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    Home»history news»भारत के प्रथम शिक्षा मंत्री कौन थे अबुल कलाम आज़ाद परिचय
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    भारत के प्रथम शिक्षा मंत्री कौन थे अबुल कलाम आज़ाद परिचय

    arif khanBy arif khanJuly 6, 2019Updated:December 12, 2021No Comments8 Mins Read
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    Maulana Abul Kalam
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    ‌‌‌भारत के प्रथम शिक्षा मंत्री कौन थे ,bharat ke pratham shiksha mantri kaun the दोस्तों सामान्य ज्ञान के अंदर कई प्रकार के प्रश्न आते हैं। जिनमे से यह भी आता है कि भारत के प्रथम शिक्षा मंत्री कौन थे ? या इस प्रकार से पुछा जा सकता है कि स्वतंत्र भारत का पहला शिक्षा मंत्री कौन था।

    Table of Contents

    • ‌‌‌भारत के प्रथम शिक्षा मंत्री कौन थे bharat ke pratham shiksha mantri naam
    • ‌‌‌भारत के प्रथम शिक्षा मंत्री कौन थे ‌‌‌और उनका जीवन परिचय
    • ‌‌‌क्रांतिकारी के रूप मे कार्य
    • असहयोग आंदोलन के अंदर भूमिका
    • ‌‌‌भारत की आजादी के बाद
    • राष्ट्रीय शिक्षा दिवस
    • ‌‌‌पाकिस्तान की भविष्यवाणी

    ‌‌‌भारत के प्रथम शिक्षा मंत्री कौन थे bharat ke pratham shiksha mantri naam

    स्वतंत्र भारत के शिक्षा मंत्री का नाम अबुल कलाम आज़ाद था। ‌‌‌इनका जन्म  11 नवंबर, 1888 – 22 फरवरी, 1958 को हुआ थ। वे  एक प्रसिद्ध भारतीय मुस्लिम विद्वान थे।वे कवि और एक पत्रकार भी थे और भारतिए राजनीति से सक्रिय रूप से जुड़े रहे थे । स्वतंत्रता आंदोलनों के अंदर भी उन्होंने भाग लिया था। ‌‌‌वे महात्मा गांधी के विचारों का समर्थन करते थे और वे हिंदु मुस्लि्म एकता के पक्ष मे थे ।

    उन्होंने अलग पाकिस्तान बनाने को लेकर भी विरोध किया था।खिलफात आंदोलन के अंदर उनकी महत्वपुर्ण भूमिका रही थी।वे सन 1923 ई के अंदर भारतिए नेशनल कांग्रेस के अंदर शामिल हुए थे और

    ‌‌‌सन 1940 और 1945 के बीच मे वे भारतिए कांग्रेस के प्रेजिडेंट बने थे ।उसके बाद 1952 के उतर प्रदेश के रामपुर जिले से सांसद बने और भारत के पहले शिक्षा मंत्री बन गए । 1940-45 के अंदर भारत छोड़ों आंदोलन के दौरान उन्होंने आंदोलन के अंदर भाग लिया और इसके लिए उनको तीन साल जेल के अंदर भी बिताने पड़े थे ।

    ‌‌‌भारत के प्रथम शिक्षा मंत्री कौन थे ‌‌‌और उनका जीवन परिचय

    मौलाना आज़ाद अफग़ान उलेमाओं के ख़ानदान से जुड़े हुए थे ।वे बाबर के समय भारत आए थे ।उनकी मां अरबी मूल की थी और पिता पिता मोहम्मद खैरुद्दीन एक फारसी  थे । उनका परिवार भारतीय स्वतंत्रता के पहले आन्दोलन के समय 1857 में कलकत्ता छोड़ कर मक्का के अंदर जा बसा था। मोहम्मद खैरूद्दीन 1890 में भारत लौट कर वापस आ गए । मौहम्मद खैरूद्दीन को कलकत्ता में एक मुस्लिम विद्वान के रूप में ख्याति मिली थी।

    जब आजाद 11 साल के थे तब उनकी माता का देहांत हो गया था।‌‌‌उनकी शिक्षा इस्लामी तौर तरीकों से हुई थी। मस्जिद के अंदर उनके पिता ने और बाद मे उन्य विद्वानों ने उनको पढ़ाया था। उन्होंने गणित ,दर्शनशास्त्र आदि का ज्ञान भी प्राप्त किया था।आज़ाद ने उर्दू, फ़ारसी, हिन्दी, अरबी तथा अंग्रेजी़ भाषाओं में भी परांगतता हाशिल करली थी। सोलह साल उन्हें वो सभी शिक्षा प्राप्त करली थी जो आमतौर पर 25 साल में मिला करती थी।

    ‌‌‌13 साल की उम्र मे उनका विवाह ज़ुलैखा बेग़म  से हो गया था।उन्होंने पारम्परिक शिक्षा पसंद नहीं आई। पाश्चात्य दर्शन को भी उन्होंने खूब पढ़ा था।

    ‌‌‌क्रांतिकारी के रूप मे कार्य

    आजाद अंग्रेजी शासन के खिलाफ थे ।उनका मानना था कि अंग्रेज भारत का शोषण करते हैं। इस वजह से उनको भारत से बाहर निकाला जाना चाहिए ।‌‌‌उन्होंने उन मुस्लिम नेताओं की भी आलोचना की जो देश हित को छोड़कर साम्प्रदायिक माहौल को बनाने मे लगे हुए थे  ।1905 में बंगाल के विभाजन का भी उन्होंने विरोध किया

    और मुस्लि्म लिग के अलगाववादी विचार धारा को भी खारिज कर दिया था।उन्होंने ईरान, इराक़ मिस्र तथा सीरिया की यात्राएं भी की थी। आजाद ने क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लिया  और उनको  श्री अरबिन्दो और श्यामसुन्हर चक्रवर्ती जैसे क्रांतिकारियों से समर्थन भी मिला था।

    ‌‌‌राजनीति के अंदर आने के बाद वे एक पत्रकार बन गए थे ।उन्होंने पत्रिका अल हिलाल का संपादन भी किया था।इसका प्रमुख उदेश्य था कि मुस्लिम युवकों को आंदोलन के प्रति जागरूक करना और हिंदु मुस्लि्म एकता पर बलदेना ।‌‌‌1920 के अंदर उनको रांची मे जेल के अंदर भी सजा भुगतनी पड़ी थी।

    असहयोग आंदोलन के अंदर भूमिका

    जेल से निकले के बाद उन्होंने जलियावाला बाग हत्याकांड का विरोध भी किया था।इसके अलावा खिलाफत आंदोलन के अंदर भी उन्होंने भाग लिया था।गाधिजी के असहयोग आंदोलन के अंदर भी उन्होंने भाग लिया था।

    ‌‌‌भारत की आजादी के बाद

    मौलाना आज़ाद

    वे स्वतंत्र भारत के पहले शिक्षामंत्री थे ।उन्होंने 11 साल तक राष्ट्र की शिक्षा नीति का निर्देशन किया था।मौलाना आज़ाद ने ही ‘भारतीय प्रद्योगिकी संस्थान’ या ‘आई.आई.टी.’ और ‘विश्वविद्यालय अनुदान आयोग’ की स्थापना की थी।

    ‌‌‌इसकी वजह से उनको कई सम्मानों से नवाजा गया ।

    • संगीत नाटक अकादमी (1953)
    • साहित्य अकादमी (1954)
    • ललितकला अकादमी (1954)

    ‌‌‌उन्होंने 14 वर्ष तक की कन्याओं के लिए निशुल्क शिक्षा और व्यावसायिक प्रशिक्षण, कृषि शिक्षा और तकनीकी  शिक्षा की वकालत की थी। सन 1992 के अंदर मरणोपरांत उनको भारत रत्न से सम्मानित किया गया ।

    राष्ट्रीय शिक्षा दिवस

    दोस्तों आपको पता होगा की  राष्ट्रीय शिक्षा दिवस  मौलाना अबुल कलाम की याद के अंदर  हर 11 नवंबर को मनाया जाता है।  इसका प्रारम्भ 11 नवम्बर 2008 से किया गया है।

    ‌‌‌पाकिस्तान की भविष्यवाणी

    मौलाना अबुल कलाम बहुत बड़े विद्वान थे ।और वे भविष्य को भी देख सकते थे । इसी वजह से उन्होंने पाकिस्तान के बनने का विरोध भी किया था। सन 1912 ई के अंदर उन्होंने एक भाषण मे कहा था कि

    ‌‌‌—————मैं यह बताना चाहता हूं कि मेरा पहला लक्ष्य हिंदु मुस्लिम एकता का है।मैं मुस्लमानों से यह कहना चाहूंगा कि वे सब कुछ भूल कर हिंदुओं के साथ  भाईचारे की भावना को विक सित करें ।जिससे ही एक सफल राष्ट्र का निर्माण हो सकेगा ।

    ‌‌‌सन 1923 ई के अंदर एक अधिवेशन मे भी उन्होंने अपने भाषण के अंदर हिंदु मुस्लिम एकता पर बल देते हुए कहा था

    …….. यदि कोई देवी स्वर्ग से उतरकर यह कहे कि मैं तुमको हिंदु मुस्लिम एकता के बदले स्वतंत्रता 24 घंटों के अंदर देदूंगी तो मैं ऐसी स्वतंत्रता को त्यागना ज्यादा अच्छा समझता हूं।‌‌‌जब तक हम एक रहेंगे तब तक हम ताकतवर रहेंगे और जब एकता खत्म हो जाएगी तो हम कमजोर पड़ जाएंगे ।

    ‌‌‌आजाद एक ऐसे राष्ट्र की कल्पना कर रहे थे । जिसके अंदर धर्म , जाति ,लिंग आड़े ना आए । लेकिन उनका सपना साकार नहीं हो सका । आज धर्म युद्व सबसे अधिक हो रहे हैं। धर्म के नाम पर लोग एक दूसरे को काट रहे हैं।

    15 अप्रैल 1946 के अंदर कांग्रेस अध्यक्ष मौलाना आज़ाद ने कहा

    …….. मैंने अलग राष्ट्र बनाने के लिए हर पहलूओं पर सोचा लेकिन अंत मे इस नतीजे पर पहुंचा हूं कि अलग राष्ट्र ना बनाया जाए तो ही बेहतर होगा । क्योंकि यह न तो भारत के लिए हित मे है और ना ही मुस्लमानों के हित मे है।‌‌‌इसकी वजह से समस्याओं का हल नहीं होगा वरन समस्याएं और अधिक बढ़ जाएंगी ।

    1946 में जब बंटवारे की तस्वीर पूरी तरीके से साफ हो गई तो उन्होंने इसको रोकने की पूरी कोशिश भी की थी। और उन्होंने कहा था कि एक बार सबको दुबारा इस पर सोच लेना चाहिए । क्योंकि आने वाले समय मे इसके दुष्परिणाम सामने आने वाले हैं।‌‌‌इतना ही नहीं । इस देश के टुकड़े होने के बाद और भी टुकड़े होते चले जाएंगे ।

    ‌‌‌मौलाना ने 1946 के अंदर ही पाकिस्तान के भविष्य को देख लिया था। उन्होंने कहा था कि यह देश एक होकर नहीं रह पायेगा ।इस पर सैना ही शासन करेगी । सारा देश कर्ज के अंदर दब जाएगा और दूसरी ताकते इस देश पर कब्जा करने के बारे मे सोचने लगेगी।‌‌‌मौलाना आजाद ने भारत के मुस्लमानों के लिए भी कुछ शब्द कहे थे । उन्होंने कहा था कि भारत के मुस्लमानों को पाकिस्तान नहीं जाना चाहिए । यदि वे ऐसा करने हैं तो इसका अर्थ होगा कि वे और अधिक कमजोर पड़ रहे हैं।और वह दिन दूर नहीं होगा जब वहां के मुस्लमान भारत के मुस्लमानों के साथ ‌‌‌अजनबी की तरह पेश आने लगेंगे ।

    भारत के प्रथम शिक्षा मंत्री कौन थे लेख आपको कैसा लगा नीचे कमेंट करके हमे बताएं । ‌‌‌अबुल कलाम को कोई नहीं भूल सकता है। वाकाई मे वे सच्चे और बुद्विमान इंसान थे । कलाम ने मुस्लिम और हिंदु एकता पर बहुत अधिक बल दिया । यदि उनके हाथ मे सब कुछ होता तो कभी भी पाकिस्तान का विभाजन नहीं होता । और भारत और पाकिस्तान आपस मे जो उर्जा एक दूसरे को नष्ट करने मे लगा रहे हैं। ‌‌‌वह एक हो जाती । एक बार सोचो जरा उस वक्त भारत दुनिया का सबसे बड़ा और सबसे ताकतवर देश बन जाता । लेकिन कोई था जो नहीं चाहता था कि भारत एक होकर रहे । बस इसी वजह से इसके दो टुकड़े कर दिए जो आपस मे एक दूसरे से लड़ते रहें और खुद हो ही नष्ट करते रहें।

    ‌‌‌22 फरवरी को उनकी मौत दिल्ली के अंदर हो गई थी। और उनकी मौत की क्षति सबसे अधिक हुई । क्योंकि उसके बाद आज तक ऐसा कोई मुस्लिम नेता नहीं हुआ है जो देश हित को सबसे महत्व पूर्ण मानता हो । बस अब जो हैं उनके लिए धर्म सब कुछ है देश बरबाद हो जा उन्हें उससे कुछ फर्क नहीं पड़ता ।

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