टिटहरी पारस पत्थर कहां से लाती है पारस पत्थर के रहस्य

‌‌‌इस लेख के अंदर हम बात करने वाले हैं पारस पत्थर (philosopher’s stone) के रहस्य के बारे मे और टिटहरी पारस पत्थर कहां से लाती है ? जैसी किवदंती के बारे मे ,पारस पत्थर का विचार किस प्रकार से गढ़ा गया और इससे जुड़ी क्या कहानियां मौजूद हैं।

पारस पत्थर के रहस्य को आज तक कोई नहीं जान पाया है। लेकिन हर कोई इसकी कल्पना करता है कि उसे कोई ऐसा चमत्कारी पत्थर मिल जाए जिसकी मदद से वह सोना बना सके और उसके बाद उसकी मदद से अमीर बन सके । लेकिन अभी तक ऐसा कोई पत्थर नहीं मिला है।

हमारे धर्म ग्रंथों के अंदर वैसे तो कई प्रकार की रहस्यमय मणियों के बारे मे लिखा गया है। जिसमेसे एक है । पारस मणि इस मणि के बारे मे यह कहा जात है कि यदि कोई लौहे को यह मणि छू ले तो लौहा सोना बन जाता है।

‌‌‌हांलाकि इसमे कितनी सच्चाई है। इसका तो पता नहीं है। लेकिन इस पारस पत्थर के अंदर ऐसी कुछ ताकते होती हैं जोकि लौहे को सोने के अंदर बदल देती हैं। जाहिर सी बात है। इस तरह की मणि को कौन नहीं लेना चाहेगा । भारत के अंदर इस पारस पत्थर को काफी खोजा गया है। लेकिन अभी तक यह किसी को मिली नहीं है।पारस मणि

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‌‌‌प्राचीन लोग प्रयोग करते थे

कुछ पौराणिक कथाओं के अनुसार प्राचीन साधुओं के पास यह मणि (पारस पत्थर) होती थी। वे कई बार मणि को हिमालय से लाते थे और अपने शिष्यों को दान कर देते थे । हांलाकि आधुनिक युग के अंदर अभी तक इस मणि के बारे मे कुछ पता नहीं चल पाया है। भारत के अंदर आने वाले कुछ राजाओं ने भी इस मणि ‌‌‌को मरते दम तक खोजा था।

जिसमे मौहम्द गौरी जोकि धन का लालची था । वह अपनी पूरी उम्र पारस मणि को खोजने मे बिता दिया था। उसने यह मणि हासिल करने के लिए कई बार युद्व लड़े थे । किंतु यह उसे नहीं मिली । और भी देसी राजाओं ने और लोगों ने इसको खोजने की काफी कोशिशें की थी।

‌‌‌कहां पर है पारस मणि

हांलाकि पौराणिक कथाओं के अनुसार पारस मणि हिमालय के अंदर पाई जाती है। लेकिन इसे कोई पहचान नहीं सकता है। क्योंकि वहां पर इसके जैसे कई और पत्थर भी मौजूद हैं। हांलाकि यम मणि रात के अंदर चमकती है।

‌‌‌पारस पत्थर से जुड़ी एक ‌‌‌अन्य कहानी

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मध्य प्रदेस के एक दानवारा गांव के अंदर एक कुए मे रात को रोशनी दिखाई देती है। वहां के लोगों का यह मानना है कि वह पारस मणि की रोशनी ही हो सकती है। कुछ लोगों का कहना है कि बहुत साल पहले यहां पर एक साधु आया था । जिसके पास पारस मणि थी। चुराने के डर से वह उसे ‌‌‌कुए के अंदर फेंक गया । हांलाकि अभी तक वहां के लोग मणि तक नहीं पहुंच सके हैं।

टिटहरी पारस पत्थर कहां से लाती है

‌‌‌टिटहरी के बारे मे आप जानते ही होंगे ।टिटहरी जमीन पर ही रहती है और वहीं पर अपना घोसला बनाती है। कुछ लोगों का यह माना जाता है कि इसको पारस पत्थर की जानकारी होती है। और यह अपने अंडों को फोड़ने के लिए पारस पत्थर का इस्तेमाल करती है। यदि आप किसी जगह पर टिटहरी के अंडे देखते हैं तो उनकी ‌‌‌निगरानी कर सकते हैं। हालांकि यह कितना सच है? इस बारे मे कुछ नहीं कहा जा सकता है।

पारस पत्थर कैसा होता है ? How is philosopher’s stone

पारस पत्थर कैसा होता है

पारस पत्थर के बारे मे यह कहा जाता है कि यह काले रंग का होता है और सुगंधित पत्थर होता है। जो लोहे को सोना बना सकता है। हालांकि विज्ञान के अनुसार ऐसा कोई पत्थर मौजूद नहीं होता है।किवदंती के अनुसार 13 वीं सदी के वैज्ञानिक और दार्शनिक Albertus Manus ने पारस पत्थर ‌‌‌ की खोज कर ली थी।

‌‌‌बकिरयों के खुर के लौहे के नाल बन जाते थे सोने के

पारस पत्थर के बारे मे अनेक प्रकार की कहानियां मिलती हैं। इसी संबंध मे एक कहानी यही भी है कि प्राचीन काल के अंदर चरवाहे बकरियों के खुरों मे लोहे के नाल ठोक देते थे और जब यही लौहा पारस पत्थर के संपर्क मे आता था तो वह सोना बन जाता था। हालांकि ‌‌‌ यह कितना सत्य है। इस बारे मे कुछ कहा नहीं जा सकता है।

‌‌‌संत खोज कर लाते थे पारस पत्थर

दोस्तों कई इस प्रकार की कथाएं भी मिलती थी जिसके अंदर संत पारस पत्थर को खोज कर लाते थे । खासकर वे संत जो हिमालय के अंदर रह कर तपस्या करते थे । वे उस पत्थर को अपने शिष्यों को देदिया करते थे ।

‌‌‌कौआ के पैरों मे लौहे के छल्ले डाल देना

प्राचीन काल की कहानियों के अंदर यह भी उल्लेख मिलता है।कि कौआ के पैरों के अंदर लौहे के छल्ले डाल दिये जाते थे और जब वही कौआ पारस पत्थर के आस पास बैठता था तो लौहा सोने के अंदर बदल जाता था।

प्राचीन भारतीय रसायानाचार्य नागार्जुन ने बनाया था पारस पत्थर

हालांकि यह अभी तक साफ नहीं हो पाया है कि पारस पत्थर एक रसायनिक संरचना था या पहले से ही बना हुआ । लेकिन कुछ लोग यह भी मानते हैं कि रसायानाचार्य नागार्जुन ने पारे से पारस पत्थर का निर्माण कर लिया था। झारखंड के गिरिडीह इलाके के पारसनाथ जंगल में आज भी लोग पारस मणि की खोज करते रहते हैं।

‌‌‌इस किले के अंदर मौजूद है पारस पत्थर

जैसा कि हमने आपको उपर बताया कि पारस पत्थर की कहानी बहुत ही दिलचस्प है।भोपाल से 50 किलोमीटर दूर रायसेन का किला है। और इसके बारे मे यह कहा जाता है कि यहां पर पारस पत्थर मौजूद है। और इस पत्थर की रखवाली खुद जिन्न करते हैं। ‌‌‌1200 ई के अंदर इस कीलो को बनाया गया था। और इसको बनाने के लिए बलुआ पत्थर का प्रयोग हुआ था।ऐसा माना जाता है कि राजा रायसेन के पास पारस पत्थर हुआ करता था।

‌‌‌इस पत्थर के लिए अनेक युद्ध लड़े गए थे ।और एक बार जब युद्य के अंदर राजा रायसेन हार रहा था तो उसने इस पारस पत्थर को कहीं पर छुपा दिया और किसी को नहीं बताया । बाद मे राजा रायसेन की मौत हो गई और उसके साथ ही पारस पत्थर का राज इस किले के अंदर दफन हो गया । ‌‌‌उसके बाद पारस पत्थर को खोजने के अनेक प्रयास किये गए लेकिन कोई भी उसको खोजने मे सफल नहीं हो पाया । कई लोग पारस पत्थर को खोजने के लिए इस किले के अंदर गए लेकिन उनमे से कुछ तो पागल ही हो गए ।

‌‌‌एक धातु को दूसरी धातु मे बदलना

‌‌‌आपको बतादें कि धातुओं को सोना बनाने का विचार कोई नया नहीं है। यह बहुत ही प्राचीन काल से चला आ रहा है। इस विचार की वजह से एक धातु को दूसरी धातु के अंदर बदलने के प्रयास हुए और इसके अंदर सफलता भी मिली । ‌‌‌प्राचीन काल की सभ्यताओं के अंदर सोने का उपयोग मिला है। इससे एक बात तो स्पष्ट हो जाती है कि यह लोग भी सोने को उपयोगी मानते थे । उसके बाद अलकेमी शब्द प्रयोग मे आया । जिसका मतलब था कि साधारण धातुओं को सोने के अंदर बदल देना ।

‌‌‌एक तरह से देखा जाए तो यह भी एक पारस पत्थर की तरह ही काम था। ग्रीक के दार्शनिक अरस्तू ने लिखा कि धरती पर पाये जाने वाले तत्व आग, हवा, पानी और धरती  को एक दूसरे के अंदर बदला जा सकता है। क्योंकि हरके पदार्थ के अंदर तत्वों की अलग अलग मात्रा होती है।हालांकि उस समय रसायन नहीं आया था। ‌‌‌उसके बाद अरस्तू ने लिखा कि यदि इन तत्वों के अंदर इस प्रकार से बदलाव किया जाए कि यह सोने के मूल तत्वों के अंदर मेल खा जाए तो फिर सोना बन जाएगा ।

‌‌‌उसके बाद समय ऐसे ही बीतता चला गया और धातु को सोना बनाने की विधि को  जादु टोना और रसायन  विज्ञान से जोड़कर देखा जाने लगा ।प्राचीन काल के अंदर धातु से सोना बनाने का प्रमुख उदेश्य इंसान के शरीर को अमर बनाना भी था। इन लोगों का उदेश्य यह भी था कि इससे इंसान का शरीर लंबे समय तक सुरक्षित रखा जा ‌‌‌ सकता है। ‌‌‌इसी प्रकार के पदार्थ को  फिलॉसॉफर स्टोन या पारस पत्थर के नाम से जाना जाता था।

‌‌‌भारत और दुनिया के कई देशों के लोग इस प्रकार की मान्यताओं पर यकीन करते थे इस वजह से वे पदार्थों के साथ नए नए प्रयोग किया करते थे । और अपने प्रयोगों को संकेतिक भाषा के अंदर लिखा भी करते थे । हालांकि उनको किसी प्रकार का पारस पत्थर तो नहीं मिला लेकिन उनके लिखे लेख से आधुनिक विज्ञान को   ‌‌‌ मदद जरूर मिली ।

 भारत मे अन्य धातुओं से सोना बनाने के प्रयोग

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भारत मे भी अन्य धातुओं से सोना बनाने के संबंध मे अनेक प्रयोग किये गए ।और इसके उपर ग्रंथ भी लिखे गए थे ।इनके अंदर सोना बनाने की अनेक विधियों के बारे मे जानकारी प्रदान की गई थी। चांदी से सोना बनाने के लिए पीले गंधक को पलाश की गोंद मे संशोधन किया जाना और फिर गंधक और चांदी को मिलाकर पकाना । ऐसा करने से क्रत्रिम सोने को आसानी से बनाया जा सकता है। इसी प्रकार से तांबे को भी सोने के अंदर बदलने की विधि इसके अंदर बताई गई थी। रसहृदय नामक एक ग्रंथ जो 8 वी शताब्दी के अंदर आया था । इसके अंदर पारे से सोना बनाने की विधि के बारे मे विस्तार से उल्लेख मिलता है।

‌‌‌यूरोप के अंदर धातुओं से सोना बनाने की विधियां

यूरोप के अंदर भी धातुओं से सोना बनाने की अनेक विधियां प्रचलित थी लेकिन बाद मे लोगों को यह पता चल गया का कोई भी विधि किसी धातु को पूर्ण रूप से सोने के अंदर नहीं बदल सकती है। और यह बनाया जाने वाला सोना 3 बार गर्म करने पर रंग छोड़ने लग जाता है। 16वीं सदी में वैज्ञानिकों ने बताया कि उनका मकसद धातु से सोना बनाने का नहीं है। वरन वह इन प्रक्रियाओं की मदद से इंसानी शरीर को रोग मुक्त करना चाहते हैं ताकि इंसान एक अच्छा और सुखी जीवन जी सके ।हालांकि धातु से सोना बनाने का लक्ष्य बहुत ही गौण है।

‌‌‌प्राचीन काल के अंदर धातु से सोना बनाने का प्रयास अधिकतर गरीब लोग ही करे थे जिनके पास अधिक पैसा नहीं होता था। और इस कार्य के अंदर कई बार इतना अधिक पैसा खर्च हो जाता था कि प्रयोगकर्ता के पास खाने तक के पैसे नहीं बचते थे । हालांकि उसके बाद भी उसके मुख पर उम्मीद की एक किरण बाकी रहती थी। ‌‌‌हालांकि इस प्रकार की योजनाओं के अंदर अमीर लोग बहुत ही कम अपना पैसा लगाते थे ।कई जगह पर धातु से सोना बनाने के असफल प्रयोगों का उल्लेख मिलता है।

‌‌‌कुछ समय बाद ही पदार्थ के सही स्वरूप की खोज विज्ञान ने की तो पता चला की पदार्थ के अंदर इलेक्ट्रोन प्रोटोन होते हैं। और इनकी संख्या के अलग होने से ही पदार्थ अलग अलग होता है। हालांकि इस प्रकार की थ्योरी आ जाने के बाद लोगों का पारस पत्थर जैसी चीजों पर यकीन कम हो गया था।

‌‌‌उसके बाद एल्फा और बीटा जैसे ‌‌‌कणों से यह पता चला कि नाभिक के अंदर प्रोटोने की संख्या बदलने से एक पदार्थ दूसरे पदार्थ के अंदर बदल जाता है। हालांकि इस प्रकार का कार्य करना इतना आसान नहीं होता है। ‌‌‌आमतौर पर किसी किसी एक धातु को दूसरी धातु के अंदर बदलने के लिए उसके नाभिक के अंदर बदलाव करना जरूरी होता है।

और पीछले काफी सालों से जो लोग पदार्थ से सोना बनाने का प्रयास कर रहे थे वे पदार्थों की नाभिक के अंदर कोई भी बदलाव नहीं कर पा रहे थे । क्योंकि उनके पास कोई भी मशीनरी भी नहीं थी। ‌‌‌1919 ई के अंदर रदरफोर्ड ने  नाइट्रोजन को ऑक्सीजन के अंदर बदलकर दिखाया था लेकिन इसके लिए उन्होंने पदार्थ की नाभिक के अंदर ही बदलाव किया था।

‌‌‌पहली सोना बनाने वाली कम्पनी

वॉन ल्यूडेनड्रॉफ ने हिटलर के काल के अंदर एक ऐसी कम्पनी बनाई जिसके अंदर यह दावा किया गया था कि वह अपने कस्टमर को शैयरों के बदले सोना देगी ।जर्मनी का फ़ैज़ टाउसेंड  ने रदरफोर्ड से प्रेरणा ली थी और उसकी इस कम्पनी के अंदर 5 प्रतिशत हिस्सेदारी थी।

‌‌‌इस कम्पनी ने अपना खूब प्रचार प्रसार किया और इसी वजह से बहुत से लोगों ने इस कम्पनी के अंदर निवेश भी कर डाला ।1926 में ल्यूडेनड्रॉफ ने इस कम्पनी से इस्तीफा देदिया और सारे अधिकार फैज को सौंप दिये गए ।उसके बाद फैज ने सोना बनाने के बहुत सारे प्रयास किये लेकिन वह असफल होगया और उसके बाद उसे ‌‌‌पकड़ लिया गया और दगाबाजी के आरोप मे जेल के अंदर बंद कर दिया गया था।

‌‌‌पारस पत्थर की एक प्राचीन कहानी

‌‌‌पारस पत्थर की एक प्राचीन कहानी

हिदु धर्म ग्रंथों के अंदर पारस पत्थर की अनेक कहानी मिलती हैं। इसी तरह की यह एक कहानी है।इस कहानी के अनुसार एक बार एक ब्रहा्रमण अपनी गरीबी से तंग आकर भगवान शिव का तप करने लगा । उसके बाद भगवान शिव ने उनको दर्शन दिये और कहा कि ‌‌‌वृदांवन के अंदर एक स्वामी जी रहते हैं उनके पास जाकर पारस पत्थर मांग लेना है।उसके बाद ब्रह्रामण उन स्वामी जी के पास गए तो देखा कि वे मात्र फटे कुर्ते के अंदर रहते हैं तो ब्रह्रामण को शंका हुई लेकिन वरदान के अनुसार उन्होंने स्वामी जी से पारस पत्थर मांग लिया ।

‌‌‌उसके बाद गोस्वामी जी बोले की जब वे एक दिन यमुना नदी के अंदर स्नान करके आ रहे थे उनका पैर पारस पत्थर से टकरा गया था। उसके बाद उन्होंने उसको वहीं पर गाड़ दिया । ‌‌‌तुम उसको जाकर निकाल ला सकते हो । उसके बाद ब्रह्रामण वहां पर गया और पारस पत्थर को निकालकर लौहे से सोना बना लिया । बाद मे ब्रह्रामण को एहसास हो गया कि स्वामी जी के पास पारस पत्थर से भी अमूल्य वस्तु है। तभी तो उन्होंने इतने कीमती पत्थर को भी तुछ समझा । ‌‌‌उसके बाद ब्रह्रामण स्वामी जी के पास गए और उनसे दीक्षा लेली ।

पारस पत्थर की पहचान क्या है ?

पारस पत्थर की पहचान करना मुश्किल है और इसके बारे मे यह कहा गया है कि इसको वही पहचान सकता है जिसको इसके बारे मे जानकारी है। यह पूरी तरह से गुप्त है ।

‌‌‌क्या पारस पत्थर एक जादुई चीज है ?

संभव है कि पारस पत्थर एक जादुई चीज हो ।क्योंकि कई ऐसी कहानियां ऐसी मिलती हैं जिसके अंदर यह उल्लेख मिलता है कि पारस पत्थर एक जादुई चीज है और उसको अपनी शक्तियों से उत्पन्न किया गया था।

‌‌‌क्या सच मे पारस पत्थर होता है ?

देखिए यह कहना बहुत ही मुश्किल होता है।क्योंकि इस दुनिया के अंदर जितने रहस्य आंखों से देखे जा सकते हैं। उससे कई गुना रहस्य ऐसे हैं जो हम आंखों से नहीं देख सकते हैं। संभव है पारस पत्थर मौजूद हो और हम इसको खोजने का सही तरीका नहीं जानते हों । ‌‌‌कुल मिलाकर इस प्रकार की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है।हालांकि विज्ञान इस प्रकार की किसी चीज से इनकार करता है लेकिन विज्ञान इस बात को भी मान चुका है कि इस सृष्टी के अंदर बहुत सारे रहस्य हैं जिन तक विज्ञान की पहुंच अभी भी नहीं है।

This Post Has One Comment

  1. ramjan

    sir kya paars mani se sche me gold banta hai kya

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arif khan

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