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    Home»‌‌‌धर्म और त्यौहार»सिसोदिया वंश की कुलदेवी का नाम और इतिहास के बारे मे जानकारी
    ‌‌‌धर्म और त्यौहार

    सिसोदिया वंश की कुलदेवी का नाम और इतिहास के बारे मे जानकारी

    arif khanBy arif khanNovember 30, 2022Updated:November 30, 2022No Comments14 Mins Read
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     sisodiya vansh ki kuldevi kaun si hai  ,sisodiya vansh ki kuldevi  की जब हम बा त करते हैं तो आपको बतादें कि इनकी कुल देवी को बाणमाता के नाम से जाना जाता है इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए । (श्री ब्रह्माणी माताजी, श्री बायण माताजी, श्री बाणेश्वरी माताजी मेवाड के सूर्यवंशी गहलोत और सिसोदिया राजवंश की कुलदेवी है।

    राव काजलसेन गहलोत द्वारा बाण माता कि जोत और मूर्ति को अपनो साथ चित्तौड़गढ़ से कुचेरा,नागौर लेकर आ गए थे इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए । और आपको बतादें कि

    चित्तौड़गढ़ भारत के राजस्थान राज्य में स्थित एक शहर है। यह 1949 तक चित्तौड़गढ़ राज्य की और 1956 तक राजस्थान की राजधानी थी। शहर की आबादी लगभग 200,000 है। यह शहर अपने मंदिरों के लिए जाना जाता है जिसमें अजमेरी सल्तनत का सबसे पवित्र मंदिर – अजमेरी मंदिर और टकसाली-टीला (किलों का प्रवेश द्वार) सहित ऐतिहासिक किलेबंदी शामिल हैं।

    यहां मंदिर की देखभाल और आरती संचालन का संचालन करने वाला पालीवाल ब्राह्मण परिवार आजादी के पहले से ही ऐसा करता आ रहा है। प्रभुलाल जी वर्तमान में मंदिर के पुजारी हैं और वे इसी परिवार से हैं।

    sisodiya vansh ki kuldevi kaun si hai

    सेव्या सदा सिसोदिया मही बधायो माण,

              धनुष बाण धारण करीया बण तु माता बाण ll

    सिसोदिया वंश की कुलदेवी का नाम

    सिसोदिया वंश की जब हम बात करते हैं तो यह कहा जाता है कि इसकी कुल देवी मां बाण माता होती है। इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए । और आप इस बात को समझ सकते हैं। ‌‌‌जब सिसोदियां वश के पूर्वज चित्तोड़गड़  आए थे तब नर्मदा नदी से कुछ पाषाण निकलते थे उनकी मदद से ही शिवजी की स्थापना होती थी।इसको बाण लिंग के नाम से भी जाना जाता था।

    बाणेश्वर्जी मंदिर जो कि मेवाड के अंदर पड़ता है यह कुछ इसी तरह के नाम से ही है। बाणेश्वर महादेव  माता पार्वती का अंश मां का अंश बायण मां के रूप मे मानते हैं इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए ।

    बाणासुर देत्य का जो वध किया था उस देवी को माता बायण के नाम से ही जानते हैं इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए और आप इस बात को समझ सकते हैं और यही आपके लिए सबसे अधिक सही होगा ।

    मेवाड़ में माँ बायण की प्राचीन मूर्ति एक पुरोहित परिवार के पास इसलिए रखा जाता था क्योंकि मेवाड के महाराणा को युद्ध करने के लिए बाहर जाना पड़ता था और यदि किसी महल पर दुश्मन का कब्ज हो गया तो फिर वे मूर्ति को नष्ट कर सकते थे

    ‌‌‌इतिहास के अंदर देखने पर यह पता चलता है कि बांण माता सात्विक देवी होती है। इसको बकरे की बलि वैगरह नहीं दी जाती है। इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए जो बलि वैगरह दी जाती है वह दुर्गा के तामसिक रूप को ही दी जाती है इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए ।

    बाण माताजी का इतिहास के बारे मे जानकारी

    सिसोदिया गहलोत, गुहिल या गहलोत वंश की जो कुल देवी है वह बाण माता ही है और बाण माता का विश्व प्रसिद्ध मंदिर चितौड़ के अंदर स्थिति है । हालांकि बाण माता जी का पुराना स्थान गुजरात मे था। और वर्तमान स्थान चितौडगढ है। इसके पीछे एक कहानी मौजूद है बताया जाता है कि चितौड़ के महाराणा ने गुजरात ‌‌‌ पर आक्रमण किया और गुजरात को जीत लिया था । उसके बाद चितौड़ के महारणा ने गुजरात के राजा से कहा कि वह अपनी राजकुमारी की शादी चितौड़ के महाराणा से करवादे और राजकुमारी भी चितौड़ के महाराणा से विवाह करने के इच्छुक थी तो बाण माता इस तरह से चितौड़ पधार गई ।

    गिरनार में अभी भी माँ का मंदिर हैं।

    इस तरह से दोस्तों पुराणों के अंदर इस संबंध मे एक प्रकार की कथा मिलती है। उसके अनुसार हजारों वर्षों पूर्व बाणासुर नाम का एक दैत्य ने जन्म लिया । और बाणासुर एक प्रकार का राजा बन गया था और उसका लगभग पुरे भारत पर राज था। । इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए ।प्राचीन काल के अंदर यदि कोई इंसान अधर्म के मार्ग पर काम करता था तो उसको असुर माना जाता था। और वैसे तो बाणासुर काफी अच्छा इंसान था लेकिन बाद मे उसे अभिमान हो गया और वह एक बुरा इंसान बन गया ।

    ‌‌‌और आपको बतादें कि बाणसुर शिवजी का भगत था उसने अपनी कठोर तपस्या से शिवजी को प्रसन्न कर लिया और वरदान मे शिवजी ने उसको हजारों हाथों की शक्ति प्रदान की थी और उसके बाद जब शिवजी नें उनको और अधिक वरदान मांगने को कहा तो उसने यह मांग लिया कि हे भगवान आप मेरे महल के रक्षक बन जाओं और उसके बाद ‌‌‌ शिवजी ने ऐसा ही किया ।और उसके बाद बाणासुर पूरी धरती पर राज करने लग गए था । वह काफी अजेय हो चुका था और उससे कोई भी राजा युद्ध करने के लिए नहीं आता था और देवता भी उससे भयभीत होने लग गए थे ।

    एक दिन बाणासुर को अचानक युद्ध करने की तृष्णा जागी। और उसने शिवजी से कहा कि वह उनसे युद्ध करना चाहता है लेकिन शिवजी ने युद्ध करने से मना कर दिया और कहा कि वह युद्ध नहीं कर सकता है क्योंकि बाणासुर तुम मेरे शिष्य हो लेकिन चिंता करने की जरूरत नहीं है तुम्हारा काल इस धरती पर जन्म ले चुका है

    ‌‌‌और यह सुनने के बाद बाणासुर काफी अधिक भयभीत हो गया और फिर से शिवजी की तपस्या के अंदर लग गया ।तपस्या की और अपनी हजारों भुजाओं से कई सौ मृदंग बजाये, और उसके बाद शिवजी प्रसन्न हुए तो उन्होंने कहा कि वे कृष्ण युद्ध के अंदर उनका साथ देंगे और उसके प्राणों की रक्षा करेंगे ।

    ‌‌‌और इस तरह से श्री कृष्ण ने द्धवारका बसा ली और बाणासुर की एक पुत्री थी जिसका नाम उषा था।उषा से शादी करने के लिए बहुत सारे राजा आए लेकिन बाणासुर ने उनको तुच्छ समझा और उनको अपमान करके भगा दिया । उधर बाणासुर को यह डर था कि उषा शादी करने के लिए भाग ना जाए इसलिए उसने एक सुंदर सा ‌‌‌ महल बनाया और उषा को उस महल के अंदर कैद कर दिया ।और एक दिन स्वपन के अंदर उषा को अनिरुद्ध दिखाई दिए । उसा ने यह बात अपनी सहेली चित्रलेखा को बताई जोकि अपने हाथों से चित्र बनाने मे माहिर थी।और चित्र देखकर उषा को अनिरुद्ध से प्रेम हो गया और उसने कहा कि यदि ऐसा वर उसे मिल जाए तो ही ‌‌‌ उसे संतोष होगा ।

    आप इस बात को समझ सकते हैं। चित्रलेखा ने बताया की यह राजकुमार तो श्री कृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध का है। अनिरुद्ध को चित्र लेखा ने अपनी शक्ति से अद्रश्य कर उषा के सामने प्रकट कर दिया और उसके बाद दोनों ने तब दोनों ने ओखिमठ नामक स्थान पर विवाह कर लिया । आज भी दोनों का वहां पर मंदिर बना हुआ है। जब कई दिन तक अनिरूद्ध द्धारका नहीं आए तो श्री कृष्ण और बलराम व्याकुल हो उठे ।

    ‌‌‌और बाद मे उनको बाणसुर के बारे मे पता चला और फिर उन्होंने बाणासुर पर हमला करने की ठानी और दोनो और काफी भयंकर युद्ध हुआ ।और उसके बाद अंत मे जब बाणासुर हारने लगा तो उसके बाद शिवजी प्रकट हुए और अपने साथ शिवजी अपने सभी अवतारों और साथियों रुद्राक्ष, वीरभद्र, कूपकर्ण, कुम्भंदा बाणासुर की तरफ से युद्ध ‌‌‌ करने लग गए । अंत में शिवजी ने पशुपतास्त्र से श्री कृष्ण पर वार किया तो श्रीकृष्ण ने भी नारायणास्त्र से वार किया लेकिन इसका कोई भी फायदा नहीं हुआ और उसके बाद श्रीकृष्ण ने निन्द्रास्त्र चला दिया और इसकी वजह से कुछ समय के लिए शिवजी को रोका जा सका और उसके बाद कृष्ण ने बाणा सुर के एक एक हाथ को ‌‌‌ काटना शूरू कर दिया जिसकी वजह से बाणासुर अपनी जान को बचाकर वहां से भागने लगा ।और जब उसकी एक भुजा बची थी तो शिवजी ने आंखे खोली और काफी अधिक क्रोधित हुए और फिर शिवजी नें शिवज्वर अग्नि चलाया और उसके बाद सब कुछ आग के अंदर जलने लगा और फिर श्री कृष्ण ने नारायण ज्वर शीत चला दिया । उसके बाद इस ‌‌‌की वजह से ज्वर का तो नाश हो गया लेकिन अग्नि और शीत जब आपस मे मिल जाते हैं तो पूरी सृष्टी का नाश होता है।और उसके बाद धरती जब बिखरने लगी तो सब देवी देवताओं ने ब्रह्रमा जी से इसके लिए प्रार्थना की लेकिन उन्होंने कहा कि वे इसको रोक नहीं सकते हैं।

    ‌‌‌उसके बाद सब देवता मिलकर माता देवी दुर्गाजी की आराधना करने लगे । और उसके बाद दोनों शांत हो गए और श्रीकृष्ण ने कहा कि वह अपने पौत्र की आजादी के लिए यह सब कर रहे हैं और फिर शिवजी ने कहा कि वह भी अपने वचन की रक्षा कर रहे हैं।

    ‌‌‌उसके बाद श्री कृष्ण ने कहा मेने पूर्वावतार में बाणासुर के पूर्वज बलि राजा के पूर्वज प्रहलाद को यह वरदान दिया था की दानव वंश के अंत में उसके परिवार का कोई भी सदस्य उनके (विष्णु)के अवतार के हाथो कभी नहीं मरेगा

    ‌‌‌और उसके बाद बाणासुर ने श्री कृष्ण से क्षमा मांग ली और उसके बाद कृष्ण शिवजी के अंदर समा गए और उधर बाणासुर ने उषा और अनिरूद्ध का विवाह कर वादिया वे दोनो काफी सुख पूर्वक रहने लगे ।

    बाणासुर नर्मदा नदी के पास गया और शिवजी की फिर तपस्या करने लगा और उसके बाद शिवजी प्रसन्न हुए और वरदान मांगने के लिए आए तो बाणासुर ने कहा कि तुम्हारे डमरूबजाने की काला का आशीर्वाद दें । और उसके बाद कहा कि तुम्हारे द्धारा पूजे गए शिवलिंग को बाण लिंग के नाम से जाना जाएगा ।

    ‌‌‌लेकिन इतना सब कुछ हो जाने के बाद भी बाणासुर की असुरी प्रवृति नहीं बदली और अब आणासुर को पता चल चुका था कि श्री कृष्ण भी उनके प्राण नहीं ले सकते हैं क्योंकि भगवान शिव उनके रक्षक हैं इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए और उसके बाद राजाओं और संतों ने यज्ञ किया और वहां पर देवी प्रकट हुई और ‌‌‌राजाओं से कहा कि तुम चिंता ना करो समय आने पर बाणासुर मेरे हाथों अपने आप ही मारा जाएगा ।यह वचन देकर माँ वहां से निकलकर भारत के दक्षिणी छोर पर जा कर तपस्या में बैठ गयीं जहा पर त्रिवेणी संगम है। और यह इसलिए था ताकि बाणासुर किले से दूर आ सके और शिवजी से अलग हो जाए । दक्षिण भारतीय  लोग बायण माता को कुंवारी कन्या के रूप मे भी पूजते हैं इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए और आप इस बात को समझ सकते हैं। इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए ।

    ‌‌‌और जब पार्वती जी देवी बड़ी हुई तो शिवजी उनकी सुंदरता पर मुग्ध हो गए और उनसे विवाह करने के इच्छुक हो गए और उधर पर्वती जी के रूप मे बाण माता उनसे विवाह करने के लिए तैयार हो गई । जब नारद मुनी को यह बात पता चली तो उनको यह पता था कि बाणासुर परम सात्विक देवी से ही मारा जा सकता है तो उन्होंने ‌‌‌ एक चाल चली ।सूर्योदय से पहले पहले शादी का मुहर्त था और रस्ते के अंदर नारद  मुनि रस्ते के अंदर ही मुर्गे का रूप धर जोर जोर से बोलने लगे तो शिवजी को लगा की भोर हो गई है और मुहर्त तो निकल चुका है।और उधर माताजी इंतजार करते ही रह गई। जब शिवजी नहीं आए तो फिर देवी ने जीवन भर कुंवारी कन्या रहने ‌‌‌ का प्रण लेलिया और तपस्या के अंदर लीन हो गई ।

    जहाँ शिवजी रुक गए थे वहाँ पर आज भी कन्याकुमारी के पास में शुचीन्द्रम नामक स्थान पर उनका बहुत ही भव्य मंदिर हैं और उसके बाद बाणासुर को देवी के बारे मे पता चला तो वह उससे विवाह करने के लिए आए लेकिन देवी ने मना कर दिया तो बाणासुर ने देवी से बल पूर्वक विवाह करने की ठानी ।

    ‌‌‌और उसके बाद जब युद्ध शूरू हुआ तो माता ने प्रचंड रूप धारण कर लिया और बाणासुर की सभी सेना का नाश कर दिया और बाणासुर ने अपने पापों के लिए क्षमा मांगी और कहा कि उसकी आत्मा को मोक्ष मिले । और माता ने ऐसा ही आशीर्वाद दिया ।

    बायण माता पूर्ण सात्विक और पवित्र देवी हैं जो तामसिक और कामसिक सभी तत्वों से दूर हैं। ‌‌‌इस तरह से इस लेख के अंदर हमने बायण माता के बारे मे विस्तार से जाना कि किस तरह से उन्होंने जन्म लिया और किस तरह से वे प्रकट हुई अपने कार्य को किया और बाद मे लौट गई । ‌‌‌इस तरह से बायण माता को अनेक स्थानों पर पूजा जाता है।

    ‌‌‌शिसोदिया वंश के राजाओं के नाम

    दोस्तों आपको बतादें कि सिसोदिया वंश के कई सारे राजा हुए थे और उनकी लिस्ट हम नीचे दे रहे हैं। आप देख सकते हैं।

    • रावल बप्पा (काल भोज)  
    • रावल खुमान  
    • मत्तट   
    • भर्तभट्त 
    • रावल सिंह
    • खुमाण सिंह   
    • महायक  
    • खुमाण तृतीय 
    • भर्तभट्ट द्वितीय
    • अल्लट  
    • नरवाहन 
    • शालिवाहन
    • शक्ति कुमार  
    • अम्बा प्रसाद  
    • शुची वरमा
    • नर वर्मा 
    • कीर्ति वर्मा
    • योगराज  
    • वैरठ
    • हंस पाल 
    • वैरी सिंह 
    • विजय सिंह   
    • अरि सिंह 
    • चौड सिंह 
    • विक्रम सिंह   
    • रण सिंह (कर्ण सिंह)
    • क्षेम सिंह 
    • सामंत सिंह   
    • रतन सिंह
    • राजा अजय सिंह   
    • महाराणा हमीर सिंह 
    • महाराणा क्षेत्र सिंह  
    • महाराणा लाखासिंह  
    • महाराणा मोकल
    • महाराणा कुम्भा
    • महाराणा उदा सिंह  
    • महाराणा रायमल   
    • महाराणा सांगा (संग्राम सिंह)  
    • महाराणा रतन सिंह 
    • महाराणा विक्रमादित्य
    • महाराणा उदय सिंह 
    • महाराणा प्रताप
    • महाराणा अमर सिंह 
    • महाराणा कर्ण सिंह  
    • महाराणा जगत सिंह
    • महाराणा राजसिंह   
    • महाराणा अमर सिंह द्वितीय  
    • महाराणा संग्राम सिंह
    • महाराणा जगत सिंह द्वितीय  
    • महाराणा प्रताप सिंह द्वितीय  
    • महाराणा राजसिंह द्वितीय
    • महाराणा हमीर सिंह द्वितीय  
    • महाराणा भीमसिंह  
    • महाराणा जवान सिंह
    • महाराणा सरदार सिंह
    • महाराणा स्वरूप सिंह
    • महाराणा शंभू सिंह  
    • महाराणा सज्जन सिंह
    • महाराणा फ़तेह सिंह 
    • महाराणा भूपाल सिंह
    • महाराणा भगवत सिंह
    • महाराणा महेन्द्र सिंह

    श्री बाण माताजी का चमत्कार

    दोस्तों आपको बतादें कि देवी देवताओं के चमत्कार की अनेक कहानी भारत के अंदर मिलती हैं इसी तरह की एक कहानी बाण माता की भी है। कहा जाता है कि एक बार अलाउद्दीन ख़िलजी ने चितौड़ पर पुन फतेह हाशिल करने के लिए आक्रमण कर दिया और उस समय चितौड़ के महाराणा  हमीर सिंह  थे ।

    ‌‌‌और आपको बतादें कि फौज ने चितोड़ को चारो ओर से घेर लिया । और 6 महिने से भी अधिक चितौड़ पर खिलजी की सेना डेरा बनाए बैठी रही अंदर अन्न की कमी होने लगी तो महाराण हमीर सिंह को कोई रस्ता नहीं दिखा तो उन्होंने माता बाण से प्रार्थना की की वह उनकी रक्षा करें ।

    राणा हमीर सिंह माँ बायण के भक्त थे , केलवाड़ा स्थित मंदिर राणा हमीर सिंह ने ही बनाया था , हमीर सिंह माँ बायण के साधक थे और साधक की आराधना कभी विफल नही होती । और उसके बाद माता ने दर्शन देकर कहा कि कीले के अंदर किसी तरह की अन्न की कमी नहीं होगी और मैं खुद आपकी युद्ध के अंदर मदद करूंगी और उसके बाद ‌‌‌कीले के द्धार को  खोल दिया गया काफी भयंकर युद्ध हुआ और खिलजी की सेना को गाजर मूली की तरह काटा जाने लगा जिसकी वजह से खिलजी को वहां से अपनी जान को बचाकर भागना पड़ा ।और उसके बाद हमीर सिंह ने मां अन्न पूर्णा देवी का मंदिर भी बनाया था।

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