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    Home»technology and net»वायरिंग के प्रकार wiring kitne prakar ki hoti hai
    technology and net

    वायरिंग के प्रकार wiring kitne prakar ki hoti hai

    arif khanBy arif khanAugust 8, 2020No Comments17 Mins Read
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    ‌‌‌वायरिंग के बारे मे तो आप जानते ही हैं    हाउस वायरिंग कितने प्रकार के होते हैं ,types of wiring in hindi  के बारे मे पूरा डिटेल से देखेंगे।घरों ,भवनों और औधोगिक इकाइयों के उपकरणों को काम मे लेने के लिए व्यवस्थित विधुत इकाइयों को वायरिंग कहा जाता है।घरों ,भवनों और दुकानों आदि मे इस पद्धति को धरेलू वायरिंग के नाम से जाना जाता है।और औधोगिक उपयोग मे होने वाली वायरिंग को औधोगिक वायरिंग के नाम से जाना जाता है। ‌‌‌वैसे आज की वायरिंग के अंदर बहुत अधिक बदलाव हो चुके हैं।जिसमे से कुछ बदलावों के बारे मे हम चर्चा करेंगे ।

    wiring kitne prakar ki hoti hai
    • ‌‌‌जैसे दीवार पर लगने वाली गिटियों के स्थान पर अब पीवीसी से बने rawal plug का उपयोग किया जाता है।प्रष्ठिीय कन्डयूट पीवीसी क्लि्पों से कसे जाते हैं।
    • ‌‌‌आजकल वायरिंग के अंदर आज अच्छी विधुतरोधी केबल का प्रयोग किया जाता है जो बहुत अधिक लचकदार होती है और अच्छी गुणवकता की बनी होती है।
    • ‌‌‌घरों और भवनों के अंदर पीवीसी कंछयूट वायरिंग ही अच्छी रहती है ,जोकि सरल और सस्ती होती है। इसमे तारे डालना बहुत ही आसान होता है।
    • ‌‌‌वायरिंग के अंदर सभी प्रकार की सहायक सामग्री है वो पार्ली कार्बोनेट की बनी होती है। जैसे जिसकी रेटिंग 5 एम्पीयर से 16 एम्पीयर के बीच होती है। यह फलेश प्रकार की होती है जिसको वांछित मोडयूल के अंदर फिट करना बहुत ही आसान होता है।
    • ‌‌‌आजकल सभी माप जो हैं वो MKC प्रणाली के अंदर ही दिये जाते हैं। इंच गज का प्रयोग कम होता है।
    • वायरिंग के अंदर भू दोष की सुरक्षा के लिए भू क्षरण का प्रयोग किया जाता है। और चकती प्रकार की उर्जामापी का भी प्रयोग होता है।
    • ‌‌‌और आजकल की वायरिंग के अंदर फयूज का प्रयोग नहीं किया जाता है। उसके स्थान पर MCCB का प्रयोग किया जाता है जो सुरक्षा के अंदर काफी बेहतर तरीके से काम करती है।

    Table of Contents

    • ‌‌‌वायरिंग पद्धति का चुनाव choice of waring system
      • ‌‌‌स्थायित्व और टिकाउपन
      • ‌‌‌लागत
      • ‌‌‌सुंदरता
      • ‌‌‌विस्तार करना और नवीनिकरण करना आसान
      • ‌‌‌सुरक्षा की गारंटी
    • ‌‌‌वायरिंग की विधियां methods of wiring
      • ‌‌‌लूप संयोजन विधि
      •             Joint box or t connection
    • Types of wiring
    • Cleat wiring
      • लाभ
      • ‌‌‌हानिं
      • Instruction for cleat wiring as per isi
    • Batten wiring
      • ‌‌‌लाभ
      • ‌‌‌हानि
      • Instruction for batten wiring as per isi
    • Casing caping wiring
      • Advantage
      • Disadvantage
    • pVC  Casing caping wiring
      • ‌‌‌लाभ
      • ‌‌‌हानि
    • Surface conduit wiring
      • advantage
      • Disadvantage
    • Concealed conduit wiring
      • ‌‌‌लाभ
      •               ‌‌‌इसके नुकसान
      • ‌‌‌कंडयूट वायरिंग के निर्देश
      •     ‌‌‌वायरिंग के लिए भारतिय मानक संस्थान के नियम
    • ‌‌‌वायरिंग से जुड़ी कुछ सामान्य परिभाषाएं

    ‌‌‌वायरिंग पद्धति का चुनाव choice of waring system

    ‌‌‌किसी भी प्रकार की वायरिंग का चुनाव करने से पहले आपको कई बिंदूओं पर विचार कर लेना चाहिए ।ताकि आप एक अच्छी वायरिंग को चुन सके और आपके साथ कोई गलती ना हो ।

    ‌‌‌स्थायित्व और टिकाउपन

    जिस वायरिंग को आप चुन रहे हैं ।उसके अंदर स्थायित्व का गुण होना चाहिए । और यदि वह स्थायित्व से युक्त है तो आप उसे चुन सकते हैं। ऐसी वायरिंग का चुनाव ना करें जो कम स्थाई हो ।

    ‌‌‌लागत

    आपको वायरिंग के प्रकार का चुनाव करते समय लागत पर ध्यान देने की आवश्यकता है। आप देख सकते हैं कि वायरिंग की सुरक्षा लागत अधिक नहीं होनी चाहिए क्योंकि बाद मे समस्या आने पर आपको अधिक पैसे चुकाने पड़ सकते हैं।

    ‌‌‌सुंदरता

    वायरिंग दिखने मे सुंदर भी लगनी चाहिए ।वैसे भी आजकल सुंदरता का जमाना है तो सुंदरता को पहले नंबर पर रखा जा सकता है।

    ‌‌‌विस्तार करना और नवीनिकरण करना आसान

    वायरिंग इस प्रकार की होनी चाहिए कि उसका विस्तार करना बहुत ही आसान हो सके । क्योंकि यदि ऐसा नहीं होगा तो बाद मे आपको काफी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।

    ‌‌‌सुरक्षा की गारंटी

    वायरिंग इस प्रकार की हो कि उसके अंदर सुरक्षा की गारंटी हो जैसे वायरिंग के जलने के खतरे नहीं हो और अधिक सुरक्षित होनी चाहिए ।

    ‌‌‌वायरिंग की विधियां methods of wiring

    ‌‌‌वायरिंग करने के दो प्रमुख तरीके प्रचलित हैं जिनके बारे मे हम आपको नीचे बता रहे हैं।

    ‌‌‌लूप संयोजन विधि

    तारों की इस पद्धति का उपयोग तारों में सार्वभौमिक रूप से किया जाता है। लैंप और अन्य उपकरण समानांतर में जुड़े हुए हैं ताकि प्रत्येक उपकरण को व्यक्तिगत रूप से नियंत्रित किया जा सके। जब एक प्रकाश या स्विच में एक कनेक्शन की आवश्यकता होती है। ‌‌‌इस विधि के अंदर लाइन के फैज वायर को और न्यूट्रल को समानांतर मे लगाया होता है।इस विधि का प्रयोग ऐसे स्थानों पर किया जाता है जहां पर एक ही स्वीच से सब कुछ नियंत्रित करने की आवश्यकता हो ।

    • ‌‌‌इस का सबसे बड़ा नुकसान यह होता है कि इसमे आपको अधिक तार की आवश्यकता होती है और वोल्टेज गिरने की समस्याएं भी होती हैं।
    • ‌‌‌बक्सों की आपको आवश्यकता नहीं होगी
    • वायरिंग की आयु अधिक लंबी होती है।
    • वायरिंग के अंदर यदि कोई दोष आ जाता है तो उसको याद करना बहुत अधिक सरल होता है।

                Joint box or t connection

                ‌‌‌इस विधि के अंदर कई सारे बॉक्स का प्रयोग किया जाता है।और हर एक उपकरण के लिए अलग स्वीच का प्रयोग किया जाता है। इस वजह से यह घरों के लिए काफी उपयोगी होती है। इसमे वैसे तो कम केबल की आवश्यकता होती है लेकिन बॉक्स के अंदर आपको अधिक पैसा खर्च करना पड़ता है।

    Types of wiring

    ‌‌‌वायरिंग मुख्य रूप से 4 प्रकार की होती है और अलग अलग प्रकार की वायरिंग का अपना महत्व होता है। तो आइए जानते हैं वायरिंग के प्रकार के बारे मे ।

    Cleat wiring

    ‌‌‌इस प्रकार की वायरिंग के अंदर चीनी मिटटी के क्लीट का प्रयोग किया जाता है। इसके आधार पर तारों के अनुसार खांचे बने होते हैं। और एक उपर वाले क्लीट को ढक्कन क्लीट के नाम से जाना जाता है। और इन दोनों के बीच केबल होती है।

    ‌‌‌और इसको लकड़ी के पेचों की मदद से दीवार मे कस दिया जाता है।वायरिंग के अंदर स्विच , सॉकेट आदि को लगाने के लिए लकड़ी को ब्लॉक लगाए जाते हैं। और वायरिंग को खींच कर कसा जाता है। ‌‌‌इस प्रकार की वायरिंग सेना के बैरकों ,सर्कस आदि कुछ ऐसे स्थानों पर की जाती है जहां पर कुछ समय के लिए बिजली की आवश्यकता हो ।

    लाभ

    • ‌‌‌इसको शीघ्र ही की जा सकता है और आसानी से हटाया जा सकता है।सामग्री को दुबारा उपयोग किया जा सकता है।
    • इसमे दोष होने पर जल्दी से दूर किया जा सकता है।
    • इसके अंदर बदलाव करना बहुत ही आसान होता है।
    • यह सबसे अधिक सस्ती है।

    ‌‌‌हानिं

    • यह दिखने मे सुंदर नहीं है और लंबे समय तक उपयोगी नहीं रह पाती है।
    • तारों को बाहर से क्षति हो सकती है।
    • नमी वाले वातावरण के अंदर यह उपयुक्त नहीं है।
    • पीवीसी केबल का कोई उपयोग नहीं है।

    Instruction for cleat wiring as per isi

    • ‌‌‌यह वायरिंग नमी वाले स्थानों पर नहीं कि जा सकती है जब तक की नमी से बचने की उचित व्यवस्था ना हो ।
    • यह वायरिंग फर्श से 1.5m की उंचाई पर होनी चाहिए ।।
    • कंडयूट और ब्लॉक के निकट क्लीट लगाएं ।
    • वायरिंग खींच कर करें ।
    • केबलों को दीवार या छत से निकालें तो कंडयूट का प्रयोग करें और इसके दोनो और लकड़ी ‌‌‌का बुश लगा होना चाहिए ।
    • 250v ‌‌‌से अधिक की वायरिंग के लिए क्लीटों के बीच की दूरी 4cm तक होनी चाहिए ।

    Batten wiring

    ‌‌‌यह वायरिंग लकड़ी की पटटी पर की जाती है।इसी वजह से इसको बैटन वायरिंग के नाम से जाना जाता है। बैटन की मोटाई 12 एमएम और चौड़ाई 19एम एम , 25 एम एम या 50 एमएम माप की होती है। यह बैटन सागवान की लकड़ी होती है। ‌‌‌वायरिंग करते समय pvc rawl plug मे लकड़ी के पेंचों को कसा जाता है और आवश्यकता अनुसार टी जोड़ वैगरह का प्रयोग किया जाता है।

    • T joint
    • Right angle joint
    • Cross joint

    ‌‌‌बैटन पर अवरोधित केबल को 12 एमएम के क्लीपों से फिट किया जाता है और क्लि्प दो प्रकार के होते हैं। joint clip ,or link clip पहले टी आर एस केबल का प्रयोग किया जाता था लेकिन आजकल PVC  का प्रयोग होता है जो 105C पर भी ठीक से काम कर सकती है। ‌‌‌इसके अंदर 14swg ताम्र के तार का प्रयोग अर्थ के लिए किया जाता है और बैटन पर वार्निश होने की वजह से दीमक का भय नहीं होता है। ‌‌‌यह वायरिंग केवल भवन के अंदर ही की जाती थी लेकिन अब इसका प्रयोग नहीं किया जाता है।यह काफी सस्ती होती है

    ‌‌‌लाभ

    • यह अधिक टिकाउ होती है और कुछ सीमा तक आग को भी सह सकती है। दीवार की नमी भी इस पर कोई असर नहीं कर पाती है।
    • क्लीट वायरिंग थोड़ी महंगी है।
    • यह अम्ल और क्षार जैसी रसायनिक क्रियाओं को सहन कर सकती है।
    • यदि सही तरीके से किया जाए तो यह काफी सुंदर दिखती है।

    ‌‌‌हानि

    • ‌‌‌यह वायरिंग उन जगहों के लिए उपयोगी नहीं है जहां पर खुलावातावरण है। पानी और नमी मे यह उपयोगी नहीं होती ।
    • कुशलकारीगर की इसमे आवश्यकता होती है।
    • दीवार की नमी इसको नुकसान भी पहुंचा सकती है।

    Instruction for batten wiring as per isi

    • ‌‌‌इस वायरिंग को सूखी और सीधी व वर्निश की गई सागवान की लकड़ी पर ही किया जाना चाहिए ।
    • ‌‌‌केबलों और क्लि्पों को लगाने के बाद क्लिपों पर हथोड़े से चोट ना करें ।
    • वायरिंग को दीवार से गुजारते समय एक क्रोड और दो क्रोड केबल को अलग अलग कंडयूट का प्रयोग करते हुए अलग करना चाहिए ।
    • द्धि क्रोड केबलों को क्लिपों से फिक्स नहीं करना चाहिए ।
    • ‌‌‌बैटन की लकड़ों को पैंचों से फिक्स करना चाहिए और दो पैंचों के बीच की दूर 60 सेमी तक होनी चाहिए ।

    Casing caping wiring

    Casing caping wiring

    ‌‌‌इस वायरिंग के अंदर सागवान की लकड़ी की केसिंग केपिंग प्रयोग मे आती है।इसके आधार को केसिंग और उपर भाग को केपिंग के नाम से जाना जाता है। केसिंग मे दो र्झिरियां होती हैं। जिसमे इंसूलेटर होते हैं। और ढकन को इसके उपर कसा जाता है। ‌‌‌इसके अंदर विआर अवरोधित केबल होती है। इसके अंदर वायरिंग को नमी से बचाने के लिए विशेष व्यवस्था प्रयोग मे ली जाती है।इसके अलावा इसके अंदर टी जंक्सन वैगरह का भी प्रयोग होता है। ‌‌‌पूर्व मे यह वायरिंग घरों के अंदर प्रयोग की जाती थी लेकिन अब इसका प्रयोग घरो मे भी नहीं किया जाता है इसके स्थान पर अब PVC केसिंग केपिंग वायरिंग का प्रयेाग घरों मे होने लगा है।

    Advantage

    • यह sheathed और conduit वायरिंग सिस्टम की तुलना में सस्ती वायरिंग प्रणाली है
    • यह लंबे समय तक चलने वाली होती है।
    • यह तेल भाप ,और नमी से सुरक्षित है।
    • आवरण और कैपिंग में कवर तारों और केबलों के कारण बिजली के झटके का कोई खतरा नहीं है।
    • ‌‌‌यह दिखने मे काफी सुंदर होती है।

    Disadvantage

    • ‌‌‌इसके केसिंग और कैपिंग के अंदर आग लगने का खतरा रहता है।
    • इसको दीमक लगने का भी डर होता है।
    • वायरिंग को करने के लिए कुशल कारिगर की आवश्यकता होती है।
    • आजकल यह लकड़ी भी उपल्बध नहीं है।
    • महंगा मरम्मत और अधिक सामग्री की जरूरत है।
    • नमी का इस पर प्रभाव हो सकता है यह नमी वाले स्थानों पर उपयुक्त नहीं है।

    pVC  Casing caping wiring

    ‌‌‌आजकल यही वायरिंग प्रयोग मे ली जाती है। यह सरल है और दिखने मे काफी सुंदर भी होती है। यह घर की सतह पर लगाई जाती है। 12mmX  7mm x10mm ,25mm अदि मापो की पीवीसी वायरिंग का प्रयोग होता है। इसमे केबल डालकर केपिंग को पुश कर दिया जाता ह। इसके अंदर भी कई प्रकार के जोड़ वैगरह का प्रयोग होता है।

    Pvc ‌‌‌केसिंग केपिंग ढलान और चपटी बनाई जाती है। रोल प्लग को केसिंग को फिट करने के लिए 75एमएम की दूरी पर लगाये जाते हैं। इस वायरिंग मे पुश फिट जोड़ का प्रयोग किया जाता हैं और कंडयूट का प्रयोग करके वायरिंग को दीवार और छत से निकाला जाता है।

    ‌‌‌लाभ

    • ‌‌‌यह वायरिंग सरल है और कम समय मे की जा सकती है।
    • दिखने मे भी काफी सुंदर होती है।
    • और आसानी से इसको हटाया जा सकता है।

    ‌‌‌हानि

    • यह औधोगिक कार्यो मे उपयोगी नहीं है।
    • यह अधिक तापमान को सहन नहीं कर सकती है।
    • काफी महंगी होती है।
    • वायरिंग के लिए एक्सपर्ट की आवश्यकता होती है।

    Surface conduit wiring

    Surface conduit wiring

                        ‌‌‌इसमे एक लौहे का कंडयूट प्रयोग मे लिया जाता है और उसको दीवार के उपर लकड़ी की गिटियों पर सैडल की मदद से फिट किया जाता है और सैडल को कंडयूट को पकड़ने के लिए प्रयोग मे लिया जाता है। इसमे इस्पात के कंडयूट का प्रयोग होता है। ‌‌‌इसके अंदर कई सारी चीजों का प्रयोग होता है। और उन सभी को ढलवा लौहे का बनाया जाता है।

    • Junction box one way
    • Junction box two way
    • Junction box 3 or 4 way
    • Bend
    • Inspection band
    • Elboe
    • Saddle
    • Inspection tee
    • Rubber bush  

    ‌‌‌सामग्री को पाइप के अंदर फिट करने के लिए चूडिया बनी होती हैं। जिसको डाई से काटा जाता है। और वायर को कंडयूट के अंदर क्लीप की मदद से लेकर जाया जाता है। वैसे इस्पात के कंडयूट की वायरिंग आजकल उधोगों मे प्रयोग होती है क्योंकि वहां पर आग लगने का बहुत अधिक खतरा होता है।

    pVC कंडयूट का भी आजकल प्रयोग होने लगा है। इसके अंदर किसी प्रकार की जुड़ी का प्रयोग नहीं होता है यह पुश फिट प्रकार की होती है। पाइप को काटना भी बहुत ही सरल होता है। पीवीसी पाइप को दीवार मे ठोक दिया जाता है और उसके बाद उसके अंदर से वायरों को निकाल लिया जाता है।

    advantage

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    • ‌‌‌सरफेस कंडयूट वायरिंग सरल होती है।
    • इसके अंदर दोष की तलास करना बहुत ही आसान है।
    • वायरिंग करने मे किसी तरह की समस्या नहीं होती है।
    • यह कम महंगी होती है।

    Disadvantage

    • ‌‌‌उधोगों के अंदर पीवीसी कंडयूट वायरिंग उपयुक्त नहीं है।
    • तापमान की वजह से नुकसान हो सकता है।
    • इस्पात कंडयूट वायरिंग महंगी होती है।

    Concealed conduit wiring

    Concealed conduit wiring

    ‌‌‌यह वायरिंग आजकल बड़े बड़े घरों ,होटलों और कार्यालयों के अंदर होती है।जब भवन का निर्माण होता है तो छत के निर्माण के साथ ही पीवीसी कंडयूट या इस्पात के पाइप डाल दिये जाते हैं और दीवार पर पलस्तर होने से पूर्व छीनी और हथोड़ों से पाइप को फंसा दिया जाता है।‌‌‌उसके बाद जब पलस्तर हो जाता है तो सारे पाइप ढक जाते हैं। उसके बाद बॉक्स के अंदर फिश तार के द्वारा केबल को खींचा जाता है। यह वायरिंग देखने मे काफी सुंदर लगती है और उधोगों मे यह सबसे अधिक प्रयोग मे ली जाती है।

    ‌‌‌लाभ

    • नमी वाले स्थानों पर यह सबसे अधिक उपयोगी होती है।
    • अर्थिंग होने की वजह से विधुत झटकों की संभावना नहीं होती है।
    • दोष भी सरलता से देखे जा सकते हैं।
    • यह सुंदरता बनाए रखती है।

                  ‌‌‌इसके नुकसान

    • सबसे बड़ा नुकसान तो यह है कि इस्पात की वायरिंग काफी महंगी होती है।
    • कार्य करने के लिए कुशल व्यक्ति की आवश्यकता होती है।
    • फाल्ट वैगरह आने पर काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है।

    ‌‌‌कंडयूट वायरिंग के निर्देश

    • कंडयूट वायरिंग के संहवाहक बिना छेद वाली सामग्री के बने होने चाहिए ।
    • कंडयूट वायरिंग को पाइप लाइन से दूर रखें ।
    • एक सर्किट के लिए एल्बों की संख्या अधिकतम सिर्फ 5 ही रखें ।
    • ऐल्बो या पाइप कसने के बाद चूडिया दिख रही हैं तो उसके उपर पेंट करदें वरना जंग जग सकता
    • ‌‌‌कंडयूट की चूडियां 12एम एम से लेकर 25 एमएम तक ही होनी चाहिए।
    • कंडयूट की लंबाई बढ़ाने के लिए युग्मक का प्रयोग किया जा सकता है।
    • बॉक्सों को खुली जगह पर लागाएं ताकि केबल को खींचते समय कोई परेशानी नहीं हो ।
    • ‌‌‌कंडयूट वायरिंग के अंदर सहायक सामग्री को इन्फेक्सन टाइप की रखा जाना बहुत ही जरूरी होता है।
    • मैटल कंडयूट को अच्छी तरह से भू से जोड़ दिया जाना चाहिए ।
    • इसके अंदर अच्छे इंसुलेसन वाली केबलों का ही प्रयोग किया जाना चाहिए ।
    • ‌‌‌स्विच बोर्ड की प्लेट को इंसुलेसन से बनाया गया होना चाहिए ।
    • इसयके अंदर स्विच बॉक्स ढलवा लौहे के बने होने चाहिए और यह दीवार के सतह पर समतल होने चाहिए ।

        ‌‌‌वायरिंग के लिए भारतिय मानक संस्थान के नियम

    • हर सब सर्किट पर लाइट और पंखों के 10 प्वाइंट और 5 आउटलेट सर्किट से अधिक नहीं होना चाहिए ।सब सर्किट पर केवल 800 वॉट तक का ही लोड होना चाहिए ।
    • हर सब सर्किट का लोड किसी भी हालत मे 1000 वॉट से अधिक होना नहीं चाहिए ।
    • ‌‌‌स्विच सही जगह पर लगा होना चाहिए और स्वीच खिड़की या दरवाजे की आड़ मे नहीं होना चाहिए हो सके तो स्वीच को दरवाजे की उंचाई से अधिक उंचाई पर लगाना चाहिए ।
    • स्वीच और बेल पुश सही तरीके से दिखने चाहिए जहां पर अंधेरे के अंदर इनका प्रयोग करना होता हो ।
    • ‌‌‌गहरे अंधेरी जगहों पर आपको डोर स्वीच का प्रयोग करना चाहिए।
    • रसोई घर के अंदर लाइट को इस प्रकार से सैट किया जाना चाहिए ताकि सही जगह पर आसानी से रोशनी जाती रहे ।
    • सोने वाले कमरे के अंदर बिस्तर के पास आप लाइट के कट्रोल को कर सकते हैं।
    • ‌‌‌स्नानघर के अंदर आपको छत के उपर लाइट का प्रयोग किया जाना चाहिए और इसकी स्वीचों को बाहर की तरफ लगा होना चाहिए
    • घर के बाहर की लाइट को वॉटरप्रूफ होना चाहिए ।
    • सभी सॉकेट 3 पिन वाले होने चाहिए और हर पिन कनेक्ट होना चाहिए ।
    • ‌‌‌बाथरूम सॉकेट आटलेट 130 सेमी नीचे नहीं होना चाहिए ।
    • एसी 3 फेज मे लाल ,पीला नीला फेस के लिए और काला न्यूटल के लिए होते हैं।
    • डीसी के अंदर लाल पोजिटिव नीला नगेटिव और काला न्यूट्रल होता है।
    • ऐसी सिंगल फेज मे लाल फेज व काला न्यूट्रल है।
    • वायरिंग के अर्थिंग के लिए तांबे कि 14swg तार का ‌‌‌प्रयोग किया जाना चाहिए ।
    • ‌‌‌मोटरों को डबल अर्थ के लिए तांबे के तार का प्रयोग किया जाना चाहिए ।
    • वॉल सॉकेट कम से कम 20 सेमी और अधिकत ढेड मीटर की उंचाई पर लगाएं ।
    • पॉवर परिपथ हेतु ताम्र काट का क्षेत्रफल 1.5mm2  होगा ।
    • 10 एम्पीयर तक की करंट के लिए अलॉय फयूज प्रयोग किया जा सकता है।
    • ‌‌‌फयूज एलीमेंट रेटेड करंके 2 गुण तक पिघल जाना चाहिए ।
    • यदि आप अच्छी वायरिंग करना चाहते हैं तो आपको एमसीबी का ही प्रयोग करना चाहिए ।
    • सप्लाई मीटर की किसी भी प्रकार की शील नहीं टूटनी चाहिए ।
    • ‌‌‌सर्किट मे यदि फुल लोड करंट बह रही हो तो कुल वोल्ट का 3 प्रतिशत से अधिक वोलटपात नहीं होना चाहिए ।
    • ‌‌‌वायरिंग छत से 1 मिटर नीचे रखें ।
    • कंडयूट पर सैंडल एक मीटर से अधिक दूर पर नहीं लगाना चाहिए ।
    • इस्पात कंडयूट को अच्छी प्रकार से भू सपंर्क किया जाना बेहद ही आवश्यक होता है।
    • सप्लाई मीटर की उंचाई कम से कम 1 मीटर की होनी चाहिए ।
    • ‌‌‌विधुत सप्लाई मीटर ऐसे स्थान पर लगाना चाहिए ताकि विधुत रिडर उसको आसानी से देख सके ।
    • बहु मंजिला इमारत के अंदर जिसमे कई सारी दुकाने हों वहां पर अलग अलग मीटर लगे होने चाहिएं ।

    ‌‌‌वायरिंग से जुड़ी कुछ सामान्य परिभाषाएं

    ‌‌‌वायरिंग से जुड़ी कुछ सामान्य परिभाषाएं
    • भू क्षरण परिपथ वियोजक ELCB

    जिन वायरों को भू परिपथ या रिले के द्धारा भू से जोड़ा जाता है ।उसे ही भू क्षरण परिपथ वियोजक  के नाम से जाना जाता है।

    • ‌‌‌परिपथ वियोजक

    परिपथ वियोजक वह होता है जो सर्किट को जोड़ने और तोड़ने का काम करता है। धारा या वोल्ट का मान बढ़ने पर यह सर्किट को ब्लॉक कर देता है।

    • नंगा संवाहक

    इसका अर्थ होता है कोई भी ऐसा चालक जिसके उपर कोई विधुत रोधी परत ना चढ़ी हो ।

    • ‌‌‌पी वी सी विधुत रोधी केबल

    केबल के संवाहकों पर जो विधुत रोधी आवरण चढ़ा होता है। उसे पीवीसी केबल के नाम से जाना जाता है।

    • उच्च वोल्टेज  का मतलब होता है जो 650 वोल्ट से अधिक हो
    • ‌‌‌मध्यम वोल्टता का मतलब होता है जो 250 वोलट से अधिक किंतु 650 वोल्ट से कम हो और निम्न बोल्टता का मतलब होता है जो 250 वोल्ट से अधिक ना हो
    • स्वीच वह ईकाई है जो सर्किट को ऑन और ऑफ करने के लिए प्रयोग मे ली जाती है।
    • ‌‌‌औधोगिक स्थल वह होता है जहां पर इकाइयों का उत्पादन करने के लिए अनेक प्रकार की मशीने लगी होती हैं।और अनओधोगिक क्षेत्र का मतलब होता है घरेलू इलाका ।

                                        वायरिंग कितने प्रकार की होती है ? लेख के अंदर हमने वायरिंग के अलग अलग प्रकार और इसके फायदे व नुकसान के बारे मे जाना । हमे यकीन है कि आपको यह लेख पसंद आया होगा । यदि लेख पसंद आया तो कमेंट करके बताएं ।

    arif khan
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