रविवार व्रत कथा Ravivar Vrat Katha आरती भजन व चालिसा विधी व फायदे

‌‌‌‌‌‌इस के अंदर हम रविवार व्रत कथा Ravivar Vrat Katha आरती भजन व चालिसा विधी व फायदे के बारे मे पुरी तरह से जानेगे

सूर्य देव को इस जगत की आत्मा कहा जाता है । यह माना जाता है की सूर्य देव के पिता सूर्य महर्षि कश्यप है । सूर्य देव की माता का नाम अदिति है । सूर्य देव को आदित्य भी कहा जाता है ।

‌‌‌एक बार की कथा है दानवो ने देवताओ को मारने के लिये सोचने लगे और वे देवताओ पर हमला बोल दिया । देवता प्राजित हो गए और भयभीत होकर भागने लगे । तब अदिति माता ने सूर्य देव का तप करकर उन्हे प्रसन्न ‌‌‌किया तो ‌‌‌उन्होने कहा की ‌‌‌मै आपके पुत्र के रुप मे जन्म लुगा ।

देवी अदिति गर्भवती हो गई वे मंगलवार के व्रत करने लग गई वे निरन्तर ही व्रत किये जा रही थी । उसके ऐसे व्रत करने से महर्षि कश्यप उससे नारज रहने लग गऐ ।

एक दिन महर्षि कश्यप ने अपनी पत्नी से कहा की तुम्हे तो इस ‌‌‌पुत्र की कोई परवाह नही है । ऐसा कहते हुऐ वे वहा से चले गए । कुछ समय के बाद उनके गर्भ से ‌‌‌सूर्य भगवान का जन्म हुआ । 

‌‌‌सूर्य देव की पुजा करते समय यह मत्र दोहराना चाहिए मन्त्र ॐ एहि सूर्य सहस्त्रांशो तेजोराशे जगत्पते। अनुकम्पय माँ भक्त्या गृहाणार्घ्यं दिवाकर है।

दृश्य सूर्यमण्डल उनका एक स्थूल निवास है। सूर्य देव का मिलन विश्वकर्मा की पुत्री संज्ञा से हुआ था वे सूर्य देव के तेज को सह नही सकती थी इस कारण वे एक घोडे का रुप धरण करके वहा से चली गई । श्राद्धदेव वैवस्वतमनु और यमराज तथा यमुना संज्ञा के पुत्र व पुत्री है ।

‌‌‌और स्वयं की छाया ‌‌‌सूर्य देव के पास छोड गई । हनुमान जी को ज्ञान देने वाले गुरु भी वे ही है ।संज्ञा और छाया सूर्य देव की ‌‌‌पत्निया है । छाया का पुत्र शनि है । ‌‌‌सूर्यदेव व शनि देव के गुण एक दुसरे से भिन्न है ।

‌‌‌रविवार व्रत कथा

‌‌‌एक नगर मे एक बुडिया रहती थी जो रविवार को रोजाना व्रत किया करती थी । वह प्रात: काल जल्दी उठकर अपने घर की साफ सफाई करकर स्नान करती थी । और अपने प्रिय ‌‌‌सूर्य देव की पूजा कर कर दोपहर को भोजन किया करती थी ।

व्रत करने से भगवान ‌‌‌सूर्य देव उसका घर धन दोलत से भरते चले जा रहे थे उसे किसी भी प्रकार की कोई भी परेसानी नही थी । वह बुडिया रविवार को अपने आगन को गोबर से लिपा करती थी वह गोबर अपनी पडोसन से लाया करती थी ।

उसके घर मे धन आता देखकर पडोसन उससे जलने लग गई । ‌‌‌वह सोचने लगी की अगर उस बुडिया को गोबर नही दिया गया तो वह अपने आंगन को नही लिप सकती है और न ही पूजा सही तरीके से कर सकती है ।

ऐसा सोचते हुए वह अपनी गाय के गोबर को सवेरे ही उठाने लग गई जिससे उस बुडिया को गोबर नही मिला तो वह अपने आगन को नही लिप सकी और नही वे ‌‌‌सूर्य देव को भोग लगा सकी।

‌‌‌सूर्यास्त होने पर बुढ़िया भूखी-प्यासी सो गई। जब बुडिया दुसरे दिन उठी तो देखा की उसके आगन मे ऐक गाय व बच्छडा है वह उठकर उस गाय की खतर दारी मे लग गई ।

उसकी पडोसन ने देखा की उसकी गाय तो सोने का गोबर दे रही है वह यही देखकर हैरान हो गाई ।‌‌‌ पडोसन रोजाना ही उस बुडिया के उठने से पहले उठकर उस गाय के सोने के गोबर को उठा कर अपनी गाय के गोबर को वहा रख दिया करती थी जिससे वह कुछ ही समय मे धनवान होने लग गई ।

 बहुत समय बित गया बुडिया को सोने के गोबर के बारे मे नही पता चला और वह हमेसा की तरह ही व्रत करती रही । ‌‌‌एक दिन ‌‌‌सूर्य देव ने आधी चलाई जिसे देखकर वह बुडिया अपनी गाय को घर के अंदर बाध दिया ।

बुडिया ने दुसरे दिन देखा की वह गाय तो सोने का गोबर दे रही है यह देखकर वह बुडिया हैरान हो गई । ‌‌‌उस दिन के बाद मे बुडिया रोजाना ही गाय को अपने घर के अंदर बाधने लग गई गाय रोजाना ही सोने का गोबर दिया करती थी जिससे वह बुडिया वहुत ही धनवान हो गई ।

 पर उसकी पडोसने को उसका धनवान होना अच्छा नही लगता था । उसकी पडोसने ने गाय के बारे मे उस नगर के राजा को बताया । राजा ने गाय को देखा ‌‌‌तो वह गाय बहुत ही सुंदर थी ।

राजा ने जब देखा की वह गाय तो सोने का गोबर दे रही है तो राजा भी हैरान हो गया । ऐसा देखकर राजा उस गाय को अपने साथ महल ले गया और उस गाय की खुब सेवा की। वहा पर बुडिया भुखी प्यासी रहने लग गई और भगवान ‌‌‌सूर्य से प्राथना करने लग गई ।

‌‌‌बुडिया की हालत खराब होने लगी । बुडिया कुछ नही खती थी । तो ‌‌‌सूर्य देव ने राजा के स्वप्न मे आकर कहा की राजा यह गाय तेरी नही है तु इसे बुडिया के घर पर छोड आ वरना तेरे पास जो भी है वह तेरा नही रहेगा ।

जब राजा की ‌‌‌‌‌‌सुबह आखे खुली तो वह घबरा कर उस गाय को बुडिया के घर मे छोड आया । ‌‌‌राजा ने उस बुडिया से क्षमा याचना की और उसे बहुत सारा धन दिया साथ ही उसकी पडोसन को कठोर दंड दिया ।

राजा ने अपने नगर मे ‌‌‌घोषणा करते हुऐ कहा की सभी रविवार का व्रत करे जिससे धन दोलत की कोई कमी नही रहे और आपका जीवन सुख शांति के साथ बिते । राजा के ‌‌‌घोषणा करने से सभी नगर वाले रविवार का व्रत करने ‌‌‌गए । और सभी लोग सुख शांति के साथ अपना जीवन जिने लग गए।

रविवार व्रत करने की विधी

  1. रविवार का व्रत साधरण तोर पर 12 रविवार किया जाता है ।पर रविवार का व्रत एक वर्ष तक भी किया जाता है ।
  2. सबसे पहले प्रातकाल जल्दी उठकर स्नान कर लाल रंग के वस्त्र धारण करें ।
  3. बादमे भगवान ‌‌‌सूर्य देव की प्रतिमा को किसी स्वच्छ जगह पर स्थापित करें ।
  4. ‌‌‌उसके बाद मे ‌‌‌सूर्य देव के आगे दिया जलाकर पुजा करे ।
  5. पूजा करने के बाद आरती करे ।
  6. आरती के बाद भजन व चालिसा का जाप करे तो अच्छा रहता है ।
  7. भगवान ‌‌‌सूर्य देव की व्रत कथा सुने ।
  8. कथा सुनने के बाद ‌‌‌सूर्य देव की पूजा के समय जो उपयोग लिया गया जल था उसे अपने ‌‌‌पूरे घर मे छिडके तो घर पवित्र हो जाता है ।
  9. ‌‌‌‌‌‌सूर्य देव को फल चडावे और जब आप भोजन करे तो उन्हे भोग लगाकर ही भोजन ग्रहण करना चाहिए ।
  10. इस व्रत के दिन नमक का उपयोग नही किया जाता है ।

‌‌‌व्रत करने से फायदे

  • यह व्रत करने से भगवान ‌‌‌सूर्य प्रसन्न होकर धन देते है ।
  • इस व्रत को करने से पुत्र प्राप्ति होती है ।
  • यह व्रत करने से मानो कामनाएं पूर्ण होती है ।
  • रोगो से लडने की शक्ति प्राप्त होती है और साथ ही रोग भी समाप्त हो जाते है ।
  • ‌‌‌सूर्य देव का व्रत करने से नोकरी जल्दी मिलती है ।
  • ‌‌‌‌‌‌सूर्यदेव की कृपा से घर मे शांति रहती है
  • ‌‌‌सूर्य देव से प्राथना करने से वे ‌‌‌आपकी पुरी साहयता करते है ।

रविवार की आरती

कहूँ लगी आरती दास करेंगे,

सकल जगत जाकी जोत बिराजे || हो राम ||

सात समुद्र जाके चरणनि बसे,

कहा भयो जल कुम्भ भरे || हो राम ||

कोटि भानु जाके नख की शोभा,

कहा भयो मंदिर दीप धरे || हो राम ||

भार अठारह राम बलि जाके,

कहा भयो शिर पुष्पधरे || हो राम ||

छप्पन भोग जाके नितप्रति लागे,

कहा भयो नैवेद्य धरे || हो राम ||

अमित कोटि जाके बाजा बाजे,

कहा भयो झनकार करे || हो राम ||

चार वेद जाके मुख की शोभा,

कहा भयो ब्रम्हा वेद पढ़े || हो राम ||

शिव सनकादी आदि ब्रम्हादिक,

नारद हनी जाको ध्यान धरे || हो राम ||

हिम मंदार जाको पवन झकोरे,

कहा भयो शिव चवँर दुरे || हो राम ||

लाख चौरासी वन्दे छुडाये,

केवल हरियश नामदेव गाये || हो राम ||

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‌‌‌‌‌‌सूर्य देव की आरती

ऊँ जय सूर्य भगवान, जय हो दिनकर भगवान।

जगत् के नेत्र स्वरूपा, तुम हो त्रिगुण स्वरूपा।

धरत सब ही तव ध्यान, ऊँ जय सूर्य भगवान॥

॥ ऊँ जय सूर्य भगवान…॥

सारथी अरूण हैं प्रभु तुम, श्वेत कमलधारी। तुम चार भुजाधारी॥

अश्व हैं सात तुम्हारे, कोटी किरण पसारे। तुम हो देव महान॥

॥ ऊँ जय सूर्य भगवान…॥

ऊषाकाल में जब तुम, उदयाचल आते। सब तब दर्शन पाते॥

फैलाते उजियारा, जागता तब जग सारा। करे सब तब गुणगान॥

॥ ऊँ जय सूर्य भगवान…॥

संध्या में भुवनेश्वर अस्ताचल जाते। गोधन तब घर आते॥

गोधुली बेला में, हर घर हर आंगन में। हो तव महिमा गान॥

॥ ऊँ जय सूर्य भगवान…॥

देव दनुज नर नारी, ऋषि मुनिवर भजते। आदित्य हृदय जपते॥

स्त्रोत ये मंगलकारी, इसकी है रचना न्यारी। दे नव जीवनदान॥

॥ ऊँ जय सूर्य भगवान…॥

तुम हो त्रिकाल रचियता, तुम जग के आधार। महिमा तब अपरम्पार॥

प्राणों का सिंचन करके भक्तों को अपने देते। बल बृद्धि और ज्ञान॥

॥ ऊँ जय सूर्य भगवान…॥

भूचर जल चर खेचर, सब के हो प्राण तुम्हीं। सब जीवों के प्राण तुम्हीं॥

वेद पुराण बखाने, धर्म सभी तुम्हें माने। तुम ही सर्व शक्तिमान॥

॥ ऊँ जय सूर्य भगवान…॥

पूजन करती दिशाएं, पूजे दश दिक्पाल। तुम भुवनों के प्रतिपाल॥

ऋतुएं तुम्हारी दासी, तुम शाश्वत अविनाशी। शुभकारी अंशुमान॥

॥ ऊँ जय सूर्य भगवान…॥

ऊँ जय सूर्य भगवान, जय हो दिनकर भगवान।

जगत के नेत्र रूवरूपा, तुम हो त्रिगुण स्वरूपा॥

धरत सब ही तव ध्यान, ऊँ जय सूर्य भगवान॥

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‌‌‌सूर्य देव की आरती 2

जय जय जय रविदेव, जय जय जय रविदेव।

जय जय जय रविदेव, जय जय जय रविदेव॥

रजनीपति मदहारी, शतदल जीवनदाता।

षटपद मन मुदकारी, हे दिनमणि दाता॥

जग के हे रविदेव, जय जय जय रविदेव।

जय जय जय रविदेव, जय जय जय रविदेव॥

नभमंडल के वासी, ज्योति प्रकाशक देवा।

निज जन हित सुखरासी, तेरी हम सबें सेवा॥

करते हैं रविदेव, जय जय जय रविदेव।

जय जय जय रविदेव, जय जय जय रविदेव॥

कनक बदन मन मोहित, रुचिर प्रभा प्यारी।

निज मंडल से मंडित, अजर अमर छविधारी॥

हे सुरवर रविदेव, जय जय जय रविदेव।

जय जय जय रविदेव, जय जय जय रविदेव॥

सूर्य चालीसा

जय सविता जय जयति दिवाकर, सहस्रांशु सप्ताश्व तिमिरहर।

भानु, पतंग, मरीची, भास्कर, सविता, हंस, सुनूर, विभाकर।

विवस्वान, आदित्य, विकर्तन, मार्तण्ड, हरिरूप, विरोचन।

अम्बरमणि, खग, रवि कहलाते, वेद हिरण्यगर्भ कह गाते।

सहस्रांशु, प्रद्योतन, कहि कहि, मुनिगन होत प्रसन्न मोदलहि।

अरुण सदृश सारथी मनोहर, हांकत हय साता चढ़ि रथ पर।

मंडल की महिमा अति न्यारी, तेज रूप केरी बलिहारी।

उच्चैश्रवा सदृश हय जोते, देखि पुरन्दर लज्जित होते।

मित्र, मरीचि, भानु, अरुण, भास्कर, सविता,

सूर्य, अर्क, खग, कलिहर, पूषा, रवि,

आदित्य, नाम लै, हिरण्यगर्भाय नमः कहिकै।

द्वादस नाम प्रेम सो गावैं, मस्तक बारह बार नवावै।

चार पदारथ सो जन पावै, दुख दारिद्र अघ पुंज नसावै।

नमस्कार को चमत्कार यह, विधि हरिहर कौ कृपासार यह।

सेवै भानु तुमहिं मन लाई, अष्टसिद्धि नवनिधि तेहिं पाई।

बारह नाम उच्चारन करते, सहस जनम के पातक टरते।

उपाख्यान जो करते तवजन, रिपु सों जमलहते सोतेहि छन।

छन सुत जुत परिवार बढ़तु है, प्रबलमोह को फंद कटतु है।

अर्क शीश को रक्षा करते, रवि ललाट पर नित्य बिहरते।

सूर्य नेत्र पर नित्य विराजत, कर्ण देश पर दिनकर छाजत।

भानु नासिका वास करहु नित, भास्कर करत सदा मुख कौ हित।

ओठ रहैं पर्जन्य हमारे, रसना बीच तीक्ष्ण बस प्यारे।

कंठ सुवर्ण रेत की शोभा, तिग्मतेजसः कांधे लोभा।

पूषा बाहु मित्र पीठहिं पर, त्वष्टा-वरुण रहम सुउष्णकर।

युगल हाथ पर रक्षा कारन, भानुमान उरसर्मं सुउदरचन।

बसत नाभि आदित्य मनोहर, कटि मंह हंस, रहत मन मुदभर।

जंघा गोपति, सविता बासा, गुप्त दिवाकर करत हुलासा।

विवस्वान पद की रखवारी, बाहर बसते नित तम हारी।

सहस्रांशु, सर्वांग सम्हारै, रक्षा कवच विचित्र विचारे।

अस जोजजन अपने न माहीं, भय जग बीज करहुं तेहि नाहीं।

दरिद्र कुष्ट तेहिं कबहुं न व्यापै, जोजन याको मन मंह जापै।

अंधकार जग का जो हरता, नव प्रकाश से आनन्द भरता।

ग्रह गन ग्रसि न मिटावत जाही, कोटि बार मैं प्रनवौं ताही।

मन्द सदृश सुतजग में जाके, धर्मराज सम अद्भुत बांके।

धन्य-धन्य तुम दिनमनि देवा, किया करत सुरमुनि नर सेवा।

भक्ति भावयुत पूर्ण नियम सों, दूर हटत सो भव के भ्रम सों।

परम धन्य सो नर तनधारी, हैं प्रसन्न जेहि पर तम हारी।

अरुण माघ महं सूर्य फाल्गुन, मध वेदांगनाम रवि उदय।

भानु उदय वैसाख गिनावै, ज्येष्ठ इन्द्र आषाढ़ रवि गावै।

यम भादों आश्विन हिमरेता, कातिक होत दिवाकर नेता।

अगहन भिन्न विष्णु हैं पूसहिं, पुरुष नाम रवि हैं मलमासहिं।

सूर्य देव के भजन

आज रविवार है सुरये देव का वार है,

इन से जग उजयार है,

नव ग्रहो में शक्तिशाली महिमा अप्रम पार है,

नव ग्रहो में सूर्ये देव ही सब से पहले आते है,

बाकी सारे ग्रह तो इनकी परिकर्मा लगाते है,

तेज तो अपार है सूर्ये देव का वार है,

नव ग्रहो में शक्तिशाली महिमा अप्रम पार है,

रवि वार को सूर्ये देव को जल जो अर्पित करते है,

पाप ताप से मुक्त होते खाली झोली बारते है,

भव से होते पार है सूर्ये देव का वार है,

नव ग्रहो में शक्तिशाली महिमा अप्रम पार है,

यम यमुना शनि देव जी इनका तो परिवार है,

जिनकी तेज से तीनो लोक में हो जाता उजयार है,

मिट जाता अंधियार है सूर्ये देव का वार है,

नव ग्रहो में शक्तिशाली महिमा अप्रम पार है,

माँ गायत्री मंतर है प्यारा सूर्य देव को भाता है,

रविवार को एक माला मंत्र जो ये जप जाता है,

हो जाता उधार हिअ सूर्ये देव का वार है,

नव ग्रहो में शक्तिशाली महिमा अप्रम पार है,

नव ग्रहो में शक्तिशाली महिमा अप्रम पार है,

सूर्य देव की उत्पत्ति

मार्कंडेय पुराण मे बताया गया है की पहले कमल योनि ब्रह्मा जी थे जिनके मुख से पहला शब्द ॐ  निकला था जो सूर्य के तेज के समान था । ब्रह्मा जी से चारो  मुख से ॐ  निकलकर वह एकत्रित हो गए ।यह तेज सूर्य देव के समान ही है जो सूर्य देव के जैसे ही पलनहार का कार्य करता है ।

ऋषि कश्यप ब्रह्मा जी का पोता है जिसका विवाह आदिती से हुआ । ऋषि कश्यप के पिता का नाम मरीचि था । सूर्य देव सुषुम्ना नामक किरण से आदिति के गर्भ मे बडे थे ।

आदिति के गर्भ मे बच्चा पल रहा था पर वह कठिन व्रत किया करती थी । बहुत दिन बित गए पर वह व्रत करती रही थी । इस कारण ऋषि कश्यप का आदिति ‌‌‌से झगडा हो गया वे कहने लगे तुम व्रत करकर इस बालक को क्यो मारने पर तुली हो ।

यह सुनकर आदिति ने कहा की आप यह क्या कह रहे है मेरे व्रत करने से इसे कुछ भी नही होगा । कुछ समय के बाद मे आदिति के गर्भ से एक शिशु का जन्म हुआ जो ज्वाला से भी तेज चमक रहा था । भगवान ‌‌‌सूर्य देव आदिति के गर्भ से जन्मे थे।

‌‌‌‌‌‌सूर्य देव व ‌‌‌संज्ञा का वापस मिलन

‌‌‌एक बार की बात है ‌‌‌संज्ञा अपने पति सूर्य देव के तप को सह नही ‌‌‌सकती थी इस लिये वह एक दिन अपनी छाया रुपी ओरत का निर्माण किया और कहा की तुम सूर्य देव के पास रहो और सारे सुख का अपयोग करो पर इस बारे मे कभी भी किसी को मालूम नही होना चाहिए की तुम संज्ञा नही हो ।

‌‌‌ऐसा कहकर संज्ञा अपने मायके लोट गई थी । वहा पर जाते ही दक्ष ने संज्ञा को समझाते हुए कहा की विवाह के बाइ चाहे केसे भी दिन आ जाये पर अपने पति को नही छोडना चाहीए ।

पिता के ऐसे कहने पर संज्ञा को क्रोध आया ओर वह घोडे का रुप धारण कर वहा से हिमालय पर जाकर तप करने लग गई थी ।

‌‌‌सूर्यदेव को संवर्णा से पाच पुत्रो की प्राप्ति हुई और एक दिन शनिदवे ने अपनी माता संवर्णा से कहा की माता मुझे बहुत ही ‌‌‌भुख लगी है मुझे खाना लाकर दो ।तब संवर्णा ने कहा की पहले भगवान की पूजा कर लो उसके बाद मै तुम्हे खाना लाकर दे दुगी ।

‌‌‌मगर शनिदेव ने कहा की मुझे अभी खाना चाहिए ऐसी रट लगाने लग गया था और वह संवर्णा को ऐसा कहते हुए लात दिखा दी थी ।तब संवर्णा ने शनिदेव को श्राप दिया की तेरी यह टाग टुट जाऐगी ।

शनि ऐसा सुनकर बहुत ही घबरा गया और सूर्य देव को सारी बात बता दी थी ।‌‌‌ सूर्य देव ऐसा सुनकर ‌‌‌सोचने लग गए की ‌‌‌संज्ञा अपने पुत्र को श्राप केसे दे सकती है यह अवश्य ही कोई और ही है ।

ऐसा सोचकर वे ध्यान करने के लिये बेठ गये और कुछ समये के बादे अन्होने देखा की वह संज्ञा नही है । वह संज्ञा की छाया है । ‌‌‌सूर्यदेव संवर्णा के पास गये और कहा की संज्ञा कहा पर है ।तब संवर्णा ने कहा की मै ही तो संज्ञा हू आप यह मुझसे कह रहे है की मै ‌‌‌संज्ञा नही हू ।

इतने दिनो तक मै ही तो आपके साथ हू मै ही संज्ञा हूं । सूर्य देव को ऐसा सुनकर क्रोध आ गया जिससे संवर्णा घबरा कर सारी बातो को बता दिया । ‌‌‌तब सूर्य देव ने ‌‌‌शनि से कहा की श्रापित की बात तो टल नही सकती है पर तेरा ‌‌‌पैर पुरा न टुटकर केवल ऐक हड्डी ही टुट कर रह जायेगी ।

ऐसा कहकर वे हिमालय की ओर एक अश्व का रुप धारण कर चल पडे वे वहा पर बहुत फिरे पर संज्ञा का पता नही चल सका था । तब संज्ञा को ज्ञात हुआ की अश्व के रुप में सूर्य देव मुझे लेने के लिये आये है ।

सूर्य देव को देखकर वह बहुत ही खुश हो गई पर वह वहा से जाना नही चाहती थी क्योकी उसका तप अभी भी चल रहा था ।वह चाहती थी की वह तप कर कर वहा से ही जायेगी ।इसी कारण वह घोडी का रुप लेकर वहा से बचने के बारे मे सोचने लगी और उसने एसा ही किया था ।

‌‌‌सूर्य देव वहा पर उसे ‌‌‌ढुढने लगे पर वहा पर वह नही मिल सकी ।फिर उन्होने देखा की वहा पर बहुत घोडे खडे थे तो वे सोचने लगे की संज्ञा घोडे का रुप तो धरण कर सकती है पर उसके पैर एक ‌‌‌स्त्री के निसान छोडते है ।

वे वहा पर ‌‌‌देखने लगे की वहा पर कोई ‌‌‌स्त्री के पैरो के निसान है की नही । कुछ समय के बाद मे एक स्त्री के पैरो के निसान देखे तो सूर्य देव ने कहा की देवी संज्ञा सामने आ जाओ ‌‌‌मै जानता हूं की तूमने एक घोडे का रुप धारण कर रखा है ।

ऐसा सुनकर संज्ञा ने अपना रुप ले लिया । बादमे उनके दो पुत्र हुए जिनका नाम अश्वि देव और वैघ्य्स्वत था ।‌‌‌इस प्रकार देवी संज्ञा का सूर्यदेव से वापस मिलन हो सका ।

सूर्य ग्रह के बारे मे

सुर्य देवता के द्वारा ही संसार मात्र मे प्रकाश फेलता है । दिन व रात का समय यही ‌‌‌तय करते है जब दिन उगता है तो सूर्य उदय हो जाता है और रात के समय सूर्य अस्त हो जाता है । जब दिन होता है तो सभी जीव जन्तु अपना पेट भरने के लिये चले जाते है ।

और रात के समय सभी अपना कार्य पूरा कर अपने निवास स्थान की ‌‌‌ओर लोट आते है व अपना पेट भर कर सभी ‌‌‌आराम करते है । इन्हे कालचक्र कहा जाता है ।ये आत्मा है अगर यही नही हो तो इस संसार मै केवल अधकार के अलावा कुछ भी नही रहता है । इनके कारण ‌‌‌पूरा संसार चलता है ।इसे सौरमंडल का प्रथम ग्रह  माना जाता है ।

सौरमंडल ग्रह आदि सूर्य ‌‌‌ से हि शक्ति  पाकर अपना सहयोग इस संसार को चलाने मे देते है । सूर्य देव को इस संसार का शिक्तिग्रह माना जाता है । सिंह राशि का स्वामी,परमात्मा ने सूर्य को इस संसार मे उजाला फेलाने के लिये कार्य सोपा है ।

सूर्य देव को इस संसार मे जो भी कार्य हो रहा है उसका साक्षी माना जाता है । इस ‌‌‌ संसार सभी भले बुरे कार्य कों देखने के लिए ये हमसा तयार रहते है ।

सूर्य सभी को गलत काम करने के लिये रोकते है इन्हे आत्मा कहा जाता है इस कारण यह आत्मा की आवाज के रुप मे गलत कार्य को रोकने के लिये आवाज देते है ।

‌‌‌जो भी जातक अपने कार्य को गलत तरीके से करता है । जातक अपने पैसे व शक्ति का गलत अपयोग करते है व ‌‌‌धन दोत होने से अपने आप पर घमण्ड करने लग जाते है साथ ही अपने माता पिता की सेवा नही करते है उन्हे कष्ट देते है सूर्य अनकी राशी मे बैठ कर उन्हे कष्ट देते है ।

‌‌‌उनके धन रुपी माया को नष्ट कर देते है । वे करोडपति से रोड पर आकर रह जाते है । तब जाकर उहने अपने कर्मो को याद करना पडता है । वे जगह जगह पर भटकने लग जाते है पर उन्हे कोई रास्ता नही ‌‌‌मिलता है ।

जो जागत अपने कमो के बारे मे नही सोचते है वे निरन्तर ही बेबस लोगो पर अपना कष्ट ढालते रहते है । ‌‌‌उनकी आखो की रोशनी नष्ट कर देते है । वे कट फट कर रोने लग जाते है जब उन्हें अपने किये पर पछतावा होने लगता है तब उनके अच्छे दिन ‌‌‌शुरु होने लगते है ।

‌‌‌ जो लोग अपना पेट खली रखकर दुसरो को भोजन खिलाते है उन्हे सूर्य देव सदबुद्धि,विद्या,धन, और यश देते है । लोग उनकी पूजा करने ‌‌‌लग जाते है । उन्हे अपने पलको पर बैठाते है ।साथ हि हर बुरे वक्त मे ‌‌‌उनके आगे पिछे फिरने लग जाते है । 

सूर्य के कारण तो जीव जंतु अपना जीवन यापन करते है । इसी के कारण तो ‌‌‌ इस संसार मे वनस्पति है जिनका उपयोग कर ‌‌‌जीव जंतु जीवित है । जागत के हाथ मे अगर सूर्य रेखा न हो तो ‌‌‌वह‌‌‌ अपनी पुरीबातो के बारे मे जानकरी निकाल सकता है ।

वह अपना कार्य ही नही बलकी दुसरो का कार्य भी संकट मे ढाल सकता है वह अपराधी बन सकता है । सूर्य रेखा न होने के कारण धनवान के पास धन ‌‌‌नही रह सकता है ।पडने वाले को कुछ समये के बाद याद नही रह सकता है ।

पिता के साथ व गाव के साथ भी मत भेद रहने लग जाता है । सूर्य रेखा जिन जागत के पास है तो उन्हे यह ध्यान रखना चाहिए की सूर्य उनका पुरा सहयोग कर रहे है वे चाहते है की आप आगे बडते रहे और इस संसार के ‌‌‌जीव जंतु का भला करते रहे । ‌‌‌

सूर्यदेव की पूजा करने से सभी कार्य सही तरीके से होते है । सूर्य देव संसार भर मे ‌‌‌अपना प्रेम रूपी ‌‌‌रोसनी फलाते रहते है । इसी के कारण जीवन यापन सही तरीके से चल रहा है । सूर्य देव के तेज से ही तो आज मानव व अन्य जंतु देख सकते है ।

अगर कोई सूर्य का अपमान करे तो उसे इस संसार का सबसे बडा पापी कहा जाता है । सूर्य देव की ‌‌‌अग्नि से कोई भी नही बच सकता है ‌‌‌अगर वे चाहे तो पल भर मे इस संसार को नष्ट कर सकते है ।वे अपने बडे बडे आग के गोलो के द्वारा पापीयो का नास करते है ।

सूर्य देव के पुत्र शनि है जो आपस मे युद्ध भाव रखते है ।अगर कोई यह सोचकर इस संसार मे पाप किया जा रहा है । कि कोई उसे नही देखता है तो ‌‌‌वे ‌‌‌उस पापी को कड़ी से कड़ी सजा देते है जैसे एक बार एक सेठ था उसके पास बहुत धन था वह सेठ अपने खेतो मे कुछ लोगो को लेजाकर अपना काम कराया करता था ।

 वह सेठ बहुत ही लालची था ।जब काम करने का समय पुरा हो जाता तो वह उन लोगो को कुछ बाहना बनाकर दो तिन घण्टे ‌‌‌ओर काम कराया करता था ।अगर काम नही  ‌‌‌करते तो वह उन लोगो को पैसे नही देता था और साथ ही उन सभी के घर खेत उस सेठ के पास गिरवी पड़े थे ।

जिससे वे उस सेठ को काम करने से मना भी नही कर ‌‌‌सकते थे । वे बहूत ही निरास होने लगे उन्हे समय पर खाना भी नही मिलता था । ‌‌‌उनमे से कुछ लोग वहा से किसी और गाव चले गये थे ।

‌‌‌एक दिन वे सभी लोग एक साथ होकर बोले की तेरे पाप समाप्त होने वाले है ।इस संसार मे यह नही सोचना चाहिए की हमारा कोई कुछ नही कर सकते है । इस संसार को चलाने के लिये जैसे सूर्य की जरूरत है ।

जो अपनी रोसनी से इस संसार भर मे रोसनी फैलाने की ताकत रखते है ।वह कुछ भी कर ‌‌‌सकते है । ऐसा कहकर वे लोग रोजाना ही ‌‌‌ सुबह सूर्योदय से पहले उठकर जब सूर्य उगता था तो उसके सामना रोजाना पानी का कलश ढालने लग गए और एक दिन सूर्य देव ने उस सेठ कि आखे ‌‌‌अपनी तेज रोसनी से छिन ली व उसे रासते पर भिख मागने की कगार पर लाकर छोड दिया था ।

इसी तरह इस संसार मे जो भी होता है उसे सूर्य देव देखते है । ‌‌‌सूर्य देव से आज तक कोई नही बच सका है । वे पापी को सजा देते है व जो लोग भग्ति के सागर मे ढूबे रहते है उनकी साहयता के लिये वे हमसा ही तयार रहते है ।

This post was last modified on August 2, 2020

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