somvar ki vrat ki katha , पूजा विधि और व्रत करने के नियम

इस लेख के अंदर हम सोमवार व्रत कथा somvar ki vrat ki katha और सोमवार व्रत के नियम और भजन के बारे मे विस्तार से जानेंगे । हिंदु परम्पराओं के अंदर सोमवार का व्रत भगवान शिव के लिए किया जाता है और भगवान शिव को देवों का देव कहा जाता है।  सोमवार का व्रत करने से वांछित फल की प्राप्ति होती है।

सोमवार का व्रत दिन के तीसरे पहर तक होता है और इस व्रत के अंदर‌‌‌ फलहार किया जा सकता है ‌‌‌सोमवार का व्रत करने के बाद शिव और पार्वती का पूजन किया जाता है।सोमवार व्रत मुख्य रूप से तीन प्रकार के होते हैं। साधारण प्रति सोमवार, सोम्य प्रदोष और सोलह सोमवार।

‌‌‌सोमवार व्रत कथा somvar ki vrat ki katha

एक गाव मे साहुकार रहता था उसकी कोई सन्तान नही थी उसके घर मे धन दोलत की कोई कमी नही थी । किसी साधू ने उसे बताया की वह ‌‌‌सोमवार के व्रत ‌‌‌करेगा तो उसे पुत्र प्राप्त हो जायेगा । इस कारण वह प्रत्येक सोमवार के व्रत करने लगा ।

साथ ही वह पुरी श्रद्धा के साथ शिव मंदीर जाकर‌‌‌ पूजा पाठ करने लगा ।‌‌‌    उस साहुकार की भक्ति देखकर माता पार्वती भगवान शिव से आग्रह करकर कहती है कि वे उस साहुकार की मनोकामना पुरी करें । माता पार्वती की यह बात सुनकर भगवान शिव ने कहा की है पार्वती इस संसार मे सभी को अपने कर्मों का फल भोगना पडता है।  

 लेकीन पार्वती ने भगवान शिव की बात नही मानी ‌‌‌और साहुकार की ‌‌‌इच्छा पुरी ‌‌‌करने का आग्रह करती है। ‌‌‌माता पार्वती के आग्रह पर भगवान शिव ने उस साहुकर को पुत्र प्राप्ती का वरदान तो दे दिया पर साथ मे यह भी कहा की इसकी आयु केवल बाहर वर्ष की होगी ।  माता पार्वती ओर भगवन शिव की यह बात साहुकार सुन रहा था ।

उसे इस बात की खुशी थी और ना ही दुख था । कुछ समय के बाद साहुकार के घर मे पुत्र का जन्म हुआ ।‌‌‌ जब वह पुत्र‌‌‌ ग्यारह वर्ष को हुआ तो पुत्र के मामा को बुलवाकर उसे बहुत सार धन दिया ओर कहा की इसे ‌‌‌पढाई के लिये काशी ले जावे ओर मार्ग में यज्ञ भी करे ।  

‌‌‌जंहा  भी करे वहा ब्राह्मणों को भोजन कराते और दक्षिणा देते हुए आगे चलते जाना । ‌‌‌दोनो मामा‌‌‌ भान्जे इसी तरह से यज्ञ कराने के बाद वे ब्राह्मणों को  दक्षिणा देते हुए आगे चलते गये । ‌‌‌रात्री हो गयी इस लिये वे मार्ग मे एक नगर मे रुके , नगर मे वे रुके थे वहा के राजा की कन्या का विवाह था ।    ‌लेकिन ‌‌‌जिस राजकुमार से उसका विवाह होने वाला था वह एक ‌‌‌आंख से काना था ,इस बात को छुपाने के राजकुमार के पिता ने एक चाल सोची ।

उसने साहुकार के पुत्र को देखकर यह ‌‌‌सोचा कि क्यो न इस लडके को ‌‌‌राजकुमार बनाकर विवाह करा कर जो धन देगे वो इस को देकर राजकुमारी को अपने साथ ले जाऊंगा ।    लडके को राजकुमार के वस्त्र  पहनाकर विवाह करा दिया ।

मगर साहुकार का पुत्र ईमानदार था ,वह राजकुमारी के वस्त्र पर ‌‌‌लिख दिया की‌‌‌ तुम्हारा विवाह मेरे साथ हुआ है , पर जिसके साथ ‌‌‌तुम्हे भेजा जायगा वह एक आख से  ‌‌‌काना है ,मे तो कासी पडने जा रहा हुं ।    जब यह बात राजकुमारी ने अपनी चुन्नी  पर ‌‌‌लिखी पायी तो वह यह बात अपने माता पिता को बता दी । राजा को यह बात पता चलने के कारण से वह अपनी पुत्री को विदा नही किया , जिससे ‌‌‌बारात वापस चली गई ।

   साथ ही साहुकार का पुत्र भी काशी चला गया वहा पहुचकर वहा पर पर साहुकार ‌‌‌के ‌‌‌पुत्र‌‌‌ ने यज्ञ कराया । जिस दिन लडके की आयु 12 साल की हुई उसी दिन यज्ञ रखा गया । लडके ने अपने मामा को कहा की मेरी तबीयत कुछ खराब है , तब लडके के मामा ने कहा की तुम अन्दर जाकर‌‌‌ आराम करो ।    शिव के ‌‌‌वरदान के अनुसार उस बालक के प्राण ‌‌‌निकल गये ।

मृत भान्जे को देखकर मामा रोने लगा । उसी समय माता पार्वती व शिव भी उधर से जा रहे थे , ‌‌‌ पार्वती ने भगवान शिव को कहा की स्वामी मुझे  इसके रोने के स्वर सहन नही हो ‌‌‌रहा है , आप इस को कष्ट से अवश्य ‌‌‌दूर करे ।   जब शिवजी मृत बालक के पास गये तो पार्वती से कहा की यह वही बालक है जिसको मेने 12 वर्ष की आयु का वरदान दिया था ।

अब इसका समय समाप्त हो गया है , ‌‌‌मगर माता पार्वती ने कहा की है स्वामी आप इस बालक को और आयु देने की कृपा करे वरना इसके कारण इसके माता पिता भी मर जायेगें ।    माता कें आग्रह से शिवजी ने उसे ‌‌‌जीवित होने का वरदान दे दिया । वह बालक शिक्षा पुरी करकर अपने मामा के साथ अपनी नगर की और लोट चला । ‌‌‌दानो चलते हुए उसी नगर मे पहुचे जहा उसका विवाह हुआ ।    

उस नगर मे भी उन्होने यज्ञ का आयोजन किया था मगर उस नगर का राजा यानी लडके के ससुर ने उन्हें पहचान लिया था । राजा ने उस लडके की ‌‌‌खातिरदारी की ओर बाद मे अपनी पुत्री को उसके साथ विदा कर दिया । ‌‌‌साहुकार ओर उसकी पत्नी दोनो ने यह प्रण ले लिया था कि अगर पुत्र जीवित नही लोटा तो वे भुखे प्यासे ही मर जायगें ।

 अपने पुत्र को जीवित पाकर बहुत प्रसन्न हुए । उसी रात भगवान शिव ने साहुकार को स्वप्न मे आकर कहा की है साहुकार में तुम्हारे सोमवार के व्रत करने से अत्यन्त प्रसन्न हुआ जिसके कारण मेने ‌‌‌तुम्हारे पुत्र की आयु सो वर्ष कर दी है । इसी प्रकार जो भी मेरे व्रत करेगा उसकी सभी मनोकामना पुरी होगी । ‌‌‌

‌‌‌सोमवार व्रत के लिए आरती

यदि आप सोमवार का व्रत करते हैं तो आपको भगवान शिव की आरती भी करनी चाहिए इसके लिए नीचे आरती दी जा रही है। आप इसको मोबाइल के अंदर भी चला सकते हैं और इसके साथ साथ मन मे गुन गुना सकते हैं या पढ़कर कर सकते हैं।

‌‌‌जब भगवान शिव ने ली माता पार्वती की परीक्षा

माता पार्वती भगवान शिव से मिलने के लिये कठिन तप कर रही थी । उसके तप को देखकर अन्य देवताओ ने भी पार्वती की मनोकामना पूरी करने के लिये भगवान शिव से प्राथना ‌‌‌की । सप्तर्षियों ने पार्वती को शिव के अनेक अवगुण गिनाये पर माता पार्वती किसी और से विवाह करने के लिये राजी नही हुई ।‌‌‌

विवाह से पहले सभी वर अपनी ‌‌‌पत्नीयो को लेकर आश्वस्त होना चाहा जिसके कारण भगवान शिव ने भी माता पार्वती की परीक्षा ‌‌‌लेनी चाही ।  

 भगवान शिव प्रकट हुए ‌‌‌और माता को वरदान दिया ‌‌‌और कहा विवाह से पुर्व मे तुम्हारी परीक्षा अवश्य लेना चाहुंगा, ‌‌‌इतने मे भगवान ‌‌‌वंहा से चले गये ‌‌‌ कुछ समय बाद मे माता जहा जप करती थी,वही कुछ ‌‌‌दूरी पर एक बच्चा नदी के किनारे से पानी मे ‌‌‌पहुंचकर पानी मे मछली पकडने लगा ।  

 तभी भगवान शिव ‌‌‌मगरमच्छ का रुप लेकर उस बालक को पकडने लगे , वह बालक ‌‌‌चिल्लाने लगा ‌‌‌उनकी चीख माता को सहन न होने के कारण उसे बचाने के लिये समुंद्र मे पहुच गई । माता पार्वती देखती है ‌‌‌कि वह ‌‌‌मगरमच्छ उस बालक को पानी मे खीच के ले जा रहा था ।

माता पार्वती ‌‌‌मगरमच्छ को बोली है ग्राह इस बालक को छोड दो ……   तब ‌‌‌मगरमच्छ बोला जो भी मुझे ‌‌‌दिन के छठे पहर को इस मे मिलता है ‌‌‌मैं उसे अपना ‌‌‌भोजन समझकर ग्रहण करता हुं । यह बालक इस समय इस समुंद्र मे आया है तो यह मेरा भोजन बनेगा यही मेरा नियम है ।‌‌‌माता पार्वती ने कहा कि तुम इसे छोड दो ओर बदले मे तुम मेरे प्राण ले लो ।  

‌‌‌मगरमच्छ बोला कि मे इसे एक शर्त पर इसे छोड सकता हुं कि तुम अपनी तप का फल मुझे दे दो तो । माता पार्वती ‌‌‌तैयार हो गई और कहा कि तुम पहले इस बालक को छोड दो । ‌‌‌मगरमच्छ बोला देख लो आपने जैसा तप किया वैसा देवताओ के लिये भी सम्भव  ‌‌‌नही है ।

  ‌‌‌उसका फल केवल इस बालक के बदले चला जायेगा । पार्वतीने कहा निश्चय पक्का है तुम इस बालक को छोड दो । मगरमच्छ  ने पार्वती से तप का दान करने का संकल्प करवाया‌‌‌ जैसे ही संकल्प ‌‌‌किया मगरमच्छ  का देह से तेज‌‌‌ रोशनी निकलने लगी ।

  मगरमच्छ  बोला है पार्वती ‌‌‌देखो इस तप का फल पाकर में तो तेजस्वी बन गया हुं ‌‌‌ तुमने अपने वर्षो पुराने तप को इस बच्चे के बदले दे दिया अगर तुम चाहो तो अपनी भुल सुधारने का एक ओर मोका दे सकता हुं ।   पार्वती ने कहा कि है ग्राह तप तो मे ‌‌‌पुन: कर सकती ‌‌‌हूं पर इस बालक के प्राण मे ‌‌‌पुन: नही ला सकती ।

और देखते देखते मगरमच्छ  गायब हो गया । पार्वती ने सोचा तप मेने दान कर दिया अब ‌‌‌पुन: तप ‌‌‌आरभ करती हुं । ‌‌‌पार्वती ने फिर तप करना चालु किया … तब शिव जी पुन प्रकट हुए और बोले अब तुम ‌‌‌पुन: तप क्यो कर रही हो पार्वती ?   पार्वती ने कहा की ‌‌‌मैने अपने तप को दान कर दिया अब मे वैसा ही तप ‌‌‌पुन: कर कर आपको प्रसन्न करुगी ।

महादेव ने कहा कि मगरमच्छ  के रुप मे मैं ही था ….. मैं तुम्हारी परीक्षा ‌‌‌ले रहा था । इसी कारण मैने यह लीला रची थी ।   भगवान शिव ने पार्वती से कहा कि अनेक रुपो मैं ही हु । मैं अनेक शरीरो मे शरीरो से अलग निर्विकार हुं । तुमने अपना ‌‌‌तप मझे दे दिया है अब तुम्हें और तप करने की क्या जरुरत है ।

‌‌‌‌‌‌भगवान शिव और माता सती की कथा

दक्ष प्रजापति की कई पुत्रियां थी पर राजा दक्ष को एक ऐसी पुत्री कि कामना थी जो शक्ति-संपन्न  हो । इस कारण राजा दक्ष तप करने लगा । तप करते करते बहुत समय ‌‌‌बीत जाने के बाद देवी आद्या ने राजा दक्ष के तप से प्रसन्न होने के ‌‌‌कारण दक्ष के सामने प्रकट होकर कहा कि हैं राजा दक्ष मे तुम्हारे तप से ‌‌‌अत्यधीक प्रसन्न हुं ।

  देवी ने कहा कि आप किस लिये तप कर रहें हो राजन । तब दक्ष प्रजापति ने कहा की मुझे एसी पुत्री की कामना है जो शक्ति-संपन्न हो। सर्व-विजयिनी हो। तब माता आद्या ने कहा की मैं स्वय तुम्हारे घर मे जन्म ‌‌‌लूंगी।‌‌‌ और मेरा नाम सती होगा , सती के रुप ‌‌‌मे मैं इस संसार मे अपनी ‌‌‌लिलाओं का ‌‌‌प्रदर्शन करुंगी। 

  कुछ समय बाद मे दक्ष प्रजापति के घर मे सती का जन्म ‌‌‌हुआ।सती दक्ष की सभी पुत्रियों में अलौकिक थीं। सती ने बाल्य अवस्था मे ही कई ‌‌‌ऐसे कार्य कर दिये जिसे देखकर दक्ष भी ‌‌‌चौंक गया ।  

‌‌‌जब सती विवाह योग्य हुई तो दक्ष को विवाह के लिये ब्रह्मा के पास योग्य वर के ‌‌‌बारे मे जानने के लिये गये । ब्रह्मा जी ने कहा कि सती आद्या का अवतार है , आद्या आदिशक्ति का अवतार है और शिव आदि पुरुष है अत: सती के लिये शिव ही ‌‌‌उचित रहेंगे।

ब्रह्मा  की बात मानकर दक्ष ने शिव व सती का विवाह करा ‌‌‌दिया । सती कैलास जाकर रहने लगी ,यद्पि शिव और सती का विवाह दक्ष कि इछा से हुआ पर एक बार एक ऐसी घटना घटी जिसके कारण दक्ष के मन मे शिव के प्रती बैर बन गया था ।

वह घटना इस प्राकर है कि एक बार  ब्रह्मा ने धर्म के निरुपण के लिये एक सभा का आयोजन किया जिसमें कई राजा व देवता आये थे ।   ‌‌‌वहा पर शिव जी भी आये थे जब राजा दक्ष वहा पहुचे तो सभी राजा व देवता खडे हो गये थे पर शिवजी खडे नही हुऐ ।

यही नही वे उन्हे ‌‌‌प्रणाम भी नही किया इस कारण दक्ष ने अपमान का ‌‌‌अनुभव किया । इस के कारण राजा दक्ष को शिव जी से जलन होने लगी इसका बदला लेने के लिये राजा दक्ष समय की प्रतिक्षा करने लगे ।   ‌‌‌भगवान शिव कैलाश मे दिन रात राम राम का जप करते थे ।

इसी कारण सती ने एक दिन शिवजी से पुछ लिया कि आप राम राम का जप क्यों करते हो ? राम कोन है ? भगवान शिव ने उत्तर दिया की राम आदी पुरुष है, राम मेरा अराध्य है , ‌‌‌सर्वगुण भी है निर्गुण भी है पर सती को शिव जी की बात समझ मे नही आई ।

‌‌‌माता सती सोचने लगी कि  अयोध्या के नृपति दशरथ के पुत्र राम आदि पुरुष के अवतार कैसे हो सकते हैं?    वे तो आजकल अपनी पत्नी सीता के साथ दंढनीय अपराध भोग रहे है । क्या वे अवतार हो सकते है ? अगर वे अवतार होते तो इस प्रकार वन मे भटक नही रहे होते । इस कारण सती ने सोचा क्यो न भगवान राम की ‌‌‌परीक्षा लेने के बारे मे सोचा इस लिये सती दंडक वन मे माता सीता का रुप लेकर भगवान राम के सामने ‌‌‌पहुंच गई ।

भगवान राम ने सती को सीता के रुप मे देखकर  बोले माता सती आप इस वन मे क्या कर रही हों? बाबा शिवनाथ कहा है ?    राम की बात सुनकर माता सती को कुछ उत्तर न सुझा वह वहा से अचानक गायब हो गयी ओर मन ही‌‌‌ मन मे पश्चाताप  करने लगी । जब वह कैलास पहुची तो शिव ने कहा सती तुमने सीता का रुप लेकर अच्छा नही ‌‌‌किया ।

सीता मेरी अराध्या है इस लिये तुम मेरी पत्नी केसे रह सकती हो । इस जन्म मे हम पत्ती पत्नी के रुप मे तो मिल नही सकते है । इतना कहकर शिव जी वहा से चले गये ।    सती मन ही मन मे पश्चाताप करने‌‌‌ लगी पर अब क्या हो सकता था शिवजी के मुख से निकली बात असत्य ‌‌‌कैसे हो सकती है । उसके अगले दिन सती के पिता  कनखल मे यज्ञ कर रहे थे राजा दक्ष ने सभी देवताओ को उस यज्ञ मे आमन्त्रित कीया ।

किन्तु राजा दक्ष ने शिव को उस यज्ञ  मे आमन्त्रित नही किया क्यो कि उसके मन मे शिव के ‌‌‌प्रति ईर्ष्या थी ।   ‌‌‌जब सती को मालुम पडा की उसके पिता ने बहुत बडा यज्ञ किया है तो उसका मन उस यज्ञ  मे जाने के लिये बैचैन  होने लगी । शिव जी समाधिस्थ  थे इस कारण सती ने शिवजी से बिना अनुमती के ही वीरभद्र के साथ वहा से चली गई । ‌‌‌कई जगहो पर इस कथा का वर्णन कुछ अलग प्रकार से मिलता है ।

‌‌‌एक बार सती ओर भगवान शिव आपस मे वार्तालाप कर रहे थे अचानक सती को आसमान मे वाहन जाते हुए दिखे तो सती शिव से पुछती है  है प्रभु ये वाहन किसके है ओर कहा जा रहे है । तब शिवजी ने उत्तर दिया कि यह वाहन देवताओ के है ओर तुम्हारे पिता के घर जा रहे है ।तब सती कहती है कि क्या मेरे पिता ने आपको ‌‌‌नही बुलाया क्या ? 

  भगवान शिव ने उत्तर दिया की आपके पिता मुझसे बैर रखते है तो वें मुझे क्यो बुलाने लगे । फिर सती ने सोचा की अवश्य ही इस यज्ञ मे मेरी बहने भी आई होगी इस कारण वह शिव जी कहती है कि प्रभु अगर आप कि आज्ञा हो तो मे वहा जाना चाहती हुं ।   ‌‌‌यज्ञ मे सम्मिलित  होकर अपनी बहनो से भी मिल लुगी ।

भगवान शिव ने उत्तर दिया कि इस समय वहा जाना उचित नही है । आपके पिता मुझसे जलते है  हो सकता है वे आपका भी अपमान कर दे इस समय वहा जाना उचित नही है । किन्तु सती हठ कर बेठी की मुझेतो जाना है । सती बार बार जाने के बारे मे कह रही थी ‌‌‌इस कारण ‌‌‌शिव जी ने जाने की आज्ञा दे दी थी ।

  ‌‌‌और शिव जी ने सती के साथ अपना एक गण भी भेजा जिसका नाम वीरभद्र  था । सती वीरभद्र  के साथ अपने पिता के घर चली गयी । मगर सती के साथ किसी ने भी प्रेम पर्वक बात तक नही की , सती के पिता ने सती को कहा कि तुम क्या मेरा अपमान कराने के लिये याहा पर आयी हो । दक्ष सती को कहते है कि तुम्हारी बहनों को देखो किस प्रकार विभिन्न आभुषणों , सुन्दर वस्त्रों से सुसज्जित है । तुम्हारे शरीर पर केवल बाघंबर है ।

तुम्हारे पति तो भूतो के नायक है तुम्हें ‌‌‌और ‌‌‌दे भी क्या सकते है ।    इस कथन से सती के हृदय पर चोट लगी । सती सोचने लगी की वे यहा आकर अछा नही कीया ।

प्रभु सच कहते है बिना बुलाये पिता के ‌‌‌घर भी नही जाना चाहिये पर अब और कर भी क्या सकती हुं । सती चुप चाप सब कुछ सुनती रही ।  वे उस यज्ञमंडल  मे गयी जहा देवता व ऋषी मुनी बेठे थे ।

सती यज्ञकुण्ड मे धु धु करती हुई अग्नि मे आहुतियां  डालती रही । सती ने देखा की वहा पर सभी देवी देवता का मान समान तो था पर शिव का न था ।

  ‌‌‌ सती ने वहा पर सभी की उपस्थती थी पर कैलाश के स्वामी शिव जी की उपस्थिती नही थी इस कारण देवी ने अपने पिता से कहा की पिताजी यहा सभी है पर कैलाशपती नही है दक्ष ने गर्व से उत्तर दिया की मे तुम्हारे पती को देवता नही मानता हुं वह तो भुतो का देवता है वह तो हड्डियों  की माला पहनने वाला है ।

‌‌‌वह देवताओ के बिच मे बेठने के योग्य नही है ।  सती के नेत्र लाल हो गये है ,उसका मुख लाल हो गये थे वह पिडा से तिलमिलाते हुए बोली ओह मे इन शब्दो को केसे सुन सकती हु । ओर देवताओ तुम केलाशपति के बारे मे केसे सुन सकते हो ।

जो मगल के प्रतीक है , जो छण भर मे इस संसार को नष्ट करने की शक्ति  रखते है   ‌‌‌वे मेरे स्वामी है ।  पृथ्वी सुनो, आकाश सुनो और देवताओं, तुम भी सुनो! मेरे पिता ने मेरे स्वामी का अपमान किया है। सती अपने कथन को समाप्त करते हुए यज्ञ मे कुद पडी । जलती हुई आहुतियों  मे सती का शरीर जलने लगा ,देवताओ मे खलबली मच गई ।

विरभद्र क्रोध मे आ गया । वे  यज्ञ मंडप  को मिटाने लगे ऋषी मुनी ‌‌‌ भाग खडे हुए । देखते ही देखते विरभद्र ने दक्ष का सीर धड से अलग कर दिया ।    यह समाचार शिव के कानो मे पडा तो वे प्रचंड आंधी की भांति कनखल जा पहुचे शिव अपने आपको भुल गए ।

सती के ‌‌‌प्रेंम तथा भक्ति  ने भगवान शिव को रोक लिया वरना वे इस संसार को नष्ट कर देते वे सती के ‌‌‌प्रेंम मे खो गये वे बेसुध  हो गए ।   ‌‌‌भगवान शिव ने सती के जलते हुए शरीर को अपने हाथे मे लेकर सभी दिसाओ मे घुमने लगे ।

  पृथ्वी रुक गई, हवा रूक गई, देवताओ की  सांसे रुक गई । सारे जीव जन्तु भी बोलने लगे । पृथ्वी की ‌‌‌ऐसी दसा देखकर पृथ्वी  के पालनहार विष्णु ने सती के जलते हुए शरीर को चक्र से छोटे छोटे टुकडे कर दिए ।   ‌‌‌सती के शरीर के अनेक ‌‌‌भाग धरती पर अलग अलग जगहो पर जा गिरे जिससे भगवान शिव वापस अपने आप मे आये  ‌‌‌और सभीकार्य चलने लगे ।

  धरती पर जिन  इक्यावन  स्थनो पर सती के शरीर के अंग गीरे वे ही आज शक्ति के पीठ के नाम से जाना जाता है । शिव और सती के प्रेम की यह ‌‌‌कथा शिव व सती को अमर बना दिया था ।

‌‌‌भगवान शिव के बारे में

 ‘शिव’ का शाब्दिक अर्थ है- ‘जो नहीं है’। ‌‌‌शिव महत्वपूर्ण देवताओ मे से एक है वह त्रिदेवों मे से एक है । इन्हे अनेक नाम से जाना जाता है  भोलेनाथ, शंकर, महेश, रुद्र, नीलकंठ, गंगाधार आदि । शिव को देवो के देव महादेव के नाम से ‌‌‌जाना जाता है । इनका एक रुप भैरव भी है जिन्हे तन्त्र साधना मे जाना जाता है। वेद मे इनका नाम रुद्र है ।

यह व्यक्ति की चेतना के अन्तर्यामी हैं। ‌‌‌इनकी पत्नी का नाम पार्वती है इनके पुत्र कार्तिकेय और गणेश हैं, तथा पुत्री अशोक सुंदरी हैं। शिव को ‌‌‌चित्रों मे योगी के रुप ‌‌‌मैं ‌‌‌जाना जाता है । इनके  गले मे नाग राज देवता विराजमान है । इनकी पूजा शिवलिंग व मूर्ति दोने के रुप मे की जा सकती है ।   ‌‌‌भगवान शिव को अन्य देवताओ मे से ‌‌‌आगे माना जाता है ।

भगवान शिव सौम्य आकृति के रुप में है इन्हे रौद्ररूप के लिये माने जाते है । शिव अनादि है ,शिव का अर्थ यद्यपि कल्याणकारी माना गया है  रावण, शनि, कश्यप ऋषि के शिव गुरु है ‌‌‌शिव जी लय व प्रलय को धरण करे हुए रहते है ।

  ‌‌‌शिव सभी को समान दृष्टि से देखने के कारण इन्हे महादेव कहा जाता है । भगवान शिव को रुद्र रुप मे जाना जाता है जिसका अर्थ है रुत दूर करने वाला अर्थात दुख को हरने वाला । शिव को अनेक नामो से जाना जाता है महाकाल, आदिदेव,विषधर, नीलकण्ठ चन्द्रशेखर, मृत्युंजय, जटाधारी नागनाथ आदी । 

  रुद्राष्टाध्याई के पांचवी अध्याय में भगवान शिव के अनेक रूप वर्णित है  रामायण मे भगवान राम ओर ‌‌‌शिव के बिच अंतर जानने वाला शिव का कभी भी प्रीय नही हो सका । भगवान सुर्य के रुप मे शिव है । मनुष्यो के कर्म के अनुसार अनको फल देते है ।अर्थात मनुष्यो को जल ‌‌‌भोजन  आदी शिव देते है ।    ‌‌‌शिव अनादि है सम्पूर्ण ब्रह्मांड  शिव के अन्दर समाया हुआ है । अर्थात जब कुछ न था जब शिव थे जब कुछ न होगा तब शिव होगें ।

शिव को ‌‌‌महाकाल बताया जाता है अर्थात समय ।   ‌‌‌शिव अपने इसी रुप के द्वारा सम्पुर्ण सृष्टि का भरण ‌‌‌पाषण करते है । इसी स्वरुप के द्वारा सभी ग्रह बंधे हुए है । ‌‌‌परमात्मा के इस रुप को अत्यंत कलयाणकारी माना जाता है। क्योकी इसी के कारण सम्पूर्ण ‌‌‌ब्रह्रमाण्ड अपनी सही ‌‌‌स्थिति पर टिके है । ‌‌‌

शिव पुराण मे एक लेख मे लिखा गया है कि माता दुर्गा से शिव कहते है की माता ब्रहमा आपकी सन्तान है विष्णु भी आपसे उत्पन्न हुए है तो मै भी आपकी सन्तान हुआ । ‌‌‌यही प्रमाण देवी भागवत मे लिखा है की ‌‌‌तीनो माता के पुत्र है ।  

‌‌‌पृथ्वी पर बीते हुए इतिहास के आधर पर सतयुग व कलयुग मे पृथ्वी पर केवल एक ही मानव रहा है जीसके ललाट पर ‌‌‌ज्योति है । ‌‌‌इसी स्वरुप के द्वारा देवो ने जीवन व्यतित कर मानव को पुराणों के द्वारा ज्ञान दिया । ‌‌‌जो मानव के लिये लाभकारी ‌‌‌साबित हुआ है ।‌‌‌परमात्मा के इसी स्वरुप के द्वारा  मानव रुद्र से शिव बनने का ज्ञान प्राप्त हुआ है ।

सोमवार के व्रत का समय

सोमवारी व्रत का प्रारम्भ के श्रावण, चैत्र, वैशाख, कार्तिक या मार्गशीर्ष के महीनो के शुक्ल पक्ष के प्रथम सोमवार से ही करना ज्यादा ‌‌‌अच्छा माना जाता है।  

‌‌‌पूजा विधी

शिव गोरी की पुजा करनी चाहिए ।
· बादमे शिवजी की कथा सुननी चाहिए । ·
· गंगा जल से पुरे घर को पवित्र करना चाहीए । ·
· ‌‌‌शिव ती को गंगा जल धतरा दही घी सहद श्वेत फूल सफेद चन्दन चावल पंचामृत अक्षत पान आदी चढाने चाहिए ।
“ॐ नमः शिवाय” का उच्चारण करना चाहिए । ·
· केवल एक पक पहर ही भुजन करना चाहिए साधरण तोर पर तिसरे पहर को ।
· प्रात ‌‌‌जल्दी उठकर ठण्डे पानी से स्नान करना चाहिए ।
· शिव मंदिर मे जाकर बैलपत्र चढाना चाहिए

‌‌‌सोमवार व्रत ‌‌‌कथा के लाभ

  1.  ‌‌‌सोमवार व्रत करने से संतान प्राप्ती होती है । 2.  ‌‌‌सोमवार के व्रत करने से मन को ‌‌‌शांति के साथ साथ उसका ‌‌‌अहंकार समाप्त हो जाता है । 3.  ‌‌‌सोमवार के व्रत करने से मनुष्य को आर्थीक लाभ भी प्राप्त होकता है तथा परीवार मे ‌‌‌शांति रहती है । 4.  सोमवारी व्रत करने से इच्छानुसार जीवनसाथी मिलता है। 5.  ‌‌‌‌‌‌यदि  बार बार आप किसी कार्य को कर रहे हो पर सफलता नही प्राप्त नही हो रही है तो सोमवार व्रत करने से जल्दी सफलता ‌‌‌मिलती है । 6.  ‌‌‌‌‌‌यदि  घर मे कीसी बात के कारण कलेश हो रहा है तो सोमवार व्रत करने से कलेश ‌‌‌दूर होता है ।  

‌‌‌भजन

आज सोमवार है शिवाले जाएंगे,
ॐ नमः शिवाये हम गाते जाएंगे,

धुप दीप भंग आक धतूरा चांदी थाल सजाके,
गंगा जल से भर के लौटा गौका दूध मिलाके,
नंगे पॉंव चल भोले के मंदिर जाएंगे,
आज सोमवार है शिवाले जाएंगे,

चढ़ाके जल शिव पिंडी को हम तिलक करें चंदन का,
श्रृंगार करें त्रिलोकी के मालिक प्यारे भगवन का,
शिव पिंडी के दर्शन कर हम धन्य हो जाएंगे,
आज सोमवार है शिवाले जाएंगे,

शिव भोले के जो भी सोलह सोमवार व्रत धारे,
सुख सम्पदा लुटाते उसपर हैं शिव भोले प्यारे,
शिव भोले से मन चाहा फल हम भी पाएंगे,
आज सोमवार है शिवाले जाएंगे,

दर तेरे पे आन खड़े हैं मिलके शिव हरिपाल,
तेरे गुण गायें कैसे ना जाने सुर और ताल,
बनी रहे कृपा हम तेरी महिमा गाएंगे,
आज सोमवार है शिवाले जाएंगे,

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हे शिव भोले हे शिव शंकर तुझसे दुनिया दारी है,
ॐ नमः शिवाये ॐ नमः शिवाये,

भस्म रमाये तन पर भोले नंदी इनकी सवारी है,
कहते इनको भोले शंकर जग के ये त्रिपुरारी है,
हे शिव भोले हे शिव शंकर तुझसे दुनिया दारी है,
ॐ नमः शिवाये ॐ नमः शिवाये,

ध्यान लगाए बैठे है शिव मूरत बड़ी ही प्यारी है,
तीन नेत्र है शिव शंकर के गले में सर्प की माला है,
मांग ले जो भी इनसे बंदे शिव ये भोला भाला है,
हे शिव भोले हे शिव शंकर तुझसे दुनिया दारी है,

कर में तिरशूल है शिव भोले के जटा में गंगा धरा है,
दे कर देवो को अमिरत खुद विष को गले में धारा है
इस लिए तेरे दर पे भोले हम ने भी डेरा डाला है,
हे शिव भोले हे शिव शंकर तुझसे दुनिया दारी है,

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जय शिव शंकर नमामि शंकर शिव शंकर श्मभु,
जय गिरजा पति भवानी शंकर शिव शंकर श्मभु,

शिव शंकर शम्भू
जय शिव शंकर नमामि शंकर शिव शंकर श्मभु,
जय गिरजा पति भवानी शंकर शिव शंकर श्मभु,

जय गिरजा पति भवानी शंकर शिव शंकर श्मभु,
जय शिव शंकर नमामि शंकर शिव शंकर श्मभु,
जय गिरजा पति भवानी शंकर शिव शंकर श्मभु,

जय शिव शंकर नमामि शंकर शिव शंकर श्मभु,
जय गिरजा पति भवानी शंकर शिव शंकर श्मभु,

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वो जो नंदी की करता सवारी
मेरा भोला सा भोला भंडारी,
वो जो नंदी की करता सवारी
शीश पर जिसने गंगा उतारी ,
मेरा भोला सा भोला भंडारी,
वो जो नंदी की करता सवारी

जिस का केलाश पर्वत है डेरा,
वो है हर हर महादेव मेरा,
है गले जिसके सर्पो की माला,
चंदर माँ का माथे उजाला,
जिसके चरणों में है दुनिया सारी,
मेरा भोला सा भोला भंडारी,
वो जो नंदी की करता सवारी

सारी दुनिया है जिस की दीवानी ,
उसकी महिमा न जाए भखानी
कोई श्मभु कहे कोई शंकर,
कोई कहता उसे ओह्गड़ दानी,
जिसके चरणों के हम सब भिखारी,
मेरा भोला सा भोला भंडारी,
वो जो नंदी की करता सवारी

खुद चंडाल ओह्गड है सेवक,
देवता भी है जिसके निबेदत,
काल और देत्ये भी कांपते है
नाम सभी जिसका जाप्ते है,
है दशानन भी जैसे पुजारी,
मेरा भोला सा भोला भंडारी,
वो जो नंदी की करता सवारी

This post was last modified on May 20, 2021

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