Close Menu
    Facebook X (Twitter) Instagram
    cool thoughtscool thoughts
    • Home
    • Privacy Policy
    • About us
    • Contact Us
    Facebook X (Twitter) Instagram
    SUBSCRIBE
    • Home
    • Tech
    • Real Estate
    • Law
    • Finance
    • Fashion
    • Education
    • Automotive
    • Beauty Tips
    • Travel
    • Food
    • News
    cool thoughtscool thoughts
    Home»‌‌‌धर्म और त्यौहार»सत्यनारायण व्रत कथा satyanaaraayan vrat katha आरती भजन चालिसा विधी व फायदे
    ‌‌‌धर्म और त्यौहार

    सत्यनारायण व्रत कथा satyanaaraayan vrat katha आरती भजन चालिसा विधी व फायदे

    arif khanBy arif khanAugust 2, 2020Updated:May 26, 2021No Comments27 Mins Read
    Facebook Twitter Pinterest LinkedIn Tumblr Reddit WhatsApp Email
    Share
    Facebook Twitter LinkedIn Pinterest WhatsApp Email

    इस लेख के अंदर हम सत्यनारायण व्रत कथा आरती भजन चालिसा विधी व फायदे आदी के बारे मे विसतार से जान सकेगे ।

    सत्यनारायण व्रत भगवान विष्णु के लिये ‌‌‌किया‌‌‌ जाता है । सत्यनारायण का अर्थ है एकमात्र नारायण ही सत्य हैं बाकी तो मोह माया है । सत्यनारायण की पूजा के लिए दूध, मधु, केला, गंगाजल, तुलसी पत्ता, मेवा मिलाकर पंचामृत तैयार किया जाता है ।

    ‌‌‌ इस व्रत की कथा सुनने के बाद ब्राह्मणो को भोजन खिलाया जाता है । सत्य नारायण सभी के कष्ट को हर लेते है । इस व्रत को प्रारम्भ करने से ही उसके अच्छे दिन ‌‌‌शुरु हो जाते है । सत्यनारायण का व्रत करने से मोक्ष प्राप्ति का मार्ग बताया गया है ।

    Table of Contents

    • सत्यनारायण व्रत कथा
    • दूसरा अध्याय
    • सत्यनारायण व्रत कथा का तीसरा अध्याय
    • चौथा अध्याय
    • पांचवा अध्याय
    • ‌‌‌सत्यनारायण व्रत करने की विधि
    • ‌‌‌‌‌‌सत्यनारायण व्रत करने के फायदे
    • सत्यनारायण जी की आरती
    • ‌‌‌सत्यनारायण के भजन
    • सत्यनारायण चालीसा

    सत्यनारायण व्रत कथा

    एक बार की बात है ऋषिगण ने श्री सेतु से पूछा की ऐसा कोन सा व्रत है जिसे करने से सभी मनो कामनाए पुरी हो सकती है । तब श्री सेतु जी ने कहा की ऐसा ही ‌‌‌प्रशन एक बार नारद जी ने विष्णु भगवान से पुछा था तब भगवान विष्णु जी ने कहा था ‌‌‌मै उसे आपको बताउगा ।

    ‌‌‌एक बार की बात है योगी नारद जी भ्रहमण करते हुए पृथ्वीलोक मे पहुचे पृथ्वी पर पहुचकर उन्होने देखा की यहा पर सभी जिव जन्तु अनेक कष्ट भोगते है । वे सोचने लगे की इनके कष्टो को केसे दुर किया जाए वे इसी बात को लेकर विष्णुलोक मे श्री नारायणजी के पास पहुचे ।

    ‌‌‌वे वहा पर पहुचकर बोले की हे सभी सुखो व दुख से दुर व ‌‌‌इस जगत के कष्टो को हरने वाले ‌‌‌प्रभु आपको मेरा नमस्कार है । तब भगवान विष्णु जी ने कहा की नारजी आप यहा किस कार्य से आये है । तब नारद जी बोले की भगवन मे पृथ्वी लोक का भ्रहमण कर कर आ रहा हू मेने वहा पर देखा की विभिन्न प्रकार की योनियो मे जीवन गुजार ‌‌‌रहे लोग वहा पर विभिन्न कष्टो के कारण वे अपना ध्यान सही स्थान पर नही लगा रहे है ।

    सत्यनारायण व्रत कथा

    मै जानना चाहता हूं  की ‌‌‌उनको इन कष्टो से केसे दुर किया जाए जिससे वे आपना पुरा ध्यान प्रभु मे लगा सके । मै उस कथा के बारे मे जानना चाहता हुं ।

    ‌‌‌विष्णु जी ने कहा – आपने इस संसार के हित मे बहुत ही अच्छी बात पुछी है । जिसे जानकर लोग इस संसार के मोह माया से मुक्ति की ओर बडने लग जाए । हे नारद जरा ध्यान लगाकर सुनो पृथ्वी लोक मे सत्यनारायण का बहुत ही प्रचलीत व्रत है जिससे लोग अपने कष्टो को दुर कर जल्दी ही मोक्ष प्राप्त कर लेता  ‌‌‌है ।

    भगवान विष्णु की ऐसी बात सुनकर नारदजी बोले भगवन इस व्रत को करने से क्या लाभ होता है इस व्रत को केसे करे । इस व्रत को सबसे पहले किसने किया था । पुरी बातो को मुझे बताने का कष्ट करे ।

    ‌‌‌तक भगवान विष्णू ने कहा की सत्य नारायण का व्रत करने से सभी कष्टो का निवारण होने लग जाता है धन प्राप्त होताहै । जिसके कोई संतान नही है उसे संतान का सुख प्राप्त होता है । जो भी कोई प्रात: काल स्नान कर सत्यनारायण की ‌‌‌पूजा करे और बादमे ‌‌‌उत्तम कोटि के भोजन से ब्राहमणो को भोजन कराया जाए ‌‌‌तो उसके सभी कष्ट दुर हो जाते है ।

    सत्यनारायण की कथा अपने भाई भहनो के साथ सुननी चाहिए । साथ ही अपनो से बडो की सेवा करनी चाहिए । भुखे लोगो को भोजन कराना चाहिए कलयुग मे विषेशकर पृथ्वी लोक मे अपने कष्टो से दूर होने का ऐक सरल उपाय है ।

    दूसरा अध्याय

    सेतू जी बोले – अब मे आप लोगो को जिसने सबसे पहले इस व्रत को करना प्रारम्भ ‌‌‌किया था उसके बारे मे बताने जा रहा हूं ध्यान से सुने रमणीय काशी नामक ‌‌‌एक नगर था जिसमे एक गरीब वृद्ध ब्राह्मण रहा करता था ।

    वह बहुत ही गरीब था उसके पास खाने को कभी होता तो कभी नही होता । ‌‌‌वह जिस दिन खाना नही मिलता था उस दिन पृथ्वी पर इधर उधर घुमने लग जाता था ।

    उसका यह दुख सत्यनारायण जी से देखा नही गया वे वृद्ध ब्राह्मण का रुप लेकर उस ब्राह्मण के पास पहुचे और ब्राह्मण से कहा की आप कोन हो जो रोजाना ही यहा से वहा घुमते रहते हो मुझे बताओ मे आपकी मदद करना चाहता हूं ।

    ‌‌‌ब्राह्मण बोला की हे प्रभु मे बहुत ही गरीब ब्राह्मण हूं जो रोजाना ही अपने पेट का भरने के लिये भिक्षा लेने के लिये यहा से वहा फिरता रहता हूं । अगर आपके पास मेरी इस गरीबी को दुर करने का उपाय हो तो मुझे बता दो ।

    वृद्ध ब्राह्मण बोला की – आप ऐसा करो की सत्यनारायण जी का व्रत करो जिससे आपके सारे कष्ट दूर हो जाएगे । इतना कह कर वह वृद्ध ब्राह्मण वही पर गायब हो  गया था । वह ब्राह्मण रात के समय मे भोजन कर कर सोते समय ‌‌‌सोचने लगा की चलो वृद्ध ब्राह्मण ने जेसा कहा है वेसा करकर देख लेते है ।

    यह सोचते हुए उसे‌‌‌ निन्द नही आई । जब अगले दिन वह उठा तो उसने सोना की आज मै सत्यनारायण का व्रत जरुर करुगा । ऐसा सोचते हुए वह ब्राह्मण वहा से भिक्षा मागने के लिये चला गया था । वह कुछ घर मे गया तो उसे कुछ नही मिला वह मन ही मन मे सत्यनारायण को याद करते हुए कहा की आज मै आपका व्रत करने वाला हूं ।

    कम से कम ‌‌‌मुझे इतना तो धन मिलना ही चाहिए की मै आपका व्रत पुरी विधी के साथ कर सकु । इतना कह कर वह वहा से अगले घर मे गया तो उसे वहा से बहुत ही धन मिल गया था । जिससे वह सत्यनारायण का व्रत पुरी विधी के साथ पुरा कर सका ।

    उसने कथा सुनी यहा तक की ब्राह्मणो को भी भोजन कराया था । ‌‌‌उस दिन से उसके अच्छे दिन सुरु हो गए थे । वह गरीबी से उपर उठने लग गया था । उस दिन से वह प्रत्येक माह को सत्यनारायण का व्रत करने लग गया जिससे वह जल्द ही अमीर बन गया । वह सभी दुखो से मुक्त हो गया ‌‌‌इस तरह से ‌‌‌उसने मोक्ष प्राप्त किया ।

    ‌‌‌इस तरह से भगवान ने कहा की जो भी कोई सत्यनारायण का व्रत करेगा उसे उसी समय सभी पापो से मुक्ति मिल जाएगी । उसके कष्ट दुर हो जाएगे । ऐसा कह कर श्री सेतु जी ने कहा की विष्णु भगवान ने जो भी नारद जी से कहा मेने आपको वह सब बता दिया है ।

    ‌‌‌सभी मुनी बोलो की हे श्री सेतु जी आप हमे यह बताए की उस ब्राह्मण से यह व्रत किसने सुनकर किया था ।

    श्री सेतु जी बोले- हे मुनियो मे आपको यह बताता हू की उस ब्राह्मण से सुनकर यह व्रत किसने किया था । जरा ध्यान से सुने एक बार वह ब्राहमण अपने घर पर अपने परीवार के साथ सत्यनारायण व्रत की कथा सुन ‌‌‌रहा था

    कि वहा पर एक लकड़ हारा आया वह पानी पिने के लिये उस ब्राह्मण के घर गया तो उसने देखा की ब्राह्मण व्रत कथा सुन रहा था । जब कथा पुरी हुई तो वह लकड़हारा उस ब्राह्मण से पुछा की आप किस कि कथा सुन रहे थे ।

    ‌‌‌तब ब्राह्मण ने कहा की मै सत्यनारायण का व्रत कर रहा था तो मै उनकी कथा सुन रहा था । लकडहारे ने कहा की इस व्रत को करने से क्या लाभ होता है आप मुझे भी इस व्रत के बारे मे बताए ।

    ‌‌‌लकड़हारा पुरी विधी जानकर वहा से पानी पी कर चला गया और रास्ते मे जाते समय वह सोचने लगा की आज जो भी इन लकडियो को बेचकर जो धन प्राप्त होगा । उससे मै भी सत्यनारायण का व्रत करना प्रारम्भ करुगा ।

    वह चलते चलते सुन्दर नाम के गाव मे पहूंचा । ‌‌‌सुंदर नगर मे बडे ही धनवान लोग रहा करते थे । जिससे उसकी लकडियो के बदले ओर दिन की तुलना मे दोगुना धन प्राप्त हो गया ।

    वह इससे बहुत ही प्रसन्न होकर वहा से बाजार जाकर केले का फल, शर्करा, घी, दूध और गेहूं का चूर्ण आदि ले कर अपने घर की और चल पडा था । वह अपने घर जाकर अपने बान्धवों के साथ कथा सुनकर पुरी विधी के साथ व्रत किया और मरने के बाद उसे मोक्ष प्राप्त हुआ ।

    सत्यनारायण व्रत कथा का तीसरा अध्याय

    अब सेतु जी आगे की कथा कह रहे थे । पहले के समय मे जितेन्द्रिय, सत्यवादी तथा अत्यन्त बुद्धिमान एक राजा था ।जिसका नाम उल्कामुख था । राजा एक दिन अपनी पत्नी के साथ श्रीसत्यनारायण का व्रत करने के लिए भद्रशीला नामक नदी के किनारे पर बैठा था ।

    ‌‌‌उसी समय वहा पर एक साधु आया ।साधु भद्रशीला नदी के किनारे उतर कर राजा के पास जाकर कहा की राजन् आप यह क्या कर रहे है कृपा कर हमे बताए ।

    बहुत कहने के बाद राजा ने कहा की हे साधु मे यहा इस नदी के किनारे अपने बन्धु-बान्धवों के साथ सत्यनारायण की व्रत कथा सुन रहा हू । राजा ने कहा की इस व्रत को ‌‌‌करने सें धन व आपके कार्य पुरी तरह से सही चलने लग जाते है । तथा इस व्रत को मै इस कारण कर रहा हू क्योकी मेरे कोई संतान नही है यह व्रत करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होकर मुझे संतान प्राप्त करा देगे ।

    ऐसा सुनकर साधु बोला की राजा आप मुझे व्रत करे बारे मे परी तरह से बता दिजिए क्योकी ‌‌‌मेरे भी कोई संतान हनी है तो मै भी इस व्रत को करुगा । राजा ने साधु के आग्रह करने से पुरी तरह से सत्यनारायण के व्रत के बारे मे बता दिया ।

    साधु अपने घर जाकर अपनी पत्नी से व्रत के बारे मे कहा ।‌‌‌ एक दिन साधु की पत्नी गर्भिणी हो गई और दस माह के बाद उसके एक सुन्दर पुत्री हुई । जिसका नाम कलावती रखा गया । एक दिन उसकी पत्नी लीलावती ने अपने पति से कहा की आप पहले से ही इस व्रत को क्यो नही कर रहे ।

    ‌‌‌साधु बोला की अपनी पुत्री के विवाह के समय इस व्रत को करना सुरु कर दुगा । ऐसा कहकर साधु अपने व्यपार के लिए किसी दुसरे नगर कि ओर चला गया । एक दिन साधु ने देखा की पुत्री तो विवाह के योग्य हो गई है अत: इसका विवाह कर दकना चाहिए ।

    ऐसा सोच कर वह साधु अपनी पुत्री के लिए वर तलास ने लग गया‌‌‌ । इस कार्य के लिए साधु ने अपने साहयक को लगा दिया था । वह दुत पास के कांचन नामक नगर से एक ‌‌‌वर को लेकर आया था जो वणिक का पुत्र था ।

    साधु ने उसे देखा तो वह बहुत ही सुन्दर था और आज्ञा मानने वाला था । इस पर साधु ने अपने घर वालो से बात कर कर अपनी कन्या का विवाह वणिक पुत्र से करा दिया ।

    ‌‌‌ साधु ने अपनी पत्नी को कहा की जाओ पुत्री  को विदा करने का कार्य करो और विदा कर दिया था । साधु ने अपनी पुत्री के विवाह पर सत्यनारायण का व्रत करने के बारे मे सकल्प लिया था । जिसके बारे मे साधु अब भुल गया था ।

    कुछ समय के बाद वह साधु एक नदी के किनारे रत्नसारपुर नामक सुन्दर नगर मे ‌‌‌अपने दामाद के ‌‌‌साथ व्यपार कने के लिए गयाथा ।वह व्रत करना भुल गया था । सत्यनारायण का क्रोध उस साधु पर बरसना प्रारम्भ हो गया ।

    साधु व उसका दामाद दोनो हि वहा पर ‌‌‌कुछ दिन तक व्यापार किया । बादमे दोनो ही वहा के राजा चन्द्रकेतु के रमणीय नगर मे व्यापार करने के लिए गए । 

    साधु की भुल को देखकर नारायण ने‌‌‌ उस साधु को दुखो को झेलने का श्राप दे दिया । नगर के राजा चन्द्रकेतु के घर मे एक चोर चोरी कर वहा से भाग रहा था । तो राजा के दुत उसे पकडने के लिए उसके पिछे भाग रहे थे तो चोर जहा पर साधु व उसका दामाद वणिक राहा करता था ।

    वहा पर धन को छोड कर भाग गया । ‌‌‌जब राजा के दुत वहा पर पहुचे तो वे उन साधु व उस वणिक को पकड कर राजा के पास ले गए । जब राजा के सेनिको ने राजा से कहा की हम दोनो चोर को पकड कर ले आए है अत आप आज्ञा दे कि इनका क्या करना है ।

    राजा ने कहा की इन ‌‌‌दोनो के पास जो कुछ भी है उसे छिनकर अपने राज कोस मे जमा कर दिया जाए और ‌‌‌इन दोनो को कारागार मे बद कर दिया जाए । राजा की आज्ञा मानकर दोनो को वहा से कारागार मे डाल दिया और उन दोनो को कडी सजा दि ।

    भगवान विष्णु के प्रकोप के कारण उन दोनो की बात ‌‌‌किसी ने भी नही सुनी । उन दोनो को बडे ही कष्टो के साथ कारागार मे रखा जाने लगा । ‌‌‌साधु की ‌‌‌इस गलती की सजा केवल उन्हे ही नही बल्की उसकी पत्नी व उसकी बेटी को भी चुकानी पडी ।

    लीलावती जो साधु की ‌‌‌पत्नी थी उसके घर मे खाने के लिए एक दाना नही रहा । वह घर घर भोजन मागने के लिए जाने लग गई । साथ ही उसकी पुत्री के पास भी खाने के लिए कुछ नही रहा । जो धन था उसे चोरो ने चुरा लिया था।

    ‌‌‌एक बार कलावती भोजन के लिए यहा वहा पर भटक रही थी । पर उसे किसी ने भी कुछ नही दिया । इस तरह से वह भटकती हुई एक ब्राह्मण के घर मे गई तो उसने देखा की ब्राहमण वहा पर सत्यनारायण का व्रत कर रहा है । वह चुप चाप उसके घर मे बैठ गई और पुरी तरह से सत्यनारायण के व्रत के बारे मे जानी ।

    कलावती ब्राह्मण को अपने बारे मे पुरी बात बता ‌‌‌दी । तब ब्राह्मण ने कलावती से कहा की वह भी यह व्रत करे तो उसके सारे कष्ट दूर हो जाएगे । कलावती ऐसा सुनकर विचार करने लगी की अगर वह व्रत करेगी तो उसका पति वापस आ जाएगा और वह दुखो से दुर हो जाएगी ।

    ‌‌‌वह दुसरे दिन अपनी माता को कहती है की मा मे ऐक ब्राह्मण के घर गई थी तो मेने देखा की वह सत्यनारायण का व्रत कर रहा था । मेने अपनी पिडा उस ब्राह्मण को बताई तो उसने कहा की अगर तुम भी सत्यनारायण का व्रत कर सकोगी तो तुम्हारे सारे कष्ट दूर हो जाएगे ।

    कलावती ‌‌‌ने अगले ही दिन बन्धु-बान्धवों के साथ भगवान् श्री सत्यनारायण ‌‌‌की व्रत कथा सुनी और पुरी श्रदा के साथ व्रत किया था । कलावती ने भगवान सत्यनारायण से प्राथना की भगवान मेरे पति व पिता से जो भी गलती हुई है उन्हे श्रमा कर दे और दोनो को जल्दी से घर ला दे । कलावती के व्रत करने से भगवान प्रसन्न हो गए ।

    ‌‌‌‌‌‌राजा चन्द्रकेतु को स्वप्न मे विष्णु भगवान के दर्शन हुए और कहा की हे ‌‌‌राजन् तेरे से जो भुल हो गई है उसे तु सुधार ले जिनको तुने चोर समझकर पकडा है उन्हे वापस छोड दे साथ ही जो भी धन तुने उनसे लिया है ।

    उन दोनो को वापस देकर आदर के साथ उनके नगर पहूंचा दे । वह दोनो चोर नही है वे तो निर्दोश है चोर ‌‌‌तो कोई और था । जब सुभह ‌‌‌राजा‌‌‌ उठा तो एक सभा बैठाकर अपने ‌‌‌स्वप्न के बारे मे बताया और अपने मंत्री की बातो को सुनकर उन दोनो वणिकपुत्रों को कारागार से निकालने का आदेश दे दिया ।

    राजा के सेनिक वणिकपुत्रों को राजा के सामने लाकर कहा की महाराज दोनो यहा पर उपस्थित है । राजा ने कहा की दोनो की बैडिया खोल दि जाए । सेनिको ने उनकी बैडिया खोल दि थी ।

    राजा उन दोनो से अपनी गलती के लिए क्षमा मागते हुए अपने साथ भोजन करने का नुता दे दिया । ‌‌‌दोनो‌‌‌ ने राजा के साथ भोजन किया था । बादमे राजा ने उन दोनो से जो धन लिया था उससे भी ज्यादा धन उन दोनो को देकर उन्हे अपने रथ पर विदा कर दिया था ।

    चौथा अध्याय

    दोनो साधु व उसका दामाद वहा से रवाना हो गए थे । रास्ते मे जाते समय उसे एक दण्डी संन्यासी मिला था । जो विष्णु रुप धारण करके उनकी परिक्षा लेने के लिए आए थे । संन्यासी ने उन दोनो से पुछा की आप दोनो ‌‌‌इनबडे बडे थेलो मे क्या ले जा रहे है । इसका उत्तर देने के लिए दोनो कुछ समय तो सोचते ‌‌‌है ।

    कुछ समय के बाद दोनो ने कहा की इन थेलो ‌‌‌मे तो बकरीयो के लिए पेड के पत्ते है । वह सन्यासी बोला की तुम्हारी बात सच हो जाए । ऐसा कहकर वह वहा से कुछ दुरी पर जाकर बैठ जाता है ।

    ‌‌‌दण्डी के वहा से चले जाने ‌‌‌पर लिए साधु व उसके दामाद ने देखा की उस थेले मे तो लता व पत्ते ही है यह देखकर वे दोनो ही मुर्झीत होकर पृथ्वी पर गिर पडे । तब साधु के दामाद ने साधु से कहा की आप चिता मत करो हमारे झुठ बोलने पर दण्डी ने श्राप दे दिया है ।

    दामाद की बातो को सुनकर साधु दण्डी के पास जाकर कहने लगा की है महान मानव आप मुझे श्रमा कर दे आपके पुछने पर मेने आपसे झुठ कह दिया था । जो अब सत्य हो गया है । ऐसा कहकर वह साधु महान शोक से आकुल हो गया।

    ‌‌‌दण्डी ने साधु को रोते हुऐ देखा तो वह दण्डी बोला की रोओ मत मेरे श्राप के कारण तुमने बराबर दुख झेला है । तुमने सत्यनारायण का व्रत बोलकर नही कर कर बहुत बडी भुल कर दि थी जिसकी सजा तुझे मिल गई है ।

    ‌‌‌साधु ने कहा की आप तो महान हो जब आपकी लिला को ब्रह्मा भी नही जान सकते है तो मै केसे जान पाता मै तो मुर्ख हूं । जो मुझसे इतनी बडी भुल हो गई है । आप मुझे क्षमा कर दे अब मै आपकी ‌‌‌सरण आना चाहता हू । अब तो आप ही मेरे प्रभु हो जो हो वह आप हो बाकी तो सभी मोह माया है ।

    इस संसार के मोह मे फस कर मै यह ‌‌‌भुल गया था की इस संसार के बाह भी कुछ है । ‌‌‌साधु  कहता है की आप अब मेरी नाव व उसमे पडी पोटली क ध्यान रखना है । इतना सुन कर दण्डी रुपी नारायण वहा से चले गए ।

    ‌‌‌साधु व उसका दामाद नौका मे बैठ गए और साधु ने  विधी के साथ भगवान सत्यनारायण की पूजा की । ‌‌‌साधु के ‌‌‌आने की खबर असके दुत तक पहच गई तो वह दुत साधु की पत्नी के पास जाकर कहा की साधु आ रहे है ।

    ऐसी बात सुनकर साधु की पत्नी व उसकी पुत्री बहुत ही खुश हो गई । ‌‌‌तब साधु की पत्नी सत्यनारायण का व्रत कर कथा सुन रही थी । साधु के आने की खबर को सुन कर साधु की पत्नी ने व्रत को सही तरीके से कर अपनी पुत्री से कहा की पुत्री तुम कथा सुन कर आ जाना मै तो साधु के दर्शन करने के लिए जा रही हूं।

    ‌‌‌अपनी माता की बात सुनकर वह अपना व्रत पुरा कर दिया । भगवान को भोग लगाकर प्रसाद ‌‌‌उसने ग्रहण नही किया और से जल्द ही अपने पति के दर्शन के लिए वह वहा से चल पडी । जब कलावती व उसकी माता वहा पर पहुचे तो नदी के किनारे कोई नही था ।

    दूर दूर तक कोई भीनही दिख रहा था । तब कलावती ने अपनी माता ‌‌‌से कहा की मा यहा पर तो कोई भी नही आता दिख रहा है । पर कलावती को क्या पता था कि वह नोका तो पानी के अंदर ही ‌‌‌डुब गई है यह सत्यनारायण का व्रत पुरी तरह से सही नही करने का नतिजा है ।

    कलावती व उसकी माता लिलावती ने कुछ समय वहा पर देखा की कोई आ जाए जब वे आते नही दिख रहे थे तो कलावती व्याकुल होकर ‌‌‌पृथ्वी पर गिर कर रोने लग गई उसकी मा ने कुछ समय तक तो समझाया की पर फिर वह भी विलाप करने लग गई ।

    कलावती व उसकी मा कि ऐसी हालत देखकर साधु का दुत कहने लगा की मुझे तो संदेशा आया था की साधु जी आ रहे है लगता है किसी कार्य से विलब हो गया हो । ‌‌‌कलावती बहुत ही व्याकुल हो गई थी । वह अपने पति को याद कर कर बड बडाने लग गई ।

    उसकी यह हालत देखकर उसकी मा सहित व धर्मज्ञ साधु बनिया अत्यन्त शोक-संतप्त हो गया। तब उसकी माता लिलावती ने कहा की यह तो सब सत्यनारायण ही जाने क्या हो रहा है ।

    लगता है की हमसे व्रत ‌‌‌व पूजा करने मे कुछ भुल हो गई है । ऐसा ‌‌‌सोचकर लिलावती ने कहा की मै भगवान सत्यनारायण की यही पर पूजा करुगी जब तक वे स्वयं यहा आकर हमे नही बता देते कि हमसे क्या भुल हो गई है जिसकी सजा हमे दे रहे है ।

    लिलावती वही पर बैठ कर भगवान सत्य नारायण को याद करने लगी और ‌‌‌उनके ध्यान मे मगन हो गई । लिलावती ‌‌‌का यह तप देखकर भगवान प्रसन्न हो गए । ‌‌‌

    तब भगवान सत्यनारायण लिलावती के पास आकर कहा की लिलावती आंखे खोलो और कहा की तुम्हारी पुत्री ने पूजा कर के ‌‌‌प्रसाद ग्रहण करे बिना ही यहा पर आ गई है इसी कारण यह दुख देखना पडा है ।

    अगर वह घर वापस जाकर ‌‌‌प्रसाद ग्रहण कर वापस आए तो तुम्हारे पति व दामाद ‌‌‌वापस आ जाएगे । सत्यनारायण ने ‌‌‌यह भी कहा की तुम्हारी भग्ति भाव को देखकर मै यह सब वापस सही कर सकता हू पर आगे यह ध्यान रहे की ऐसी गलती नही हो ।

    ‌‌‌कन्या कलावती ने भी यह वाणी सुनी तो वह जल्द ही अपने घर जाकर प्रसाद ग्रहण किया और अपनी इस गलती के लिए कलावती ने भगवान सत्यनारायण से क्षमा मागी । कलावती जल्दी ही नदी के तट पर पहूंची । कलावती ने देखा की उसका पति व पिता दोनो वहा पर आ रहे है ।

    यह देखकर कलावती प्रसन्न हो गई और भगवान सत्यनारायण ‌‌‌को धन्यवाद कहा जब उसका पति व पिता उनके पास आये तो वह कहने लगी आप कहा रह गए है । ऐसा कहते हुए वह रोने लग गई । लिलावती ने अपने पति व दामाद से कहा की चलो अब घर चलते है।

    ‌‌‌साधु व वाणिक पुत्र ने कहा चलो घर चलते है । वे घर जाकर पहले भगवान सत्यनारायण की पुरी विधी के साथ अपने बन्धु-बान्धवों के साथ पूजा करते है । और उस दिन से वे सभी अपने जीवन मे जितने दिनो तक जीवित रहे थे उतने दिने हर पूर्णिमा को भगवान सत्यनारायण का व्रत करने लग गए । और मरने के बाद वे सभी  सत्य नारायण लोक मे चले गए ।

    पांचवा अध्याय

    श्री सेतु जी बातो को सुनकर सभी मुनि बोले की है सेतु जी क्या इसके अलावा भी कोई और कथा है तो हमे बताए । मुनिओ की जिज्ञासा देखकर सेतु जी ने कहा की हा मुनिओ इसके अलावा एक कथा और है जो मै आपको बताता  हूं सुनो –

    तुंगध्वज नामक एक राजा राजा था जो अपनी प्रजा की सेवा के लिए हमेशा ही तयार रहा करता था । जब भी कोई समस्या आया करती तो वह पहले समस्या का हल किया करता था फिर भोजन करता था । एक दिन वह वन मे शिकार करने के लिए गया ।

    उसने वहा पर देखा की कुछ गोपगण अपने बन्धु-बान्धवों के साथ सत्यनारायण का व्रत कथा सुन रहे थे । गोपगणो ने कथा सुनने के बाद प्रसाद का भोग सत्यदेव को लगाकर सभी को बाट दिया था । गोपगण ने भगवान का प्रसाद राजा के समिप रखा पर राजा ने प्रसाद को ग्रहण नही किया था ।

    वह वहा से चले गए थे राजा महल मे जाकर प्रसाद न ग्रहण करने ‌‌‌के कारण बादमे बहुत दुखी हो गया । उस राजा के सौ पुत्र थे । राजा के प्रसाद न ग्रहण करने के कारण भगवान सत्यदेव उनसे क्रोधीत हो गए और राजा के सभी पुत्रो को मार दिया था ।

    राजा के पास बहुत धन था वह भी नष्ट हो गया । राजा के पास रहने के लिए केवल एक महल रह गया था । तब राजा ने सोचा की यह तो सत्यदेव के प्रसाद को ठुकराने के कारण ‌‌‌हो गया है । राजा ने सोचा की मुझे उस वन मे जाकर भगवान सत्यनारायण की पूजा करनी चाहिए ।

    ऐसा सोचकर राजा उस वन मे चला गया । वहा पर उसने देखा की कुछ गोपगण वहा पर पूजा करने के लिए आ रहे है । राजा ने उन गोपगणो को देखकर कहा की हे मित्रो मै भी भगवान सत्यदेव की पूजा करने के लिए यहा पर आया हू ।

    ‌‌‌राजा ‌‌‌की बात को सुनकर सभी गोपगण बोले की हम भी यहा पर पूजा करने के लिए आए है अत: आप हमारे साथ पूजा कर सकते है । राजा उन गोपगणों के साथा बैठ गया और पुरी श्रद्धा के साथ भगवान सत्यदेव की पूजा की ।

    ‌‌‌पूजा कर राजा प्रसाद ‌‌‌ग्रहण किया और भगवान सत्यदेव को प्रणाम करता हुआ वहा चला गया । राजा अपने महल मे जाकर देखा तो उसे वहा पर सभी सेनिक नजर आ गए जो पहले उन्हे वहा पर अकेला ही छोडकर जा चुके थे कुछ ही समय मे राजा ने अपने आस पास के राज्य वापस जीत लिया । राजा धनवान वापस होने लग गया था ।

    ‌‌‌राजा को वह सब कुछ प्राप्त हो गया था जो भगवान ने उनसे लिया था । राजा मरने के बाद वैकुण्ठलोक मे जाकर रहने लग गया था ।

    श्रीसूत जी कहते हैं – हमे मुनिओ इस प्रकार जो भी कोई पुरी श्रदा के साथ भगवान सत्यनारायण की पूजा करता है व्रत करता है । उसके जीवन से दुख तो मानो गायब ही हो जाते है । उसे धन मिलने लग जाता है पुत्र प्राप्त होता है ।

    और अंत मे मरने के बाद वह वैकुण्ठलोक मे जाता है । ‌‌‌हें ब्राह्मणो मेने आप सब को श्री ‌‌‌‌‌‌सत्यनारायण की कथा सुनाई है ।अगर कोई यह व्रत करता है तो उसकी नया पार हो जाती है ।

    ‌‌‌श्री सेतु जी कहते है कि श्रेष्ठ मुनियों कलयुग मे तो पाप और बडता जाएगा अगर कोई यह व्रत पुरी श्रद्धा के साथ करता है नियमित नारायण का पाठ करता है ‌‌‌तो वह इस जगत के जन्म मरण से भी मुक्त हो जाता है ।

    इस प्रकार उसके सारे कष्ट दुर हो जाते है । और अगर वह अगला जन्म लेता है तो वह अच्छे घर मे जन्म लेगा उसे वहा पर सभी सुख प्राप्त होगे जैसे सुदामा पिछले जन्म मे शतानन्द नाम के ब्राह्मण था जो सत्यदेव का व्रत करता था ।

    उसका ही फल उसे श्री कृष्ण के प्रिय भग्त व उसके सबसे अच्छे सहपाठी होने को मिल सका था । और अंत मे वह भगवान मे लिन ‌‌‌होकर मोक्ष प्राप्त कर लिया था । इस तरह से सेतु जी कहते है कि भगवान सत्यनारायण ही एक ऐसे भगवान है जिनकी पूजा करने से सभी कष्ट दुर हो सकते है ।

    ‌‌‌सत्यनारायण व्रत करने की विधि

    • यह व्रत करने से पहले प्रात: काल जल्दी उठना पडता है । और उठकर स्नान करके भगवान सत्यनारायण कर पाठ करते है ।
    • इस व्रत के दिन सत्यदेव की पूजा से पहले उन्की प्रतिमा को ऐ स्वच्छ स्थान पर स्थापित करना होता है ।
    • ‌‌‌भगवान विष्णु के लिए केले के रुप मे फल लिया जाता है अत: इसे लेकर अच्छे से छोकर एक थाली मे रख लेना चाहिए ।
    • भगवान की पूजा के लिए एक दिया लेकर उसमे शुद्ध देशी घी डालकर उसमे बाती जलाकर पूजा की जाती है ।
    • इस व्रत के दिन भगवान के प्रति पुरी श्रद्धा होनी चाहिए।
    • पूजा करने के बाद उन्है प्रसाद पंजीरी का भोग लगाना सबसे अच्छा रहता है ।
    • बादम भगवान की कथा सुने कथा के बाद चालिसा व भजन का जाप करे ।
    • आरती भी करे तो सबसे अच्छा रहता है ।
    • भोग लगाने के बाद उन्हे पानी पिलाया जाता है ।
    • सभी को प्रसाद बाट देना चाहिए और गेहूं के आटे को भूनकर उसमें चीनी मिलाकर प्रसाद तैयार किया जाता है ।

    ‌‌‌‌‌‌सत्यनारायण व्रत करने के फायदे

    • ‌‌‌भगवान का व्रत करने से सबसे बडा फायदा यह है की मरने के बाद वैकुडलोक मे जाते है ।
    • इस व्रत से घर मे सुख शांति रहती है ।
    • गरीब धनवान हो जाता है ।
    • यह व्रत करने से भगवान सत्यनारायण की कृपा से पुत्र प्राप्त हों जाता है ।
    • सुख, समृद्धि, संतान, यश, कीर्ति, वैभव, पराक्रम, संपत्ति, ऐश्वर्य, सौभाग्य और शुभता ‌‌‌आदी सब इस व्रत से प्राप्त होने लग जाता है ।

    सत्यनारायण जी की आरती

    जय श्री लक्ष्मी रमणा स्वामी जय लक्ष्मी रमणा |

    सत्यनारायण स्वामी जन पातक हरणा || जय

    रत्त्न जड़ित सिंहासन अदूभुत छवि राजै |

    नाद करद निरन्तर घण्टा ध्वनि बाजै || जय

    प्रकट भये कलि कारण द्विज को दर्श दियो |

    बूढ़ा ब्राह्मण बन के कंचन महल कियो || जय

    दुर्बल भील कराल जिन पर कृपा करी |

    चन्द्रचूढ़ इक राजा तिनकी विपत हरी || जय

    वैश्य मनोरथ पायो श्रद्धा तज दीनी |

    सो फल भोग्यो प्रभु जी फेर स्तुति कीन्ही || जय

    भाव भक्ति के कारण छिन – छिन रूप धरयो |

    श्रद्धा धारण कीनी जन को काज सरयो || जय

    ग्वाल बाल संग राजा बन में भक्ति करी |

    मनवांछित फल दीना दीनदयाल हरी || जय

    चढ़त प्रसाद सवाया कदली फल मेवा |

    धूप दीप तुलसी से राजी सत्य देवा || जय

    श्री सत्यनारायण जी की आरती जो कोई गावै |

    कहत शिवानंद स्वामी मनवांछित फल पावै || जय

    ‌‌‌सत्यनारायण के भजन

    श्रीमन नारायण नारायण नारायण

    लख चौरासी घूम के तूने ये मानव तन पाया,

    रहा भटकता माया में तूने कभी न हरी गुण गाया,

    भज ले नारायण नारायण नारायण

    वेद पुरान भगवत गीता आतम ज्ञान सिखाये ,

    रामायण जो पड़े हमेशा राम ही राम दिखाए,

    भज ले नारायण नारायण नारायण

    धज और धराः लड़े जल भीतर लड़ लड़ गज हारा,

    प्राणो पर जब आन पड़ी तो प्रेम से तुझे पुकारा,

    भज ले नारायण नारायण नारायण

    कोई नहीं है जग में तेरा तू काहे भरमाये,

    प्रभु की शरण में आजा बंदे तू काहे शर्माए,

    भज ले नारायण नारायण नारायण

    ‌‌‌————————————————

    मन तो तेरा ही भजन करे हीरे गुरुदेव सांवरिया मेरे

    गुरुदेव सांवरिया मेरे घनश्याम सांवरिया मेरे,

    एक बाग मैंने ऐसा देखा नहीं फूल नहीं पत्ते

    मैने तोड़ अमर फल खाए रे गुरुदेव सांवरिया मेरे

    एक ताल मैंने ऐसा देखा ना कुआ ना पानी

    मैंने मलमल काया धोई  रे गुरुदेव सांवरिया मेरे

    एक महल मैंने ऐसा देखा नहीं राजा नहीं रानी

    नंदलाल खेलते देखे रे गुरुदेव सांवरिया मेरे

    एक रसोई मैंने ऐसी देखी नहीं दाल नहीं आटा

    मैंने 36 भोग लगाए रे गुरुदेव सांवरिया मेरे

    एक भवन में ऐसा देखा नहीं डोलक नहीं चिमटा

    मैंने भजन कीर्तन गाए रे गुरुदेव सांवरिया मेरे ।।

    गुरुदेव सांवरिया मेरे घनश्याम सांवरिया मेरे

    सत्यनारायण चालीसा

    जय जय धरणी-धर श्रुति सागर।

    जयति गदाधर सदगुण आगर।।

    श्री  वसुदेव  देवकी  नन्दन।

    वासुदेव, नासन-भव-फन्दन।।

    नमो नमो त्रिभुवन पति ईश।

    कमला पति केशव योगीश।।

    नमो-नमो सचराचर-स्वामी।

    परंब्रह्म प्रभु नमो नमामि।।

    गरुड़ध्वज अज, भव भय हारी।

    मुरलीधर हरि मदन मुरारी।।

    नारायण श्री-पति पुरुषोत्तम।

    पद्मनाभि नर-हरि सर्वोत्तम।।

    जयमाधव मुकुन्द, वन माली।

    खलदल मर्दन, दमन-कुचाली।।

    जय अगणित इन्द्रिय सारंगधर।

    विश्व रूप वामन, आनंद कर।।

    जय-जय लोकाध्यक्ष-धनंजय।

    सहस्त्राक्ष जगनाथ जयति जय।।

    जयमधुसूदन अनुपम आनन।

    जयति-वायु-वाहन, ब्रज कानन।।

    जय गोविन्द जनार्दन देवा।

    शुभ फल लहत गहत तव सेवा।।

    श्याम सरोरुह सम तन सोहत।

    दरश करत, सुर नर मुनि मोहत।।

    भाल विशाल मुकुट शिर साजत।

    उर वैजन्ती माल विराजत।।

    तिरछी भृकुटि चाप जनु धारे।

    तिन-तर नयन कमल अरुणारे।।

    नाशा चिबुक कपोल मनोहर।

    मृदु मुसुकान-मंजु अधरण पर।।

    जनु मणि पंक्ति दशन मन भावन।

    बसन पीत तन परम सुहावन।।

    रूप चतुर्भुज भूषित भूषण।

    वरद हस्त, मोचन भव दूषण।।

    कंजारूण सम करतल सुन्दर।

    सुख समूह गुण मधुर समुन्दर।।

    कर महँ लसित शंख अति प्यारा।

    सुभग शब्द जय देने हारा।।

    रवि समय चक्र द्वितीय कर धारे।

    खल दल दानव सैन्य संहारे।।

    तृतीय हस्त महँ गदा प्रकाशन।

    सदा ताप-त्रय-पाप विनाशन।।

    पद्म चतुर्थ हाथ महँ धारे।

    चारि पदारथ देने हारे।।

    वाहन गरुड़ मनोगति वाना।

    तिहुँ लागत, जन-हित भगवाना।।

    पहुँचि तहाँ पत राखत स्वामी।

    को हरि सम भक्तन अनुगामी।।

    धनि-धनि महिमा अगम अनन्ता।

    धन्य भक्त वत्सल भगवन्ता।।

    जब-जब सुरहिं असुर दुख दीन्हा।

    तब-तब प्रकटि, कष्ट हरि लीना।।

    जब सुर-मुनि, ब्रह्मादि महेशू।

    सहि न सक्यो अति कठिन कलेशू।।

    तब तहँ धरि बहु रूप निरन्तर।

    मर्दयो-दल दानवहि भयंकर।।

    शैय्या शेष, सिन्धु-बिच साजित।

    संग लक्ष्मी सदा-विराजित।।

    पूरण शक्ति धान्य-धन-खानी।

    आनंद-भक्ति भरणि सुख दानी।।

    जासु विरद निगमागम गावत।

    शारद शेष पार नहिं पावत।।

    रमा राधिका सिय सुख धामा।

    सोही विष्णु! कृष्ण अरु रामा।।

    अगणित रूप अनूप अपारा।

    निर्गुण सगुण-स्वरुप तुम्हारा।।

    नहिं कछु भेद वेद अस भाषत।

    भक्तन से नहिं अन्तर राखत।।

    श्री प्रयाग दुर्वासा-धामा ।

    सुन्दर दास, तिवारी ग्रामा।।

    जग हित लागी तुमहिं जगदीशा।

    निज-मति रच्यो विष्णु चालीस।।

    जो चित दै नित पढ़त पढ़ावत।

    पूरण भक्ति शक्ति सरसावत।।

    अति सुख वासत, रुज ऋण नासत।

     विभव विकाशत, सुमति प्रकाशत।।

    आवत सुख, गावत श्रुति शारद।

    भाषत व्यास-वचन ऋषि नारद।।

    मिलत सुभग फल शोक नसावत।

    अन्त समय जन हरिपद पावत।।

    arif khan
    • Website
    • Facebook
    • Instagram

    यदि आपको गेस्ट पोस्ट करनी है। तो हमें ईमेल पर संपर्क करें । आपकी गेस्ट पोस्ट पेड होगी और कंटेंट भी हम खुदी ही लिखकर देंगे ।arif.khan338@yahoo.com

    Related Posts

    घर के सामने लगा सकते हैं यह 12 शुभ पौधे जानें पूरी सच्चाई फायदे

    April 6, 2024

    दुकान की नजर कैसे उतारे 16 तरीके का प्रयोग करें होगा कमाल

    March 11, 2024

    चंदन की माला पहनने से मिलते हैं यह 20 शानदार फायदे

    March 8, 2024
    Leave A Reply

    Categories
    • Home
    • Tech
    • Real Estate
    • Law
    • Finance
    • Fashion
    • Education
    • Automotive
    • Beauty Tips
    • Travel
    • Food
    • News

    Subscribe to Updates

    Get the latest creative news from FooBar about art, design and business.

    Facebook X (Twitter) Instagram Pinterest
    • Home
    • Privacy Policy
    • About us
    • Contact Us
    © 2025 Coolthoughts.in

    Type above and press Enter to search. Press Esc to cancel.