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    Home»history news»फूट डालो की नीति का क्या अर्थ है ? fut dalo raj karo ki neeti
    history news

    फूट डालो की नीति का क्या अर्थ है ? fut dalo raj karo ki neeti

    arif khanBy arif khanJune 23, 2021Updated:June 23, 2021No Comments22 Mins Read
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    फूट डालो शासन करो की नीति किसने अपनाई थी ? फूट डालो और राज करो यह निति भारतिय उपनिवेश के अंदर बहुत अधिक प्रचलित रही है।यहां पर आने वाले विदेशी लोगों ने इस नीति का बहुत अधिक प्रयोग किया खास कर अंग्रेजों ने भारत के लोगों को गुलाम बनाए रखने के लिए फूट डालो और राज करो की निति का प्रयोग किया । इसी निति के बल पर वे भारत मे 200 सालों ‌‌‌तक आसानी से राज कर सके ।यदि यह निति भारत मे लागू नहीं हो पाती तो मुठठी पर अंग्रेज इतने बड़े देश पर कैसे राज कर पाते  ? लेकिन अंग्रेजों ने अपने दिमाग का इस्तेमाल किया और भारत जैसे देशे को आसानी से लूटा ।

    फूट डालो और राज करो यह क्या है ? यह प्रश्न भी खड़ा हो जाता है। दरसअल फूट डालो और राज करो का मतलब यह है कि लोगों मे आपस मे ही भेदभाव पैदा करदो और जिससे कि वे आपस मे ही लड़ते रहें और किसी का भी ध्यान अंग्रेजी शासन के प्रति ना जा सके । और इसका मतलब भी यही है कि आपस मे भेद भाव पेदा करना ।

    ‌‌‌एक बार जब अंग्रेजों ने यहां के लोगों की कमजोर नस को पकड़ लिया तो वे अगले 200 सालों तक आसानी से इसका इस्तेमाल करते रहे ।

    और वैसे भी भारत जैसे देश के अंदर फूट डालो राज करो की निति बहुत अधिक सफल होती है। क्योंकि यहां के लोग खुद को ही दूसरी जाति से अच्छा मानते हैं।‌‌‌और लोग अनपढ़ होने की वजह से शास्त्रों का अच्छा ज्ञान नहीं था जिसकी वजह से  अंग्रेजों ने इस निति को सफल बनाने मे किसी प्रकार की कसर भी नहीं छोड़ी थी।

    फूट डालो की नीति का क्या अर्थ है

    ‌‌‌और वैसे भी अंग्रेज यह जानते थे कि भारत भले ही एक बडा देश है लेकिन इसके अंदर के राजा आपस मे लड़ते रहते हैं । उनमे किसी भी प्रकार की एकता नहीं है। भाई भाई का ही अंत करना चाह रहा है जो आज भी चल रहा है। ऐसी स्थिति मे अंग्रेजों के लिए राह आसान हो गई थी।

    ‌‌‌अंग्रेज यह भी जानते थे कि यदि विभिन्न समुदायों को आपस मे नहीं लड़ाया गया तो यह एक हो जाएंगे और उसके बाद यह अंग्रेजी शासन के खिलाफ विद्रोह कर देंगे। और इतने बड़े विद्रोह को दबाने के लिए अंग्रेजों के पास साधन भी नहीं थे ।

    Table of Contents

    • ‌‌‌भारत के राजा लड़ते थे आपस मे fut dalo raj karo kisne kaha tha
    • अंग्रेजों ने फूट डालो शासन करो की नीति कब अपनाई?
    • फूट डालो और राज करो की निति भारत मे कितनी सफल हुई ?
    • ‌‌‌भारत मे फूट डालो और राज करो की निति की सफलता के पीछे कारण
    • ‌‌‌अलग अलग धर्म के लोग
    • ‌‌‌भाषा के आधार पर भेदभाव पैदा करना
    • जातिगत बिलगाव
    • ‌‌‌धर्म भ्रष्ट करने का तंत्र
    • ‌‌‌आधुनिक समय मे फूट डालो और राज करो की निति का प्रयोग
    • ‌‌‌क्या भारत मे कभी फूट डालो राज करो की निति का प्रयोग बंद होगा
    • ‌‌‌सामाजिक सुधार का षडयंत्र
    • ‌‌‌व्यापार करने के उदेश्य से आए अंग्रेज कैसे भारत पर शासन कर गए ?

    ‌‌‌भारत के राजा लड़ते थे आपस मे fut dalo raj karo kisne kaha tha

    दोस्तों यह तो आपको पता ही होगा कि  भारत जैसे विशाल देश पर कई राजा अपने छोटे छोटे टुकड़े पर शासन करते थे । हर राजा की अलग अलग रियाश्ते थी । और वे आपस मे ही एक दूसरे के साथ लड़ने मे बिजी रहते थे । आपस मे अधिक संघर्ष की वजह से उनकी शक्ति कमजोर हो गई थी।‌‌‌इसके अलावा वे एक दूसरे के कट्टर दूश्मन भी बन चुके थे । कुछ राजा तो ऐसे थे जिन्होंने अपने पास की रियाश्त के राजा को समाप्त करने के लिए विदेशी ताकतों की मदद लेने लगे । जैसा कि आज हो रहा है।

    प्लासी का पहला युद्ध का नाम तो आपने सुना ही होगा जिसके अंदर अंग्रेजों ने अपनी फूट डालो और राज करो की निति का सफल प्रयोग किया । इस युद्ध के बाद ही भारत मे दासता की शूरूआत हुई जो आज तक जारी है।

    प्लासी का पहला युद्ध 23 जून 1757 को मुर्शिदाबाद के दक्षिण में 22 मील दूर नदिया जिले में गंगा नदी के किनारे ‘प्लासी’ नामक स्थान में हुआ था। इस युद्ध में एक ओर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना थी तो दूसरी ओर थी बंगाल के नवाब की सेना थी। लेकिन कलाइव ने सेनापतियों को ‌‌‌किसी तरह से षडयंत्र मे शामिल कर लिया था। और यह भी संभव है कि वे पहले से ही असंतुष्ट थे तो दुश्मनों के साथ जा मिले । इस प्रकार से कलाइव ने फूट डालकर अपने लिए रस्ता काफी आसान बना लिया ।

    इस युद्ध के द्वारा ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने बंगाल के नवाब सिराजुददौला को पराजित कर बंगाल में ब्रिटिश साम्राज्य की नींव डाली।और उसके बाद अंग्रेजों के लिए भारत के अन्य भागों पर अधिकार करना आसान हो गया ।

    ‌‌‌भारत के अन्य राज्यों पर अधिकार करने के लिए भी अंग्रेजों ने फूट डालों राज करो की निति का पालन किया । अंग्रेज उन सामान्तों को पैसे का लालच और पद का लालच देकर अपनी तरफ मिला लेते थे और उसके बाद युद्ध के अंदर राजा की हार निश्चित थी।

    ‌‌‌और आपस मे लड़ते हुए कमजोर राजा अंग्रेजों की ताकतवर सेना से लड़ने मे कहां सक्षम थे तो बहुत से राजाओं ने तो ऐसे ही अपने राज्य पर अंग्रेजों के अधिकार को स्वीकार कर लिया था। और कुछ को बंदी बना लिया गया । जिन राजाओं ने ऐसे ही अंग्रेजों की अधिनता को स्वीकार किया था उनको अंग्रेजों ने महिने की ‌‌‌तनख्वाह भी देना शूरू कर दिया था।

    अंग्रेजों ने फूट डालो शासन करो की नीति कब अपनाई?

    ‌‌‌वैसे तो आपको बतादें कि अंग्रेज फूट डालों और राज करो की निति का प्रयोग काफी लंबे समय से करते आ रहे हैं। जैसा कि हम उपर जिक्र कर चुके हैं। लेकिन 1857 के बाद अंग्रेजों ने इस निति का प्रयोग करना और अधिक तेज कर दिया ।‌‌‌जैसे विद्रोह दुबारा ना हो । क्योंकि विद्रोह करने वाली ताकते आपस मे ही लड़कर कमजोर हो जाएंगी ।‌‌‌अंग्रेजों ने कई ऐसे कार्य किये जिससे यह साबित हुआ कि अंग्रेजों ने फूट डालों राजकरो की निति का बहुत अधिक प्रयोग किया ।नीची जातियों को भड़काना और आपसी भेदभाव को बढ़ावा देने का कार्य किया ।

    फूट डालो और राज करो की निति भारत मे कितनी सफल हुई ?

    दोस्तों फूट डालो राज करो की निति भारत मे बहुत अधिक सफल रही । कारण यह है कि भारत के अंदर बहुत ही प्रकार के लोग रहते हैं। और अनेक प्रकार की भाषाएं बोली जाती हैं। जो इंसान जैसी भाषा बोलता है वह उस भाषा से प्रेम करता है।‌‌‌अंग्रेजों ने कुछ भाषाओं को अच्छी साबित किया तो कुछ को अच्छी भाषा नहीं माना । इस प्रकार से एक तरफ जो एक भाषा बोलते थे वे खुद को श्रेष्ठ समझते थे और दूसरी भाषावालों से नफरत करते थे ।‌‌‌इसी प्रकार से धर्म के आधार पर भी फूट डालने का कार्य अंग्रेजों ने किया । अंग्रेजों ने सीख और हिंदुओं को आपस मे लड़ाया और इसी प्रकार से मुस्लमानाओं और हिंदुओं को भी आपस मे लड़वाया ।

    ‌‌‌इस प्रकार से अंग्रेजों ने बड़े स्तर पर फूट डालो और राज करो की निति को लागू किया गया । अपने शासन को बनाए रखने के लिए अंग्रेजी शिक्षा को लागू किया गया । और आज भी भारत के अंदर जो बच्चे पढ़ते हैं वे अंग्रेजी माध्यम मे पढ़ते हैं और उनकी बुद्धि और सोच अंग्रेजों जैसी होती है। लोगों को जमीनी ‌‌‌स्तर पर काट कर ही तो अंग्रेज काफी लंबे समय तक राज आसानी से कर पाये थे ।छूआछूत जैसी समस्याएं भी बाद मे अंग्रेजों ने फूटडालो और राज करो की निति को बनाए रखने के लिए किया । अंग्रेज एक तरफ नीची जाति वाले लोगों को भड़काते थे । वहीं उची जाती वाले लोगों को क्ष्रेष्ठ बताने का प्रयास करते थे । जिससे ‌‌‌भी दोनों जातियों के लोग कभी भी एक नहीं हो पाते थे । और आपस मे ही उलझे रहते थे ।

    ‌‌‌दोस्तों भले ही 1857 की क्रांति असफल हो गई हो लेकिन इससे अंग्रेजों को यह एहसास हो चुका था कि यदि भारत के लोग एक जुट हुए तो वे अंग्रेजो का विनाश कर सकते हैं। तो उसके बाद ‌‌‌अंग्रेजों ने मुस्लिम समुदाय को भी दो भागों मे बांटने का प्रयास किया और उनको संतुष्ट करने का भी प्रयास किया यह भी अंग्रेजों की एक चाल ही कही जाएगी ।

     राजा अशरफ अली खां जिला मुख्यालय मोहम्मदी के, कप्तान फिदा हुसैन अटवा पिपरिया के, नियामत उल्ला खां जलालपुर के, शासिका चांद बीवी कोटवारा के, सैय्यद नवाब मर्दान अली खां बरवर जैसे लोगों ने भी 1857 ई मे अंग्रेजों का विरोध किया था।वहाबी आंदोलन व वली अल्लाह आंदोलन भी जोरों पर था । जिसके अंदर मुस्लमानों से एक जुट होने के बारे मे कहा गया था। और इस आंदोलन को अंग्रेजो ने 1870 ई के अंदर दबा दिया था।

    डब्लू हट्टर ने एक किताब के माध्यम से यह बताया कि मुस्लिम अंग्रेजों ने मिलें और उनके हितों को ध्यान मे रखकर निर्णय लिये जाएंगे । उसके बाद कुछ नेता अंग्रेजों से मिले और उन्होंने मुस्लमानों के लिए आधुनिक शिक्षा की बात कही ।

    सर सैय्यद अहमद खां ने 1875 में मुसिलम-एंग्लो ओरियंटल कालेज की स्थापना की थी। यह धार्मिक और संस्कृतिक पुर्नजागरण का केंद्र बन गया और यही संस्था सन 1920 ई के अंदर अलिगढ़ मुस्लिम युनिवर्सिटी बन गई ।

    सैय्यद अहमद खां की विचारधारा के विरोध में कुछ मुस्लिम उल्मा ने देवबंद अभियान चलाया था। इस प्रकार से आप समझ सकते हैं कि अंग्रेजों ने अपनी नितियों के माध्यम से मुस्लमानों मे भी दो फाड़ कर दिये थे ।

    30 दिसम्बर 1906 को ढाका में नवाब शमीउल्ला खां ने मुस्लिम लीग की स्थापना की थी। अंग्रेजों ने अपनी बुद्धि के बल पर मुस्लिमों के एक बड़े हिस्से को आंदोलन से अलग करने मे कामयाब रही । इस प्रकार से अंग्रेजों ने फूट डालो राज करों की निति का काफी सफल प्रयोग किया था।

    फूट डालो की नीति का क्या अर्थ है

    भीमा-कोरेगांव मे 201 साल पहले दलितों ने अंग्रेजों का साथ देते हुए मराठाओं को हराया था। कारण यह था कि मराठा दलितों पर बहुत अधिक अत्याचार करते थे । खैर एक तरह से यह भी अंग्रेजों की फूट डालो और राज करो की निति ही कहेंगे । अंग्रेज यह पहले से ही जानते थे कि दलितों पर अत्याचार होते हैं यदि हम  ‌‌‌दलितों को अपने साथ मिला लेते हैं तो फिर हमारे लिए काफी फायदेमंद हो सकता है।विजय स्तभ अभी भी यहां पर बना हुआ है। और इस लड़ाई के अंदर जो शहीद हुए थे उनके नाम भी यहां पर अंकित हैं।

    ‌‌‌दलितों का मानना था कि उनको यहां पर उचित सम्मान नहीं मिलता था। और पहले शिवाजी की सेना के अंदर दलित भी हुआ करते थे लेकिन बाद मे  बाजीराव द्वितीय ने दलितों को अपनी सेना मे भर्ति करने से इंकार कर दिया था जिससे कि दलितों मे काफी असंतोष पनप गया था।

    ‌‌‌पेशवाओं के अत्याचार की वजह से दलितों मे असंतोष था। चमार लोगों को गांव मे प्रवेश करते समय ही कमर मे झाडू बांध कर रखनी होती थी।इसके अलावा अपनी गर्दन पर बर्तन लटका कर रखना होता था।ताकि उनका थूक जमीन पर ना गिरे जिससे कि ‌‌‌दलित खुद को बहुत अधिक अपमानित महसूस करते थे ।

    ‌‌‌वैसे सिर्फ यह एक दलितों की ही कहानी नहीं है।वरन अधिकतर छोटी जाति वाले लोगों पर उंचि जाती के लोग काफी अत्याचार करते थे । जिसकी वजह से वे काफी असंतुष्ठ थे । और अंग्रेजों ने इसका पूरा फायदा उठाया ।

    ‌‌‌अंग्रेजी नीची जाति वाले लोगों को भड़काने लगे ।और उनको अलग थलग कर दिया । इस प्रकार से अंग्रेज यह समझते थे कि यदि यह नीची जाति वाले लोग उंची जाति वाले लोगों का साथ नहीं देंगे तो फिर उनका काम आसानी से चलता रहेगा ।

    ‌‌‌इसके अलावा अंग्रेज काफी चौकन्ने रहते थे । जिस भी स्थान पर विद्रोह की गुंजाइस होती थी उसको किसी भी तरह से दबा दिया जाता था। अंग्रेज विद्रोह करने वाले नेताओं को लालच देकर अपनी तरफ भी मिला लेते थे । अक्सर भारत के कुछ ऐसे नेता भी हुए हैं जो अंग्रेजों के भगत बन गए थे । जिनके अंदर महात्मा  ‌‌‌गांधी और भी कई सारे नेताओं का नाम आता है।इस प्रकार से अंग्रेजों ने फूट डालो राज करो निति के तहत उन लोगों को काफी संतुष्ट रखने का प्रयास किया जोकि विद्रोह कर सकते थे और अंग्रेजी शासन की निंव को हिलाने की ताकत रखते थे ।

    ‌‌‌इसके अलावा अंग्रेजों ने शिक्षा पद्धति के अंदर भी काफी बदला प्राचीन गुरूकुल को समाप्त करते हुए अंग्रेजी शिक्षा को बढ़ावा देने का कार्य किया । जिससे कि लोग अंग्रेजों के गुलाम हो जाएं और अपनी संस्कृति से दूर ही रहें। अंग्रेजी शिक्षा पद्धति इसी प्रकार की थी कि ‌‌‌उसको पढ़ने के बाद व्यक्ति खुद को अंग्रेजों के समक्ष समझने लग जाता था और एक तरह से अनपढ़ लोगों का साथ देना बंद कर देता था। खुद को अंग्रेज दिखाता था। इस प्रकार से अंग्रेजों के द्धारा चलाई गई शिक्षा पद्धति भी काफी हद तक अपनी संस्कृति के अंदर फूट डालने का काम किया । उसने लोगों की मानसिकता  ‌‌‌को बदलने का प्रयास किया ।

     ‌‌‌इस प्रकार से अंग्रेजों ने एक वर्ग को दूसरे वर्ग से लड़ाने का पूर्ण पर्यत्न किया और उसका असर आज भी आपको देखने को मिलता है। यह अंग्रेजी संस्कार आज भी बच्चों के अंदर बने हुए हैं।‌‌‌खैर अंग्रेजों ने जो फूट डालो राज करो की निति को चलाया था । वह काफी सफल रही और उसी के बल बूते पर एक समाज को दूसरे समाज का शत्रू बनाया गया ताकि वे आपस मे लड़ते रहें।

    ‌‌‌और कुछ लोगों को विशेष अधिकार दिये गए ।यह भी अंग्रेजों की फूटडालो राज करो की निति का हिस्सा थे । जैसे कि निम्न जाति वालों की जमीन को हड़प लेना और खास जाति के लोगों से कर लेना । इस प्रकार से लोगों के अंदर आपस मे ही फूट पड़ने लगी ।‌‌‌जिससे वे एक दूसरे के ही दुश्मन बन बैठे ।

    ‌‌‌भारत मे फूट डालो और राज करो की निति की सफलता के पीछे कारण

    दोस्तों अंग्रेजों ने भारत के उपर राज करने की यह प्रभावशाली निति अपनाई और इसकी वजह से वे काफी लंबे समय तक शासक बने रहे । यही निति अंग्रेजो की मदद से आधुनिक नेता अपना रहे हैं। जिसके उपर हम बाद मे बात करने वाले हैं।

    ‌‌‌अलग अलग धर्म के लोग

    दोस्तों भारत मे फूट डालो और राज करो की निति के सफल होने का एक बड़ा कारण अलग अलग धर्म के लोग होना भी है। भारत मे सीख ,जैन बौ़द्ध ,हिंदु ,मुस्लिम आदि रहते थे। और सभी खुद को श्रेष्ठ साबित करने की होड़ मे रहते थे अंग्रेज सभी लोगों को आपस मे लड़वाने का काम करते तो दूसरी तरफ ‌‌‌कुछ विशेष धर्म के लोगों का समर्थ भी करते थे ।और आम लोग इतने जानकार नहीं थे

    कि अंग्रेजों की नितियों को समझ सके । इस वजह से भी फूट डालो राज करो की निति अधिक सफल रही । इसके अलावा ‌‌‌भी हर धर्म के अंदर श्रेष्ठ होने की भावना होती है। जिससे कि आपस मे ही संघर्ष पैदा हो गया और अंग्रेज अपनी सत्ता आसानी से चलाते रहे । यह प्रयोग अंग्रेजों का काफी सफल भी रहा ।

    ‌‌‌भाषा के आधार पर भेदभाव पैदा करना

    वैसे तो भारत के अंदर बहुत सारी भाषाएं बोलने वाले लोग रहते हैं। ऐसे मे हर कोई अपनी भाषा से प्रेम करता है। अंग्रेजों ने लोगों को भाषा के आधार पर बांटना शूरू कर दिया । जिससे कि कोई आंदोलन राजस्थान मे होता तो दूसरे लोगों को कहा जाता कि राजस्थानी बोलने वाले कर ‌‌‌रहे हैं। जिससे कि दूसरी भाषा बोलने वाले खुद को अलग समझने लगे । और धीरे धीरे अलग अलग भाषाओं के आधार पर भी लोग अलग अलग समझने लगे । जिससे वे संगठित नहीं हो सके और अंग्रेजों का काम काफी आसान हो गया ।

    जातिगत बिलगाव

    भारत मे जाति के आधार पर वोट लेना आज भी मौजूद है। उस समय एक उंची जाती हुआ करती थी तो दूसरी नीची जाति । उंची जाति के लोग नीची जाति का शोषण करते थे । ऐसी स्थिति के अंदर नीची जाति वाले लोग उंचि जाति वाले लोगों से रूष्ठ थे ।

    अब यदि कोई उंचि जाति वाला किसी प्रकार का विद्रोह करता ‌‌‌तो नीची जाति वाले लोग इसके अंदर शामिल नहीं होते थे । अंग्रेजों ने जाति की खाई को और अधिक गहरा किया । जिससे कि अंग्रेजों को फायदा यह हुआ कि लोग जाति के आधार पर बंट गए और जातियों की जड़े भारत मे बहुत गहरी होने की वजह से ‌‌‌अंग्रेजों ने इसका पूरा फायदा उठाया ।अंग्रेज यह जानते थे कि यदि कोई नीची जाति वाला आंदोलन करेगा तो उंची जाति वाले इसका विरोध करेंगे और उनको फायदा होगा । उनका शासन चलता रहेगा ।

    ‌‌‌धर्म भ्रष्ट करने का तंत्र

    दोस्तों अंग्रेजों के द्धारा चर्बी वाले कारतूस का प्रयोग करना भी फूट डालो और राज करो निति का एक हिस्सा था। वे चाहते थे कि जो लोग इस कारतूस का प्रयोग करेंगे वे धार्मिक नहीं रह पाएंगे और अपने धर्म से टूट जाने के बाद हिंदू एक नहीं हो पाएंगे । खास कर सेना मे भर्ति ‌‌‌सैनिक यदि एक हो जाते हैं तो यह उनके लिए एक बड़ा खतरा पैदा कर सकते हैं।अंग्रेजों ने चर्बी वाले कारतूस की मदद से भारत के धर्म पर काफी प्रहार किया क्योंकि धर्म आपको संगठित करने का प्रयास करता है।

    ‌‌‌इस प्रकार से आप समझ सकते हैं कि भारत मे फूट डालो और राज करो की निति कितनी अधिक सक्सेस रही ? भारत मे पूरा माहौल आसानी से अंग्रेजों को मिल गया तो वह सफल भी अच्छे तरीके से हुई ।

    ‌‌‌भारत मे भेद भाव पहले से ही अधिक था और जब यह अंग्रेजों ने देखा तो उन्होंने इस खाई को और अधिक बढ़ाना शूरू कर दिया । इतना ही नहीं अंग्रेजों ने अनेक अमीरों को अपनी तरफ मिलाया था जिससे कि वे दूसरे विद्रोहियों के लिए फंड ना दे सके और विद्रोह की कमर को तोड़ा जा सके ।

    ‌‌‌आधुनिक समय मे फूट डालो और राज करो की निति का प्रयोग

    दोस्तों फूट डालो और राज करो की निति सिर्फ अंग्रेजों तक ही सीमित नहीं रही थी। इसका प्रयोग 2021 के अंदर भी हो रहा है। यदि आप आज की राजनिति का निरिक्षण करेंगे तो पाएंगे कि आज भी इसी निति का प्रयोग होता है। फूट डालो राज करो की निति के ‌‌‌तहत ही मिडिया काम करता है।पीछले दिनों हाल ही मे यूपी के अंदर एक घटना हुई जिसके अंदर एक विडियो आया था कि कुछ हिंदुओं ने मुस्लमान को जय राम ना बोलने पर पीटा ।

     उसके बाद अनेक न्यूज चैनल इसके अंदर कूद पड़े और ‌‌‌नेता भी अपना ज्ञान बांटने लगे ।बाद मे पुलिस जांच के अंदर यह पता चला कि एक मुस्लिम को किसी दूसरे मुस्लिम ने मारा था । इसका कारण आपसी रंजिस था। खैर उसके बाद क्या था। पुलिस ने झूठ फैलाने वालों पर केस दर्ज किया ।

    ‌‌‌यह मामला पूरी तरह से फूट डालो और राज करो की निति का था।कुछ नेताओ ने इस मामले को मुस्लमानों का वोट पाने के लिए हिंदु मुस्लिम रंग देदिया । जिससे कि मुस्लमानों को लेगे कि नेता उनके हितैषी हैं।

    ‌‌‌यह तो सिर्फ एक मामला है।इस प्रकार के कई सारे मामले हैं जिसके अंदर एक धर्म के लोगों को दूसरे धर्म के लोगों के खिलाफ भड़काया जाता है। और उनके अंदर फूट डालकर वोटों की राजनिति की जाती है।

    ‌‌‌भारत मे राजनिति का स्तर जितना घटिया है।उतना शायद ही कहीं आपको देखने को मिलेगा । खैर इसके अलावा नेता जाति के आधार पर भी फूट डालने का प्रयास करते हैं। जैसे कि जो नेता निम्न जाति के वोट को पाना चाहते हैं वे निम्न जाति के लोगों को उंचि जाति के प्रति भड़काने का प्रयास करते हैं।

    ‌‌‌कई ऐसे मामले होते हैं।जिनको निम्न जाति बनाम उंचि जाति का दर्जा देदिया जाता है। इस प्रकार से भारत की राजनिति के अंदर फूट डालो और राज करो की निति अभी भी काफी अच्छे तरीके से फलित होती है। अक्सर आपने उंचि और नीची जाति के नारे के बारे मे सुना ही होगा । यह भी नेताओं की फूट डालो राज करो की ‌‌‌ निति का एक हिस्सा होते हैं।जिस नेता को जिस जाति के वोट मिलते हैं वह उसी के गुण गान करता है और दूसरी जाति को कमजोर और बेकार बताता है। उसी के हितों को ध्यान मे रखते हुए वह नियम और कायदे बनाता है।

    ‌‌‌इन सबके अलावा भी यदि आप गौर से देखेंगे तो पाएंगे ।कि कुछ खास नेताओं को खास जाति का ही वोट मिलता है। और वे उसी जाति के लिए करते हैं। आप समझ सकते हैं कि भारत मे फूट डालो और राज करो की निति आज भी कायम है। आज भी भारत के अंदर भाई भाई वैसे ही लड़ते हैं।

    ‌‌‌क्या भारत मे कभी फूट डालो राज करो की निति का प्रयोग बंद होगा

    देखिए भारत मे फूट डालो और राज करो की निति का प्रयोग तब तक बंद नहीं होगा । जब तक कि अनेक धर्म मौजूद हैं और अनेक जातियां मौजूद हैं। हां भविष्य के अंदर यदि देश के अंदर कोई एक धर्म के लोग रहने लगे या बन गए तो फिर अपने आप ही फूट ‌‌‌डालो और राज करो का प्रयोग बंद हो जाएगा ।इसके अलावा भारत मे मौजूद अनेक जातियां भी इसका कारण हैं। भारत की जातियों को समाप्त होना होगा तभी इसका प्रयोग बंद होगा । हालांकि अभी इसकी कोई भी संभावना नजर नहीं आ रही है।

    ‌‌‌सामाजिक सुधार का षडयंत्र

    दोस्तों अंग्रेजों ने अपनी फूट डालो राज करो की निति के तहत ही अंग्रेजों ने सामाजिक सुधार का ऐजेंडा चलाया । ऐसा नहीं है कि भारत के समाज मे कुरितिया नहीं थी । लेकिन कुछ ऐसे लोग थे जो अंग्रेजी माध्यम से पढ़े हुए थे और चाहते थे कि भारत के समाज की कुरितियां दूर हो । ‌‌‌इसके लिए अंग्रेजों ने बाल विवाह , शिशु हत्या आदि पर प्रतिबंध लगा कर उन लोगों को संतोष कर दिया ।जिससे भारत के कई नेताओं को लगने लगा कि अंग्रेजी सरकार भारत के हित मे है। इसी के बाद कई लोग अंग्रेजों के भगत बन गए थे ।

    ‌‌‌उच्च हैसियत रखने वाले लोगों को संतुष्ट करना अंगेजों की निति थी । जैसे कि अंग्रेज अक्सर महात्मा गांधी की बातों को मान लिया करते थे । क्योंकि अंग्रेज नहीं चाहते थे कि कोई विद्रोह पनपे । ‌‌‌यह सब कुछ एक षड़यंत्र से अधिक नहीं था। अंग्रेजों ने समाज के कुछ हिस्से को संतुष्ट करने का प्रयास किया ताकि वह शांत रहे । जबकि कुछ वर्गा के लिए अंग्रेजों ने कुछ नहीं किया ।

    ‌‌‌व्यापार करने के उदेश्य से आए अंग्रेज कैसे भारत पर शासन कर गए ?

    दोस्तों आपको यह जानकर हैरानी होगी कि अंग्रेज भारत पर शासन करने के लिए नहीं आए थे । वे अपने कच्चे माल को भारत के बाजारों मे बेचने के लिए भारत आए थे । लेकिन वे फूट डालो और राज करो की निति के तहत ही भारत के राजा बन गए ।

    ‌‌‌18 वीं शताब्दी के अंदर जब मुगल सम्राज्य शक्तिहीन हो गया तो फिर अंग्रेजों को भारत मे अपनी सत्ता को स्थापित होने का अवसर मिल गया था ।जिसका अंग्रेजों ने पूरा फायदा भी उठाया था।

    ‌‌‌अंग्रेजों ने संधियों से और कई क्षेत्रिय ताकतों को अपनी और मिला लिया । यह इनका उसी निति का हिस्सा था।और ब्रेटेने के लिए कच्चे माल को उपलब्ध करवाने पर इन्होंने बल दिया ।

    ‌‌‌अंग्रेज भारत से कम कीमत पर कच्चा माल खरीदते थे और तैयार माल भी कम कीमत पर बेचते थे । जिससे कि भारत के उधोग धंधे धीरे धीरे नष्ट होने लगे और लाखों लोग बेरोजगार हो गए ।

    ‌‌‌उसके बाद भारत के बाजार पर अंग्रेजों का एकाधिकार हो गया और अब ब्रेटेन से तैयार माल भारत के अंदर महंगे दामों पर बिकने लगा । अंग्रेजों ने अंग्रेजी शिक्षा तैयार की जिसका मकसद ऐसे लोग तैयार करना जो अंग्रेजी से प्रेम करें और उनको अपने धर्म से कोई लेना देना ना हो । आज करोड़ों ऐसे लोग उसी अंग्रेजी ‌‌‌ नीति की देन हैं। अंग्रेजी शिक्षा भी फूट डालो और राज करो की निति का हिस्सा थी। क्योंकि अंग्रेज जानते थे कि जो भारतिय अंग्रेजी सीख जाएगा । वह अपने आप ही अपनी भाषा और धर्म को तुच्छ समझेगा और अंग्रेजों के लिए फायदेमंद होगा । और हुआ भी ऐसा ही ।

    ‌‌‌जिन भारतियों ने अंग्रेजी को अच्छे से सीखा बाद मे उनमे से कई अंग्रेजों के भगत हो गए । और उनकी पूजा करने लगे । इसी प्रकार वे अंग्रेजों की नितियों से संतुष्ट रहते तो दूसरों को भी संतुष्ट करने का प्रयास करते थे ।

    ‌‌‌आज भी इसका प्रभाव आप देख सकते हैं।माता पिता अपने बच्चों को अंग्रेजी स्कूलों के अंदर पढ़ाते हैं और इसके लिए काफी महंगी महंगी फिस चुकाने के लिए तैयार रहते हैं। और अब तो भारत के लोगों को अंग्रेजी संस्कृति से इतना प्रेम हो चुका है कि ‌‌‌भारत के लोग भी वही करते हैं जोकि अंग्रेज करते हैं जैसे कि सड़क पर बैठ कर किस्स करना और फटे कपड़े पहनना । लोगों की मानसिकता पर अंग्रेजों ने काफी भयंकर प्रभाव डाला ।

    फूट डालो की नीति ही अंग्रेजों की एक बेहतरीन नीति थी। जिसकी मदद से वे इतने बड़े देश को कंट्रोल कर पाए । क्योंकि यदि इतने लोग एक साथ संगठित हो जाते तो अंग्रेजो को खदेड़ने के लिए काफी थे । लेकिन आपस मे लड़कर कमजोर हो चुके राजा और ‌‌‌ एक दूसरे की दुश्मनी का बदला लेने के लिए भारत के ही राजाओं ने अपने ही देश को बरबाद करने मे कोई कसर नहीं छोड़ी थी।

    फूट डालो और राज करो की निति का इस प्रकार से अंग्रेजों ने भारत मे काफी सफल प्रयोग किया यदि आपने गहराई से आज भी लोगों को देखा है तो वे अभी भी खुद को एक दूसरे से श्रेष्ठ समझने का प्रयास करते हैं जैसा कि वे गुलाम होने से पहले करते थे । इसका मतलब शायद एक नई गुलामी फिर होने वाली है। होगी जरूर लेकिन ‌‌‌ कब होगी इसका कोई भी पता नहीं ?

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