जल्लाद के बारे मे जानकारी जल्लाद की सैलरी

‌‌‌इस लेख के अंदर हम आपको जल्लाद के बारे मे जानकारी और जल्लाद की सैलरी की विस्तार से चर्चा करेंगे । जल्लाद के बारे मे यह कहा जाता है कि जल्लाद का दिल पत्थर का होता है। यदि उसका दिल पत्थर का नहीं होता तो वह एक इंसान को अपने हाथों से कैसे मार सकता है। कुछ लोग सोचते हैं कि जल्लाद नशे के अंदर धुत होता है। लेकिन वास्तव मे ऐसा कुछ नहीं होता है। ‌‌‌आइए जानते हैं। इस लेख के अंदर भारत के बचे एक मात्र जल्लाद परिवार से ।पवन जल्लाद परिवार से हैं उनकी सारी पिढियों ने जल्लाद का ही काम किया है।

‌‌‌दुनिया के अंदर सबसे बड़ी सजा फांसी की सजा होती है। जिसको हम मौत की सजा भी कह सकते हैं। कई देसों के अंदर कैदी को आसान मौत इंजेक्सन देकर भी दी जाती है। जबकि कुछ देशों के अंदर कैदी को तड़पाकर मौत के घाट उतारा जाता है।

‌‌‌भारतिय जल्लाद की जानकारी

‌‌‌भारतिय जल्लाद की जानकारी

भारत के अंदर सिर्फ एक परिवार ही ऐसा है जो जल्लाद का काम करता है। बाकि कोई भी परिवार ऐसा नहीं है जो इस काम को करने की इच्छा रखता हो ।उत्तर प्रदेश के मेरठ जिलें के अंदर कुलाराम के जल्लाद खानदान का अकेला विरिस पवन कुमार ही बचा है। यह इस पैसे को जिंदा रखने की को ‌‌‌जिंदा रखने की कोशिश के अंदर लगा है।

‌‌‌पवन बताते हैं कि जल्लाद का काम उनका परिवार बहुत पहले से करता आ रहा है। पहले उनके परदादा अंग्रेजों के जमाने के अंदर जल्लाद थे । उन्होंने ही भगतसिंह राजगुरू को फांसी पर लटकाया था ।पवन की परदादा की मौत के बाद उनके दादा कालुराम ने भारत सरकार के इस काम को विरासत के अंदर सम्भाला । उसके बाद कालू ‌‌‌राम ने यह काम मम्मू को सौंप दिया था ।कुछ साल पहले मम्मू जल्लाद की भी मौत हो चुकी है।

‌‌‌पहली बार जब पवन जल्लाद ने देखी जेल

जब पवन 25 साल के थे तब जल्लाद कालू राम के साथ मेरठ जेल के अंदर गए थे । तब उनको पहली बार जेल देखने का मौका मिला था । इससे पहले उन्होंने जेल नहीं देखी थी ।पवन ने बताया कि जब दादा कालू जल्लाद जेल के अंदर गये तो उनका रूतबा देखते ही बनता था । एक जल्लाद होने के ‌‌‌बाद भी संतरी मेरे दादा को सैल्यूट मारते देख मेरा सीना गर्व से चौड़ा हो गया । जेल के अंदर जल्लाद का भी काफी ज्यादा रूतबा रहता है। लेकिन जल्लाद बनना हर किसी के बस की बात नहीं है। हमारा एक परिवार ही जल्लाद का काम करता है जो अब यह काम बंद करने की कगार पर आ चुका है।

‌‌‌फांसी देने के के मेरे अनुभव जल्लाद पवन

जल्लाद पवन बताते हैं कि फांस का केस कम ही आता है। पंजाब के अंदर पटियाला मे 5 भाइयों की हत्या करने वाला भाई फांसी पर चढ़ते वक्त बिल्कुल भी नहीं घबराया । वहीं जयपुर की एक घटना है फांसी की सजा पाया आरोपी राम राम करते हुए फांसी के तख्ते की ओर जा रहा था ‌‌‌मैंने देखा की वह बहुत अधिक डरा हुआ है। उसके बाद मैंने उसके पैरों के अंदर रस्सी बांधी मैं भी बिल्कुल बैचेन सा हो गया । मेरे दादा सब कुछ समझ चुके थे । उन्होंने मुझे कैदी से दूर होने को कहा और रस्सी को खींच लिया । पलभर के अंदर ही आरोपी मर गया ।

‌‌‌फांसी घर के अंदर भी मौजूद रहता है मजिस्ट्रेट

यदि फांसी की सजा पाया मुजरिम यदि अपनी अंतिम इच्छा जाहिर नहीं करता है और फांसी के तख्ते पर खड़े होने के बाद भी वह अपनी अंतिम इच्छा जाहिर कर सकता है। वहां पर लिखी वसीयत को भी कानूनी मान्यता मिलती है।

‌‌‌कैसे बनाये जाते हैं फांसी के फंदे ?

फांसी का फंदा बनाना भी हर किसी के बस की बात नहीं होती है। फांसी का फंदा बनाने मे बिहार के बक्सर जिले के कैदियों को महारत हासिल है। फांसी के फंदे को घी मलकर और घंडे की मदद से बनाया जाता है। फंदे को मुलायम रखा जाता है। ताकि आरोपी को तकलिफ ना हो ।

‌‌‌फांसी भोर के समय ही क्यों दी जाती है?

फांसी को भोर के अंदर देने के पीछे कई सारे कारण मौजूद हैं। सबसे पहला कारण तो यह है कि आरोपी के परिवार वाले उसकी देह को आसानी से ले जा सकें । और धर्म और रिति रिवाज ‌‌‌के अनुसार उसका दाहसंस्कार कर सके ।इसके अलावा यदि कोई आरोपी बच जाता है तो उसकी जिंदगी बचाने की हर संभव कोशिश की जाती है। लेकिन अभी तक ऐसा कोई मामला सामने नहीं आया है।

‌‌‌ऐसा हो जाता है तो आरोपी बच सकता है

यदि फांसी पर लटकाए जाते समय रस्सी टूट जाती है । तो ऐसी स्थिति के अंदर कैदी को दुबारा फांसी पर नहीं लटकाया जा सकता । या यदि कोई कैदी अस्वस्थ हो । खाली पेट कैदी को फांसी पर नहीं लटकाया जा सकता । इसके अलावा यदि फांसी पर लटकाने के बाद बच गया हो ।

‌‌‌भारतिय जल्लाद की जानकारी

‌‌‌जज फांसी की सजा लिखने के बाद पेन क्यों तोड़ देतें हैं?

जज फांसी की सजा लिखने के बाद पेन इस वजह से तोड़ देते हैं क्योंकि उस पेन से इससे खतरनाख कोई शब्द नहीं लिखा जा सकता ।जिस पेन से मौत जैसा भयानक शब्द लिखा जा चुका है। ऐसे पेन की उपयोगिता को समाप्त करना ही अच्छा है। जज उस पेन से जुड़ी ‌‌‌यादे नष्ट कर देते हैं। जज कभी भी अपने सुनाए फैसले को वापस नहीं ले सकते ।

‌‌‌फांसी लगाने से पहले बोलता है जल्लाद

जल्लाद फांसी लगाने से पहले बोलता है। यदि आरोपी हिंदू है तो राम राम बोलता है। और यदि आरोपी मुस्लिम है तो सलाम बोलकर कहता है। माफ करना भाइयों मैं तो हूकम का गुलाम हूं ।

मम्मू जल्लाद जिसने कई आरोपियों को फांसी पर लटकाया था ।

मम्मू बताते हैं कि उनके दादापर दादा जल्लाद का काम अंग्रेजों के जमाने से करते आरहे हैं। मम्मू बताते हैं कि 1973 के अंदर पिता के सहयोग से पहली बार आरोपी को फांसी पर लटकाया था । कल्लू और मम्मू तब पहली बार चर्चा के अदर आये थे जब 1982 के अंदर रंगा बिल्ला को फांसी पर लटकाया था । मम्मू जल्लाद कहते हैं कि देस की सरकार एक आतंकवादी पर 94 करोड़ रूपये खर्च कर देती है। और एक जल्लाद के लिए एक रूपया भी खर्च नहीं कर पाती है।अब हम लोग भी इस पुश्तेनी पैसे को छोड़ रहे हैं। ‌‌‌मम्मू के दादा ने सरदार भगत सिंह को फांसी पर लटकाया था । जिसका गम उनको आज भी है। यह काम उन्होंने अंग्रेजों के हुकुम से किया था । बताते हैं। की मम्मू की यह अंतिम इच्छा थी की वह अबजल गुरू कसाब को फांसी पर लटकाए लेकिन उनकी तमन्ना पूरी नहीं हो सकी । जबलपुर, दिल्ली और पंजाब के अंदर कई 15 आरोपियों को फांसी पर लटका चुके मूम्मू जल्लाद ने आखिरी फांसी सन 1997 के अंदर जयपुर के कामता तिवारी को दी थी ।1989 के अंदर काल्लू और मूम्मू जल्लाद ने इंदिरा गांधी के हत्यारों को फांसी पर लटकाया था ।

‌‌‌वैसे अब देस के अंदर जल्लादों की कमी है। कोई फांसी देने वाला है भी नहीं । और जो जल्लाद के पोते हैं। वे इस काम को करना भी नहीं चाहते हैं। इसके पीछे कई सारी वजहें मौजूद हैं। एक जल्लाद को इतना कम पैसा मिलता है कि कोई इस बेकार काम को नहीं करना चाहता है। अब देखना यह है कि क्या सरकार जल्लादों की ‌‌‌भर्ति निकालेगी ।

जल्लाद नाटा मलिक

कोलकता की अलीपुर जेल के अंदर नाटा मलिक जल्लाद रह चुके हैं। सन 2009 के अंदर उनके पिता शिवलाल का निधन हो चुका है। उनके पिता अंग्रेजों के जमाने के जल्लाद थे । उन्होंने कई सारे आरोपियों को फांसी पर लटका दिया था । ‌‌‌उस समय नाटा मलिक चर्चा के अंदर आए जब 2004 के अंदर धनंजय चटर्जी को फांसी पर इस वजह से लटकाया क्योंकि उसने 14 साल की बच्ची से दुष्क्रम किया था ।उन्हें पश्चिम बंगाल से भी फांसी के लिए बोला गया । लेकिन उन्होंने शर्त रखी की उनके बेटे को सरकारी नौकरी देंने पर ही वे फांसी के लिए आएंगे । ‌‌‌बंगाल सरकार ने यह बात मानली ।

अहमद जल्लाद

मम्मू की मौत के बाद अहमद जल्लाद ने इस काम को अपने हाथ मे लिया । वे बताते हैं। कि उनको आज भी 40 लोगों को फांसी पर लटकाने का गम सताता है। चाहे कुछ भी हो जाए वे अपने बेटे को इस काम के अंदर नहीं धकेलना चाहेंगे ।तीन भाइयों को उनके पिता के सामने फांसी पर लटकाने की घटना आज भी परेशान करती है।

जल्लाद की सैलरी

‌‌‌आप यह सोच रहे होंगे की जल्लाद को कोई अच्छी सैलरी मिलती होगी । लेकिन ऐसा कुछ नहीं है। ब्रिटिश सरकार के काल मे जल्लाद को 10 रूपये प्रति फांसी की दर तय थी । और बाद मे बढ़कर 100 रूपये तक हो गई। अब एक जल्लाद को 3000 रूपये से लेकर 5000 रूपये महिना मिलते हैं। वो भी नाम है। रियल मे यह भी समय पर ‌‌‌नहीं मिलते हैं।

प्राचीन काल मे जल्लाद कैसे सजा देते थे

दोस्तों आज की तरह की प्राचीन काल मे भारत के अंदर जल्लाद होते थे । और यह सरकारी कर्मचारी होते थे । इनको अपने काम के बदले पैसा दिया जाता था । लेकिन सजा देने का तरीका प्राचीन काल के अंदर क्रूरू होता था ।प्राचीन भारत में, जल्लादों को “चौकीदार” या “वधक” कहा जाता था। वे आमतौर पर सरकारी कर्मचारी होते थे,

प्राचीन काल मे सजा देने के कई सारे तरीके थे । जिसके बारे मे हम यहां पर बात कर लेते हैं।

जैसे कि गोदना मे अपराधी के शरीर के अलग अलग जगहों पर लौहे के टुकड़ों को चुभो दिया जाता था , और इसकी वजह से अपराधी को बहुत अधिक दर्द होता था और वह मर जाता था ।

इसके अलावा फांसी एक आम तरीका था , जिसके अंदर अपराधी को एक फंदे से लटका दिया जाता था , और सांस रूकने की वजह से उस अपराधी की मौत हो जाती थी ।

और एक तरीका यह भी होता था , कि अपराधी को आग के अंदर जिंदा ही चला दिया जाता था , जिसकी वजह से वह तड़प तड़प कर मर जाता था ।

और सजा देने का सबसे अधिक क्रूरू तरीका यह होता था , कि अपराधी को जिंदा जमीन के अंदर दफन कर दिया जाता था , और उसके सिर को बस बाहर रखा जाता था , जिससे कि अपराधी तड़प तड़प कर मर जाता था ।

सड़ने के लिए छोड़ देना भी एक प्रकार की सजा होती थी , जिसमे की अपराधियों को जंगल के अंदर मरने के लिए छोड़ दिया जाता था , जिससे कि जंगली जानवर उनको खा जाते थे ।

‌‌‌जल्लाद और फांसी से जुड़े कुछ तथ्य

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arif khan

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