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    Home»‌‌‌शिक्षाप्रद कहानियां»सावित्री सत्यवान की कथा
    ‌‌‌शिक्षाप्रद कहानियां

    सावित्री सत्यवान की कथा

    arif khanBy arif khanOctober 7, 2017Updated:November 4, 2018No Comments3 Mins Read
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    Savitris defeat of the god of death Yama
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    सावित्री सत्यवान की कथा का उल्लेख महाभारत के अंदर मिलता है। महाभारत के अनुसार मद्रदेस के अश्वपति नाम का एक राजा राज्य करता था। उसकी पुत्री का नाम सावित्री था। जब वह विवाह योग्य हो गई तो उसके पिता ने कहा कि पुत्री तुम विवाह योग्य हो चुकी हो ।

    तुम अपने लिये किसी  को भी योग्य वर चुन सकती हो । तब सावित्री शीघ्र ही अपने लिये अच्छे वर की तलास मे निकल पड़ी। एक दिन भद्रराज अवश्पति अपने मंत्रियों के साथ बैठे बाते कर रहे थे । तब वहां पर नारदजी भी थे । तब सावित्री भी वहां आ पहुंची जब राजा ने  ‌‌‌उससे वर के बारे मे पूछा तो उसने बताया की शाल्व देस के राजा के पुत्र को उसने वर के रूप मे चुन लिया है। उसका नाम सत्यवान है। तब नारदजी ने राजा ने कहा कि इस वर मे तो दोष है। जिसको सावित्री ने चुना है। वह एक वर्ष बाद मरने वाला है।

     

     

    ‌‌‌तब सावित्री ने कहा कन्यादान एक बार ही किया जाता है। इसलिए मैंने सत्यवान को चुन लिया है। तब उसकी सत्यवान के साथ धूम धाम से शादी करदी गई। सत्यवान से शादी होने के बाद सावित्री एक एक दिन गिन रही थी। उसके मन मे सदैव नारदजी का वचन घूम रहा था।

     

    ‌‌‌जब सत्यवान लकड़ी काटने जाने लगा तो सावित्री बोली की मैं भी आपके साथ चलूंगी। तब सत्यवान बोला कि जंगल का रास्ता बहुत कठिन है। तुम उसमे जाकर क्या करोगी किंतु वह नहीं मानी और सत्यवान के साथ चलदी।

     

    ‌‌‌जब सत्यवान लकड़ी काटने लगा तो उसकी तबियत बिगड़ कई तो सावित्री ने उसे अपनी गोद मे सुला लिया । इतने मे ही उसे वहां पर भयानक पुरूष दिखें तब सावित्री ने पूछा आप कोन हों। तब वह बोले कि मैं यमराज हूं और सत्यवान की आत्मा लेने आया हूं । और वे सत्यवान की आत्मा लेकर दक्षिण की और चल दिए।

     

    ‌‌‌सावित्री ने कहा कि मेरे पति देव को जहां पर भी ले जाया जाएगा मैं वहां पर जाउंगी । तब यमराज बोले मैं तुम्हारे पति के प्राण नहीं लोटा सकता तुम चाहे जो वर मांग सकती हो । तब सावित्री ने अपने ससुर की आंखे मांगली। तब यमराज ने कहा तथास्तु । किंतु वह फिर पीछे चलने लगी तो यमराज ने उसे फिर वर ‌‌‌मांगने को कहा तो उसने अपने ससुर का राज्य मांग लिया। उसके बाद वरदान मे अपने पिता  के सौ पुत्र मांग लिये । जब वह फिर यमराज के पीछे चलने लगी तो । यमराज ने उसे एक और वर मांगने को कहा तो उसने कहा कि मुझे सौ पुत्रों का वरदान दो । तब यमराज ने उसकी बात मान ली ।

     

    ‌‌‌किंतु वह हार मानने वाली नहीं थी। वह फिर यमराज के पीछे चलने लगी तो यमराज ने कहा कि तुम वापस जाओ तब सावित्री ने कहा कि मैं वापस कैसे जाउं आपने ही तो मुझे सत्यवान से सौ पुत्र उत्पन करने का आशीर्वाद दिया है। तब यमराज ने सत्यवान की आत्मा को मुक्त कर दिया ।

     

    arif khan
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