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    KHOON PEENE WALA KEEDA TOP BLEEDING INSECTS IN HINDI

    arif khanBy arif khanNovember 4, 2018Updated:November 4, 2018No Comments9 Mins Read
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    ‌‌‌इस लेख मे हम बात करने वाले हैं खून पीने वाले कीड़े के बारे में । यदि आप खून पीने वाले कीड़े के बारे मे जानना चाहते हैं तो लेख पूरा पढ़ें। दुनिया के अंदर कई किस्म के कीड़े होते हैं। और कुछ कीड़े तो बहुत ही अजीबो गरीब होते हैं। जबकि कुछ कीड़े खून पीकर जिंदा रहते हैं। दुनिया के अंदर कई ऐसे कीड़े मौजूद हैं जो खून पीते हैं। हमारे भारत के अंदर भी इस तरह के कई कीड़े हैं जो खून पीते हैं। जिनमे ‌‌‌खून पीने वाला जिया और खून पीने वाली जोंक प्रमुख हैं। ‌‌‌इसके अलावा कई बार पेट के अंदर भी खून  पीने वाले कीड़े विकसित हो जाते हैं। जिसकी वजह से शरीर के अंदर खून बनना कम हो जाता है। जिस व्यक्ति के पेट के अंदर यह खून पीने वाले कीड़े होते हैं। उसको बहुत अधिक खून चढ़ाना पड़ता है। इस तरह के खून पीने वाले कीड़े को हुकवर्म कहा जाता है।

    Table of Contents

    • KHOON PEENE WALA KEEDA MOSQUITOES
    • KHOON PEENE WALA KEEDA BED bugs
    • KHOON PEENE WALA KEEDA FLEAS
    • KHOON PEENE WALA KEEDA TICKS
    • KHOON PEENE WALA KEEDA LICE
    • KHOON PEENE WALA KEEDA MITES
    • KHOON PEENE WALE KIDE FLIES
    • KHOON PEENE WALE  LEECH

    KHOON PEENE WALA KEEDA MOSQUITOES

    मच्छर खून पीने के लिए सबसे ज्यादा कुख्यात हैं।एनोफेलेस गैंबिया, दक्षिणी अफ्रीका में लगभग 1 मिलियन मौतों के लिए ज़िम्मेदार है। मादाएं मनुष्यों के खून को चूसने के लिए कुख्यात हैं । कुछ मच्छरों की प्रजातियां डेंगू , मलेरिया , और वायरल बुखार को प्रसारित करती हैं। ‌‌‌मच्छर शब्द स्पेनिश और पूर्तगाली भाषा से बना हुआ है।

     

    मच्छरों के अंदर अपने आप कई विशेषताएं होती हैं। एक मच्छर अपने वजन के बराबर खून पी सकता है।एक मच्छर लगभग 100 फीट तक की दूर पर स्थिति अपने शिकार का पता लगा सकता है।

    KHOON PEENE WALA KEEDA BED bugs

    Cimex lectularius खटमल का वैज्ञानिक नाम है। खटमल  आमतौर पर लाल भूरे रंग के होते हैं। यह एक ऐसी प्रजाति होती है जो मनुष्य का खून पीकर ही जिंदा रहती है। यह पांच चरण के अंदर अपना जीवनकाल पूरा करते हैं। घरों के अंदर खासकर यह बिस्तर के पास रहते हैं। ‌‌‌यदि बिस्तर को लंबे समय तक धूप नहीं दी जाती है और गंदगी हो जाती है तो वहां पर खटमल पैदा हो जाते हैं। खटमल के काटने से बिमारियां नहीं होती है। लेकिन खुजली जरूर होती है।

     

    1 9 40  के अंदर खटमल को बड़े पैमाने पर खत्म कर दिया गया था । लेकिन 1990 के अंदर इनका विकास फिर होने लगा । इन कीड़ों ने अब प्रतिरोधक क्षमता विकसित करली थी । खटमल की खास बात यह होती है कि यह 1 साल तक बिना खून पिये रह सकता है।

    KHOON PEENE WALA KEEDA FLEAS

    यह विशेष प्रकार के खून चूसने वाले कीडे होते हैं। इन कीड़ों के पंख नहीं होते हैं। बस इनकी डिजाइन कुछ इस प्रकार की होती है कि यह अधिक दूरी तरक आसानी से छलांग लगा सकते हैं। यह इंसानों और जानवरों का खून चूसते हैं।

     

    वयस्क लगभग 3 मिमी (0.12 इंच) लंबे और आमतौर पर भूरे रंग तक होते हैं।इस कीड़े के अंदर से एक विशेष प्रकार की लार पैदा होती है जो त्वचा को भेदने मे मदद करती है। इसके अलावा यह खून चूसने वाला कीड़ा 6 महिने तक बिना किसी का खून पिये रह सकता है।

    पिस्सू जब वयस्कता तक पहुंच जाता है तो उसके बाद उसका एक ही लक्ष्य बचता है रक्त ढूंढना । एक मादा आम तौर पर अपने जीवनकाल के अंदर 5000 से अधिक अंड़े देती है।पिस्सू के जीवन चक्र के लिए अधिकतम तापमान 21 डिग्री सेल्सियस से 30 डिग्री सेल्सियस होता है।

    ‌‌‌इस कीड़े की अब तक 2500 प्रजातियों का पता चल चुका है।fleas  की कुछ प्रजातियां जहरीली होती है। इनके काटने से खुजली हो सकती है। और चकते का निशान बन सकता है। इसके अलावा एलर्जी भी हो सकती है। fleas  मे बैक्टीरिया और रिक्ट्सियल बीमारियों के साथ-साथ प्रोटोज़ोन और हेल्मिंथ परजीवी होते हैं। ‌‌‌जिसकी वजह से जब यह काटता है तो यह परजीवी इंसान के शरीर के अंदर पहुंच जाते हैं और कई प्रकार की गम्भीर बिमारियों का कारण बनते हैं।

    लंदन के ग्रेट प्लेग, 1665 में, 100,000 लोगों की मौत हो गई।fleas  जब किसी दूसरे जीवाणू से संक्रमित हो जाते हैं तो इनके काटने से प्लेग जैसी गम्भीर बिमारियां हो सकती हैं।जैसा प्राचीन काल से बार-बार हुआ है, 541-542 में जस्टिनियन के प्लेग में है1346 और 1671 के बीच पूरे यूरोप में 200 मिलियन लोगों की मौत हो गई। ‌‌‌इसके अलावा कई बार इस कीड़े को एक जैविक हथियार के रूप मे भी इस्तेमाल किया जाता है। द्वितिय विश्व युद्व के दौरान जापानी सेना ने चीन मे पेस्टिस से पीड़ित fleas गिरा दिया था।

    KHOON PEENE WALA KEEDA TICKS

    टिक्स छोटे आरेक्निक होते हैं, आमतौर पर 3 से 5 मिमी लंबा, पैरासिटिफॉर्म ऑर्डर का हिस्सा होते हैं। यह बाहरी परजीवी होते हैं जो स्तनधारियों का खून पीकर जीवित रहते हैं।यह दुनिया भर के अंदर रहते हैं । खास कर गर्म ईलाकों के अंदर ज्यादा रहते हैं। ‌‌‌इन खून चूसने वाले कीड़े अपने जीवन चक्र को 4 चरणों के अंदर पूरा करते हैं। इसके अलावा इस कीड़े के खून पीने की वजह से इसके अंदर लगभग 12 बिमारियों के जीवाणू होते हैं।

    ‌‌‌टिक के अंदर कई बिमारियों के जीवाणू होते हैं रिक्ट्सिया टाइफस, रिक्ट्सियलपॉक्स, बोउटोन्यूज बुखार, अफ्रीकी टिक काटने वाला बुखार, रॉकी माउंटेन बुखार बुखार, आदि । कुछ टिक की प्रजातियां काफी विषैली होती हैं ऑस्ट्रेलियाई  टिक के काटने से पक्षघात की समस्या भी पैदा हो सकती है।

     

    एक 2018 के अध्ययन में पाया गया कि टिक काटने के कारण अमेरिका में लाल मांस एलर्जी बढ़ रही है। टिक 120 मिलियन वर्ष पूर्व विकसित हुए थे । यदि इनको लंबे समय तक भोजन नहीं मिलता है तो यह मर जाते हैं। टिक त्वचा के कोमल भागों से रक्त निकालकर पीना ज्यादा पसंद करते हैं।

    KHOON PEENE WALA KEEDA LICE

    Head Louse एक खून पीने वाला परजीवी होता है जो मनुष्य के शरीर के अंदर पैदा हो जाता है। यह खास कर बालों के अंदर पैदा होता है। आम भाषा के अंदर इसको जूं कहा जाता है। यह इंसानों का खून पीती हैं। इनके पंख नहीं होते हैं।

     

    ‌‌‌आमतौर पर जूं काटती हैं तो एक विशेष पदार्थ छोड़ती हैं जिससे काटने का दर्द नहीं होता है।  इसके अलावा यदि जूं किसी के सर के अंदर पैदा हो जाती हैं तो वे लाखों की संख्या के अंदर अंड़े देती हैं और जिससे लीक बनती हैं। जो बाद मे जूं के अंदर बदल जाती हैं। इस तरह से जहां पर जूं काटती हैं वहां पर खूजली ‌‌‌होती है।यदि इनका जल्दी से उपचार नहीं किया जाए तो यह इंसानों का जीना हराम कर सकती हैं। वैसे आजकल जूं इंसानों के सिर मे बहुत कम पाई जाती हैं। क्योंकि अधिकतर लोग एंटीडेंड्रफ सैम्पू वैगरह का यूज करते हैं।

    KHOON PEENE WALA KEEDA MITES

    टिक और पतंगों के अध्ययन के लिए समर्पित वैज्ञानिक अनुशासन को एसरोलॉजी कहा जाता है। पतंगे छोटे होते हैं। इनकी लम्बाई 1 मिमी  से कम होती है। इनका आकार छोटा होता है। जिसकी वजह से यह आसानी से किसी को नजर नहीं आते हैं।Mites  की कई प्रजातियां विघटन करने वाले जीवों के रूप मे भी रहती हैं।

     

    ‌‌‌इनकी कुछ प्रजातियां पेड़ों के अंदर भी रहती हैं। हालांकि इनकी अधिकांश प्रजातियां मनुष्यों के लिए हानिकारक होती हैं। जबकि कुछ एलर्जी वैगरह पैदा कर देती हैं। पतंगों की अधिकतर प्रजातियां एक रोग संचरण के रूप मे काम करती हैं। सरकोप्टेस स्काबेई एक परजीवी पतंग है जो खरोंच के लिए जिम्मेदार है डेमोडेक्स पतंग, जो कि कुत्तों और अन्य पालतू पशुओं में बिमारी के कारण हैं, स्क्रब टाइफस rickettsialpox रोग का एकमात्र ज्ञात वेक्टर है ।माइट्स को पहली बार अंग्रेजी पॉलिमैथ रॉबर्ट हुक द्वारा माइक्रोस्कोप के तहत देखा गया था। 1665 की पुस्तक माइक्रोग्राफिया में ‌‌‌उसने इनके बारे मे बताया था।

    ‌‌‌वैसे माइट को सामान्य भाषा के अंदर चिंचड़ी भी कहा जाता है जो काफी छोटी होती है और खासकर गंदे स्थानों पर रहती है। और जानवरों औंर इंसान के चिपक जाती है। लम्बें समय तक चिपकी रहे तो यह खून पीते हुए चमड़ी के अंदर तक चली जाती है।

    KHOON PEENE WALE KIDE FLIES

    Flies एक प्रकार के कीड़े होते हैं। इनकी कुछ प्रजातियां हमारे शरीर का खून पीती हैं।और बिमारियां फैला सकती हैं।टेटसे फ्लाई, Deer flies और सैंडफ्लाई शामिल हैं। Tsetse फ्लाई मनुष्यों के लिए trypanosoma  जो अफ्रीकी नींद बीमारी का कारण बनता है। Deer flies में बैक्टीरिया और जीवाणु रोग tularemia संचारित, rabbit fever के रूप में भी जाना जाता है। वे परजीवी नेमाटोड लोआ लोआ को भी प्रसारित करते हैं, जिसे आंख कीड़ा भी कहा जाता है ‌‌‌इनकी अनुमानित 1,000,000 प्रजातियां हैं, हालांकि केवल 125,000 प्रजातियों का वर्णन किया गया है। ‌‌‌

     

    यदि हम घरेलू मक्खी की बात करें तो वह चीजों को खाने की बजाए पीना ज्यादा पसंद करती है। घरेलू मक्खी या फलाई खून भी पीती है। लेकिन वह खून तभी पी सकती है। जबकि कि कहीं पर पहले से घाव बना हुआ हो । वह खुद बोड़ी पर घाव नहीं बना सकती । sand-fly एक अलग प्रकार की fly होती है जो रात के अंदर क्रियाशील होती है। और यह खून चुसने का काम करती है। यह हमारी घरेलू fly से अलग होती है।डिप्टेरा गण का fly होता है।

    KHOON PEENE WALE  LEECH

    leech जिसको हिंदी भाषा के अंदर जोंक भी कहते हैं। यह भी एक खून चूसने वाला कीड़ा है। इसकी दुनिया के अंदर लगभग 700 प्रजातियां मौजूद हैं। जोंक की खास बात यह होती है कि यह साल के अंदर केवल दो बार ही भोजन करती है। और उसके बाद उसे पचाने के लिए महिनो लगाती है। ‌‌‌जोंक थेरेपी एक ऐसी प्रक्रिया है। जिसका प्रयोग शरीर के अंदर की बिमारियों के उपचार मे किया जाता है। इस चिकित्सा का प्रयोग जोड़ों मे दर्द ,त्वचा की देखभाल अंगों के सूजन के उपचार मे किया जाता है।

     

    ‌‌‌जब जोंक काटती है तो उसकी लार के अंदर  एक एंटीकोगुलेटर होता है। जोकि रक्त को पतला करने मे मदद करता है। जोंक थेरेपी का प्रयोग बहुत से लोग करते हैं । इस तरीके के अंदर एक जोंक को 45 मिनट तक खुद का खून चुसाया जाता है। ‌‌‌हालांकि लीच या जोंक सभी व्यक्तियों के लिए फायदे मंद नहीं होती है। कुछ व्यक्ति ऐसे भी होते हैं जिनको जोंक के काटने से कई प्रकार की परेशानी हो सकती है। जैसे  शरीर पर खुजली वाली धड़कन, होंठ या आंखों के चारों ओर सूजन, बेहोशी या चक्कर आना, और सांस लेने में कठिनाई ।

     

    ‌‌‌अब तक आपने खून पीने वाले कीड़े के बारे मे जान ही चुके हैं। कि यह कीड़े इंसान का खून कैसे पीते हैं। खून पीने वाले कीड़े लेख आपको कैसा लगा नीचे कमेंट करके बताएं।

    Top 13 very dangers types of ghost in hindi

    arif khan
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