बुद्वि के प्रमुख सिद्वांत

बुद्वि की पूर्ण रूप से व्याख्या तब हो पाती है जब हम बुद्वि के सिद्वांतों के बारे मे जानते होंगे अनेक वैज्ञानिकों ने बुद्वि की पूर्ण व्याख्या करने के लिए अनेक सिद्वांतों का प्रतिपादन किया है। जिनको मुख्य रूप से दो प्रकार के अंदर बांटा जा सकता है।

1. Factorial theory

2. Process oriented theory

‌‌‌कारकिये सिद्वांत [ Factorial theory]

बुद्वि के प्रमुख

इन सिद्वांतों के अंदर उन मनोवैज्ञानिकों को रखा गया है।जिन्होंने बुद्वि की व्याख्या एक संगठन के रूप मे की है। इस के अंदर दो प्रकार के सिद्वांत देखने को मिलते हैं। जिनमेसे पहला है। जिन्हें पिण्डक कहा जाता है। पिण्डक मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि बुद्वि ‌‌‌किसी तरह की समस्या समाधान करने और तर्क करने की एक संगठित क्षमता है। वही इसके अंदर स्पीयरमैन का मत है कि किसी भी संज्ञानात्मक कार्य पर के निष्पादन का आधार प्रथमिक सामान्य कारक हैं।‌‌‌वहीं दूसरे समूह को विभाजक समूह कहा जाता है। इस मत को मानने वाले मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि बुद्वि एक संगठित ताकतों का योग नहीं है वरन इसके अंदर कई सारी ताकते मिली हुई हैं जोकि अलग अलग विकसित होती है। इस मत का समर्थन करने वाले मनौवेज्ञानिकों के अंदर कैटल थर्नडाईक आदी हैं।

‌‌‌स्पीयरमैन द्विकारक सिद्वांत [ two factor theory ]

इस सिद्वांत का प्रतिपादन स्पीयरमैन ने सन 1904 के अंदर किया था । स्पीयर मैने ने बुद्वि की व्याख्या दो कारकों के रूप मे की है। जिसमे से एक कारक को सामान्य कारक और दूसरे कारक को विशिष्ट कारक कहा जाता है।‌‌‌इस सिद्वांत के अनुसार कारक का तात्पर्य यह होता है कि प्रत्येक व्यक्ति के अंदर सामान्य कार्य करने की क्षमता अलग अलग होती है। यही कारण है की कारक को स्पीयरमैन ने मानसिक उर्जा की संज्ञा दी है। कारक जितना अधिक होगा व्यक्ति उतने ही अधिक मानसिक कार्यों को करने मे सक्षम होगा ।‌‌‌इस सिद्वांत के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति के अंदर जी कारक की क्षमता अलग होती है। और जी कारक पर किसी भी बाहरी चीजों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। स्पीयर मैन के अनुसार जी कारक जन्म जात होता है।‌‌‌स्पीयरमैन के अनुसार पत्येक मानसिक कार्य करने मे कुछ विशिष्टता की जरूरत पड़ती है। जिसको स्पीयर मैन ने एस कारक की संज्ञा दी है। उसने एस कारक के बारे मे निम्न बातें बताई हैं।

‌‌‌1. एस कारक का स्वरूप परिवर्तनशील शील होता है। एक कार्य करने मे एक प्रकार के एस कारक का और दूसरे प्रकार का कार्य करने मे दूसरे प्रकार का एस कारक का प्रयोग होता है।

  1. एस कारक पर परीक्षण आदि का प्रभाव अधिक पड़ता है। व्यक्ति को परशिक्षित करके उसके एस कारक की मात्रा को बढ़ाया जा सकता है।

‌‌‌थर्स्टन का समूह कारक सिद्वांत [Thurston group factor theory ]

‌‌‌इस सिद्वांत का प्रतिपादन सन 1938 के अंदर किया गया था । यह बिल्कुल ही स्पष्ट है की थर्स्टन ने इस सिद्वांत का प्रतिपादन बिल्कुल धीरे धीरे किया था और बाद मे इसमे संशोधन किया गया ।

‌‌‌इस सिद्वांत के अनुसार बुद्वि की व्याख्या केवल दो कारकों के आधार पर ही नहीं की जा सकती ।वरन बुद्वि के अंदर कई कारक होते हैं। एक प्रधान कारक भी होता है जोकि सभी मानसिक ताकतों को एक सूत्र के अंदर बांधा जाता है।‌‌‌इस सिद्वांत के अनुसार प्रत्येक प्रकार की मानसिक क्षमताओं को नेत्रत्व करने वाले एक प्रधान कारक होता है। और उसके नीचे कई सारे कारक होते हैं।

यानि हर एक मानसिक क्षमताओं का एक प्रधान कारक होता है।‌‌‌प्रधान कारक आपस मे स्वतंत्र होते हैं किंतु वे अपने नीचले कारकों के साथ सहसंबंध मे होते हैं। दिमाग के अंदर कई सारी मानसिक क्षमताओं के समूह होते हैं।

‌‌‌यह क्षमताएं कई प्रकार की होती हैं। जिनमेसे कुछ निम्न लिखित हैं।

  1. शाब्݆िदक अर्थ क्षमता

2.शब्द प्रवाह क्षमता

3.आंकिक क्षमता

4.तर्क क्षमता

‌‌‌बहुकारक सिद्वांत [ multiple factor theory ]

‌‌‌इस सिद्वांत के अंदर गिलफोर्ड और थॅर्नडाईक के सिद्वांतों को रखा गया है। थॅर्नडाईक के अनुसार बुद्वि केवल दो तत्वों के मिलने से नहीं बनती है। वरन इसके अंदर कई सारे तत्वों का योग होता है। प्रत्येक कारक एक विशिष्ट मानसिक क्षमता का प्रतिनिधित्व करते हैं। जिस प्रकार से ईंटों के मिलने से ‌‌‌मकान बनता है।

कई सारी ईंटे मिलकर एक मकान का प्रतिनिधित्व करते हैं। उसी प्रकार कई सारे तत्व मिलने के बाद बुद्वि का निर्माण होता है। ‌‌‌थॅर्नडाईक के सिद्वांत के अनुसार विभिन्न मानसिक क्षमताओं के बीच सहसंबंध का कारण जी कारक नहीं होता है। वरन उनकी मानसिक प्रक्रियाओं के बीच कई सारे उभिनिष्ठ तत्व पाए जाते हैं। यह उभिनिष्ठ तत्व जितने अधिक होगे । सहसंबंध अधिक अच्छे होंगे ।

‌‌‌मानलिजिए कोई एक्स कार्य को करने के लिए 10 तत्वों की जरूरत है तो 8 ऐसे तत्व हैं जोकि दोनों प्रकार की मानसिक कार्य करने मे उभयनिष्ठ हैं ऐसी स्थिति के अंदर दोनों कार्यों के बीच उच्च सह संबंध होगा ।

Cattel theory

‌‌‌इस सिद्वांत के अनुसार बुद्वि दो प्रकार की होती है। एक तरल बुद्वि और दूसरी ठोस बुद्वि तरल बुद्वि स्पीयर मैन के जी कारक के समान होती है। और इसका निर्धारण वंशानुगत होता है। और इस पर बाहरी वातावरण का कोई प्रभाव नहीं होता है।

‌‌‌तरल बुद्वि की मदद से व्यक्ति अधिक सीखता है। तरल बुद्वि का निर्धारण जन्म से होता है। ठोस बुद्वि उसी ज्ञान को भी कहा जाता है जिसकों व्यक्ति अपने जीवन काल के अंदर अर्जित करता है। जैसे जो कुछ भी हम सीखकर करते हैं वह ठोस बुद्वि है। ‌‌‌ठोस बुद्वि का विकास बचपन मे कम होता है। लेकिन तरल बुद्वि का विकास बचपन मे अधिक होता है।

2. Process oriented theory

‌‌‌सन 1960 के अंदर बुद्वि की व्याख्या बुद्वि कारकों के द्वारा काफी प्रभावित हुई थी। लेकिन जब संज्ञानात्मक मनौविज्ञान का विकास हुआ तो बुद्वि के नए नए सिद्वांत निकलकर आने लगे । इन सिद्वांतों की प्रमुख विशेषता बुद्वि को कारकों के रूप मे न करके । विभिन्न प्रक्रियाओं के रूप मे की गई।

‌‌‌पीयाजे का सिद्वांत

‌‌‌पीयाजे ने सिद्वांत को 1920 के अंदर ही प्रतिपादित किया जा चुका था किंतु उस समय यह सिद्वांत लोक प्रिय हुआ जब 1970 के अंदर इसका विस्तारित रूप सामने आया ।‌‌‌पीयाजे के अनुसार बुद्वि एक अनूकुली प्रक्रिया है जिसके अंदर जैविक प्रक्रिया और वातावरण के साथ होने वाली अंतक्रियाएं भी शामिल होती हैं। ‌‌‌जैसे जैसे व्यक्ति का संज्ञानात्मक विकास होता है । वैसे वैसे उनका बौद्विक विकास भी होता है। पीयाजे ने संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं के विकास को चार अवस्थाओं के अंदर बांटा है।

ज्ञानात्मक क्रियात्मक अवस्था के अंदर बालक जब 2 साल तक का होता है ।

‌‌‌मानलिजिए जब बालक बर्तन को देखता है तो वह उसको टच करता है तो आवाज निकलती है। वह उस आवाज के साथ सहसंबंध स्थापित करता है।

‌‌‌प्राकप्रचलनात्मक अवस्था

2से 7 साल की अवस्था को पीयाजे ने इसके अंदर रखा है। इसके अंदर बच्चों के प्रतिमा संकेतों का विकास होता है और व्यक्ति चिंतन और तर्क का विकास करता है। इस अवस्था के अंदर बच्चे नीर्जिव चीज को जीवित समझने लग जाते हैं। जैसे पंखे को देखना गाड़ी को देखना आदि ।

‌‌‌मूर्त प्रचलनात्मक अवस्था

यह अवस्था 7 से 11 साल के बीच की होती है। इस अवस्था के अंदर बच्चा भार वजन उम्र रंग आदि के बारे मे जानने लग जाते हैं। ‌‌‌इस अवस्था के अंदर बच्चा जटिल चिंतन करने लग जाता है।

‌‌‌स्टर्न बर्ग का त्रितर सिद्वांत

यह सिद्वांत स्टर्न बर्ग ने 1985 के अंदर प्रतिपादित किया था । इसके अनुसार बुद्वि को आलोचनात्मक ढंग से बुद्वि को सोचने की क्षमता के रूप मे समझा जा सकता है।

‌‌‌बुद्वि के सिद्वांत के अंदर इस बात पर ध्यान केंद्रित करता है कि जब व्यक्ति तर्क करता है तो उसके दिमाग मे क्या होता है।

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arif khan

‌‌‌हैलो फ्रेंड मेरा नाम arif khan है और मुझे लिखना सबसे अधिक पसंद है। इस ब्लॉग पर मैं अपने विचार शैयर करता हूं । यदि आपको यह ब्लॉग अच्छा लगता है तो कमेंट करें और अपने फ्रेंड के साथ शैयर करें ।‌‌‌मैंने आज से लगभग 10 साल पहले लिखना शूरू किया था। अब रोजाना लिखता रहता हूं । ‌‌‌असल मे मैं अधिकतर जनरल विषयों पर लिखना पसंद करता हूं। और अधिकतर न्यूज और सामान्य विषयों के बारे मे लिखता हूं ।