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    Home»psychology»चिंतन क्या है और यह कितने प्रकार का होता है। type of thinking
    psychology

    चिंतन क्या है और यह कितने प्रकार का होता है। type of thinking

    arif khanBy arif khanAugust 11, 2023No Comments8 Mins Read
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    type of thinking
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    चिंतन एक ऐसी मानसिक प्रक्रिया होती है जिसमे वातावरण के अंदर मिलने वाली सूचनाओं का जोड़ व तोड़ किया जाता है। या चिंतन प्रतिकों और प्रतिमाओं का जोड़ व तोड़ है। ‌‌‌मतलब कि हम जब चिंतन करते हैं तो अनेक चीजों को जोड़ते हैं घटाते हैं। और इसी तरह से करते हुए अपने चिंतन को एक दिसा देते हुए चले जाते हैं। इन सब को आइए एक कहानी के माध्यम से समझने का प्रयास करते हैं।ताकि आप बेहतर ढंग से चीजों को समझ पाओगे । ‌‌‌

    chintan ke prakar

    कहा जाता है कि एक बार शेखर चिल्ली को कहीं से कुछ आटे का घड़ा मिल गया । शेखर चिल्ली उस आटे के घड़े को सर पर उठाकर चल रहा था। और चलते चलते कल्पना करने लगा या चिंतन करने लगा कि वह इस आटे को बेचेगा तो पैसे बनेंगे और उसके बाद बाजार से अच्छे कपड़े खरीदेगा और आटा बेचने से आए पैसों से अच्छा ‌‌‌बिजनेस करेगा। और उसकी भी एक अच्छी बीवी होगी । उसके बाद अचानक से उसको ठोकर लगी और सारा आटा जमीन के उपर भिखर गया । दोस्तों शेखर चिल्ली का कल्पना करना ही एक तरह का चिंतना है। आप खुद भी इसी प्रकार से कल्पना करते हो अपनी कल्पना के अंदर कुछ सीन जोड़ते हो और उसके बाद कुछ बेकार सीन को हटा देते ‌‌‌देते हो । जैसे आपको कल क्या करना है? बहुत से लोग इस प्रकार की कल्पना करके आज सोते हैं। वैसे कल्पना का हमारे जीवन के अंदर बहुत अधिक महत्व है। यदि एक इंसान चिंतन नहीं करेगा तो उसका काम नहीं चल पाएगा । आपको बतादें कि कल्पना करना भी एक प्रकार का चिंतन है।

    type of thinking

    Table of Contents

    • chintan ke prakar चिंतन के प्रकार
    • स्वली चिंतन [autistic thinking]
    • यर्थाथवादी चिंतन [realistic thinking]
    • 1. अभिसारी चिंतन [convergent thinking]
    • 2.सर्जनात्मक चिंतन  [creative thinking]
    • 3.आलोचनात्मक चिंतन [evaluating thinking]
    • चिंतन का महत्व

    chintan ke prakar चिंतन के प्रकार

      चिंतन कई प्रकार का होता है

    । 1. स्वली चिंतन [autistic thinking] 2. यर्थाथवादी चिंतन [realistic thinking]  

    स्वली चिंतन [autistic thinking]

    स्वली चिंतन [autistic thinking]

    स्वली चिंतन वैसे चिंतन को कहा जाता है। जिसमे व्यक्ति अपनी कल्पनाओं और इच्छाओं की अभिव्यक्ति करता है।जैसे यदि कोई छात्र यह कल्पना करता है कि पढाई खत्म हो जाने के बाद वह बड़ा अफसर बनेगा । उसके पास एक सुंदर बंगला होगा । चमचमाती कार होगी । तो यह स्वली चिंतन का उदाहरण है।  इसके अंदर किसी समस्याकासमाधान नहीं होता है।  

    दोस्तों जब किसी को कुछ समझ मे ना आए तो इसको समझने का एक ही फंड़ा है। उस चीज को खुद पर लागू करो ।स्वली चिंतन को हम अपने जीवन के अंदर सबसे ज्यादा बार प्रयोग करते हैं। हम अपने जीवन के अंदर जितनी भी कल्पना करते हैं। वह स्वली चिंतन कहलाता है। ‌‌‌मतलब की यह एक कल्पना का नाम है। जैसे आप कल्पना करते हैं कि आप कल अपनी पत्नी को घूमाने के लिए लेकर जाएंगे और वहां पर उनके साथ मजे करेंगे । इसके अलावा आप सोचते हैं कि एक दिन आपके पास बहुत सारा धन होगा और आपके पास कई गाड़ियां होगी यह सब स्वली चिंतना के उदाहरण हैं। मतलब कल्पना जिसका तर्क ‌‌‌से नहीं है। वह स्वली चिंतन का ही उदाहरण है।

    यर्थाथवादी चिंतन [realistic thinking]

    यह वैसा चिंतन है जिसका संबंध वास्तविकता से होता है। इसके द्वारा किसी समस्या का समाधान किया जाता है।  जैसे कोई व्यक्तिकार के अंदर बैठ कर सफर कर रहा है। अचानक उसकी कार रूक जाती है तो उसके दिमाग के अंदर पहला ‌‌‌प्रश्न आता है कार कैसे रूकी । फिर वह इस समस्याकेसमाधान के लिए चिंतन करता है। यह चिंतन तीन प्रकार का होता है। यर्थाथवादी चिंतन एक ऐसा चिंतन है जब हमे हमारे दिमाग को किसी एक दिशा के अंदर सोचने के लिए विवश करना पड़ता है। किसी भी तरीके की समस्या यदि हमारी जिंदगी के अंदर आ जाती है।

    और उसका हम समाधान करना चाहते हैं तो हमे यर्थाथवादी चिंतन करना होता है। ‌‌‌जैसे पीछले दिनों मेरा कम्पयूटर खराब हो गया था तो उसके बाद मैं यह सोचने लगा कि इसको कैसे ठीक किया जा सकता है। और अंत मे वह ठीक नहीं हुआ तो उसके बाद मैं उसे रिपेयर के पास लेकर गया । मतलब आपके जीवन के अंदर जब जब कोई भी समस्या आएगी तब तब यही चिंतना होगा आप भले ही करना ना चाहो लेकिन उसके बाद ‌‌‌हो जाएगा ।

    1. अभिसारी चिंतन [convergent thinking]

    2. सर्जनात्मक चिंतन [creative thinking]

    3. आलोचनात्मक चिंतन [evaluating thinking]

    1. अभिसारी चिंतन [convergent thinking]

      ‌‌‌इस चिंतन के अंदर व्यक्ति किसी दिये गए तथ्यों के आधार पर किसी ‌‌‌निष्कर्स पर पहुंचता है। यदि आप से पूछा जाए कि 2 व 3 को जोड़ने पर कितना आएगा तो इस समस्याकेसमाधान मे अभिसारी चिंतन का प्रयोग होगा ।  

      अभिसारी चिंतन के अंदर आपको कुछ चीजें दी होती हैं। जैसे आपने गणित नहीं पढ़ी होगी । सारी गणित इसी प्रकार के चिंतन पर आधारित होती है। इसके अंदर आपको एक सवाल दिया होता है। और उसके बाद आपको उस सवाल को हल करना होता है। एक पुलिस इसी चिंतन के आधार पर काम करती है। ‌‌‌अपराधी को पकड़ने के लिए पुलिस के पास केवल कुछ तथ्य होते हैं। और उन्हीं तथ्यों के आधार पर पुलिस को मुजलिम तक पहुंचना होता है।

    2.सर्जनात्मक चिंतन  [creative thinking]

      इस चिंतन के अंदर व्यक्ति को कुछ तथ्य तो दिए होते हैं उनमे अपनी और से एक तथ्य जोड़कर ‌‌‌निष्कर्स निकाला जाता है। जैसे किसी व्यक्ति को कलम का असाधारण प्रयोग करने को कहा जाए । तब व्यक्ति को इसमे अपनी ओर से कुछ जोड़ना होता है।  

    सर्जनात्मक चिंतन का मतलब आप जानते ही हैं। कुछ नया करना अब कुछ नया करने के अंदर कई चीजे आती हैं। जैसे जेम्स वॉट को  भाप इंजन के बारे मे बहुत कुछ पता चल ‌‌‌कोई भी वैज्ञानिक यदि किसी भी चीज का आविष्कार करता है। और कोई भी लेखक यदि किसी नई बुक को लिखता है तो यही सर्जनात्मक चिंतन कहा जाता है।गया था और उसके बाद उसने इंजन के अंदर सुधार करते हुए । एक चलने वाला इंजन तैयार कर दिया ।

    3.आलोचनात्मक चिंतन [evaluating thinking]

    3.आलोचनात्मक चिंतन [evaluating thinking]

    किसी वस्तु या तथ्य की सचाई को स्वीकार करने से पहले उसके गुण दोस को पूरी तरह से परख लेना ही आलोचनात्मक चिंतन का उदाहरण है। हमारे समाज के अंदर कुछ व्यक्ति तो ऐसे हैं जो किसी भी बात को बिना सोचे समझे ही स्वीकार कर लेते हैं। तब यह कहा जा सकता है कि उनमे आलोचनात्मक चिंतन power कमजोर है।

    ‌‌‌आलोचना का मतलब होता है किसी की बुराई को बताना या किसी की कमियों को तलास करने के लिए सोचना । एक औरत जब किसी दूसरी औरत के पास बैठती है तो वे दोनों मिलकर किसी तीसरी औरत की कमियों को निकालने के लिए अपना दिमाग दौड़ाती हैं। इसी तरीके से ‌‌‌कुछ विद्वान लोग किसी सिद्वांत या बुक के अंदर कमियां निकालने के लिए आलोचनात्मक चिंतन का प्रयोग करते हैं। ‌‌‌और आजकल तो राजनीति के अंदर आलोचनात्मक चिंतन का प्रयोग सबसे अधिक होने लगा है । एक पार्टी दूसरी पार्टी की बुराई करने के लिए भी आलोचनात्मक चिंतन का प्रयोग करती है।

    चिंतन का महत्व

    दोस्तों चिंतन सोच विचार और तर्क वितर्क मानसिक क्रियाएं होती हैं। यदि आप चिंतन करते हैं ,तो इसका हर क्षेत्र के अंदर काफी अधिक महत्व होता है। चिंतन के बिना कुछ भी नहीं हो सकता है। तो यहां पर हम आपको चिंतन के कुछ महत्व के बारे मे बता रहे हैं , तो आइए जानते हैं , चिंतन के महत्व के बारे मे विस्तार से ।

    • शिक्षा की समस्याओं को हल करने मे भी चिंतन का प्रयोग किया जाता है। जैसे कि आप एक स्टूडेंट हैं , तो आप किसी सवाल को हल करना चाहते हैं , तो यह कैसे हल होगा ? इसके बारे मे आपको चिंतन करना होगा ​ , बिना चिंतन के आप उस सवाल को हल नहीं कर सकते हैं। किसी भी तरह के सवाल को हल करने के लिए हमे चिंतन की जरूरत होती है। कहने का मतलब यही है कि शिक्षा का काम ही चिंतन से शूरू होता है।
    • ​सामाजिक समस्याओं के अंदर भी चिंतन का काफी अधिक महत्व होता है। समाज के अंदर कई तरह की समस्याएं आती हैं। और उन समस्याओं को हल करने के लिए चिंतन का प्रयोग किया जाता है। आप बिना चिंतन के उन समस्याओं का हल नहीं कर सकते हैं। यदि आपके रिश्तों के अंदर कोई समस्या है ,तो उसके लिए भी आपको चिंतन का प्रयोग करना होगा ।
    • वैज्ञानिक रिसर्च आदि के अंदर भी चिंतन काफी अधिक महत्व रखता है। जैसे कि कोई रिसर्च कर रहा है , तो चीजों को समझने के लिए वह चिंतन करता है , और उसके बाद किसी नतीजे पर पहुंचता है। बिना चिंतन के रिसर्च करना संभव ही नहीं है। आप इस बात को समझ सकते हैं।
    • न्यायिक क्षेत्र के अंदर भी चिंतन का महत्व होता है। जो जज होता है , उसके सामने सबूत रखे जाते हैं। और उन सबूतों के आधार पर कोई जज यह निर्णय करता है , कि उसको क्या करना चाहिए  ? किस तरह का निर्णय देना चाहिए । इसके लिए जज चिंतन की मदद लेते हैं। और फिर अपने विवेक की मदद से निर्णय देते हैं।
    arif khan
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