आकार बढ़ा दिया । कौरवों ने उसकी साड़ी खींचने की बहुत कोशिश की लेकिन वे कामयाब नहीं हो सके। ‌‌‌इस घटना से भी क्रष्ण की धार्मिक होने के प्रमाण मिलते हैं।

‌‌‌ऐसा नहीं है कि क्रष्ण ने तुरन्त ही युद्व के लिए पांड़वों को मना लिया था। उन्होंने इस युद्व को टालने के अनेक प्रयास किये । अंत मे वे शांति दूत बनकर कौरवों की सभा के अंदर गए और बोले कि यदि कौरव पांड़वों को पांच गांव देने को राजी होते हैं तो युद्व को टाला जा सकता है। लेकिन जहां पर ‌‌‌दुर्योधन जैसे दुष्ट रहते हैं ।उनसे उम्मीद ही क्या की जा सकती है। उसने पांड़वों को सुई की नोक के बराबर भी जमीन देने से इनकार कर दिया । उसके बाद क्रष्ण ने एक और प्रयास किया ।उसने कर्ण को समझाया लेकिन कर्ण के हाथ बंदे हुए थे । ‌‌‌और अंत मे युद्व तो होना ही था।

भीष्म का वध भले ही अर्जुन ने किया हो लेकिन उसके पीछे भी क्रष्ण का ही हाथ था। और सब जानते थे कि भीष्म को महादेव के अतिरिक्त युद्व के अंदर कोई नहीं हरा सकता था। जब अर्जुन भीष्म पर बाण चलाते चलाते थक गया तो उसके बाद उसने क्रष्ण से पूछा की भीष्म का वध कैसे किया जाए ? ‌‌‌उसके बाद क्रष्ण ने उसका रहस्य अर्जुन को बताया। अलगे दिन शिखंडी को अर्जुन के रथ के आगे बैठा दिया गया। और शिखंडी को देखकर उन्होंने बाण चलाना बंद कर दिया । क्योंकि उन्हें यह कसम खाई थी कि वे कभी भी नपुंसक के उपर हथियार नहीं उठाएंगे । बस उसके बाद मौका मिलते ही अर्जुन ने भीष्म का वध कर‌‌‌दिया ।

‌‌‌इतना ही नहीं अर्जुन को खुद क्रष्ण ने बचाए रखा था। वरना पांड़वों की इतनी औकात नहीं थी कि वो कौरवों के शाक्तिशाली वीरों का सामना कर सकते । कर्ण के प्रहारों से अर्जुन कब का नष्ट हो गया होता । यदि क्रष्ण अर्जुन के रथ को अपने प्रभाव से बचाए नहीं रखते तो ।

‌‌‌कर्ण भी एक सच्चा वीर था। लेकिन उसको अनेक तरह के शाप लगे हुए थे । इस वजह से वह अपनी ताकतों का खुलकर प्रयोग नहीं कर पा रहा था। वरना अर्जुन उसे कभी भी मार नहीं पाता । धरती माता के शाप के कारण उसके रथ का पहिया जमीन के अंदर फंस गया था। और जब वह इसके लिए नीचे उतरा तो उसी वक्त क्रष्ण ने कर्ण पर ‌‌‌वार करने को कहा था। कर्ण की मौत का एक कारण यह भी रहा कि उसने अपने कवच और कुंडल दान कर दिये थे । यह भी क्रष्ण की ही एक चाल थी। यदि उसके पास कवच और कुंडल होते तो अर्जुन चाहे जो कर लेता लेकिन कर्ण को नहीं मार पाता।

अश्वत्थामा भी एक दुष्ट था। और उसको मारने मे भी क्रष्ण का हाथ रहा था। क्रष्ण ने ही उसके सर से मणी निकलवाली थी। उसके बाद भी वह नहीं माना और उत्तरा के गर्भ को नष्ट करने के लिए उसने अस्त्र छोड दिया लेकिन क्रष्ण ने बीच मे आकर उसे बचाया था।

‌‌‌महाभारत के अंदर यदि क्रष्ण नहीं होते तो शायद यह महाभारत होता ही नहीं । क्योंकि कौरव इतने ताकतवर थे कि वे एक पल के अंदर पांचों पांडवों का नास कर सकते थे । लेकिन क्रष्ण के छल के आगे उनकी एक भी नहीं चल पाई थी और सारे मारे गए थे ।

‌‌‌इतना ही नहीं युधिष्ठर तो अपने भाइयों के खिलाफ युद्व करना भी नहीं चाहते थे । लेकिन क्रष्ण ने सब को समझाया की धर्म की रक्षा के लिए आपको यह युद्व करना पड़ेगा और यदि आप ऐसा नहीं करेंगे तो आगे आने वाली पीढ़ियों के अंदर गलत संदेश जाएगा और लोग धर्म को मानना ही बंद करदेंगे । ‌‌‌बस इन्हीं कारणों की वजह से महाभारत के 5 सबसे शक्तिशाली योद्धा  के अंदर क्रष्ण का नाम सबसे पहले स्थान पर आता है।

‌‌‌द्रोणाचार्य

‌‌‌द्रोणाचार्य

महाभारत के 5 सबसे शक्तिशाली योद्धा के अंदर ‌‌‌द्रोणाचार्य का नाम भी आता है। वो इस लिए क्योंकि उन्होंने कौरवों और पांड़ों को शिक्षा दी थी। द्रोणाचार्य ऋषि भरद्वाज तथा घृतार्ची नामक अप्सरा के पुत्र थे और वे सभी प्रकार के अस्त्र शास्त्र का ज्ञान रखते थे । महाभारत युद्ध के समय वह कौरव पक्ष के सेनापति थे। आपको बतादें की द्रोणाचार्य को युद्व के अंदर हराना नामुमकिन था। और यह क्रष्ण खुद भी जानते थे । युद्व के समय क्रष्ण को इस बात की चिंता सता रही थी कि यदि द्रोणाचार्य  ऐसे ही युद्व करते रहे तो वे जल्दी ही सब कुछ समाप्त करदेंगे । उसके बाद क्रष्ण ‌‌‌ने छल का प्रयोग करते हुए भीम को कहा और बोले की जाओ द्रोणाचार्य से बोलो की अश्वथामा हाथी मारा गया । और ऐसा ही हुआ भीम ने जाकर कहा  की अश्वथामा मारा गया। लेकिन द्रोणाचार्य को इस बात पर विश्वास नहीं हुआ ।उसके बाद क्रष्ण युधिष्ठर से बोले की जाओ और तुम बोलो की अश्वथामा हाथी मारा गया ।

‌‌‌और जब युधिष्ठर ने जाकर यह कहा तो द्रोणाचार्य ने अपने अस्त्र त्याग दिये ।उसके बाद मौका पाकर उनका सर धड़ से अलग कर दिया गया।

एक तरह से क्रष्ण ने द्रोणाचार्य को मारने के लिए भी छल का प्रयोग किया । लेकिन यदि  वे सीधे सीधे द्रोणाचार्य से लड़ते तो कभी भी जीत नहीं पाते ।

महाभारत के के अन्य शक्तिशाली  योद्धा

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हमने आपको महाभारत के 5 सबसे शक्तिशाली योद्धा के बारे मे उपर बताया है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि महाभारत के 5 सबसे शक्तिशाली योद्धा के अलावा भी कई और शक्तिशाली योद्धा भी थे और वो अपने एक वार के अंदर पूरे महाभारत को ही पलट सकते थे । लेकिन क्रष्ण की चाल के ‌‌‌के आगे उनकी एक भी ना चल सकी थी। तो इस लेख के अंदर कुछ अन्य महत्वपूर्ण महाभारत के यौद्वा के बारे मे भी जान लेते हैं।

बर्बरीक

महाभारत के 5 सबसे शक्तिशाली योद्धा के अंदर बर्बरीक भी को भी कम करके नहीं आंका जा सकता है। बर्बरीक महाभारत के एक महान योद्धा थे। वे घटोत्कच और अहिलावती का बेटा था। वह इतना ताकतवर था कि एक पल के अंदर ही पूरे महाभारत को बदल सकता था। हालांकि उसके पास केवल एक ही विशेष शक्ति थी।बर्बरीक  जब महाभारत का युद्व शुरू होने वाला था तो उसने यह निश्चिय किया कि एक ही तीर से सारे वीरों का विनाश ‌‌‌कर देता हूं । उसके बाद अचानक से क्रष्ण की उस पर नजर पड़ी तो क्रष्ण उसकी चाल को समझ गया और जल्दी से क्रष्ण ने उसे मार डाला । हालांकि उसने क्रष्ण पर प्रहार करने की कोशिश की थी। और बदले मे क्रष्ण ने सुदर्शन चक्र से उसका वध कर दिया । बर्बरीक का वध हो जाने के बाद उसने खुद को धान्य समझा और उसके बाद क्रष्ण से वरदान देने की प्रार्थना की की उसका सर तब तक जीवित बचा रहे । जब तक कि महाभारत का खत्म युद्व नहीं हो जाता ।वह बर्बरीक ही था जिसने अपने कटे हुए सर के साथ महाभारत के पूरे युद्व को देखा था।

कृष्ण ने ब्राह्मण वेश धारण कर बर्बरीक से पूछा था कि क्या वह तीन बाण की मदद से पूरे महाभारत के अंदर लड़ सकेगा ।उसके बाद बर्बरीक ने हंसकर कहा कि हे ब्रहा्रमण मेरे तीन बाण की जगह एक बाण ही काफी है पूरे महाभारत को खत्म करने के लिए । ‌‌‌यदि मे तीनों बाणों का प्रयोग कर लूंगा तो तीनों लोक के अंदर आहाकार मच जाएगा ।उसके बाद श्रीकृष्ण ने बर्बरीक को चुनौती देते हुए कहा कि इन पेड़ के पतों को भेद कर दिखाओ ।उसके बाद बर्बरीक ने अपना बाण निकाला और पेड़ के पत्तों पर चला दिया । एक पता क्रष्ण ने पैर के नीचे छिपा लिया । तब बालक बर्बरीक ‌‌‌ने क्रष्ण से कहा कि आप अपना पैर हटा ले वरना आपको चोट लग सकती है।

‌‌‌उसके बाद क्रष्ण ने पूछा कि आप किस ओर से शामिल होंगे । तो बर्बरीक बाले जिस तरफ सेना हारेगी मैं उस और से ही लड़ूंगा उसके बाद क्रष्ण जान चुके थे कि बर्बरीक के रहते कौरवों की हार कभी नहीं हो पाएगी । और क्रष्ण ने बर्बरीक का वध कर दिया ।

अश्वथामा

अश्वथामा को महाभारत के अंदर कम करके नहीं आंकना चाहिए ।अश्वथामा  भी एक ताकतवर वीर था। भले ही उसने नीच काम किया हो । लेकिन इसक अर्थ यह नहीं है कि उसके पास ताकत नहीं थी। ‌‌‌आपको बतादे कि महाभारत के अंदर अपने पिता द्रोणाचार्य और राजा दुर्योधन की मौत देखने के बाद अश्वत्थामा  काफी परेशान हो गया था।वह खुद पानी को बांधने की कला जानता था और जिस तालाब के पास युद्व हो रहा था। वह उसी तालाब के पानी को बांध कर उसमे छुप गया । अश्वत्थामा अंत तक महाभारत के युद्व के अंदर डटा था। और जब पांडव सैना अपने खेमें मे खुशी मना रही थी।

अपने पिता की निर्मम हत्या का बदला लेने के लिए पांडवों पर नारायण अस्त्र का प्रयोग किया था। जिसके आगे सारी पाण्डव सेना ने हथियार डाल दिया था।और अश्वथामा ने द्रोपदी के 5 पुत्रों का भी वध कर दिया था। क्रष्ण के श्राप के कारण अश्वत्थामा को कोड रोग लग गया था। द्रौपदी अपने पुत्रों की मौत पर विलाप करने लगी तो उसके बाद अर्जुन ने प्रतिज्ञा की कि वह जब तक अश्वथामा को नहीं मारेगा ।तब तक चैन से नहीं बैठेगा ।उसके बाद अश्वथामा ने खुद को बचाने के लिए प्रयास किया ।लेकिन उसे कहीं पर भी जगह नहीं मिली। ‌‌‌अश्वथामा ने भय के कारण अर्जुन पर ब्रह्मास्त्र का प्रयोग कर दिया । और उसके बाद खुद को बचाने के लिए अर्जुन ने भी ब्रह्मास्त्र का प्रयोग कर दिया । दोनों आपस मे टक्करा गए ।लेकिन उसके बाद अर्जुन ने दोनों ब्रह्मास्त्रों को शांत कर दिया और अश्वथामा को बांध लिया गया।

‌‌‌उसके बाद क्रष्ण ने कहा कि यह जीवित रहेगा तो पाप करेगा और इसने सोये हुए बालकों की हत्या की है। इसका शीश काट कर अपनी प्रतीज्ञा को पूरा करो । लेकिन बाद मे अर्जुन को उस पर दया आ गयी और उसे बांध कर द्रोपदी के सामने पेश किया । ‌‌‌बंधे हुए अवश्थामा को देखने के बाद द्रौपदी बोली की इसके मार देने से मेरे पुत्र वापस नहीं आएंगे और यदि हम इसको मार भी देते हैं तो ब्रहम हत्या का पाप हमको लगेगा ।सो इसको छोड़ दिया जाए।

‌‌‌उसके बाद द्रौपदी ने कहा कि यदि हम इसका वध कर देते हैं तो इसकी माता भी विलाप करेगी और पुत्र मोह होने की वजह से वह द्रोण के साथ सती नहीं हुई है। उसके बाद भीम ने कहा कि शास्त्रों के अनुसार ब्राह्रण की हत्या करना पाप है। लेकिन एक पापी को सजा ना देना भी एक पाप ही तो है। ।उसके बाद अर्जुन ने ‌‌‌उसके माथे सम वह मणी निकाल ली और उसको जिंदा ही बाहर निकाल दिया । माना जाता है कि शाप की वजह से अश्वथामा आज भी जीवित है।

दुर्योधन

दुर्योधन काफी दुराचारी था। लेकिन वह एक यौद्वा भी था। एक तरह से कहें की पूरे महाभारत की जड़ वह खुद ही था।  क्रष्ण भले ही भगवान था लेकिन यदि वह चाहता तो उसे इसी जड़ को काट देना चाहिए था। एक इंसान के बदले लाखों की जान लेना हमेशा गलत होता है। ‌‌‌क्रष्ण भगवान था तो उसने दुर्योधन जैसे लोगों को पहले ही निशाना बना लेना चाहिए । जब उन्हें लगे कि यही जड़ है। युद्व होता ही नहीं ।दुर्योधन जब सरोवर के अंदर छिप गया था तो पांडवों ने उसे तलास करने का पर्यत्न किया था। बाद मे पांड़वों को पता चला की दुर्योधन सरोवर के अंदर छिपा बैठा है। ‌‌‌पांड़वों ने दुर्योधन को ललकारा और बोले की इस प्रकार से छिपे रहना कायरता होगी । ‌‌‌उसके बाद दुर्योधन सरोवर से निकला और पांड़वों को गद्वा युद्व के लिए ललकारा । लेकिन क्रष्ण जानते थे की दुर्योधन से युद्व करने के लिए केवल भीम ही योग्य है।उसके बाद मौका पाकर भीम ने दुर्योधन से युद्व किया कुछ समय तक बराबर की टक्कर चलती रही उसके बाद भीम ने

दुर्योधन की जांघ को तोड़ डाला और उसके बाद पटक कर उसका सर फोड़ दिया इस प्रकार से दुर्योधन का अंत हो गया ।

‌‌‌कौरव अपनी ताकत का सही तरीके से प्रदर्शन नहीं कर पाए

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भले ही क्रष्ण भगवान थे । लेकिन वे खुद तो हथियार उठा नहीं सकते थे । और यदि कौरव लोग सही तरीके से युद्व करते तो उनको हराना नामुमकिन था। जिस तरीके से छल का प्रयोग करके क्रष्ण ने एक एक वीर का नास कर दिया था। यदि वे उसी तरीके से अपनी ‌‌‌कमजोरियों को खुद पर हावी नहीं होने देते तो निश्चय ही उनको हराने वाला कोई नहीं था। महाभारत के 5 सबसे शक्तिशाली योद्धा  के अंदर तीन कौरव के ही थे । और उसके बाद भी पांडवों ने उनका वध कर दिया । इसकी बड़ी वजह रही उनके अंदर सुझ बुझ की कमी और वो कमी क्रष्ण ने अर्जुन को देदी । यही वजह थी की अर्जुन ने एक एक करके उनका वध कर दिया । ‌‌‌यदि उसी कमी को कौरव लोग दूर कर लेते तो सब मारे नहीं जा सकते थे । ‌‌‌और दूसरी सबसे बड़ी बात कि कौरव जब अर्धम का साथ दे ही रहे थे । तो धर्म का चोला क्यों पहन रखा था। उनको तो बाद मे पूरी तरीके से अधर्मी हो जाना चाहिए था। जैसे कर्ण की दानवीरता उसकी मौत का कारण बनी । ‌‌‌इसके अलावा कर्ण को अनेक शाप भी लगे हुए थे । जिसकी वजह से वह खुद की ताकत का उपयोग नहीं कर पाया था।

‌‌‌कहने का अर्थ है । भीष्म , कर्ण और द्रोणाचार्य ने अधर्म का साथ दिया । जबकि  यह तीनो वीर मिलकर दुर्योधन को पांडवों को राज्य देने के लिए विवश भी कर सकते थे ताकि युद्व को टाला जा सके । इन तीनों के बिना कौरवों की हिम्मत नहीं होती की पांड़वों के साथ युद्व करे । ‌‌‌

सबसे बड़ी बात तो यह समझ मे नहीं आती की द्रोणाचार्य और भीष्म परम ज्ञानी होने के बाद भी अधर्म का साथ क्यों दिया ? ‌‌‌यदि यह  5 योद्धा  एक साथ चाहते तो कभी भी महाभारत हो ही नहीं पाता । क्योंकि इनके बिना कुछ नहीं हो सकता था। और दुर्योधन जैसे नीच लोगों को यह सजा भी दे सकते थे । लेकिन वास्तव मे इतने ज्ञानी होने के बाद भी युद्व किया और विनाश हुआ ।

‌‌‌तो दोस्तों महाभारत के 5 सबसे शक्तिशाली योद्धा  के बारे मे लेख आपको कैसा लगा हमे कमेंट करके बताएं ।

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arif khan

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