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    Home»Uncategorized»chingam kaise banti hai ? चिंगम का आविष्कार और इतिहास
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    chingam kaise banti hai ? चिंगम का आविष्कार और इतिहास

    arif khanBy arif khanMay 8, 2019Updated:May 8, 2019No Comments11 Mins Read
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    chewing gum
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    ‌‌‌इस लेख के अंदर हम बात करेंगे चिंगम कैसे बनती है chewing gum kis se banti hai

    or chingam का इतिहास क्या है ? चिंगम का नाम तो आपने सुना होगा ।इतना ही नहीं चिंगम खाया भी होगा । लेकिन क्या आपको पता है चिंगम कैसे बनती है?सेंटर फ्रेश चिंगम किस चीज से बनती है,चिंगम कैसे बनाई जाती है ? इस लेख के अंदर आपके यह सारे डाउट क्लिर करने वाले हैं।‌‌‌दोस्तों चिंगम बाजार के अंदर आसानी से आपको मिल ही जाती होगी । और इसकी कीमत भी ज्यादा नहीं है। आप इसको खरीदते हैं और उसके बाद खाते हैं। खाने मे काफी मजेदार तो नहीं है। लेकिन टाइम पास जरूर है। अधिकतर लोग चिंगम को खाते देखे जा सकते हैं।‌‌‌आपने भी एक या दो बार तो चिंगम को अवश्य ही खाया होगा ।

    chewing gum kis se banti hai

     वैसे चिंगम के प्रयोग से कोई अछूता नहीं है। लगभग सभी लोग चिंगम खाते हैं।वैसे चिंगम नुकसानदायक है लेकिन इसका सबसे बड़ा नुकसान तो मुझे यह लगता है कि कुछ लोग चिंगम को खाने के बाद उसके रबड़ को ‌‌‌ऐसी जगह पर डाल देते हैं। जहां पर लोग बैठते हैं। मसल गाड़ी की सीट पर भी । ऐसा कभी नहीं करना चाहिए ।क्योंकि आपकी वजह से दूसरे परेशान होते हैं।

    Table of Contents

    • ‌‌‌चिंगम का इतिहास chingam ka etihas
    • ‌‌‌चिंगम कैसे बनाई जाती है ? chewing gum kis se banti hai
    • ‌‌‌चिंगम लंबे समय तक उपयोग किया जा सकता है
    • ‌‌‌चिंगम बनाने मे सूअर का प्रयोग
    • ‌‌‌चिंगम का पुनर्चक्रण कम्पनी
    • ‌‌‌चिंगम निगलने पर क्या होगा
    • ‌‌‌चिंगम के आविष्कार की स्टोरी जॉन बी
    • बबल चिंगम

    ‌‌‌चिंगम का इतिहास chingam ka etihas

    दोस्तों चिंगम कोई नई नहीं है। वरन इसका प्रयोग प्राचीन सभ्यताएं भी करती आई हैं।नवपाषाण काल से कई रूपों में चिंगम  अस्तित्व में थी। दांत के निशान के साथ बर्च की छाल टार से बना 6,000 साल पुराना च्युइंग गम फिनलैंड में कीरिक्की में पाया गया है। ‌‌‌माना जाता था कि इस टार के  एंटीसेप्टिक गुण और अन्य औषधीय लाभ होते हैं।यह रासायनिक रूप से पेट्रोलियम टार के समान है ।हालांकि माया सभ्यता के लोग इसके सकारात्मक गुणों के बारे मे पहले से ही परिचित थे।

    ‌‌‌इसके अलावा चिंगम को बेहतर बनाने के लिए एक पेड़ के गोंद और चीक का इस्तेमाल किया गया था।प्राचीन ग्रीस में भी चिंगम को चबाया जाता था। प्राचीन यूनानियों ने  मैस्टिक गम चबाया, जो मैस्टिक पेड़ की राल से बना था।मैस्टिक गम, जैसे बिर्च छाल टार में एंटीसेप्टिक गुण होते हैं और माना जाता है कि इसका उपयोग मौखिक स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए किया जाता है। चीकल और मैस्टिक दोनों ही ट्री रेजिन हैं। कई अन्य संस्कृतियों ने पौधों , घास और रेजिन से बने ‌‌‌चिंगम जैसे पदार्थों को चबाया है।

    प्राचीन सभ्यता चबाने वाली गम
    प्राचीन ग्रीस   मैस्टिक पेड़ की छाल
    प्राचीन माया जुगाली
    चीनी जिनसेंग पौधे की जड़ें
    एस्कीमो रोना
    अमेरिका के मूल निवासी चीनी पाइन और स्प्रूस सैप
    दक्षिण अमेरिकी कोका के पत्ते
    दक्षिण एशिया (भारत) सुपारी
    संयुक्त राज्य अमेरिका (शुरुआती निवासी) तम्बाकू के पत्ते

    ‌‌‌आप देख सकते हैं कि दुनिया की हर सभ्यता ने किसी ना किसी पदार्थ को चिंगम के रूप मे चबाया था। लेकिन सबसे बड़ी बात तो यह है कि चिंगम का व्यवासयीकरण अमेरिका के अंदर हुआ था।अमेरिकी भारतीयों ने स्प्रूस पेड़ों के रस से बने राल को चबाया। न्यू इंग्लैंड के अंदर लोगों ने John४ John में, जॉन बी। कर्टिस ने द स्टेट ऑफ़ मेन प्योर स्प्रूस गम नामक पहला व्यावसायिक  चिंगम  विकसित किया और उसको बाजार के अंदर बेच दिया ।

    लगभग 1850 में पैराफिन मोम से बना एक गोंद, जो एक पेट्रोलियम उत्पाद है, विकसित किया गया था और जल्द ही लोकप्रियता में स्प्रूस चिंगम से अधिक हो गया। क्योंकि इसके अंदर काफी मीठास का प्रयोग किया जाता था। एक चीनी की प्लेट के अंदर चिंगम को डूबोकर बार बार खाया जाता था।

    chewing gum kis chiz se banti hai

    पहली बार चबाने वाली गम का निर्माण 1860 में जॉन कोलगन, लुइसविले, केंटकी फार्मासिस्ट द्वारा किया गया । कोलगन पाउडर चीनी के साथ मिश्रित सुगंधित बनाया गया । और इसके लिए  टोलू , बेलसम के पेड़ ( Myroxylon ) के अर्क से प्राप्त एक पाउडर का प्रयोग किया जो  स्वाद चबाने वाली गम की छोटी छड़ें बनाता है जिसे उन्होंने ” टाफी टोला ” नाम दिया था। कोलगन भी एक उष्णकटिबंधीय सदाबहार वृक्ष, मणिलकरा छाल से प्राप्त चिकी चिंगम का निर्माण किया जाता है।

    ‌‌‌चिंगम कैसे बनाई जाती है ? chewing gum kis se banti hai

    दोस्तों अंग्रेजी वेबसाइट विकिपिडिया की बात करें तो चिंगम बनाने के लिए निम्न लिखित चीजों का प्रयोग किया जाता है।

    • गम बेस के अंदर तीन प्रमुख घटकों को शामिल किया जाता है।जिसमे राल, मोम और इलास्टोमेर। राल (पूर्व टेरपीन) मुख्य चबाने योग्य भाग है। मोम गोंद को नरम करता है। इलास्टोमर्स लचीलापन जोड़ते हैं।
    • ‌‌‌चिंगम के अंदर आर्टिफिसियल मिठास पैदा करने के लिए , डेक्सट्रोज़, ग्लूकोज या मकई का सिरप, एरिथ्रिटोल, आइसोमाल्ट, ज़ाइलिटोल, माल्टिटोल, मैनिटोल, सोर्बिटोल, लैक्टिटोल का यूज किया जाता है।
    • ग्लिसरीन का प्रयोग चिंगम को नम बनाए रखने के लिए होता है।
    • सॉफ़्नर / Plasticizer लचीलेपन को बनाए रखने के लिए व गोंद को नरम करना और भंगुरता को कम करने के लिए सॉफ़्नर / Plasticizer का यूज किया जाता है। ‌‌‌इसके लिए निम्न चीजों को मिलाया जा सकता है।लेसितिण, हाइड्रोजनीकृत वनस्पति तेल, ग्लिसरॉल एस्टर, लैनोलिन, मिथाइल एस्टर, पेंटाएरीथ्रिटोल एस्टर, राइस ब्रान मोम, स्टीयरिक एसिड, सोडियम और पोटेशियम स्टीयरेट्स।
    • स्वाद के लिए चिंगम मे कई चीजों को मिलाया जा सकता है। जैसे पुदीना और भाला सबसे लोकप्रिय स्वाद हैं।  खट्टे स्वाद के लिए यानी साइट्रिक, टार्टरिक, मैलिक, लैक्टिक, और फ्यूमरिक एसिड का यूज किया जाता है।
    • पॉलोल कोटिंग वह पदार्थ होता है जोकि चिंगम को अधिक कठोर बनाए रखने का काम करता है। ताकि पदार्थ की गुणवकता को बनाए रखा जा सके । इसके लिए सोर्बिटोल,
    • Maltitol / Isomalt ,mannitol ,स्टार्च जैसी चीजों का प्रयोग किया जाता है।

    ‌‌‌चिंगम बनाने की प्रक्रिया कई चरणों के अंदर पूरी होती है। लेकिन सही सही जानकारी किसी के पास नहीं रहती है। यह जानकारी तो चिंगम कम्पनी के अंदर काम करने वाले मजदूरों को ही होती है। फिर भी चिंगम बनाने के लिए कई प्रक्रियाओं से गुजरना होता है।

    • ‌‌‌सबसे पहले गम बेस तैयार किया जाता है। उसके बाद यदि गम प्राकृतिक है तो इसको संसाधित किया जाता है। इसके लिए उसे शुद्व किया जाता है। गोंद को गर्म कमरे के अंदर रखा जाता है। इसमे दो दिन लगते हैं। उसके बाद उसे पिघलाया जाता है।
    • अवांछनीय गंदगी और छाल के गम आधार को हटाने के लिए एक उच्च-संचालित अपकेंद्रित्र में पंप किया होता है।
    • गोंद को पकाया जाता है और उसके अंदर मिठास मिलाया जाता है।
    • एक्सट्रूडर (मशीनों) का उपयोग मिश्रण, चिकना और गोंद बनाने के लिए होता है।
    • ‌‌‌एक काटने की मशीन सीट को छोटे छोटे भागों मे काटती है। और बाद मे कैंडी लेपित किया जाता है।
    • ‌‌‌उसके बाद गम को मसीनों के माध्यम से पैक कर दिया जाता है।

    ‌‌‌चिंगम लंबे समय तक उपयोग किया जा सकता है

    दोस्तों यदि आपने अक्सर देखा होगा कि चिंगम के उपर एक्सपाइरी डेट नहीं आती है। जिसका मतलब यह है कि चिंगम को आप लंबे समय तक यूज कर सकते हैं।यदि चिंगम को एक गर्म वातावरण के अंदर रखा जाता है तो यह उपर से कठोर हो जाता है। लेकिन ‌‌‌इसके अंदर नमी बनी रहती है। लेकिन यदि यह पानी के संपर्क मे लंबे समय तक आ जाता है तो फिर खराब हो जाता है। उसके बाद इसे नहीं खाना चाहिए।

    ‌‌‌चिंगम बनाने मे सूअर का प्रयोग

    दोस्तों अक्सर आपने यूटूब पर देखा होगा कि चिंगम बनाने मे सूअर का प्रयोग किया जाता है। हालांकि मुझे इस बात के सबूत नहीं मिले हैं। लेकिन ऐसा संभव हो सकता है। क्योंकि बहुत से ऐसे पदार्थ चिंगम के अंदर मिलाए जाते हैं। जिनको सूअर के मांस से प्राप्त किया जाता ‌‌‌हो।लेकिन सच के बारे मे कोई नहीं जानता है।

    ‌‌‌फिर भी चिंगम इंसानों के लिए काफी हानिकारक होती है। इसके अंदर पॉलीइथाइलीन, गम बेस घटक का प्रयोग किया जाता है। जोकि एक तरह का प्लास्टिक ही होता है। इसका इस्तेमाल प्लास्टिक बैग से लेकर हुला हुप्स तक के उत्पादों में किया जाता है। पॉलिविनील एसीटेट एक चिपचिपा बहुलक है जो सफेद गोंद में पाया जाता है। ब्यूटाइल रबर का उपयोग आमतौर पर गम बेस में इसके अलावा, कार के टायर और लाइनिंग के अस्तर में किया जाता है।

    ‌‌‌जबकि पैराफिन मोम प्रेट्रोलियम का एक उत्पाद है। मतलब यह सब खतरनाख चीजें चिंगम के अंदर प्रयोग की जाती हैं।

    ‌‌‌चिंगम का पुनर्चक्रण कम्पनी

    2018 में, बीबीसी ने ब्रिटिश डिजाइनर एना बुलस ने एक लेख प्रकाशित कर यह जानकारी दी कि उसने एक ऐसी कम्पनी खोली है जोकि चिंगम के वेस्ट का प्रयोग करके अन्य उपयोगी चीजे बनाएगी ।‌‌‌हालांकि यह कम्पनी केवल चिंगम का ही रिसाइकिल नहीं करती है। वरन और भी कई चीजों जैसे जूते ,प्लस्टिक कचरा ‌‌‌रबड़ के जूते , प्लास्टकि कप , प्लास्टिक बोतल आदि को रिसाइकिल करती है। यह दुनिया की पहली कम्पनी थी जिसके अंदर चिंगम रिसाइकिल का कार्य आरम्भ हुआ था। ‌‌‌यहां पर कई उत्पादों की सूचि भी दी हूई थी जो कि रिसाइकिल करके बनाए गए थे ।पेंसिल, कॉफ़ी मग, गिटार पिक्स, एक “साइकिल स्पोक”, शासक, खेल शंकु, फ्रिसबीज़, बूमरैंग्स, डोर स्टॉप,  लंच-बॉक्स और कॉम्ब हैं

    ‌‌‌चिंगम निगलने पर क्या होगा

    ‌‌‌दोस्तों हम सभी लोग चिंगम खाते हैं। और हमे यह पता भी होता है कि चिंगम निगलने के लिए नहीं होता है। उसको चिगलने के बाद फेंक देना चाहिए । लेकिन कई बार गलती से हम चिंगम को निगल लेते हैं। तो ऐसी स्थिति के अंदर आपको घबराने की कोई आवश्यकता नहीं है। मेरे भाइयों क्योंकि यह आम बात है ।‌‌‌कुछ मतो के अनुसार चिंगम निगल जाने के बाद यह सात साल तक पेट के अंदर रहेगा । क्योंकि यह पचने योग्य नहीं है। कुछ हद तक कथन सही है लेकिन चिंगम को भी पचाया जा सकता है। और उसके बाद यह जल्दी ही आपके शरीर से बाहर निकल सकती है।

    ‌‌‌1998 ई के अंदर एक ऐसे लड़के की खोज की गई और उस पर रिसर्च किया गया जो प्रतिदिन 4 से 5 चिंगम को खाने के बाद पेट मे निगल लेता था। हालांकि रिसर्च के अंदर यह कहा गया कि यह चिंगम उसके लिए परेशानी का सबब बन सकते हैं।

    ‌‌‌एक 2 साल की बच्ची को अस्पताल लाया गया जिसने एक चिंगम और दो सिक्के निगल लिए थे । डॉक्टरों ने जांच की तो पाया की चिंगम और सिक्के दोनों लड़की की आंतों के अंदर फंस चुके हैं। इसी वजह से यह हिदायत दी जाती है कि चिंगम बच्चों को नहीं देनी चाहिए।

    ‌‌‌हालांकि चिंगम निगले से मौत के मामले ना के बराबर आते हैं। सन 2012 के अंदर एक महिला जब सीढ़ियों से नीचे उतर रही थी तो उसका पैर फिसल गया और वह चिगम चबा रही थी जो उसकी सांस नली मे चली गई और वह मौत का शिकार हो गई।

    ‌‌‌चिंगम के आविष्कार की स्टोरी जॉन बी

    दोस्तों वैसे तो चिंगम का विकास कई चरणों के अंदर हुआ और उसमे कई सुधार भी हुए । जोकि आज तक जारी हैं। लेकिन सबसे पहले यदि हम चिंगम के खोज की बात करें तो यह जॉन बी ने की थी।‌‌‌यह बात उस समय की है जब जॉन बी के पास कोई काम नहीं था। उसने कई जगहों पर काम की तलास की ।उसके बाद उसे एक रस्ते के अंदर पेड़ों को काटने का काम मिल गया ।वह स्प्रूस नामक छाड़ियों से गिरने वाले रस को चबाना शूरू कर दिया था। क्योंकि वह उसे अच्छा लगा ।

    ‌‌‌लेकिन इसके साथ सबसे बड़ी समस्या यह थी कि कुछ देर इसको चबाने के बाद यह अपना लोच खो देता था और उसके बाद यह चबाने लायक नहीं बचता था। लेकिन इसका भी हल जॉन बी ने निकाला और उसने इसको पकाना और उसके अंदर मीठास मिलाना शूरू कर दिया ।‌‌‌फिर क्या था। वह पहले से बेहतर बन गया। उसके बाद जॉन बी ने अपने झाड़ियों को काटने का काम छोड़ दिया और अपना खुद का बिजनेस करने लगा ।

    बबल चिंगम

    बबल चिंगम

    दोस्तों बबल गम के बारे मे आपने भी सुना होगा । और देखा भी होगा व खाया भी होगा । इसकी सबसे बड़ी खास बात यह होती है कि आप इससे एक बड़ा बबल अपने मुंह से फैला सकते हैं यह स्वाद के मामले मे भी अलग होती है। ‌‌‌बबल चिंगम के अंदर कई चीजे मिलाई जाती हैं  जिनमे से सिंथेटिक बबलगम फ्लेवरिंग में उपयोग किए जाने वाले एस्टर में मिथाइल सैलिसिलेट, एथिल ब्यूटाइरेट, बेंजाइल एसीटेट, एमाइल एसीटेट और / या केला , अनानास , दालचीनी , लौंग और विंटरग्रीन को मिलाकर एक प्राकृतिक बबलगम स्वाद बनाया जा सकता है।

    इसमे प्राकृतिक रबर जैसे कि चीक का उपयोग किया जाता है। हालांकि आधुनिक चिंगम के अंदर सिंथेटिक गोंद आधारित सामग्री का उपयोग करते हैं। जोकि लंबे समय तक चलती है।

    1928 में, फिलाडेल्फिया में फ्लेयर च्युइंग गम कंपनी के एक एकाउंटेंट, वाल्टर डायमर  व्यंजनों पर प्रयोग कर रहे थे । इसी दौरान उन्हें चिंगम की तुलना मे कम चिपचिपा पदार्थ पाया और आसानी से फैल गया ।इसके अधिक खिंचाव वाली प्रव्रति की वजह से इसे बबल गम के नाम से जाना गया । बाज़ूका बबल गम ने बाजार में प्रवेश किया ।तब यह चिंगम का प्रमुख प्रकार बन गया ।

    • 1996 में, फ्रेस्नो, कैलिफोर्निया के सुसान मोंटगोमरी विलियम्स ने सबसे बड़ा बबलगम बबल का गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया , जो कि 26 इंच (66 सेमी) व्यास का था।
    • चाड फेल ने 24 अप्रैल 2004 को प्राप्त 20 इंच (51 सेमी) में “सबसे बड़ा हैंड्स-फ्री बबलगम बबल” का रिकॉर्ड बनाया था।

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