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    Home»‌‌‌धर्म और त्यौहार»कृष्ण जन्माष्टमी व्रत कथा krshn janmaashtamee vrat katha आरती विधी व महत्व
    ‌‌‌धर्म और त्यौहार

    कृष्ण जन्माष्टमी व्रत कथा krshn janmaashtamee vrat katha आरती विधी व महत्व

    arif khanBy arif khanJuly 24, 2020Updated:May 23, 2021No Comments25 Mins Read
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    इसके अंदर हम कृष्ण जन्माष्टमी व्रत कथा krshn janmaashtamee vrat katha आरती विधी व महत्व के बारे मे पुरी तरह से जानेगे ।

    विष्णु भगवान के अनेक अवतार के बाद मे कृष्ण जी का अवतार हुआ था जिनमे उनका नम्बर 8 था । अनेक कथाओ से पता चलता है की कृष्णजी का जन्म   द्वापरयुग मे हुआ था । अनेक ग्रथो मे से एक ग्रथ भगवद्गीता है जिसमे कृष्ण के बारे मे बताया गया है । कृष्ण जी का जन्म किसी ‌‌‌ओर ने किया था और उनका पालन किसी ओर ने किया था ।

    ‌‌‌इसी कारण कृष्ण जी को यशोदा का लाल कहा जाता है पर उसकी माता का नाम देवकी और पिता का नाम वसुदेव है । देवकी का पुत्र कंस का वध करेगा इसी कारण कंस ने देवकी के सात पुत्रो को मार ढाला और आठवा पुत्र कृष्ण थे । ‌‌‌अर्जुन को महाभारत मे भगवद्गीता का ज्ञान देकर पापियों का वध कराया था । कृष्ण जी ने इस संसार से छुकारा ‌‌‌पाने के बारे मे महाभारत मे बताया था ।

    कृष्ण जन्माष्टमी व्रत कथा

    Table of Contents

    • कृष्ण जन्माष्टमी व्रत कथा
    • ‌‌‌विधी
    • महत्व
    • जन्माष्टमी व्रत की आरती
    • कृष्ण चालीसा
    • कृष्ण ‌‌‌जी ‌‌‌के भजन

    कृष्ण जन्माष्टमी व्रत कथा

    एक बार कि बात है देवराज इंद्र ने नारदजी  से पुछा कि है देव कोई ऐसी कथा सुनाइए जिससे मोक्ष प्राप्ती होती है । साथ ही मनुष्य का जीवन सरल हो जाता है । नारदजी  ने इंद्र की बातो को सुनकर कहा की हे देव त्रेतायुग के अंत ‌‌‌में और  द्वापर युग के प्रारंभ के समय कि बात है

    उस ‌‌‌समय एक कंस नाम का दैत्य होया करता था । जो बहुत ‌‌‌अधीक पाप करता था । उसका पाप बढता जा रहा था ‌‌‌तभी उसे पता चलता है कि उसका वध उसकी ही बहन के पुत्र से ‌‌‌हागा ।

    ‌‌‌नारदजी की बातो को सुन कर इंद्र ने कहा की कंस का वध उसकी बहन का ही पुत्र करेगा क्या यह ‌‌‌सम्भव हो सका था और यह सब केसे हुआ था । हे नारदजी आप मुझे सुरु से लेकर इस कथा को विशतार से सुनाए । नारद जी ने कहा कि एक बार कंस ब्राह्मणों के पास गए थे ।

    और उन सभी ब्राह्मणों से कहा कि आप ‌‌‌में सबसे श्रेष्ठ ज्योतिर्विद कोन है जो ‌‌‌मेंरी मृत्यु के बारे ‌‌‌में बता सकता है । तब वहा पर सभी बहुत घबरा गए की यह पापी कंस हमसे क्या कह रहा है और जब हमने कुछ बता दिया तो वह ह‌‌‌में मार भी सकता है ।

    ‌‌‌तब एक ज्योतिषी ‌‌‌बोला की हे ‌‌‌महाराज कंस आप इस संसार ‌‌‌में बलवान है पर आपकी बहन जो अपके लिए अशुभ है जो वसुदेव की पत्नी है । ‌‌‌उसका पुत्र आपका वध करेगा जो सभी को हराने के बाद ‌‌‌में आपका वध सूर्योदयकाल के समय करेगा । जिसका नाम कृष्ण होगा वह बहुत बलवान होगा । और वह पुत्र आठवा होगा ।

    कंस ने उन ब्राह्मणो की बात सुनकर खामोस हो गया और वह सोचने लगा कि ‌‌‌मेंरी ही बहन का पुत्र ‌‌‌मेंरा वध करेगा । कंस ने उन ‌‌‌ब्राहमणो से कहा कि आप अब यह बताईए की वह किस मास में किस दिन ‌‌‌मेंरा वध करेगा ।

    कंस की बात को सुनकर ज्योतिषी ‌‌‌ने अपने ध्यान व ज्ञान के आधर पर कहा की हे महाराज कृष्ण आपका वध माघ मास की शुक्ल पक्ष की तिथि को करेगा । इस बात को सुनकर कंस ने कहा कि वह ‌‌‌मेंरा वध केसे करेगा तब ज्योतिषी ने कहा की वह 16 तरीको ‌‌‌से आपका वध करेगा ।

    ‌‌‌इतना कह कर ज्योतिषी ने कहा की है महाराज जो ह‌‌‌में पता चला वह बात हमने अपको बता दि है । अब आप अपनी सुरक्षा करे । तब इंद्र ने कहा की अब आप मुझे यह बताए की उस कंस का पाप केसा था और कृष्ण जी का जन्म केसे हुआ था ।

    नारदजी ‌‌‌ने इंद्र से कहते है कि उस दुष्ट पापी कंस ने अपने ‌‌‌द्वारपाल को अपने पास बुलाया और कहा की ‌‌‌द्वारपाल तुम ‌‌‌मेंरी बहन की रक्षा करना वह कहा पर जाती है वह क्या करती है उसका ध्यान रखना । कुछ समय के बाद देवकी महल से पानी लाने के लिए नदी के किनारे जाकर विलाप करने लग जाती है ।

    ‌‌‌वहा पर कुछ समय तो विलाप करतीहै फिर ‌‌‌वह नदी से पानी निकालकर वापस विलाप करने लग जाती है उसके विलाप को सुनकर वहा पर ‌‌‌‌‌‌यशोदा नाम की एक ‌‌‌स्त्री आती है और कहती है कि क्या हुआ बहन इस तरह से तुम क्यो रो रही हो ।

    ‌‌‌तुम मुझे बताओ अपने दुख को बांटने के कारण ही तो दुख दुर हो जाता है । ‌‌‌‌‌‌यशोदा की बात सुनकर देवकी ने कहा की ‌‌‌मेंरा भाई अत्यन्त दुष्ट है वह पापी है । ऐसा सुनकर ‌‌‌‌‌‌यशोदा माता ने कहा की तुम अपने भ्राता के बारे ‌‌‌में ऐसा क्यो कह रही हो । तब देवकी ने कहा कि ‌‌‌मेंरा भ्राता कंस है और वह ‌‌‌मेंरे सात पुत्र को मार चुका है।

    ‌‌‌और अब ‌‌‌मेंरी कोख ‌‌‌में ‌‌‌मेंरा आठवा पुत्र पल रहा है पर वह निच उसे भी मार देगा । उसकी बातो को सुनकर ‌‌‌‌‌‌यशोदा ने कहा की वह तुम्हारे पुत्रो को क्यो मार रहा है । तब देवकी ने कहा की बहन ‌‌‌मेंरे भ्राता को लगता है की ‌‌‌मेंरी कोख ‌‌‌से जो भी बालक होगा वह उसका वध करेगा ।

    ‌‌‌देवकी की बातो को सुन कर यशोदा ने कहा की है बहन तुम विलाप मत करो अबकी बार ऐसा नही होगा । यशोदा ने कहा की हे बहन तुम ऐसा करना कि मै भी गर्भवती हु और ‌‌‌मेंरे जो भी बालक होगा वह तुम अपने भाई के पास लेकर चली जाना और अपना बालक मुझे दे देना जिससे तुम्हारे पुत्र का वध नही होगा ।

    ‌‌‌कुछ समय के बाद महल ‌‌‌में कंस वापस आ गया और आते हि अपने द्वारपाल से कहा की देवकी कहा है । कंस के जबाब ‌‌‌में द्वारपाल ने कहा की वह नदी के किनारे जल लाने के लिए गई है । कंस यह सुनकर क्रोधीत हो जाता है और द्वारपाल से कहता है कि ‌‌‌मेंने यहा पर तुम्हे किस लिए ‌‌‌रखा है ।

    ‌‌‌मेंने तुम्हे कहा था कि उसका ध्यान ‌‌‌रखना और उसे महल के बाहर मत जाने देना । कंस ने द्वारपाल से कहा जाओ और जल्दी उसे वापस लेकर आओ । कंस कि आज्ञा मानकर उसका ‌‌‌द्वारपाल वहा से नदी कि और जाता है और वहा पर देवकी को देख कर उसे आराम मिल जाता है ।

    ‌‌‌द्वारपाल देवकी से कहता है यहा पर इतनी देर क्यो लग गई थी पर देवकी ने कुछ नही कहा और महल ‌‌‌कि और चलने लग गई । कंस ने जब देख की देवकी महल की और वापस आ रही है तो वह कहने लगा कि तुम बाहर क्या लाने के लिए गई थी । तब देवकी ने कहा की मै तो पानी लाने के लिए गई थी । घर ‌‌‌में पानी नही था । इतना कह कर देवकी महल ‌‌‌में चली जाती है ।

    कंस ने सोचा कि देवकी का पुरा ध्यान रखना होगा वह कही चली न जाए । तब ‌‌‌कंस ने अपने द्वारपाल को बुलाया और कहा की तुम यहा पर देवकी का पुरा ध्यान रखना ‌‌‌मै किसी भी तरीके कि गलती नही करना चाहता हू । कंस ने अपने महल के बाहर दरवाजे पर राक्षस व असुरो को खडा कर दिया था कि देवकी कही चली न जाए ।

    भादौ मास की कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि के रात को भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था । उस रात को आसमान ‌‌‌में चारो और घनघोर ‌‌‌वर्षा व आधी चल रही थी किसी को कुछ नही दिख रहा था । ऐसे हुआ था कृष्ण जी का जन्म ।

    नारद जी कहते है उस रात को सभी राक्षस सो गए थे । जो देवकी व उसका पति कारागार ‌‌‌में बंध था उसका दरवाजा स्वयं ‌‌‌खुल गया । तभी देवकी ने अपने पति वसुदेव से कहा की आप इस ‌‌‌बालक को यहा से लेकर गोकुल जाए और वहा पर नंद गोप की धर्मपत्नी यशोदा होगी जिसे तुम ‌‌‌मेंरा पुत्र दे आना ।

    यह सुन कर वसुदेव ने कहा की देवकी अगर यह सब जाग गए तो । देवकी ने कहा की यह जब तक नही जागेगे तब तक यह तुफान थम नही जाता और आप वापस नही ‌‌‌आ जाते । यह सुन कर देवकी का पति वसुदेव वहा से उसे लेकर चला गया ।

    पर गोकुल जाते समय बिच ‌‌‌में एक नदी आती है उसे पार करकर जाना था क्योकी उस रात को तेज ‌‌‌वर्षा हो रही थी इस कारण नदी ‌‌‌में भी बाढ आने लगी पर वसुदेव ने हार नही मानी और यमुना नदी ‌‌‌में उतर गया जैसे ही यमुना नदी ने कृष्ण जी को छुआ तो उसका ‌‌‌बाहव कम हो जाता है ।

    ‌‌‌वे नदी को पार कर कर गोकुल ‌‌‌में नन्द के घर जाकर अपना पुत्र उन्हे देकर उनकी पुत्री लेकर वापस महल आ गए और स्वयं व पुत्री को कारखाने ‌‌‌में बंद कर लेते है । ‌‌‌जिससे किसी को कुछ नही पता चल सके ।

    प्रात: काल जब सभी राक्षस व द्वारपाल जागे तो उन्होने बच्चे ‌‌‌के रोने ‌‌‌की आवाज सुनाई दी इसलिए द्वारपाल ‌‌‌ने देवकी के पास जाकर यह पता लगाया कि देवकी को कन्या हुई ‌‌‌है या फिर पहले की तरह लड़का हुआ है । द्वारपाल को पता चला की देवकी को तो कन्या हुई है फिर वह कंस को जाकर कह देते है कि महाराज देवकी के कन्या हुई है ।

    द्वारपाल की बात को सुनकर कंस को विश्वास नही हुआ की देवकी को सच ‌‌‌में कन्या हुई है । तब कंस स्वयं कारागार ‌‌‌में जाता है और देखता है कि देवकी ‌‌‌को कन्या हुई है । पर अब कंस को उस कन्या से भी डर लगने लगा था इस लिए कंस उस कन्या को उठाकर उसे मारने के लिए जैसे ही उपर से निचे फेका तो वह कन्या वही से गायब हो गई ।

    भगवान विष्णु ‌‌‌की माया थी वह केसे मर सकती है वह तो आकाश की और चली गई । आकास की ओर जाती हुई वह कन्या कंस से कहती है की हे दुष्ट कंस तुम मुझे क्या मारोगे और नही उस बालक को मार सकते हो ‌‌‌जो तुम्हारा काल बनकर आया है । अरे कंस ‌‌‌मै तो वैष्णवी हूं जो इस संसार ‌‌‌में तुझे समझाने के लिए आई थी ।

    ‌‌‌पर तुमने तो एक कन्या को भी नही छोडा । अरे कंस मै तो भगवान विष्णु की माया से बनी हूं । इतना कह कर वैष्णवी वहा से स्वर्ग की और चली जाती है । कंस को साथ मै यह भी कह कर गई की कृष्ण तो गोकुल गाव ‌‌‌में नन्द के घर ‌‌‌में पल रहा है । जो तेरा अंत करेगा ।

    कंस वैष्णवी की बातो को सुनकर क्रोधीत ‌‌‌हो जाता है । कंस ने तुरन्त पूतना राक्षसी को बुलाया । पूतना राक्षसी कंस के पास आकर कहती है कि महाराज क्या आज्ञा है ‌‌‌मेंरे लिए । उसकी बात को सुनकर कंस ने कहा की तुम गोकुल नाम के गाव ‌‌‌में जाओ और वहा पर नन्द के घर ‌‌‌में कृष्ण नाम के बच्चे को मार दो वह बच्चा ‌‌‌मेंरा काल बनकर आया है ।

    पूतना राक्षसी ने कहा की महाराज ‌‌‌आपने मुझे एक बच्चे को मारने के लिए बुलाया है । आप चिंता मत करो ‌‌‌में आपके काल कृष्ण को मार कर आपको शुभ समाचार जल्दी ही ‌‌‌दुगी । वह राक्षसी नन्द के घर ‌‌‌में चली जाती है ।

    वहा पर कृष्ण के बारे ‌‌‌में बाते चल रही थी वह सोचने लगी की मुझे किसी ‌‌‌औरत का रुप लेकर अंदर जाना ‌‌‌चाहिए जिससे मै आसानी से उस बालक को किसी को पता चले बिना ला सकती हूं । पूतना राक्षसी एक औरत का रुप धारण कर लेती है वह उस बालक के पास जाती है पर कृष्ण उस राक्षसी को देखकर मुस्कुरा रहे थे ।

    जिससे पूतना राक्षसी ने सोचा की बच्चा जितना हसना है हस ले तेंरे प्राण निकट ही है । वह उस बालको उठा कर ‌‌‌जगल की और चली जाती है और जगल ‌‌‌में जाकर अपने स्तनों से उसे दुध रुपी जहर पिलाने लग गई पर कृष्ण ‌‌‌ने उसके जहर को न पिकर उसे प्राण वायु को खिचने लग जाता है ।

    इससे राक्षसी को बहुत पिडा होने लग जाती है । वह कृष्ण से छुटकारा पाना चाहती थी पर जब कृष्ण ने उसे नही छोडा तो वह चिलाने लगी की बचाओ बचाओ । और अंत ‌‌‌में पूतना राक्षसी का अंत हो गया । जब कंस को पता चला की कृष्ण  ‌‌‌ने पूतना राक्षसी का ‌‌‌वध कर दिया है तो वह बहुत ही क्रोध ‌‌‌में आ गया ।

    कंस ने कृष्ण को मारने के लिए केशी नामक दैत्य को बुलाया और कहा की जाओ तुम उस कृष्ण रुपी ‌‌‌मेंरे काल को मार कर आओ । और कहा की जब तुम उसे मार दोगे तो तुम्हे उचीत भेट ‌‌‌मिलेगी । केशी नामक दैत्य ने अश्व का रुप लिया और वह कृष्ण को माने के लिए गया पर कृष्ण उसे भी मार देता है ।

    फिर कंस ने अरिष्ठ नामक दैत्य को भेजा था जो एक बैल के रुप ‌‌‌में था वह भी कृष्ण को नही मार सका वह ‌‌‌अपनी भी मृत्यु को प्राप्त हुआ । फिर कंस ने और ही भहयकर देत्य को बुलया था जिसका नाम काल्याख्य था । जो एक कौवे के रुप ‌‌‌में कृष्ण को मारने के लिए गया ।

    वह भी कृष्ण से मारा गया । काल्याख्य  के बाद  ‌‌‌में कंस बहुत ही भयभीत हो गया था वह अपने द्वारपाल को बुलाकर कहता है कि द्वारपाल तम गोकुल ‌‌‌में जाओ और नन्द को ‌‌‌मेंरे सामने ‌‌‌उपस्थित करो ।

    वह नन्द के पास जाकर कहता है कि नन्द तुम्हे महाराज कंस ने याद किया है जल्द ही ‌‌‌उनके सामने चलो नन्द कंस के द्वारपाल की बात सुकर कुछ डरा और सोचा कि अगर ‌‌‌में नही गया तो कंस पुरे गाव को मार ढालेगा ।

    नन्द द्वारपाल के साथ कंस के महल ‌‌‌में चला गया वहा पर जाते ही कंस ने कहा की नन्द ‌‌‌ अगर तुम्हे अपने प्राण प्रिय है और अपने गाव की सलामती चाहते हो तो पारिजात के पुष्प लेकर आओ वरना तुम्हारे साथ तुम्हारे गाव की भी मृत्य होगी ।

    ‌‌‌कंस की बातो को सुनकर नन्द ने कहा की महाराज आप चाहते है वेसा ही होगा ‌‌‌में पुष्प लेकर आ जाउगा । नन्द अपने घर की और रवाना हो गया और घर ‌‌‌में जाकर अपनी पत्नी को यह सब बात बताई । ‌‌‌जो कृष्ण को साफ सुनाई दे रही थी ।

    नन्द कह रहे थे की पारिजात का पुष्प तो यमुना नदी के अंदर है मै उसे केसे लाउगा । अगर नही ‌‌‌लाया गया तो दुष्ट कंस ‌‌‌मेंरे साथ साथ पुरे गाव को मार देगा । ऐसा सुन कर कृष्ण भी चिंतन करने लग गए । एक दिन वह अपने मित्रो के साथ गेंद  से खेल रहे थें ।

    कृष्ण ने सोचा की अगर वह गेंद को यमुना नदी ‌‌‌में फेक देगा तो वह यमुना नदी ‌‌‌में गेंद लाने के लिए चला जाएगा और वहा पर ही पारिजात का पुष्प  है । ‌‌‌ऐसा सोचकर कृष्ण ने यमुना नदी ‌‌‌में गेंद को फेक दिया ।

    जब गेंद नही दिख रही थी तो सभी मित्रो ने कहा की यह क्या कर दिया तुमने कृष्ण यमुना नदी ‌‌‌में गेंद गिरा दी है । अब तुम ही उसे वापस लेकर आओ । ऐसा सुनकर कृष्ण ने कहा की मै इस नदी ‌‌‌से गेंद को लेकर आ जाउगा । तब कृष्ण ने यमुना नदी ‌‌‌में छलाग लगा दी ।

    श्रीधर जल्दी से माता यशोदा के पास जाकर कहता है कि माता आपका पुत्र तो यमुना नदी ‌‌‌में कुद पडा है । यह सुनकर यशोदा बिना पैरो ‌‌‌में ‌‌‌कुछ पहने ही यमुना नदी की ओर भागने लगी । यमुना नदी के तट पर जाकर यशोदा माता ने यमुना नदी से प्राथना करती है

    की हे यमुना नदी अगर ‌‌‌मेरा ‌‌‌पुत्र सही सलामत वापस आ गया तो ‌‌‌मै भाद्रपद मास की रोहिणी युक्त अष्टमी का व्रत करुगी । क्योकी यह व्रत सब व्रतो से उपर माना जाता है । नारद ऋषि ने इंद्र से कहते है की कृष्णाष्टमी का व्रत जो भी कर लेता है वह सारे व्रत व हजारो यज्ञ कराने का फल एक साथ प्राप्त कर  लेता है ।

    तब इंद्र ने कहा की हे श्रेष्ठ नारद जी उस कृष्ण रुपी बालक यमुना नदी ‌‌‌में कुदने के बाद पाताल चला गया होगा वह पाताल ‌‌‌में जाकर क्या करता है यह बात भी बताईए । ‌‌‌तब नारद जी ने कहा की हे इंद्र वह बालक कृष्ण पाताल ‌‌‌में चला गया था वहा पर उसे नागराज की पत्नी मिली । वह कृष्ण से पुछने लगी की बालक तुम कोन हो और यहा पर क्या कर रहे हो ।

    ‌‌‌नागरानी ने कहा हे बालक तुमने द्यूतक्रीड़ा की है जो उस‌‌‌में तुम अपना धन हार गए हो और यहा पर कुछ धन लेने के लिए आए हो । नागरानी कहती है की हे बालक ‌‌‌तुम्हे यहा पर कुछ मोती हीरे आदी मिल जाएगे वह लेकर यहा से चले जाओ ।

    ‌‌‌इस समय यहा पर रहना तुम्हारे लिए अच्छा नही है क्योकी ‌‌‌मेरे पति ध्यान ‌‌‌में मगन है अगर वे जाग गए तो वे तुम्हे जीवित नही ‌‌‌छोडेगे यहा से जल्द ही चले जाओ । नागरानी की बात सुनकर कृष्ण ने कहा हे देवी ‌‌‌मै यहा पर पारिजात के पुष्प लेने के लिए आया हूं ऐसा सुनते ही वह अपने पति को जगती है और कहती है की हे स्वामी यहा पर शत्रु आया है आप इसका वध कर दे ।

    कालियानाग अपनी पत्नी की बात सुन कर उस पर टुट पडा युद्ध ‌‌‌में कृष्ण हारता जा रहा था वह मुर्झाने लगा था इसलिए वह गरुड को बुलाकर उस पर बैठ जाता है और कालियानाग से युद्ध करता ‌‌‌है ।

    कुछ समय तो वह कालियानाग से युद्ध करता रहा फिर कृष्ण ने कालियानाग को हरा दिया । कालियानाग बहुत घायल अवस्था ‌‌‌में पड गया । कालियानाग ने सोचा की यह गुरुड पर बैठ कर मुझसे युद्ध कर रहा था । गुरुड तो भगवान विष्णु का वाहन होता है ।

    यह अवश्य ही उनका अवतार ही है । यह सोनकर वह कृष्ण के ‌‌‌चरणो ‌‌‌में गिर गया और आपनी प्राजित से उत्पन्न अनेक पुष्प कृष्ण को भेट के रुप ‌‌‌में दी और कहा की है देव आप मुझे क्षमा करे ‌‌‌मेंने आपको पहचाना नही ।

    ‌‌‌कृष्ण कालियानाग के सिर पर बैठ कर उसे वहा से लेजाने लगे तब नागरानी बोली हें देव आप मुझे क्षमा कर दो ‌‌‌मेंने आपको पहचाना नही आप ‌‌‌मेरे पति को छोड दिजिए । तब कृष्ण ने कहा की हे नागरानी मै आपके पति को कंस के सामने लेजाकर छोड दुगा आप अब घर जाईए । ऐसा कह कर कृष्ण नृत्य करने ‌‌‌और कालियानाग के साथ गोकुल की नदी यमुना के तट पर आ गए ।

    ‌‌‌कालियानाग की गुहार से तिनो लोक कापते थे । कृष्ण कालियानाग के फन पर बैठ कर मथुरा की ओेर रवानो हो गए । जब कंस ने देखा की कृष्ण कालियानाग के फन पर बैठ कर मथुरा आया है तो वह बहुत भयभीत हो गया था । जब कृष्ण अपनी माता के पास पहूंचे तो यशोदा ने एक बडा आयोजन किया जिस मे गरीबो को भोजन कराया गया।

    नारद की बाता को सुनकर इंद्र ने कहा की हे महामुने जब कृष्ण मथुरा गए थे तो उन्होने क्या किया था वह भी बताए । नारद ने इंद्र से कहा मथुरा नगर यमुना नदी के दक्षिण भाग में स्थित है। वहां कंस का महाबलशायी भाई चाणूर रहता था। चाणूर से श्रीकृष्ण के मल्लयुद्ध की घोषणा हुई ।

    ‌‌‌जब कृष्ण जी चाणूर से युद्ध किया था तो चाणूर मारा गया । भगवान कृष्ण ने अपने नन्हे पेरो को चाणूर के गले मे फसा कर मारा था । कंस इस युद्ध को देख रहा था । ‌‌‌जब भगवान कृष्ण ने चरुण का वध कर दिया तो कंस ने केशी को बुलाया और कहा की जाओ तुम युद्ध करो और उस कृष्ण को मार दो जब केशी भी कृष्ण से मारा गया तो वह बहुत डरने लग गया ।

    पर ‌‌‌कंस ने हार नही मानी और आपने सारे सेनिको को बुलाकर उसे मारने के लिए कहा ‌‌‌अपने राजा की आज्ञा मानकर सभी सेनिक कृष्ण को माने के ‌‌‌लिए चल ‌‌‌पडे। जब कृष्ण ने देखा की कंस के सनिको की ‌‌‌सख्या बहुत है तो वह अपने भाई को याद करता है और उसका भाई बलराम वहा पर उपस्थित हो जाता है ।

    तभी श्री कृष्ण ने अपने सुर्दशन चक्र को निकाला और दोनो ने ही न जाने कितने देत्यो का वध कर दिया था । उनकी इस सक्ति को देखकर सभी कृष्ण की जय हो ‌‌‌ऐसा बोलने लग जाते है । पर अभी भी कंस जीवित था तब कृष्ण ने कंस से कहा की हे दुष्ट कंस मेने तुम्हे ‌‌‌समझाने का बहुत ‌‌‌प्रयास कराया था ।

    ‌‌‌आप नही समझ ‌‌‌सके अब तुम्हे इस संसार से मुक्त करने का समय आ गया है । ‌‌‌आप तो पापी ‌‌‌हो जो बार बार जानते हुए भी पाप कर ‌‌‌रहे थे ऐसा कहकर कृष्ण ने कंस को उठा कर पटका ‌‌‌और उसी क्षण कंस का खेल खतम हो गया था ।

    वह मर गया । नारद जी ने कहा हे इंद्र उस दिन सभी मथुरा व गोकुल के साथ साथ सभी देव व यशोदा नन्द देवकी वसुदेव आदी ने एक नये त्योहार के रुप मे मनाया और अपना जीवन सुख के साथ जिने की आशा की ।

    ‌‌‌विधी

    • भाद्रपद मास की कृष्णजन्माष्टमी को ‌‌‌यह व्रत को ‌‌‌किया जाता है ।
    • इस दिन ब्रह्मचर्य का पालन किया जाता है । इस दिन पिले वस्त्र पहने जाते है ।
    • स्नान कर कर भगवान कृष्ण की प्रतिमा को एक स्वच्छ स्थान पर स्थापित किया जाता है । ‌‌‌साथ मे एक कलश मे पानी रख लेवे ।
    • ‌‌‌एक थाल मे भगवान के लिए कुछ मखन और मिश्री ले जिनका उनको भोग लगाना होता है ।
    • ‌‌‌एक थाल मे दिया रखे और उसमे गाय का घी ‌‌‌डालकर जलाए और कृष्ण जी की ‌‌‌पूजा करे साथ मे देवकी को भी याद करे ।‌‌
    • ‌इस व्रत के दिन भगवान कृष्ण की पूजा करने के बाद गोपिका, यशोदा, वसुदेव, नंद, बलदेव, देवकी, गायों, वत्स, कालिया, यमुना नदी, गोपगण और गोपपुत्रों की भी पूजा करनी चाहिए ।
    • इस के बाद माता लक्ष्मी की भी पूजा करनी चाहिए ।
    • ‌‌‌‌‌‌पूजा करने के बाद मे कृष्ण जी को मक्खन व मिश्री का भोग लगाए ।
    • भगवान कृष्ण की आरती करे व माता लक्ष्मी की भी आरती करे आरती करने के बाद कृष्ण जी के भजन करे चालिसा का जाप करे ।
    • ‌‌‌अपने से बडो की सेवा करे और उन्हे प्रसाद खिलाए सभी से ‌‌‌मिलकर रहे ।

    महत्व

    • इस ‌‌‌का व्रत बहुत अधीक महत्व है । इस व्रत को करने से हजारो यज्ञ व अनेक व्रत करने से जो फल प्राप्त होता है वह एक साथ प्राप्त हो जाता है ।
    • व्रत को करने से भगवान कृष्ण का हाथ आप पर हमेसा रहता है और साथ ही धन की कोई ‌‌‌कमी नही आती है ।
    • ‌‌‌यह व्रत करने से भगवान शिव की भी कृपा हमेशा बनी रहती है क्योकी शिव जी नारायण को अपना गुरु मानते है ।
    • इस संसार से मुक्त हो जाता है । ‌‌‌यह व्रत करने से पाप समाप्त हो ‌‌‌जाते हैं ।

    जन्माष्टमी व्रत की आरती

    आरती कुंजबिहारी की श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की।

    गले में बैजन्तीमाला बजावैं मुरलि मधुर बाला॥

    श्रवण में कुंडल झलकाता नंद के आनंद नन्दलाला की। आरती…।

    गगन सम अंगकान्ति काली राधिका चमक रही आली।

    लतन में ठाढ़े बनमाली भ्रमर-सी अलक कस्तूरी तिलक।

    चंद्र-सी झलक ललित छबि श्यामा प्यारी की। आरती…।

    कनकमय मोर मुकुट बिलसैं देवता दरसन को तरसैं।

    गगन से सुमन राशि बरसैं बजै मुरचंग मधुर मृदंग।

    ग्वालिनी संग-अतुल रति गोपकुमारी की। आरती…।

    जहां से प्रगट भई गंगा कलुष कलिहारिणी गंगा।

    स्मरण से होत मोहभंगा बसी शिव शीश जटा के बीच।

    हरै अघ-कीच चरण छवि श्री बनवारी की। आरती…।

    चमकती उज्ज्वल तट रेनू बज रही बृंदावन बेनू

    चहुं दिशि गोपी ग्वालधेनु हंसत मृदुमन्द चांदनी चंद।

    कटत भवफन्द टेर सुनु दीन भिखारी की। आरती…।

    कृष्ण चालीसा

    जय यदुनंदन जय जगवंदन। जय वसुदेव देवकी नन्दन॥

    जय यशुदा सुत नन्द दुलारे। जय प्रभु भक्तन के दृग तारे॥

    जय नट-नागर, नाग नथइया॥ कृष्ण कन्हइया धेनु चरइया॥

    पुनि नख पर प्रभु गिरिवर धारो। आओ दीनन कष्ट निवारो॥

    वंशी मधुर अधर धरि टेरौ। होवे पूर्ण विनय यह मेरौ॥

    आओ हरि पुनि माखन चाखो। आज लाज भारत की राखो॥

    गोल कपोल, चिबुक अरुणारे। मृदु मुस्कान मोहिनी डारे॥

    राजित राजिव नयन विशाला। मोर मुकुट वैजन्तीमाला॥

    कुंडल श्रवण, पीत पट आछे। कटि किंकिणी काछनी काछे॥

    नील जलज सुन्दर तनु सोहे। छबि लखि, सुर नर मुनिमन मोहे॥

    मस्तक तिलक, अलक घुंघराले। आओ कृष्ण बांसुरी वाले॥

    करि पय पान, पूतनहि तार्‌यो। अका बका कागासुर मार्‌यो॥

    मधुवन जलत अगिन जब ज्वाला। भै शीतल लखतहिं नंदलाला॥

    सुरपति जब ब्रज चढ़्‌यो रिसाई। मूसर धार वारि वर्षाई॥

    लगत लगत व्रज चहन बहायो। गोवर्धन नख धारि बचायो॥

    लखि यसुदा मन भ्रम अधिकाई। मुख मंह चौदह भुवन दिखाई॥

    दुष्ट कंस अति उधम मचायो । कोटि कमल जब फूल मंगायो॥

    नाथि कालियहिं तब तुम लीन्हें। चरण चिह्न दै निर्भय कीन्हें॥

    करि गोपिन संग रास विलासा। सबकी पूरण करी अभिलाषा॥

    केतिक महा असुर संहार्‌यो। कंसहि केस पकड़ि दै मार्‌यो॥

    मात-पिता की बन्दि छुड़ाई। उग्रसेन कहं राज दिलाई॥

    महि से मृतक छहों सुत लायो। मातु देवकी शोक मिटायो॥

    भौमासुर मुर दैत्य संहारी। लाये षट दश सहसकुमारी॥

    दै भीमहिं तृण चीर सहारा। जरासिंधु राक्षस कहं मारा॥

    असुर बकासुर आदिक मार्‌यो। भक्तन के तब कष्ट निवार्‌यो॥

    दीन सुदामा के दुख टार्‌यो। तंदुल तीन मूंठ मुख डार्‌यो॥

    प्रेम के साग विदुर घर मांगे। दुर्योधन के मेवा त्यागे॥

    लखी प्रेम की महिमा भारी। ऐसे श्याम दीन हितकारी॥

    भारत के पारथ रथ हांके। लिये चक्र कर नहिं बल थाके॥

    निज गीता के ज्ञान सुनाए। भक्तन हृदय सुधा वर्षाए॥

    मीरा थी ऐसी मतवाली। विष पी गई बजाकर ताली॥

    राना भेजा सांप पिटारी। शालीग्राम बने बनवारी॥

    निज माया तुम विधिहिं दिखायो। उर ते संशय सकल मिटायो॥

    तब शत निन्दा करि तत्काला। जीवन मुक्त भयो शिशुपाला॥

    जबहिं द्रौपदी टेर लगाई। दीनानाथ लाज अब जाई॥

    तुरतहि वसन बने नंदलाला। बढ़े चीर भै अरि मुंह काला॥

    अस अनाथ के नाथ कन्हइया। डूबत भंवर बचावइ नइया॥

    ‘सुन्दरदास’ आस उर धारी। दया दृष्टि कीजै बनवारी॥

    नाथ सकल मम कुमति निवारो। क्षमहु बेगि अपराध हमारो॥

    खोलो पट अब दर्शन दीजै। बोलो कृष्ण कन्हइया की जै॥

    कृष्ण ‌‌‌जी ‌‌‌के भजन

    आनंद उमंग भयो, जय हो नन्द लाल की

    नन्द के आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की

    बृज में आनंद भयो, जय यशोदा लाल की

    हाथी घोड़ा पालकी, जय कन्हैया लाल की

    जय हो नंदलाल की, जय यशोदा लाल की

    गोकुल में आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की

    कोटि ब्रह्माण्ड के अधिपति लाल की

    हाथी घोड़ा पालकी, जय कन्हैया लाल की

    गौ चरने आये, जय हो पशुपाल की

    गोकुल में आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की

    पूनम के चाँद जैसी शोभी है बाल की

    हाथी घोडा पालकी, जय कन्हैया लाल की

    भक्तों के आनंदनद जय यशोदा लाल की

    हाथी घोड़ा पालकी, जय कन्हैया लाल की

    जय हो बृज लाल की,पावन प्रतिपाल की

    गोकुल में आनंद भयो, जय कन्हिया लाल की

    गौ चरने आये, जय हो पशुपाल की

    नन्द के आनंद भयो, जय कन्हिया लाल की

    आनंद उमंग भयो, जय हो नन्द लाल की

    नन्द के आनंद भयो, जय कन्हिया लाल की

    ‌‌‌————————————————————————

    ब्रज में हो रही जय जयकार

    नन्द घर लाला जायो है

    यूथ के यूथ नन्द घर आवें

    ग्वाल बाल सब रलमिल गावें

    ब्रह्मानन्द समान आज सुख

    सबने पायो है

    मांगलिक सब वस्तु ले ली

    गावें गीत सबे अलबेली

    नन्द द्वार और मार्ग में

    दधि कीच मचायो है

    ब्रज चौरासी कोस में भैया

    सब कहें धन्य यशोदा मैया

    अस्सी साल की आयु में

    सुत ऐसा जायो है

    शिव ब्रह्मा सनकादि आये

    सिद्ध मुनि सब देव सिहाये

    धर ग्वालन को रुप सबन

    मिल मंगल गायो है

    नन्द यशोदा भाग्य बड़ाई

    सब ही देने लगे बधाई

    शारद शेष सके नहीं गाई

    ऐसो अद्भुत सुत तो काहु ओर न जायो है

    ————————————————————————

    आनंद उमंग भयो, जय हो नन्द लाल की ।

    नन्द के आनंद भयो, जय कन्हिया लाल की ॥

    बृज में आनंद भयो, जय यशोदा लाल की ।

    हाथी घोडा पालकी, जय कन्हिया लाल की ॥

    जय हो नंदलाल की, जय यशोदा लाल की ।

    गोकुल में आनंद भयो, जय कन्हिया लाल की ॥

    ॥ आनंद उमंग भयो…॥

    आनंद उमंग भयो, जय हो नन्द लाल की ।

    नन्द के आनंद भयो, जय कन्हिया लाल की ॥

    बृज में आनंद भयो, जय यशोदा लाल की ।

    नन्द के आनंद भयो, जय कन्हिया लाल की ॥

    आनंद उमंग भयो, जय हो नन्द लाल की ।

    गोकुल में आनंद भयो, जय कन्हिया लाल की ॥

    जय हो नंदलाल की, जय यशोदा लाल की ।

    हाथी घोडा पालकी, जय कन्हिया लाल की ॥

    आनंद उमंग भयो, जय हो नन्द लाल की ।

    नन्द के आनंद भयो, जय कन्हिया लाल की ॥

    बृज में आनंद भयो, जय यशोदा लाल की ।

    नन्द के आनंद भयो, जय कन्हिया लाल की ॥

    आनंद उमंग भयो, जय हो नन्द लाल की ।

    नन्द के आनंद भयो, जय कन्हिया लाल की ॥

    कोटि ब्रह्माण्ड के, अधिपति लाल की ।

    हाथी घोडा पालकी, जय कन्हिया लाल की ॥

    गौ चरने आये, जय हो पशुपाल की ।

    गोकुल में आनंद भयो, जय कन्हिया लाल की ॥

    कोटि ब्रह्माण्ड के, अधिपति लाल की ।

    नन्द के आनंद भयो, जय कन्हिया लाल की ॥

    गौ चरने आये, जय हो पशुपाल की ।

    नन्द के आनंद भयो, जय कन्हिया लाल की ॥

    पूनम के चाँद जैसी, शोभी है बाल की ।

    हाथी घोडा पालकी, जय कन्हिया लाल की ॥

    आनंद उमंग भयो, जय हो नन्द लाल की ।

    गोकुल में आनंद भयो, जय कन्हिया लाल की ॥

    कोटि ब्रह्माण्ड के, अधिपति लाल की ।

    नन्द के आनंद भयो, जय कन्हिया लाल की ॥

    गौ चरने आये, जय हो पशुपाल की ।

    नन्द के आनंद भयो, जय कन्हिया लाल की ॥

    भक्तो के आनंद्कनद, जय यशोदा लाल की ।

    हाथी घोडा पालकी, जय कन्हिया लाल की ॥

    जय हो यशोदा लाल की, जय हो गोपाल की ।

    गोकुल में आनंद भयो, जय कन्हिया लाल की ॥

    कोटि ब्रह्माण्ड के, अधिपति लाल की ।

    नन्द के आनंद भयो, जय कन्हिया लाल की ॥

    गौ चरने आये, जय हो पशुपाल की ।

    नन्द के आनंद भयो, जय कन्हिया लाल की ॥

    आनंद से बोलो सब, जय हो बृज लाल की ।

    हाथी घोडा पालकी, जय कन्हिया लाल की ॥

    जय हो बृज लाल की, पावन प्रतिपाल की ।

    गोकुल में आनंद भयो, जय कन्हिया लाल की ॥

    कोटि ब्रह्माण्ड के, अधिपति लाल की ।

    नन्द के आनंद भयो, जय कन्हिया लाल की ॥

    गौ चरने आये, जय हो पशुपाल की ।

    नन्द के आनंद भयो, जय कन्हिया लाल की॥

    आनंद उमंग भयो, जय हो नन्द लाल की ।

    नन्द के आनंद भयो, जय कन्हिया लाल की ॥

    बृज में आनंद भयो…

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