शनिवार व्रत कथा shanivaar vrat katha, आरती, भजन, चालीसा, नियम,फायदे

‌‌‌मत्स्य पुराण में शनि देव का शरीर इन्द्र कांति की नीलमणि के जैसा है। शनि देव का वाहन गिद्ध है। ऐसा माना जाता है शनिदेव के एक हाथ मे धनुष बाण है एक हाथ से वर मुद्रा है ।

शनिदेव के पिता का नाम सुर्य देव है माता छाया है शनि देव छाया के गर्भ मे था तो वह भगवान शिव की भग्ति मे लिन थी उसे खाना और अपने पुत्र के बारे मे कोई ज्ञान नही था वह भगवान शिव की भग्ति मे इतनी लिन हो गई ।

जिसका प्रभाव शनिदेव पर पडा । सुर्य देव ने छाया की ऐसी लापरवाही को देवकर यह कहने लग ‌‌‌गये थे की यह मेरा पुत्र नही है तब से शनिदेव भगवान सुर्य से क्रोध करते है ।

शनिदेव तपस्या ‌‌‌करके भगवान शिव से अनेक शक्ति प्राप्त कर भगवान सुर्य के ‌‌‌बराबर जा ‌‌‌पहूंचे । भगवान शिव ने शनिदेव को वरदान दिया की  नवग्रहों में तुम्हारा सर्वश्रेष्ठ स्थान होगा।

‌‌‌शिव ने शनिदेव को वरदान दिया की भगवान भी तुम्हारे नाम से काप उठेगे ।मोक्ष को देने वाला एक मात्र शनि ग्रह ही है क्योकी भगवान शनिदेव सबके साथ न्याय करते है ।वे सत्ये को जिताने मे अपना पुरा बल लगा देते है ।

इनके कारण ही पृथ्वी पर संतुलन बना हुआ है । शनि देव उन्हे ही दण्ड देते है जो इस पृथ्वी पर आकर अपने मार्ग से ‌‌‌भटकने लगा है ।

‌‌‌शनिदेव को अच्छाई के लिये पुजा जाता है पर अपनेक लोग इनसे डरते है वे इन्हे कष्ट देने वाला बताते है पर ये केवल उन्ही ‌‌‌को कष्ट देते है जो पाप करने लगे हो या उन्हे अपने आप पर घमण्ड आ गया हो ।

शास्त्रो में शनि देव को अनेक नामो से जाना जाता है जैसे मन्दगामी, सूर्य-पुत्र, शनिश्चर और छायापुत्र ।नीलम शनि का रत्न माना जाता है । शनिदेव भगवान सूर्य,चन्द्र,मंगल को अपना शत्रु मानता है ।शनिदेव बुध,शुक्र को अपना मित्र मानता है ।

शिंगणापुर, वृंदावन के कोकिला वन,ग्वालियर के शनिश्चराजी,दिल्ली तथा अनेक शहरों मे शनि देव प्रसिद्ध मन्दिर हैं।

शनिवार व्रत कथा

एक बार की बात है सभी नवग्रहओ मे विवाद छिड गया की हममे से सबसे बडा कोन है वे नवग्रह है सूर्य, चंद्र, मंगल, बुद्ध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु और केतु ।

वे सभी अपनी इस समस्या का निवारण कराने के लिये देवराज इंद्र के पास गये पर देवराज इंद्र उनका यह निर्णय नही कर माये और कहा की इसका निर्णय तो विक्रमादित्य ‌‌‌ही कर सकते है ।

वे सभी ग्रह राजा विक्रमादित्य के पास पहुचे और अपनी समस्या को बताया ।राजा ने सोचा की अगर किसी को भी छोटा बताया तो वे सभी लडने लग जायेगे और उन्हे सम्भालना बहुत मुसकील हो जायेगा । वे इस बारे मे सोचने लगे व कुछ समय के बाद विक्रमादित्य को उनके निर्णय करने के लिये एक बात सूझी।

 ‌‌‌राजा विक्रमादित्य ने अने सेनीको को नौ सिंहासन बनवाने के लिये कहा वे है स्वर्ण, रजत, कांस्य, पीतल, सीसा, रांगा, जस्ता, अभ्रक और लौह  और सभी को कहा की आप  अपने अपने सिंहासनो पर बेठ जाये और जो भी सबसे अन्त मे बेठेगा वह सबसे छोटा होगा ।

इसी प्रकार अपने अपने सिंहासनो पर सभी बैठ गये व अन्त मे ‌‌‌भगवान शनी का सिंहासन था व वे सबसे छोटे हुए । वे ‌‌‌सोचने लगे की राजा ने यह जान बुझकर किया है वे क्रोध मे आकर राजा से कहने लगे की ‌‌‌इन सभी का तो कुछ दिन तक क्रोध चलता है पर मेरा तो ढाई से साढ़े-सात साल तक रहता है जब भगवान राम के साढ़े-साती लगी तो वे वन के ‌‌‌अंदर भटकने लगे थे ।

‌‌‌रावण के साढ़े-साती लगने पर उसकी सोने की लका भी जलकर राख हो गई । तुम मेरे से दुर रहना वरना तेरा क्या होगा तु सोच भी नही सकता है । शनी देव इतना कहकर वहा से चले गये और सभी वहा से खुस ‌‌‌होकर चले गये। कुछ समय बित गया और राजा विक्रमादित्य की साढे साती सुरु हो गई ।

साढे साती मे शनी देव राजा विक्रमादित्य के नगर मे घोडो को बेचने के लिये आये । यह समाचार राजा के पास पहुचा तो राजा ने कई घोडे खरीद लिये और राजा को वह सोदागर एक घोडा भेट के रुप मे दे दिया था ।

राजा ने सोचा की चलो इस घोडे की सवारी की जाये । राजा जेसे ही उस घोडे पर सवारी करने के लिये ‌‌‌बेठे तो वह घोडा राजा को एक घने जबल मे लेजाकर वह घोडा वहा से भाग जाता है ।राजा का वहा पर जीवन जीना मुसकील हो गया वे वहा पर भुके प्यासे रहने लगे ।

 राजा को वहा पर भटकते हुए बहुत समये हो गया था। तब वहा से एक ग्वाला जा रहा था ।राजा को उस ग्वाले ने पानी पिलाया इस कारण राजा खुश हो‌‌‌कर अपनी अगुठी ‌‌‌निकाल कर उस ग्वाले को भेट के रुप मे दे दिया ।

 राजा ने वहा से अपने नगर की ओर जाना चाहा तो राजा ने उस ग्वाले से कहा की भाई यहा से उज्जैन जाने का रास्ता बता दो राजा ने कहा की मेरा नाम विका है । तब उसे रास्ता पुछ कर राजा अपने नगर की और जाने लगे ।

वहा से जाते समय एक सेठ की दुकान पर राजा ने जल ‌‌‌पिया । राजा ने समय कुछ विश्राम किया और कुछ समये के बाद उस सेठ की बहुत बिकरी हुई सेठ बहुत खुस हो गया और राजा को अपने घर ले गया ।

 राजा ने अपना नाम विका बताया था तो सेठ अपने घर मे उसे कुछ समय अराम करने के लिये एक स्थान पर बैठा दिया । राजा ने देखा की सेठ की घर मे एक खुंटी पर एक हार है जो वहा से थोडा थोडा करकर गायब हो रहा है ।

 कुछ समये के बाद वहा पर सेठ ‌‌‌आया तो उसने देखा की वहा पर हार नही है तो सेठ ने सोचा की विका ने वह हार चुरा लिया है । सेठ ने विका को कोतवाल से पडा दिया । वहा के राजा ने भी उसे चोर ‌‌‌समझा और उनकी बातो पर विश्वास नही किया । सजा के तोर पर ‌‌‌उसने विका के हाथ ‌‌‌पैर कटवा ‌‌‌कर नगर के बाहर फेंक दिया ।उसी रास्ते से एक तेली जा रहा था विका की ऐसी हालत देखकर तेली को दया आ गई ।

 तेली ने उसे अपनी बेल मे बठाया और वहा से जाने लगा । वह जाते ‌‌‌समय विका मल्हार गाने लगा जिसकी मल्हार की ‌‌‌शुर सुनकर उस नगर की राजकुमारी ने उसके साथ अपना जीवन जिने का प्रण ले लिया ।

उसी समय शनी देव की दशा ‌‌‌पुरी हो गई थी । राजकुमारी ने अपनी दासियो से कहा की जाओ जो यह मल्हार गा रहा है उसका पता लगाकर आओ । दासी ने बताया कि वह एक चौरंगिया है ।

राजकुमारी दुसरे दिन उठकर खाना पीना छोड कर यह तय कर लिया की अगर उसके साथ विवाह नही किया तो वह खाना नही ‌‌‌खायगी । राजा के लाख समझाने पर राजकुमारी ने एक नही सुनी ‌‌‌वह अपनी बातो पर डटी रही ।

तब राजा ने उस तेली को बुलवाकर कहा की हम हामारी पुत्री का विवाह ‌‌‌विका से करना चाहते है आप विवाह की ‌‌‌तेयारी करनी सुरु कर दे । विका का विवाह राजकुमारी से हो गया ।

एक दिन राजा ‌‌‌( विका ) के स्वप्न में शनिदेव आये और कहा की राजा तुमने मुझे छोटा बताकर बहुत बडी भुल कर दि है । ‌‌‌जिसके कारण आज तुम्हे कितना दुख देखना पड रहा है ।तब राजा शनीदेव से कहा की मुझे मेरी भुल का तो दण्ड मिल गया है ।

 पर आप किसी और को ऐसा दण्ड न ‌‌‌देना । तब शनीदेव ने कहा की जो भी मेरा व्रत और कथा सुनेगा उसे मै कभी भी दुख नही दुगा और उसे मे कष्ट मे साहता भी करुगा ।

‌‌‌तब शनी देव ने कहा की जो भी चिटियो को आटा डालेगा उसे मेरी दशा से डरने के जरुरत नही है । जो भी शनिवार को तेल के पकवान कुत्ते को खिलायेगा उसे भी मेरी दशा से डरने की जरुरत नही है । साथ ही राजा के हाथ पैर भी वापस आ गये ।

जब ‌‌‌राजकुमारी ने देखा की राजा के हाथ पैर आ गये है तो वह आश्चर्यचकित हो गई । ‌‌‌तब विका ने बताया की वह उज्जैनी का राजा विक्रमादित्य है । जब सेठ को पता चला की वे विक्रमादित्य है तो वे अपनी भुल पर बहुत रोए और विक्रमादित्य के पास जाकर क्षमा याचना की ।

 राजा ने कहा की मै तो तुम्हे कबका क्षमा कर दिया है ।और इसमे तुम्हारी क्या गलती है । यह तो शनिदेव की दशा का अशर ‌‌‌था। ‌‌‌पर सेठ नही माना और कहा की अगर आपने मुझे सचमे क्षमा कर दिया है तो आपको मेरे घर पर आकर भोजन करना होगा ।

 राजा विक्रमादित्य ने कहा की हम जरुर आयेगे । राजा दुसरे दिन ही वहा पर जाकर भोजन करने बैठ गए ।और सबने देखा की जो खुंटी हार निगल गई थी वहा से हार निकल रहा है। सभी यह देखकर चोक उठे जब राजा ने ‌‌‌कहा की चोकने की कोई बात नही है यह तो शनीदेव की महीमा है ।

 तब सेठ ने कहा की आपको को मेरी पुत्री श्रीकंवरी से विवाह करना होगा । राजा ने उनका प्रस्ताव स्वीकार किया और ‌‌‌राजा ने अनेक प्रकार के भोजन किया और कुछ समये के बाद अपनी दोनो पत्नी के साथ उज्जैनी की और रवाना हो गए ।

 राजा जेसे ही अपने नगर की सीमा पर पहूंचे तो उनका वहा ‌‌‌पर ही स्वागत किया गया है । तब राजा ने घोषणा करते हुए कहा की मेने शनी देव को सबसे छोटा बताया था जिसके कारण मुझे यह कष्ट भागने पडे है पर शनी देव तो सर्व प्रोपकारी है ।

वह तो सभी का भला करते है गलती का अहसास दिलाते है । तब राजा ने कहा की शनी देव की जो भी पूजा व व्रत करेगा वह ‌‌‌सारे कष्ट से ‌‌‌दुर हो जाएगा ।

 तब से शनीदेव की पूजा दुख दुर करने व खुशीया आने के लिये की जाने लगी है और शनीदेव को सबसे बडा माना जाने लगा । ‌‌‌साथ ही यही कहा की लोह की वस्तु सबसे अच्छी है इसको ‌‌‌धारण करने वाल शनीदेव के प्रीय भग्त है ।

विधी

  • सबसे पहले प्रात: काल जल्दी उठकर अपने घर की अच्छी तरह से साफ सफाई कर लिजिए ।
  • भगवान शनिदेव की प्रतिमा ऐक अच्छी सी जगह पर स्थापित कर दे ।
  • शनिदेव को काली वस्तु बहुत ही प्रिय है अत : काले वस्त्र धरण कर लिजिए ।
  • शनिदेव के लिये भोग के रुप मे काले तिल , ‌‌‌तेल आदी चढावा अच्छा रहता है ।
  • शनिदेव की पूजा करे बादमे शनिदेव की आरती करे ।
  • शनिदेव के भजन करे ।
  • शनि की पूजा करने के बाद मे राहु व केतू की भी पूजा की जाती है अत: इनकी भी पूजा करे ।
  • पूजा करने के बाद पिपल मे जल ढालकर सात बार पिपल की प्रिक्रमा करे ।
  • रात्री के समय तेल के कुछ ‌‌‌पकवान बानाकर कुते को खिलाए ।
  • अपनी हुई गती या फिर अंजाने मे होने वाली गलती के लिये माफि मागे व होने वाली गलती के लिये प्राथना करे की वह गलती न हो ।
  • सभी बडो का आशिर्वाद ले और अपने से बडो से प्रेम भाव से बाते करनी चाहीए ।

‌‌‌शनिवार व्रत करने का महत्व

  • शनिवार का व्रत करने का सबसे बडा लाभ यह है की उनकी साढे साती से बचा जा सकता है ।
  • शनिवार का व्रत करने  क्रोध समाप्त होता है ।
  • भगवान शनिदेव के व्रत करने से सभी मगल ही मगल होता है ।
  • धन दोलत की कोई कमी नही रहती है ।
  • आपकी मनोकामनाएं पुरी होती है ।

शनि देव ‌‌‌की आरती

जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी।

सूर्य पुत्र प्रभु छाया महतारी॥

जय जय श्री शनि देव….

श्याम अंग वक्र-दृष्टि चतुर्भुजा धारी।

नी लाम्बर धार नाथ गज की असवारी॥

जय जय श्री शनि देव….

क्रीट मुकुट शीश राजित दिपत है लिलारी।

मुक्तन की माला गले शोभित बलिहारी॥

जय जय श्री शनि देव….

मोदक मिष्ठान पान चढ़त हैं सुपारी।

लोहा तिल तेल उड़द महिषी अति प्यारी॥

जय जय श्री शनि देव….

देव दनुज ऋषि मुनि सुमिरत नर नारी।

विश्वनाथ धरत ध्यान शरण हैं तुम्हारी॥

जय जय श्री शनि देव भक्तन हितकारी।।

शनि चालीसा

जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल करण कृपाल।

    दीनन के दुःख दूर करि, कीजै नाथ निहाल।।

    जय जय श्री शनिदेव प्रभु, सुनहु विनय महाराज।

    करहूँ कृपा हे रवि तनय, राखहु जन की लाज।।

जयति जयति शनिदेव दयाला, करत सदा भक्तन प्रतिपाला,

चारि भुजा, तनु श्याम विराजै, माथे रतन मुकुट छवि छाजै।

परम विशाल मनोहर भाला, टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला,

कुण्डल श्रवन चमाचम चमके, हिये माल मुक्तन मणि दमकै।।

कर में गदा त्रिशूल कुठारा, पल बिच करैं अरिहिं संहारा,

पिंगल, कृष्णो, छाया नन्दन, यम, कोणस्थ, रौद्र, दुःख भंजन।

सौरी, मन्द शनि दश नामा, भानु पुत्र पूजहिं सब कामा,

जा पर प्रभु प्रसन्न ह्वै जाहीं, रंकहुं राव करैं क्षण माहीं।।

पर्वतहूँ तृण होइ निहारत, तृणहूँ को पर्वत करि डारत,

राज मिलत वन रामहिं दीन्हयो, कैकेइहुँ की मति हरि लीन्हयो।

वनहूँ में मृग कपट दिखाई, मातु जानकी गई चुराई,

लखनहिं शक्ति विकल करिडारा, मचिगा दल में हाहाकारा।।

रावण की गति-मति बौराई, रामचन्द्र सों बैर बढ़ाई,

दियो कीट करि कंचन लंका, बजि बजरंग बीर की डंका।

नृप विक्रम पर तुहि पगु धारा, चित्र मयूर निगलि गै हारा,

हार नौलखा लाग्यो चोरी, हाथ पैर डरवायो तोरी।।

भारी दशा निकृष्ट दिखायो, तेलहिं घर कोल्हू चलवायो,

विनय राग दीपक महँ कीन्हों, तब प्रसन्न प्रभु ह्वै सुख दीन्हयों।

हरिश्चन्द्र नृप नारि बिकानी, आपहूँ भरे डोम घर पानी,

तैसे नल पर दशा सिरानी, भूंजी-मीन कूद गई पानी।।

श्री शंकरहिं गह्यो जब जाई, पारवती को सती कराई,

तनिक विकलोकत ही करि रीसा, नभ उड़ि गयो गौरिसुत सीसा।

पाण्डव पर भै दशा तुम्हारी, बची द्रोपदी होति उघारी,

कौरव के भी गति मति मारयो, युद्ध महाभारत करि डारयो।।

रवि कहँ मुख महँ धरि तत्काला, लेकर कूदि परयो पाताला,

शेष देव-लखि विनती लाई, रवि को मुख ते दियो छुड़ाई।

वाहन प्रभु के सात सुजाना, हय, दिग्गज, गर्दभ, मृग, स्वाना,

जम्बुक सिंह आदि नख धारी, सो फल ज्योतिष कहत पुकारी।।

गज वाहन लक्ष्मी गृह आवैं, हय ते सुख सम्पत्ति उपजावै,

गर्दभ हानि करै बहु काजा, सिंह सिद्ध करै राज समाजा।

जम्बुक बुद्धि नष्ट करि डारै, मृग दे कष्ट प्राण संहारै,

जब आवहिं प्रभु स्वान सवारी, चोरी आदि होय डर भारी।।

तैसहिं चारि चरण यह नामा, स्वर्ण लौह चाँदी अरु तामा,

लौह चरण पर जब प्रभु आवैं, धन जन सम्पत्ति नष्ट करावैं।

समता ताम्र, रजत शुभकारी, स्वर्ण सर्वसुख मंगल भारी,

जो यह शनि चरित्र नित गावै, कबहूँ न दशा निकृष्ट सतावै।।

अद्भुत नाथ दिखावैं लीला, करैं शत्रु के नशि बलि ढीला,

जो पण्डित सुयोग्य बुलवाई, विधिवत शनि ग्रह शांति कराई।

पीपल जल शनि दिवस चढ़ावत, दीप दान दै बहु सुख पावत,

कहत ‘राम सुन्दर’ प्रभु दासा, शनि सुमिरत सुख होत प्रकाशा।।

पाठ शनिश्चर देव को, की हों विमल तैयार।

करत पाठ चालीस दिन, हो भवसागर पार।।

।। इति राम सुन्दर कृत श्री शनि चालीस सम्पूर्णम् ।।

शनि देव ‌‌‌का भजन

जय जय शनि देव महाराज,

जन के संकट हरने वाले ।

तुम सूर्य पुत्र बलिधारी,

भय मानत दुनिया सारी ।

साधत हो दुर्लभ काज ॥

तुम धर्मराज के भाई,

जब क्रूरता पाई ।

घन गर्जन करते आवाज ॥

॥ जय जय शनि देव महाराज… ॥

तुम नील देव विकराली,

है साँप पर करत सवारी ।

कर लोह गदा रह साज ॥

॥ जय जय शनि देव महाराज… ॥

तुम भूपति रंक बनाओ,

निर्धन स्रछंद्र घर आयो ।

सब रत हो करन ममताज ॥

॥ जय जय शनि देव महाराज… ॥

राजा को राज मितयो,

निज भक्त फेर दिवायो ।

जगत में हो गयी जय जयकार ॥

॥ जय जय शनि देव महाराज… ॥

तुम हो स्वामी हम चरणं,

सिर करत नमामी जी ।

पूर्ण हो जन जन की आस ॥

॥ जय जय शनि देव महाराज… ॥

जहाँ पूजा देव तिहारी,

करें दीन भाव ते पारी ।

अंगीकृत करो कृपाल ॥

॥ जय जय शनि देव महाराज… ॥

कब सुधि दृष्टि निहरो,

छमीये अपराध हमारो ।

है हाथ तिहारे लाज ॥

॥ जय जय शनि देव महाराज… ॥

हम बहुत विपत्ति घबराए,

शरणागत तुम्हरी आये ।

प्रभु सिद्ध करो सब काज ॥

॥ जय जय शनि देव महाराज… ॥

यहाँ विनय करे कर जोर के,

भक्त सुनावे जी ।

तुम देवन के सिरताज ॥

॥ जय जय शनि देव महाराज… ॥

जय जय शनि देव महाराज,

जन के संकट हरने वाले ।

‌‌‌शनिदेव की साढ़े साती

शनिदेव की साढे साती तिन तरह के समय पर लगती है । लगन, चन्द्र लगन या राशि, सुर्य लगन से शनिदेव की साढे साती लगती है । ऐसा माना जाता है की जब शनिदवे चंद्र राशि पर भ्रमण करते है तो साढे साती मानी जाती है ।

जब शनिदेव की यह साढे साती किसी को लगती है तो उसके तिन माह के बाद इसका पता चलता है । जब किसी को सढे साती लगती है तो भगवान शनिदेव उसके कर्मो के अनुसार उसे दण्ड देते है ।

अगर किसी का अच्छा कर्म किया हुआ होता है तो शनिदेव की साढे साती भी उनके लिये अच्छे दिन लाती है । ‌‌‌जैसे पहले उसके घर मे कुछ नही था वे बहुत काम करके बस अपना पेट भर पाते थे पर साढे साती के बाद उसे घर मे पैसो की कमी नही है वह हर गरीब की सेवा करने लगता है ।

वह गाव मे सबसे अमीर बन जाता है ।इसी प्रकार साढे साती अच्छी भी होती है ।पर वह कर्म पर निर्भर करती है की अच्छी होगी या बुरी । ‌‌‌शनि देव की साढे साती केवल मनुष्यो पर भी नही लगती है ‌‌‌बल्की देवताओ जैसे श्री राम की साढे साती ने उन्हे वनवास भेज दिया ।

शनिदेव की साढे साती तो ब्राह्मणो को उनका अहकार से मुक्ति दिलाने मे साहयक सिद्ध होई । ‌‌‌अगर किसी की साढे साती धनु, मीन, मकर, कुम्भ राशि मे हो तो यह कम पीडा वाली मानी जाती है। यह माना जाता है की यदी साढे साती चौथे, छठे, आठवें, और बारहवें भाव मे हो तो वह अवश्य ही दुख लेकर आयेगी ।

साथ ही यह माना जाता है की यदि यह साढे साती चल रही है तो कभी नीलम धरण नही करना चाहिए । ‌‌‌जब साढे साती चल रही हो तो भुलकर भी कोई नया काम व वाहन मे नही जाना चाहिए। साढे साती के चलते करोड़पति भी रोड पर आ जाता है ।

जब विक्रमादित्य की साढे साती चल रही थी तो उनके राजा होना भी कोई काम नही आया । ‌‌‌साढे साती मे सावधनी नही बरती गई तो केवल ‌‌‌पछताने के अलावा कुछ नही रहेगा ।शनि देव ने कहा है की जो भी हनुमान जी के भग्त है उनको मेरी साढे साती से कोई नुकसान नही होगा ।

 साढे साती से घबराना नही चाहिए ‌‌‌बल्की उसका सामना करना चाहिए। वह ‌‌‌गलतियो को जानने के बारे मे ऐक अच्छा अवसर है । ‌‌‌ साढे साती से बचना चाहते है तो भगवान शनि की पूजा करे व उनके नियमो पर चलना सुरु कर दिजिये । साढे साती भगवान हनुमान के भग्तो को कुछ हानी नही पहुंचाती है ।

‌‌‌शनिदेव के बारे मे

शनि देव सुर्य का पुत्र व इनकी माता छाया है । इन्हे इस संसार का ‌‌‌संतुलन बनाये रखने वाला माना जाता है । जो लोग इस संसार के हित मे कार्य नही करते है शनिदेव उन्हे दण्ड देकर सही रास्ते पर लाते है । शनिदेव की पूजा करने वाला इस संसार से मुक्ति के बहुत करीब पहूंच जाता है ।

‌‌‌शनिदेव के इस दण्ड से बचने के लिये हमे पहले ही अपना ध्यान रखना चाहिए की कही हम कुछ गलत तो नही कर रहे है । शनि का रंग गहरा नीला है नीरन्तर ही गहरी नीली किरणे पृथ्वी पर गिरती रहती है ।

शनिदेव दुख दायक,भाग्य हीन,वात प्रकृति प्रधान आदी वस्तूओ का अधीकार रखते है शनि इस संसार ‌‌‌की सीमा पर हमेशा ही रहते है वे देखते रहते है की कोई पाप तो नही कर रहे है वे इस धरती पर संतुलन बानाये रखने का कार्य करते है ।

शनि को बडा ही कष्ट दायक माना जाता है वे इस सच और झुठ मे भेद करने का ‌‌‌विषेश गुण रखते है । जहा पर सुर्य की सिमा समाप्त हो जाती है वहा से शनि देव की सिमा सुरु होती है ।

विपत्ति, कष्ट, निर्धनता तथा इनके साथ ही बहुत बडा गुरु माने जाते है । जब तक की शनि के नियम पर कोई सही तरीके से नही चल सकता इस संसार से बाहर नही जा सकता है । जब तक की शनि देव किसी को सजा देते है तो बहुत ही तबाही मचा देते है कोई भी उनकी साहयता नही कर सकते है ।

‌‌‌शनिदेव की पिडा से कोई नही बच सकता पर जब उसे अपनी गलतीयो का अहसाहस हो जाता है तो शनि देव उसे सारे सुख दे देते है । जो लोग अच्छे होते है उनका भाग्य बडा देते है पर जो लोग बुरे होते है उन्हे करोडपति से रोड पर लाकर छोड देते है ।

शनि के कोई विरोध मे हो जाता है तो ‌‌‌उनके वे दुसमन हो जाते है। ‌‌‌शनिदेव के न्याय से देवता भी नही बच पाये थे ।ऐक बार की बात है शनिदेव की साढे साती इंद्र को लगी थी तो इंद्र की साहयता करने वाला कोई नही रह गया था।

इंद्र को खाना पिना तक नही नसिब हुआ और अंत ‌‌‌मै इंद्र ने भगवान शनिदेव से माफी मागी तब जाकर उनकी साढे साती टल सकी थी । ‌‌‌शनिदेव के बहुत मंदीर भी बने हुए है लोग उनकी पूजा भी करते है । ‌‌‌शनिदेव को न्याय का देवता माना जाता है।

शनि देव की पूजा करने वाला सभी कार्य को करने से पहले यह पता लगाता है की यह कार्य सही है या नही फिर ही वह कार्य को अपने हाथ मे लेता है । उनके नियम के साथ चलने पर उस व्यक्ति को आगे जाकर ‌‌‌मोक्ष मिल जाता है ।

‌‌‌केसे बने शनिदेव ‌‌‌शक्ति साली

स्कन्द पुराण मे बताया गया है की शनि देव एक बार अपनी माता व पिता से कह रहे थे की ‌‌‌मै ऐसा स्थान ग्रहण करना चाहता हु जो आज तक किसी ने नही किया है । 

शनि ने कहा की आपके मंडल मेरा स्थान सबसे बडा हो और सभी ‌‌‌मुझसे डरे चाहे वे देव हो या असुर या फिर मनुष्य हो या ‌‌‌पशु कोई भी हो ।

तब सुर्य ‌‌‌देव ने कहा की मेरा पुत्र मेरे से भी सात गुना ‌‌‌शक्ति साली हो इससे बडी खुशी मेरे लिये और क्या हो सकती है । पर इसके लिये तुम्हे घोर तप करना होगा ।

तब से शनि देव घोर तप करने के बाद भगवान शिव की शिवलिग की स्थपना की जो आज काशी-विश्वनाथ ‌‌‌के नाम से ‌‌‌जानी जाता है । तब भगवान शिव ने उन्हे वरदान दिया की तेरी दृष्टी से कोई भी नही बच सकता है ।

 नव ग्रह मे तेरा सबसे पहने स्थान बनेगा । और सुर्य देव भी से तेरी ‌‌‌शक्ति‌‌‌या सात गुना ज्यादा हो जायेगी । तब से शनि देव की दृष्टी से कोई भी नही बच सकता है चाहे वह भगवान भी क्यो न हो।

‌‌‌शनिदेव को तब से ‌‌‌संसार का संतुलन बनाये रखने का कार्य सोपा गया । और वे सभी के कमो के हिसाब से उन्हे इसी धरती पर कष्ट देकर उनके पाप को याद दिलाने लगे । तकी इस संसार से बुराईया हटती जाये औद अच्छाई छाती जाये ।

शनिदेव के द्वारा कष्ट देने के कारण

बहुत पुराणो मे पडने के बाद मता चला है की यहा पर हर जीव अपने मोक्ष को पाने के लिये आता है । और यहा पर आकर हम भुल जाते है की हम यहा पर किस के लिये आये है।

हम बुरा व भले के बाने मे न सोचते हुए जो होता है वह ‌‌‌उसे होने देते है । ‌‌‌इसी कारण प्रकृति मे बहुत तांडव मचा ‌‌‌हुआ है और कोई इस बात को समझने के लिये तयार नही है की हम यहा पर बार बार क्यो आते है व क्यो मर जाते है ।

पहले हम पेदल चलकर इस एक जगह से दुसरी जगह पर जाते थे पर समय के साथ साथ हम पहले की तुलना मे कुछ ही मिनट मे वहा से कही और पहुच जाते है । आज इस संसार मे आने से पहने हमे सब मालुम था ।

‌‌‌पर जेसे जेसे हम इस मोह रुपी संसार मे फसते जाते है हम कर्मो के बारे मे भुल जाते है । किसी को भी भला बुरा करने लग जाते है हमे अपने आप पर घमण्ड होने लगता है जिससे इस संसार से हम बाहर नही निकल सकते है इसी संसार मे फसे रह जाते है ।

इसी के लिये शनि देव हमे ‌‌‌अपने कर्मो के लिये दण्ड देकर हमे ‌‌‌बताते है की हम क्या है और क्या बनते जा रहे है । अगर हम एक हवाई जहाज खरीदने के लिये अपना पुरा जीवन उसे खरीदने पर लगा देते है और जब हम उसे खरीद कर कही जाते है

तो वह गीर जाती है और हम मर जाते है वह हवाई जहाज हमारे लिये क्या काम आई ।इसी प्रकार हम रोज किसी को बुरा भला कहते है पर हम यह भुल गये है। कि क्या सही है और क्या नही ।

इसी को याद दिलाने के लिये भगवान शनि हम कष्ट देते है हमे हमारी गलतीयो के बारे मे ‌‌‌बताकर उन्हे सुधरने के लिये एक मोका देते है ताकी हम इस माया रुपी संसार से पार हो जाये । ‌‌‌शनि देव हमारी ही मदत करते है पर उन्हे हम नही समझ सकते है ।

वे हमे कष्ट देकर हमारी बुराईयो को निकालने मे हामारी मदद करते है । हमे शनि देव की पुजा निरनतर करनी चाहिए यही वह मार्ग है जिससे हमारी बुराईया निकल कर अच्छाईया रह जायेगी ।

‌‌‌शनिदेव के कष्ट से बचने के लिये उनके रत्न को धारण करकर सभी कार्य को सही करो शनिदेव की पूजा करने के लिये कही भी जाने की जरुरत नही है । बस अपने सच्चे मन से शनिदेव का नाम जमना ‌‌‌शुरु कर दे । कुछ शनिदेव के प्रसिद्ध मंदिर भी है –

1. शनि शिंगणापुर

2. शनि मंदिर इंदौर

3. शनिचरा मंदिर, मुरैना

4. शनि मंदिर, प्रतापगढ़

5. शनि तीर्थ क्षेत्र, असोला, फतेहपुर बेरी

6. शनि मंदिर, तिरुनल्लर

‌‌‌शनि रत्न

नीलम,नीलिमा,नीलमणि,जामुनिया,नीला कटेला,आदि शनि के रत्न और उपरत्न हैं ।

This post was last modified on December 23, 2020

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