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    गदर एक प्रेम कथा के बारे मे दिलचस्प जानकारी

    arif khanBy arif khanMay 21, 2023No Comments12 Mins Read
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    gadar movie story in hindi –  gadar movie के बारे मे कौन नहीं जानता है। हम सभी लोगों ने इस मूवी को देखा है। हालांकि वैसे तो यह मूवी रियल लाइफ पर आधारित है। लेकिन इसके अंदर बहुत कुछ असली चीजों को  नहीं दिखाया गया है। हम आपको यहां पर इस मूवी से जुड़ी कुछ खास बातें आपको बताने वाले हैं।

    “गदर: एक प्रेम कथा” 2001 में रिलीज़ हुई एक बॉलीवुड फिल्म है जो 1947 में भारत के विभाजन के समय एक अजीब प्रेम कहानी के बारे मे बताती है। यह फिल्म सनी देओल और सकीना द्वारा अभिनीत तारा सिंह की यात्रा के इर्द-गिर्द घूमती है। अमीषा पटेल द्वारा निभाई गई, क्योंकि वे धार्मिक मतभेदों और राजनीतिक उथल-पुथल की चुनौतियों का सामना करती हैं।

    कहानी पंजाब के एक छोटे से गाँव में शुरू होती है, यहां पर तारा सिंह अपने बूढ़े माता पिता के साथ ट्रक चलाकर गुजर बसर करता है। एक दिन जब  तारा का सामना एक मुस्लिम लड़की सकीना से होता है, और आपको पता ही है कि जब भारत विभाजन हुआ था तो यहां पर कई सारे ​मुस्लिम को मार दिया या भगा दिया गया था और सकीन का को मारने के लिए भीड़ उसके पीछे आती है । तारा उसके बचाव में आ जाता है, और धार्मिक तनाव के बावजूद, वह उसे अपने घर में आश्रय और सुरक्षा प्रदान करता है। या कहें , कि वह उस लड़की को अपने घर मे रखता है।

    gadar movie story in hindi

    जैसे-जैसे दिन बीतते हैं, तारा और सकीना के बीच एक गहरा रिश्ता काफी गहरा हो जाता है। और वे दोनों एक दूूसरे से प्यार करने लग जाते हैं। उन्होंने बंटवारे की अराजकता और अनिश्चितता के बीच खुशी और हंसी के पल साझा किए। हालांकि, उनकी खुशी अल्पकालिक है क्योंकि सकीना के पिता, अशरफ अली, अमरीश पुरी द्वारा अभिनीत, कहते हैं , कि उनको अपने परिवार की सुरक्षा के लिए पाकिस्तान जाना चाहिए ।

    उसके बाद सकीना का पाकिस्तान जाने का समय आता है , तो वह तारा से कहती है , कि अभी तो वह जा रही है , लेकिन वह जल्दी ही लौट कर फिर से आ जाएगी । और तारा को भी यह लगता है , कि वह जल्दी ही लौट कर आ जाएगी । इस तरह से सकीना तारा को छोड़कर चली जाती है।

    असल मे इस कहानी के अंदर यह बताया गया है कि पहले सकीना को यह लगता है कि उसके पिता अशरफ अली  की मौत दंगे के अंदर हो चुकी है। और जब तारा और सकीना एक साथ रहते हैं , तो दोनों का एक बेटा भी होता है। जिसका नाम जीत रखा जाता है। बाद मे एक दिन सकीना अपने पिता की तस्वीर को अखबारों के अंदर देखती है। जिससे कि उसको पता चल जाता है , कि उसके पिता की मौत नहीं हुई है।

    और बाद मे सकीना को पता चलता है कि उनके पिता एक मेयर है।

    फिर सकीना अपने पिता से मिलने के लिए  दिल्ली मे पाकिस्तानी दूतावास को कॉल करती है। सकीना के साथ उनका बेटा भी जाने वाला होता है। लेकिन वीजा नहीं मिलने की वजह से वह जा नहीं पाता है। उसके बाद सकीना अकेली ही चली जाती है। फिर  वहाँ जाने के बाद जब सकीना वापस आने की बात कहती है तो उसके माता-पिता मना कर देते हैं, जिससे सकीना का दिल टूट जाता है। सकीना के पिता उसकी जबरन दुसरी शादी कराने की कोशिश करते हैं।

    उसके बाद कहा जाता है कि तारा और उसका बेटा पाकिस्तान के अंदर गैरकानूनी रूप से अंदर आ जाते हैं। क्योंकि उनको यह पता चलता है , कि सकीना की शादी होने वाली है।

    उसके बाद तारा सकीना के पिता के पास जाते हैं और कहते हैं कि उनकी सकीना उनको सौंप दी जाए । लेकिन असरफ अलि कहते हैं कि सौंप दी जा सकती है। लेकिन उनको दो शर्त माननी होंगी । पहली शर्त मे असरफ अली कहता है कि उसको पाकिस्तानी नागरिकता लेनी होगी । और दूसरा इस्लाम के अंदर उसको खुद को बदलना होगा । अगले दिन तारा यह दोनों शर्त को मान लेता है। उसके बाद असरफ अली हिंदुस्तान की बुराई करने के लिए तारा से कहता है। जिससे तारा काफी गुस्सा हो जाता है।

    तारा इससे गुस्से में आ जाता है और अशरफ द्वारा नियुक्त किए हुए हमलावर, जो उसे मारने वाला होता है, उसे मार देता है। वे तीनों उस जगह से भाग जाते हैं और एक जगह छुप जाते हैं। और बाद मे यह दिखाया जाता है कि असरफ को तारा के पिता की चलाई गोली लग जाती है। और वह कोमा मे चली जाती है। उसके बाद दिखाया जाता है कि असरफ अपने नाती और तारा को स्वीकार कर लेता है।

    Table of Contents

    • गदर एक प्रेम कथा की असली कहानी
    • इस तरह से हुआ था बूंटा सिंह की जिदंगी का अंत
    • फिर दौड़ गई थी पाकिस्तान मे सहानुभूति की लहर
    • अब कहां पर बूंटा सिंह की बेटी

    गदर एक प्रेम कथा की असली कहानी

    दोस्तों आपको बतादें कि यह फिल्म असल मे एक कल्पना नहीं थी । और इसको एक असली घटना पर बनाया गया था । इसके अंदर हम आपको बताते हैं । यह बात है सन 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हो चुका है। और उस समय काफी अधिक दंगे हुए । भारत के अंदर रहने वाले मुस्लमानों को मारा जा रहा था । और पाकिस्तान से हिंदुओं को मारा जा रहा था । और कुल मिलाकर चारों तरफ लासे ही लासें बिखरी हुई थी।सितंबर 1947 की शाम का वक्त है। बर्मा में माउंटबेटन की फौज के लिए लड़ चुका 55 साल का एक सिख बूटा सिंह अपने खेत में कुछ काम कर रहा है। और तभी पीछे से आकर एक लड़की उनके कदमों मे आ गरी ।

    उसके बाद लड़की बूंटा सिंह से शरण देने की मांग करता है। और बूंटा सिंह यह फैसला करता है , कि वह लड़की को शरण देगा । उसके बाद वह लड़की को शरण मे लेता है। तो युवक उससे 1500 रूपयें की मांग करते हैं। तो वह उनको पैसा दे देता है।लड़की 55 साल के कंवारे बूटा सिंह को मिल गई। और उस समय 1500 रूपये बहुत अधिक हुआ करते थे । तब के 1500 रूपये आज के 7 लाख के बराबर हुआ करते थे तो आप समझ सकते हैं। और हर किसी के पास तो इतने पैसा मिलता ही नहीं था ।

    जिस लड़की को बूंटा सिंह ने खरीदा था । उसकी उम्र 17 साल की थी। और उसका नाम जैनब  था । जैनब राजस्थान के एक छोटे किसान की बेटी थी। बंटवारे में परिवार वाले पाकिस्तान चले गए थे। और जैनब को बाद मे बूंटा सिंह से प्रेम हो गया और फिर दोनों ने 1948 की शरद ऋतु में आखिरकार बूटा सिंह ने जैनब से शादी करली ।

    बाद मे बूटा सिंह को उस लड़की से एक बेटी भी हुई । हालांकि फिल्म के अंदर ऐसा दिखाया गया था कि उस लड़की से बेटा हुआ था । खैर बूंटा सिंह काफी अधिक खुश था । लेकिन उसकी खुशी अधिक समय तक अब नहीं चलने वाली थी।

    तनवीर नाम की बेटी बूंटा सिंह को हुई । असल मे बूंटा सिंह की शादी की बात उनके भतीजों को पसंद नहीं आई । क्योंकि वे बूंटा सिंह के धन को हड़प लेना चाहते थे । जैसा कि भारत के अंदर अक्सर यह सब होता रहता है। उसके बाद कहा जाता है कि जनैब की खबर रिफ्यूजी कैंप के अंदर देदी गई । उस समय इस तरह के कई कैंप थे जिनके अंदर उन लोगों को रखा जाता था , ​जोकि किसी वजह से पाकिस्तान जाने से बच गए थे । और एक दिन बूंटा सिंह के घर अधिकारी आ गए । और जनैब को लेकर चले गए ।

    वैसे बूंटा सिंह ने अधिकारियों को मनाने की काफी कोशिश की लेकिन वे इसके अंदर सफल नहीं हो सके ।जैनब करीब 6 महीने रिफ्यूजी कैंप में रही। और इस दौरान बूंटा सिंह रोजाना जनैब से मिलने के लिए आता रहा । और दोनों काफी समय तक एक दूसरे से प्यार भरी बातें किया करते थे । औरदोनों एक दूसरे के लिए जीने मरने की कसमे खाते थे ।

    उसके बाद उधर पाकिस्तान के अंदर जनैब के परिवार के बारे मे पता चल गया और जनैब को पाकिस्तान भेज दिया गया । उधर बूंटा सिंह अकेला पड़ गया और खुद पाकिस्तान जाने के लिए काफी प्रयास करता रहा । लेकिन उसको सफलता नहीं मिली ।

    लेकिन आपको पता ही है , कि प्यार क्या क्या करवाता है। ऐसा ही बूंटा सिंह के साथ भी हुआ । जोकि अक्सर प्यार करने वालों के साथ होता है।उसके बाद बूंटा सिंह ने अपना केश कटवा​ लिया और फिर अपना नाम जमील अहमद रख लिया । उसके बाद भी पाकिस्तान हाई कमिशन ने बूंटा सिंह को पाकिस्तान जाने की इजाजत नहीं दी ।

    जब पाकिस्तान हाई कमीशन ने उसकी वीजा की अर्जी ठुकरा दी तो वो अपनी 5 साल की बेटी तनवीर जिसका नाम अब सुलतानान हो गया था। को लेकर वह चोरी छुपे पाकिस्तान आ गया । वहां पर उसने लाहौर मे अपनी बेटी को किसी के पास छोड़ा और फिर जैनब के गांव नूरपुर पहुंचा जैनब की वहां पर पहले ही शादी हो चुकी थी। तो बूंटा सिंह काफी फूट फूट कर रोया । लेकिन उसकी सुनने वाला कोई नहीं था । जैनब के घरवालों ने बूंटा सिंह को पीटा और पुलिस के हवाले कर दिया ।

    उसके बाद पुलिस ने बूटा सिंह को कोर्ट के अंदर पेश किया । कोर्ट खचा खच भरी हुई थी । तो बूटा सिंह ने कोर्ट से कहा कि वे एक बार जैनब  से पूछ लें कि वह उसके साथ जाना चाहेगी । यदि वह मना कर देती है , तो फिर वह खुशी खुशी हिंदुस्तान लौट जाएगा । जज को भी यह बात ठीक लगी । जज ने पूछा जैनब से क्या तुम इस आदमी को जानती हो ? तब जैनब ने कहा यह मेरा पहला पति है। और यह मेरी बैटी है । उसके बाद जज ने पूछा क्या तुम इसके साथ जाना चाहोगी । तो जैनब ने बूंटा सिंह के साथ जाने के लिए मना कर दिया ।

    उसके बाद बूंटा सिंह की आंखों मे आंसुओं की धारा बह नहीं निकली और वह कुछ भी नहीं कर सकता था । वह पाकिस्तान इस उम्मीद से आया था कि हो सकता है कि जैनब उसके साथ जाना चाहे । लेकिन जब जैनब ने उसको मना कर दिया तो बूंटा सिंह पूरी तरह से टूट गया ।

    उसके बाद बूंटा सिंह ने अपनी बेटी का हाथ पकड़ा और कोर्ट से बाहर निकल गया । उसका मन आज बहुत अधिक भारी था ।

    इस तरह से हुआ था बूंटा सिंह की जिदंगी का अंत

    तारीख थी 19 फरवरी 1957 बुरी तरह टूट चुका बूटा सिंह उस पूरी रात दाता गंगबख़्श की मजार के पास बैठा रोता रहा । फिर उसने अपनी बेटी को नए कपड़े और जूते दिलवाएं ।लाहौर के ही शाहदरा रेलवे स्टेशन पहुंच गया । वहां पर उसने यह बताया कि अब वह अपनी मां से कभी भी नहीं मिल पाएगा । और उसने अपनी बेटी के माथे को चूमा । फिर उसने अपनी बेटी को बांहों मे भरा और ट्रेन के आगे छलांग लगा दी । कुछ ही क्षण के अंदर बूंटा सिंह​ के शरीर के चिथड़े उड गए । लेकिन उसकी बेटी को खरोंच तक नहीं आई ।

    उसके बाद पुलिस को बूंटा सिंह​ की जेब से एक पत्र मिला था । जिसके उपर यह लिखा गया था ।

    “मेरी प्यारी जैनब, तुमने भीड़ की आवाज सुनी लेकिन वह आवाज कभी सच्ची नहीं होती। फिर भी मेरी आखिरी इच्छा यही है कि मैं तुम्हारे पास रहू। मेरी लाश अपने गाव में दफन करवा देना और कभी-कभी मेरी कब्र पर आकर एक फूल चढ़ा जाया करना।”

    फिर दौड़ गई थी पाकिस्तान मे सहानुभूति की लहर

    जैसे कि बूंटा सिंह की मौत की खबर अखबरों की सुर्खियां बनी लोगों के अंदर बूंटा सिंह के लिए सहानुभूति की लहर दौड़ गयी । और लोगों को यह पता चला कि बूंटा सिंह एक सच्चा आशिक था । इसलिए उनकी अंतिम इच्छा के अनुसार उनकी बॉडी को जैनब के गाॅंव नूरपुर ले जाया गया । लेकिन जैनब के पति ने वहां पर अपने आदमियों के साथ पहुंच कर बूंटा सिंह की लाश को दफनाने पर रोक लगादी । तो कुछ नवयुवक उसको लेकर फिर से लाहौर आ गए और उसकी लास को  मियां साहिब कब्रिस्तान में दफन  कर दिया । लेकिन वहां पर भी जैनब का पति पहुंच गया और कब्र के अंदर तोड़फोड़ कर दिया । लेकिन फिर से कुछ लोगों ने बूंटा सिंह की कब्र को बनाया और उस पर बहुत सारे फूल चढ़ा दिये । इस तरह से बूंटा सिंह की कहानी का अंत हो गया ।

    अब कहां पर बूंटा सिंह की बेटी

    अब आपके दिमाग के अंदर यह सवाल भी आता होगा कि बूंटा सिंह की बेटी कहां पर है ? तो आपकी जानकारी के लिए बतादें कि बूंटा सिंह की बेटी बूटा सिंह की बेटी सुलताना को बाद में लाहौर हाईकोर्ट की बैरिस्टर राबिया सुलताना ने गोद ले लिया था । और एक व्यक्ति से उसकी शाादी करवादी थी। उसके 3 बच्चे हैं।

    वैसे तो हम प्यार वार को नहीं मानते हैं। लेकिन जो मानते हैं उनके लिए बतादें कि फिल्मों जैसी कभी भी रियल लाइफ नहीं होती है। फिल्मों के अंदर जो दिखाया जाता है , उसका सच  से बस एक संबंध होता है। रियल मे बहुत कुछ चीजें अलग होती हैं। आप गदर को देख सकते हैं। उसकी कहानी भले ही बूंटा सिंह से जुड़ी है लेकिन उसके अंदर सकीना को वापस हिंदुस्तान लेकर आया जाता है। मगर रियल लाइफ मे बूंटा सिंह असफल हो जाता है।

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