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    Home»motivational hindi»गुरू नानक देव जी के अनमोल वचन
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    गुरू नानक देव जी के अनमोल वचन

    arif khanBy arif khanFebruary 18, 2018Updated:November 6, 2018No Comments7 Mins Read
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    नानक देव
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    ‌‌‌इस लेख के अंदर हम आपको गुरू नानक देवजी के कुछ अनमोल विचारों के बारे मे बात करेंगे । इससे पहले हम आपको गुरू नानक देवजी के बारे मे थोड़ा परिचय दे देते हैंं। उसके बाद अनमोल विचार पर पर बात करेंगे।

    ‌‌‌15 अप्रेल 1469 के अंदर सीखों के प्रथम गुरू नानक देव को नानक देव के नाम से संबोंधित करने लगे थे।लद्दाख व तिब्बत में इन्हें नानक लामा भी कहा जाता है।गुरू नानक देव का जन्म रावी नदी के किनारे स्थित तलवंडी नामक गाँव में कार्तिकी पूर्णिमा को एक खत्रीकुल में हुआ था। कुछ विद्वान इनकी जन्मतिथि 15 अप्रैल, 1469 मानते हैं

    1. जिन लोगों की जीभ और मुंह शुद्य होते हैं। ऐसे व्यक्ति अनेक व्यक्तियों को अच्छा बना देते हैं

    2.कभी भी किसी का हक नहीं छिनना चाहिए

    1. केवल वही बोलो जो आपको सम्मान दिलाये

    ‌‌‌4. गुरू उपकारक है उसमे पूर्ण शांति नहीत है। वह त्रिलोक्य के अंदर उजाला करने वाला शक्ति पूंज है। गुरू से प्यार करने वाला चीर शांति को प्राप्त करता है।

    ‌‌‌5. गुरू एक ऐसी नदी के समान है।जिसका जल सर्वदा निर्मल है। उससे मिलने पर तुम्हारे ह्रदय भी साफ हो जाता है।

    ‌‌‌6. जब मेरा जन्म ही नहीं हुआ है तो भला मौत कैसे हो सकती है।

    ‌‌‌7. जब हाथ पैर और शरीर गंदा हो जाता है तो जल से धोकर साफ हो जाते हैं। और जब कपड़े गंदे हो जाते हैं तो साबुन उन्हें साफ कर देता है। व जब मन पाप से अपवित्र हो जाता है तो उसे ईश्वर का नाम ही उसे स्वच्छ कर सकता है।

    ‌‌‌8. जिनका तन तन और वाणी सभी झूठ से लिप्त हैं वे कैसे शुद्व और पवित्र हो सकते हैं।

    ‌‌‌9. जिसका दिमाग अंधविश्वास से मुक्त है उनको मौत का रंच मात्र भी भय नहीं है।

    ‌‌‌10. संत ही मनुष्य के सच्चे मित्र होते है। क्योंकि वे हमे ईश्वर की भक्ति के उन्माद मे सरोबार करते हैं। प्रेम भक्ति से युक्त सतपुरूष के दर्शन से न केवल चित स्थिर होता है वरन सारे बंधनों से मुक्ति मिलती है।

    ‌‌‌11. जिसे कभी खुद पर विश्वास नहीं होता है वह कभी भगवान पर भरोशा नहीं कर सकता ।

    ‌‌‌12. जो अपने आप को उपदेशक समझता है किंतु दूसरो की भिक्षा से जीविका चलाता है ऐसे मनुष्य के सामने अपना सर मत झुकाओ जो अपने परिक्ष्रम से जीविका चलाता है और दूसरों का पोषण करता है वही मार्ग दर्शन कर सकता है।

    ‌‌‌13. जो असत्य बोलता है वह गंदगी खाता है स्वयं भ्रम मे पड़ा हुआ है वह दूसरों को सत्य बोलने का आदेस कैसे दे सकता है।

    ‌‌‌14. जो लोग प्रेम मे सारोबार रहते हैं उन्हे भगवान मिलते हैं।

    ‌‌‌15. जो व्यक्ति परिक्ष्रम करके कमाता है और अपनी कमाई से कुछ भाग दान करता है वह अपना वास्तविक मार्ग तलास लेता है।

    ‌‌‌16. जो शरीर के अंदर देवता का निवास करा देता है वही सच्चा गुरू होता है।

    ‌‌‌17. तुम्हारी दया ही मेरा सामाजिक दर्जा है।

    ‌‌‌18. तेरी हजारों आंखे हैं फिर भी एक आंख भी नहीं । तेरे हजारों रूप हैं फिर भी एक रूप भी नहीं है।

    ‌‌‌19. दुनिया के अंदर किसी भी व्यक्ति को भ्रम के अंदर नहीं रहना चाहिए । बिना गुरू कोई भी किनारे को पार नहीं लगा सकता है।

    ‌‌‌20. हम लोग मौत को बुरा नहीं कहते अगर हमे पता होता कि वास्तव मे मरा कैसे जाता है ?

    ‌‌‌21. धार्मिक वही है जो सभी लोगों का सम्मान करे

    1. न कोई हिंदु है न कोई मुस्लमान सभी मनुष्य समान हैं

    न मैं एक बच्चा हूं न मैं एक बूढ़ा हूं न एक युवा हूं और न ही किसी जाति का हूं

    ‌‌‌23. परमात्मा एक है और उसके लिए सब सम्मान हैं।

    प्रभु के लिए खुशियों के गीत गाओ प्रभु की सेवा करो उसके सेवकों के सेवक बन जाओ

    ‌‌‌24. औरत का सम्मान करना चाहिए क्योंकि इस संसार की जन्मदाता ही औरत है।

    ‌‌‌25. दुनिया को जीतने के लिए सबसे पहले अपने मन के विकारों को खत्म करना जरूरी होता है।

    1. अपने समय का कुछ हिस्सा प्रभु के चरणों के अंदर सम्र्पित कर देना चाहिए ।

    मैं जन्मा नहीं हूं मेरे लिए कोई भी कैसे मर सकता है या कैसे जन्म ले सकता है।

    ‌‌‌27. संसार को जलादें और अपनी राख को घीस कर उसे स्याही बनाएं अपने दिल को कलम बनाएं और वह लिखें जिसका कोई अंत नहीं हो जिसकी कोई सीमा भी नहीं हो ।

    ‌‌‌28. यदि एक दिन संसार के सुख और वैभव को छोड़ना ही है तो उसमे लिप्त ही क्यों हुआ जाए । जल के अंदर कमल की भांति रहा जाए।

    ‌‌‌29. यदि किसी को धन की या अन्य कोई मदद चाहिए तो हमें कदापी भी पीछे नहीं हटना चाहिए ।

    ‌‌‌30. यदि तू अपने दिमाग को शांत रख सकता है तो तू विश्व पर विजय होगा ।

    ‌‌‌31. यदि मनुष्य को सच्चा गुरू मिल जाता है तो वह भटकना छोड़ देता है। उसे सच्ची राह मिल जाती है।

    1. यह दुनिया एक नाटक है जिसे सपनों के अंदर प्रस्तुत करना होता है।

    यह पूरी दुनिया कठिनाइयों के अंदर है जिसेक खुद पर भरोसा होता है। वही विजेता कहलाता है।

    ‌‌‌33. उन सब लोगों का भ्रम है कि वे बिना गुरू के किनारे तक पहुंच सकते हैं।

    1. योगी को किस बात का डर होना चाहिए पेड़ पौधे उसके अंदर और बाहर होते हैं।
    1. वह सबकुछ है लेकिन भगवान केवल एक ही है उसका नाम सत्य है रचात्मकता उसकी शख्शियत है।अनश्वर उसका स्वरूप है। गुरू की दया से ही उसे पाया जा सकता है।

    ‌‌‌36. वहम और भ्रम को छोड़ देना चाहिए

    1. माया और धन को अपनी जेब के अंदर स्थान देना चाहिए अपने हर्ट के अंदर नहीं
    1. नीचे बैठने वाला व्यक्ति कभी गिरता नहीं है
    1. संतों के वचनों को सुनना चाहिए क्योंकि संत वही बोलते हैं जो वे देख चुके होते हैं।

    ‌‌‌40. कर्म भूमी पर फल के लिए मेहनत सबको करनी पड़ती है। ईश्वर सिर्फ लकीरे बनाता है रंग हमको ही भरना होता है।

    1. सच पर चलने से हर्ट शुद्व हो जाता है और आत्म पर से झूठ का मेल धुल जाता है।
    1. सब कुछ उन्हीं की इच्छा और उन्हीं के नाम से होता है। यदि कोई स्वयं को महान माने तो उसका वहीं अंत हो जाता है।

    ‌‌‌43. सभी धर्मों और जातियों के लोग एक हैं

    1. सिर्फ और सिर्फ वही बोले जो शब्द आपको सम्मान दिलाते हो
    1. सेवक को संतोषी होना आवश्यक है । यह तभी हो सकेगा जब सेवक सत्य पर चलने वाला हो । बुरे कार्यों से संकोच करने वाला हो ।

    ‌‌‌46. भोजन शरीर को जिंदा रखने के लिए जरूरी है किंतु लोभ लालच और संग्रह करने की आदत बुरी है।

    1. मेहनत और ईमानदारी से कमाई करके उसमे जरूरतमंद को भी कुछ देना चाहिए ।
    1. अपने घर के अंदर शांति से निवास करने वालों का यमदूत भी बाल भी बांका नहीं कर सकता ।
    2. अहंकार मनुष्य को मनुष्य नहीं रहने देता है। इसलिए ‌‌‌अहंकार नहीं करना चाहिए। वरन सेवा भाव से ही जिंदगी गुजारनी चाहिए।

    ‌‌‌50. बड़े बड़े महाराजाओं की तुलना भी उस छोटी चींटी से नहीं कर सकते जिसके दिल के अंदर अपने ईश्वर के प्रति प्रेम भरा हुआ हो

    ‌‌‌51. ईश्वर सब जगह पर रहता है हमारा पिता वही है। इसलिए सबके साथ प्रेम पूर्वक रहना चाहिए ।

    ‌‌‌52. ईश्वर एक है लेकिन उसके कई रूप हैं वह खुद मनुष्य का रूप लेता है।

    1. ‌‌‌ईश्वर का नाम तो सभी लेते हैं लेकिन कोई उसके रहस्य की थाह नहीं ले सकता ।यदि कोई गुरू की क्रपा से अपने भीतर ईश्वर का नाम बैठाले तो उसे फल की प्राप्ति होती है

    ‌‌‌

    1. के स्मरण मे गुरू की सहायता आवश्यक है इसलिए गुरू का वंदन करें

    ऐसे लोग जिनका मुंह और जीभ शुद्व वह अनेक व्यक्तियों को अच्छा बना सकता है।

    arif khan
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